देश की शिक्षा व्यवस्था में ऐसी क्या कमी है कि विद्यार्थियों को एक्स्ट्रा कोचिंग लेनी पड़ती है? स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम को ऐसा क्यों नहीं बनाया जाता कि जिस भी विद्यार्थी को सिविल सेवाओं या अन्य किसी विशेष सेवा में जाना हो तो उसे उसी के कॉलेज में वह शिक्षा मिले? यदि एक्स्ट्रा कोचिंग ज़रूरी हो तो भी तमाम कोचिंग सेंटर को मौजूदा स्कूल और कॉलेजों में ही क्यों न चलाया जाए?
देश की राजधानी दिल्ली में कोचिंग सेंटर में हुए हादसे ने सभी को हिला दिया है। जिसे देखो वो कोचिंग सेंटर के संचालकों पर उँगली उठा रहा है। जबकि ऐसे हादसों में केवल उनकी गलती नहीं होती। यह बात जग-ज़ाहिर है कि हर एक कोचिंग सेंटर के साथ एक संगठित क्षेत्र जुड़ा होता है। फिर वो चाहे वहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों के रहने के लिए हॉस्टल व्यवस्था हो, भोजन व्यवस्था वाले हों, किताब की दुकानें हों या अन्य संबंधित व्यवस्था प्रदान करने वाले हों। परंतु जब भी कभी कोई हादसा होता है तो केवल कोचिंग सेंटर को ही कटघरे में क्यों लाया जाता है?
क्या कोचिंग सेंटर चलाने की अनुमति प्रदान करने वाली एजेंसियाँ इसकी ज़िम्मेदार नहीं हैं ?
दिल्ली के राजेंद्र नगर में हुए राउस आईएएस स्टडी सेंटर के हादसे के बाद से ही देश भर में कोचिंग सेंटर चलाने वाली कई नामी संस्थाएँ सवालों के घेरे में आ गई हैं। इन पर आरोप है कि ये नियम और क़ानून के अनुसार अपने कोचिंग सेंटर नहीं चलाते। एक-एक कक्षा में क्षमता से ज़्यादा विद्यार्थी भर्ती कर लेते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में देश के कोने-कोने से आए हुए विद्यार्थियों को छोटे-छोटे पिंजरों में रहने को मजबूर होना पड़ता है। दिल्ली के रिहायशी इलाक़ों की तंग गलियों में भी क्षमता से अधिक लोग दिखाई देते हैं।
ऐसे में कोचिंग सेंटर और उनसे जुड़े अन्य उद्योग, जैसे कि ‘पेइंग गेस्ट’, हॉस्टल, किताब घर, छोटे-छोटे ढाबे आदि नियम और क़ानून की परवाह किए बिना अधिक से अधिक विद्यार्थियों की सेवा में लग जाते हैं। यहाँ सवाल उठता है कि क्या ये सब रातों-रात हो जाता है? क्या स्थानीय पुलिस, नगर निगम आदि सोते रहते हैं? क्या इन सभी को कोई टोकता नहीं है?
सबसे पहले बात करें पुलिस की। एक पुलिस अधिकारी से बात करने पर पता चला कि जैसे ही कोई अपने रिहायशी मकान में या नगर निगम द्वारा मान्यता प्राप्त दुकान में कुछ भी छेड़-छाड़ करता है, तो पुलिस की ज़िम्मेदारी केवल नगर निगम को इत्तला देने की होती है। इस इत्तला की जानकारी पुलिस को अपने रोज़नामचे में भी करनी चाहिए।
पुलिस के अनुसार यदि इत्तला देने के बावजूद नगर निगम अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं करते तो पुलिस उसी हिसाब से रोज़नामचे में एंट्री कर देती है। जब तक कि किसी भी तरह की क़ानून व्यवस्था की समस्या न हो पुलिस अपनी सीमित ज़िम्मेदारी निभाती है। परंतु क्या ऐसा वास्तव में ज़मीनी स्तर पर होता है?
अब बात करें नगर निगम की। क्या पुलिस द्वारा इत्तला किए जाने पर निगम के अधिकारी ‘उचित क़ानूनी कार्यवाही’ करते हैं या देश भर के नगर निगमों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मकड़ जाल का हिस्सा बन वे भी अनदेखी कर देते हैं। यदि कभी कार्यवाही करनी भी पड़े तो केवल औपचारिकता निभा कर छोटा-मोटा हथौड़ा चला देते हैं। परंतु वास्तविकता कुछ और ही है।
क़रीब तीस वर्षों से एक निजी कोचिंग सेंटर चालाने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे जो बताया वो हतप्रभ करने वाली जानकारी है। उनके अनुसार जब भी और जहां भी एक कोचिंग सेंटर खुलता है वहाँ एक पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है। इस तंत्र का हिस्सा हर वो व्यक्ति होता है जो कोचिंग सेंटर के चलने के हर पहलू का ध्यान रखता है।
भारत जैसे देश में जहां किसी भी क्षेत्र में अगर कोई कामयाब हो जाता है तो उस दिशा में भेड़-चाल शुरू हो जाती है। हमारे देश में विभिन्न एजेंसियों के अधिकारियों पर लापरवाही करने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान क्यों नहीं है, जिससे सबक़ लेकर अन्य अधिकारी ऐसी गलती न करें? इस हादसे की यदि एक निष्पक्ष जाँच हो तो सभी तथ्य सामने आ जाएँगे। यदि ऐसा होता है तो बरसों से चले आ रहे इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बने अधिकारी और नेताओं का भी भंडाफोड़ हो सकता है।
ग़ौरतलब है कि देश की शिक्षा व्यवस्था में ऐसी क्या कमी है कि विद्यार्थियों को एक्स्ट्रा कोचिंग लेनी पड़ती है? स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम को ऐसा क्यों नहीं बनाया जाता कि जिस भी विद्यार्थी को सिविल सेवाओं या अन्य किसी विशेष सेवा में जाना हो तो उसे उसी के कॉलेज में वह शिक्षा मिले? यदि एक्स्ट्रा कोचिंग ज़रूरी हो तो भी तमाम कोचिंग सेंटर को मौजूदा स्कूल और कॉलेजों में ही क्यों न चलाया जाए?
यदि ऐसा किया जाए तो कोचिंग सेंटर चलाने वालों को भी एक व्यवस्थित जगह मिल जाएगी और विद्यार्थियों को भी एक खुले वातावरण में पढ़ने का मौक़ा मिलेगा। मौजूदा कोचिंग सेंटर में जहां प्रति कक्षा लगभग 500 विद्यार्थी बैठते हैं उस पर भी रोक लगेगी। अच्छे व काबिल शिक्षकों को भी रोज़गार मिलेगा। यदि अतिरिक्त शिक्षक भर्ती न किए जा सकें तो आजकल के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक नियंत्रित ढंग से उसी बिल्डिंग में वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से विभिन्न कक्षाओं को एक साथ चलाया जा सकता है।
यदि ऐसा होता है तो स्कूल/कॉलेज की छुट्टी होने पर दूसरी शिफ्ट में कोचिंग सेंटर चलाए जा सकते हैं। इससे स्कूल/कॉलेजों को किराये के रूप में अतिरिक्त आय भी मिलेगी और कोचिंग सेंटर वालों को सस्ते दर पर जमा-जमाया कोचिंग सेंटर भी मिल जाएगा।
यदि ऐसे हादसों को रोकना है तो देश में नियम बनाने की ज़रूरत है जहां नियमों के तहत ही कोचिंग सेंटर चल पाएँ मन माने तरीक़े से नहीं। जिस तरह एक बड़ा अस्पताल, होटल या मॉल खुलता है तो उसे तमाम विभागों से अनुमति लेना अनिवार्य होता है। उसी तरह यदि सरकार चाहे तो कोचिंग सेंटर के इस तंत्र को नियंत्रित कर सकती है। ऐसे में यदि कोचिंग सेंटर और संबंधित एजेंसियाँ पारदर्शिता से अपना कर्तव्य निभाएँ तो ऐसे हादसों पर काफ़ी हद तक रोक लग सकेगी।