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पार्टी की घोषणा के बिना ही नेताजी मैदान में

Delhi electionImage Source: ANI

दिल्ली में सरकार किसकी बनती है और कौन बनता है दिल्ली का सीएम यह तो बाद की बातें हैं लेकिन सच तो यह भी है कि कांग्रेस या भाजपा में नेता इस मक़सद से तो टिकट की माँग भी नहीं कर रहे और न ही हिम्मत जुटा पा रहे हैं पर हाँ यह ज़रूर है कि पब्लिसिटी और नंबर बनाने या फिर रुतबे के लिए पार्टियों के नेता केजरीवाल के रहते खुद को उनके सामने लाना चाह रहे हैं। नई दिल्ली से जीतने वाला नेता अक्सर सीएम का दावेदार रहा है सो आप पार्टी से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस विधानसभा से मैदान आ चुके हैं ,कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप को अपना उम्मीदवार बना चुकी है रही बात भाजपा की सो अभी उम्मीदवार तय नहीं है।

दिसंबर के आख़िर में उम्मीदवार तय किए जाने की उम्मीद है। यह अलग बात है कि पार्टी ने यहाँ से उम्मीदवारी को लेकर कई बार रणनीति बनाई पर नतीजा कुछ नहीं निकला। अब जो सबसे ज़्यादा दावेदारी कर रहे हैं वे हैं पूर्व मुख्यमंत्री स्व: साहिब सिंह वर्मा के बेटे और पूर्व सांसद प्रवेश साहिब सिंह । नेताजी बाहरी दिल्ली से सांसद रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में जिन छह सांसदों के टिकट पार्टी ने काटे थे प्रवेश उनमें से एक हैं। अब पार्टी ने भले प्रवेश के नाम की घोषणा यहाँ से चुनाव लड़ने के लिए नहीं की हो पर नेताजी ने इस विधानसभा की दीवारों को अपने नाम और यहाँ से लड़ने का संकेत देकर पाट दिया है। यही नहीं सोशल मीडिया और अख़बारों में भी इसी तरह की पिछले दिनों खबरें भी छपीं हैं। Delhi election

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बाहरी दिल्ली से ही लोकसभा चुनावों में पार्टी उम्मीदवार को समर्थन देने को लेकर भी अपने ये नेताजी सुर्ख़ियों में रहे थे। और तो और पिछले दिनों कार्यकर्ताओं की मीटिंग में भी कुछ ऐसे ही संकेत दिए गए कि मानो वे नई दिल्ली से पार्टी उम्मीदवार है और सीएम के दावेदार हों । साथी नेताओं ने तो इस मीटिंग में यहाँ तक कह भी डाला कि उन्हें इन नेताजी को जिताना है पर शायद भाजपा की ज़मीन पर अभी ऐसा कुछ भी नहीं बताया जा रहा है। कि नेताजी उम्मीद हैं भी या नहीं ।या यह मानिए कि अभी सिर्फ़ ख्याली पुलाव वाली बात। Delhi election

यह ज़रूर है कि नेताजी ने इस मीटिंग में खान-पान की व्यवस्था ज़रूर की थी और नई दिल्ली की सांसद बांसुरी स्वराज इसमें मौजूद थीं।अब भला नेताजी अपने संसदीय क्षेत्र की दस विधानसभाओं में किसी एक से लड़कर बाहर की नई दिल्ली से लड़ने की इच्छा क्यूं जता रहे हैं भाजपा ही नहीं बाक़ी राजनीतिक दलों में भी यह चर्चा का सवाल बना हुआ है।

यूँ नेताजी जाट विरादरी से ताल्लुक़ रखते हैं पर नई दिल्ली विधानसभा में जाट वोटों की संख्या न के समान मानिए। यहाँ वाल्मीकि,धोबी ,वैश्य दलित, उत्तराखंड के और पंजाबी आदि वोटर तो हैं पर जाट या मुस्लिम वोटरों की संख्या तो बेहद कम है। ऐसे में अपने ये नेताजी किसके दम पर चुनाव का दम भर रहे हैं यह तो राम जाने पर हाँ अगर आकाओं का फ़ैसला साम दाम दंड भेद से जीतने का ही होगा तो बाक़ी तो सभी कुछ नगण्य ही होना है। यह बात दूसरी है कि खुद भाजपा के नेता भी अपने बूते 70 में से 20 से 25 सीटें जीत पाने के दम के साथ केजरीवाल की सरकार एक बार बनते देख रहे हैं।

चुनावी तैयारियों में पिछड़ती भाजपा

दिल्ली में सरकार किसकी बनती है यह भले इंतज़ार की बात हो लेकिन सरकार बनाने की कोशिश में तो फिलाहल भाजपा से कहीं आगे हैं। आप और भाजपा के ख़िलाफ़ तक़रीबन 60 जगहों पर प्रदर्शन और दिल्ली न्याय यात्रा निकाल कर कांग्रेस ने वोटरों के दिलों में कहीं न कहीं जगह ज़रूर बनाई है। या यूँ कहिए कि अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेन्द्र यादव चुनावी तैयारी में कहीं आगे निकल चुके हैं। विधानसभा की 70 सीटों के लिए अब तक 21 सीटों के उम्मीदवार तय किए जा चुके हैं और दिसंबर के आख़िरी दिनों में बाक़ी विधानसभाओं के उम्मीदवार तय कर दिए जाने हैं। Delhi election

यह अलग बात है कि आप पार्टी अपनी तैयारी को लेकर कांग्रेस और भाजपा को चुनौती दिए हुए हैं पर यह भी ज़रूर है कि कांग्रेस दिल्ली की सत्ता में वापिसी के लिए हर कोशिश में लगी है। दिल्ली में केजरीवाल सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के साथ ही अड़ानी मामले को लेकर कांग्रेस अब हर रोज़ सड़कों पर अपनी आवाज़ बुलंद करती दिख रही है। कांग्रेस नेताओं की मानो तो वह अपनी चुनावी तैयारी या दोनों सरकारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा यह बता देना चाहती है कि वह बाक़ी दोनों पार्टियों से कहीं कमतर नहीं है और पूरी मुस्तैदी के साथ दिल्ली जीतने के लिए चुनावी मैदान में उतरेगी।

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अब भले भाजपा क़रीब तीन दशक का अपना वनवास ख़त्म कर दिल्ली जीतने को बेताब हो पर फिलाहल तो वह आप ही नहीं बल्कि कांग्रेस से भी चुनावी तैयारी में पीछे है। कांग्रेस अगर 21 उम्मीदवार तय कर चुकी है तो आप के 31उम्मीदवार तय किए सजा चुके हैं। दिल्ली की गलियों और चौबारों तक आप के नेता संपर्क किए हुए हैं। महिला सम्मान योजना के तहत आप महिलाओं को हर महीने 2100 रूपये देने का भरोसा देकर अपना वोट बैंक तैयार करने में लगी है। मुफ़्त बिजली पानी ,बसों में मुफ़्त महिलाओं को यात्रा की सुविधा और अब 2100 रूपये की सौग़ात देकर वह भाजपा और कांग्रेस की आँखों की किरकिरी बनी हुई है। Delhi election

पर शहर में आप की चर्चा भी है। अब भाजपा के इरादे क्या हों यह दूसरी बात है पर दूसरे राज्यों में सबसे पहले उम्मीदवार तय करने वाली भाजपा दिल्ली में तो पिछड़ी दिख रही है। चर्चा तो यह भी है कि भाजपा की इस देरी के लिए कहीं न कहीं प्रदेश संगठन में बदलाव की खबर भी चल निकली है। कहा तो जा रहा कि विधानसभा चुनाव एक बड़ा चुनाव है और खास कर इस बार का सो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को बदल कर कोई बड़ा चेहरा सामने लाकर भी चुनावी मैदान में उतर सकती है। लेकिन वो कौन? बस इसी का इंतज़ार है।

ज्योतिषी की शरण में नेता

यूँ नेताओं को भले मंदिर जाने की फ़ुरसत न होती हो पर चुनावों में उन्हें न सिर्फ़ मंदिर जाना याद रहता है बल्कि वे पंडित ,ज्योतिषियों और मौलवियों की गणेश परिक्रमा से भी दूरी नहीं रख पाते हैं। या यूँ कहिए कि जीत के लिए ये कोई भी जतन करने को तैयार रहते हैं। फिर आप पार्टी के एक बड़े नेता कैसे चूकते आख़िर इस बार सत्ता को लेकर भाजपा से आप-पार लड़ाई जो हैं। पर हाँ नेताजी मंदिर जांए और किसी आम आदमी की आँखें नेताजी से दो-चार हो जांए तो नेताजी का थोड़ा असहज होना भी लाज़मी ही है ।

ऐसा ही हुआ अपने आप पार्टी नेताजी का। नेताजी मंदिर पहुँचे पंडित जी से मिले ,गपशप हुई और बात आगे चली तो तो नेताज ने पंडित जी से चुनाव जीतने के लिए आशीर्वाद तो माँगा ही साथ ही विद्या भी । आखिर क्या जतन किया और क्या नहीं इसमें घंटा गुजर गया। अब भला ज्योतिषी ने क्या कहा और क्या नहीं यह तोसुनना मुश्किल ही था पर यह ज़रूर सुना गया कि एक तो पुराने विधायकों में बदलाव किया और दूसरे चुनाव चिन्ह या नहीं झाड़ू का रंग भी। Delhi election

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भला अब ज्योतिषी की बात नेताजी की समझ में क्यों न आती। भला हो अपने आप पार्टी के उन नेताजी का कि वे ज्योतिषी की बात समझ बैठे।और तभी अब पार्टी हलकों में यह चर्चा शुरू हो ली है कि आप पार्टी के चुनाव चिन्ह और प्रचार सामग्री का रंग यानी झाड़ू और पोस्टर बैनर आदि। का रंग अब जल्दी ही सफ़ेद से काला कर दिया जाना है। यूँ काला रंग तो बुरी नज़र के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तो आप पार्टी को किसी नज़र लगती है और उसका नतीजा क्या आता है इंतज़ार इसका रहना ही है,अब यह अलग बात रही कि पार्टी की तरफ़ से यह जानकारी किसी को कब दी जाए।

By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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