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दिल्ली एक जीता जागता नर्क है

जिन लोगों को स्वर्ग और नर्क की अवधारणा में यकीन है या जिन लोगों ने गरुड़पुराण पढ़ा या सुना है उनको पता होगा कि नर्क कैसा होता है। वहां मवाद और खून की नदियां बहती हैं, खाने और पीने को कुछ नहीं मिलता है, विशाल आकार के दूत कोड़े और मुगदर से मारते हैं, कहीं आग से जलाया जाता है तो कहीं खौलते तेल की कड़ाही में डाल दिया जाता है आदि आदि। अगर सचमुच धरती से 99 सहस्त्र योजन दूर स्थित नर्क ऐसा ही है तो उसे देखने के लिए वहां जाने की कोई जरुरत नहीं है। दिल्ली के लोग खुश हो सकते हैं कि वे धरती पर ही उसके दर्शन कर रहे हैं। यहां यमुना नाम की एक पवित्र नदी है, जिसमें लगभग पूरे साल पानी नहीं होता है लेकिन दिल्ली की सड़कों पर बने बड़े बड़े गड्डों में बारिश के पानी की नदियां बहती रहती हैं और उनमें डूब कर लोग मरते रहते हैं।

इमारतों की बेसमेंट में भी बारिश के पानी की नदियां बहती हैं और उनमें भी डूब कर लोग मर जाते हैं। कहीं बेतरतीब बनी इमारतों में आग लग जाती है, जिससे लोग जल कर मर जाते हैं तो कहीं राह चलते करंट लग जाता है और लोग मर जाते हैं। यहां यमराज के दूत दुकानों पर सरेआम गोलियां चलाते हैं और करोड़, दो करोड़, पांच करोड़ की फिरौती की मांग करके जाते हैं। राह चलते झगड़े हो जाएं और लोग एक दूसरे का खून कर दें, यह तो बहुत सामान्य सी बात है। इसी तरह गाड़ियों के नीचे कुचल कर लोगों का मर जाना भी बड़ी स्वाभाविक घटना है।

जरा सी बारिश होती है तो सड़कों पर इतना पानी जमा हो जाता है और रोड ओवर ब्रिजेज के नीचे ऐसी नदियां बहने लगती हैं कि सड़कों पर ट्रैफिक पूरी तरह से रूक जाता है। लोग घंटों गाड़ियों में बैठे रहते हैं। कायदे से बारिश के दिन में तो लोगों को अपनी गाड़ियों में कई दिन के खाने पीने की चीजें लेकर ही निकलना चाहिए। दिल्ली के एक पुराने रहवासी ने पिछले दिनों अपने इलाके में जलभराव और ट्रैफिक जाम को लेकर सोशल मीडिया में लिखा कि उनके इलाके में तो ठीक से ओस गिर जाए तो पानी जमा हो जाता है। असल में ऐसा दिल्ली के कई इलाकों में होता है। सोचें, हमलोगों के पूर्वजों ने कहा कि, ‘ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती’ और यहां ओस की वजह से ट्रैफिक जाम करने लायक जलभराव हो रहा है! यह अलग बात है कि प्यास बुझाने लायक पानी के लिए दिल्ली के लोगों को बड़ी मशक्कत करनी होती है। ज्यादातर समय पानी की किल्लत बनी ही रहती है।

कानून व्यवस्था का एक बड़ा संकट पहले से मौजूद है। बिहार और उत्तर प्रदेश में अब गैंगवार की खबरें कम आती हैं लेकिन दिल्ली में भाऊ गैंग, काला जठेड़ी गैंग, बवाना गैंग, बिश्नोई गैंग, बरार गैंग, हाशिम गैंग, बम्बिहा गैंग, कराला गैंग, टिल्लू गैंग, ठकठक गैंग, नमस्ते गैंग जैसे दर्जनों गैंग्स के बारे में रोज सुनने को मिलता है, जिनका शिकार बनने के लिए दिल्ली के लोग अभिशप्त हैं। अनेक गैंग तो दिल्ली के तिहाड़ जेल से ही संचालित हो रहे हैं। अभी बारिश, जलजमाव और ट्रैफिक की समस्या का समया है, थोड़े दिन के बाद प्रदूषण का समय आ जाएगा। तब लोगों का दम घुट रहा होगा और भाजपा व आम आदमी पार्टी के लोग एक दूसरे पर आरोप लगाने में लगे रहेंगे।

सवाल है कि देश की राजधानी, जहां राष्ट्रपति भवन है, जहां प्रधानमंत्री रहते हैं, देश के 140 करोड़ लोगों के सारे भाग्य विधाता रहते हैं और दुनिया के भर के देशों के राजदूत व उच्चायुक्त रहते हैं वह नर्क में कैसे तब्दील हो गई? दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की मानें तो इसे दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने नर्क बनाया है। उन्होंने अंग्रेजी के एक अखबार में लेख लिख कर यह बात कही है। हालांकि उन्होंने अपने लेख में जो विषय उठाएं हैं उनको छोड़ कर ज्यादा चर्चा इस बात पर हो रही है कि उप राज्यपाल होकर वे दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बारे में ऐसा लिख सकते हैं या नहीं? इस बहस में उनके उठाए मुद्दे, जो सीधे दिल्ली की जनता से जुड़े हैं वे हाशिए में चले गए।

बहरहाल, उप राज्यपाल का यह विचार है तो दूसरी ओर चुनी हुई सरकार का यह कहना है कि उप राज्यपाल की वजह से दिल्ली नर्क बनी है क्योंकि वे काम नहीं करने दे रहे हैं। यह बात वह सरकार कह रही है, जिसके मुखिया दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। वे पिछले करीब छह महीने से जेल में हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है। जाहिर है मुख्यमंत्री बाहर नहीं हैं तो कैबिनेट की बैठक नहीं हो रही है और कोई फैसला लोगों की जरुरतों या स्थितियों के मुताबिक नहीं हो रहा है। सब कुछ तदर्थ रूप से हो रहा है। सारे मंत्रियों के पास हर समस्या पर एक ही जवाब है कि उप राज्यपाल नहीं करने दे रहे हैं। सफाई क्यों नहीं हुई तो एलजी ने नहीं करने दिया। बरसात से पहले गाद क्यों नहीं निकाली, जबकि नगर निगम भी तुम्हारे पास है तो एलजी ने नहीं करने दिया। स्ट्रीट लाइट क्यों नहीं जल रही तो एलजी ने नहीं जलने दिया। सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं लगे तो एलजी ने नहीं लगने दिया।

कॉलेजों में शिक्षकों के वेतन में क्यों देरी है तो एलजी पैसे नहीं जारी कर रहे हैं। स्थायी शिक्षकों की बजाय स्कूलों में तदर्थ या अतिथि शिक्षक क्यों हैं तो एलजी ने नहीं होने दिया। अस्पतालों की हालत इतनी खराब क्यों है तो एलजी ने नहीं ठीक करने दिया। सड़कों और पार्किंग की व्यवस्था क्यों नहीं हुई तो एलजी ने नहीं करने दिया। सर्दियों में प्रदूषण से निपटने के उपाय क्यों नहीं हुए तो एलजी ने नहीं करने दिया। मतलब एलजी कोई काम नहीं करने दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी के साढ़े नौ साल के कार्यकाल में पुराने और नए एलजी ने मिल कर सारे काम रोक दिए, एलजी सिर्फ एक ही काम नहीं रोक पाए और वह है चार बंगले तोड़ कर 50 करोड़ रुपए की लागत से मुख्यमंत्री का एक विशाल, चमकता हुआ बंगला तैयार करने का। वह काम कराने में दिल्ली सरकार को कोई बाधा नहीं आई। बाकी सारे काम एलजी रोक रहे हैं।

बहरहाल, केंद्र सरकार के बनाए जीएनसीटीडी एक्ट यानी गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी दिल्ली एक्ट के मुताबिक दिल्ली के उप राज्यपाल ही असली सरकार हैं। अदालतों के कुछ फैसलों से भी दिल्ली के शासन प्रशासन पर एलजी का अधिकार स्थापित हुआ है। लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री और उनकी सरकार हर तरह की जिम्मेदारी से मुक्त हैं वैसे ही एलजी साहब पर भी किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं है। उनकी तरफ से लड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, जो दिल्ली की हर समस्या के लिए केजरीवाल सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं।

जबकि हकीकत यह है कि कई मामलों में सीधी जिम्मेदारी केंद्र की भाजपा सरकार की बनती है, जिसके प्रतिनिधि उप राज्यपाल हैं। दिल्ली में सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा और कानून व्यवस्था की है। आए दिन हत्याएं हो रही हैं। बलात्कार हो रहे हैं। लूटमार की घटनाएं हो रही हैं। बड़े बड़े गैंग्स चल रहे हैं, जो कारोबारियों की दुकानों पर गोलियां चला रहे हैं और रंगदारी के लिए धमकियां दे रहे हैं। साइबर क्राइम हो रहे हैं और पुलिस असहाय है। यह सीधे केंद्र सरकार के अधीन आने वाला विभाग है लेकिन कोई सवाल पूछे तो भाजपा के नेता कह देंगे कि दिल्ली सरकार निकम्मी है।

कुल मिला कर स्थिति यह है कि दिल्ली के लोग सचमुच भगवान भरोसे हैं। शासन की चार स्तरीय व्यवस्था है यानी दिल्ली की चुनी हुई सरकार है, दिल्ली नगर निगम है, केंद्र सरकार की शासन व्यवस्था है और सेना का कैंटोनमेंट का इलाका है फिर भी दिल्ली के लोग असहाय हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ऐसी राजनीतिक लड़ाई है कि दोनों ने संकल्प किया हुआ है कि एक दूसरे को निपटाए बिना कोई काम न करेंगे और न दूसरे को करने देंगे। दोनों पार्टियों की इस लड़ाई में दिल्ली के लोग नर्क भोग रहे हैं।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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