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तो क्या इस बार संघियों का वोट कांग्रेसी को

Delhi asseimbly electionImage Source: ANI

बड़ा दम भरा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का,पर भारत की बात तो बाद की है पहले तो खुद भाजपा ही कांग्रेस युक्त होती दिखने लगी है। अब इसके पीछे भाजपा की मजबूरी समझिए कि उसे इन विधानसभा चुनावों में अपनी जीत की उम्मीद कांग्रेस के भरोसे ही है। और तो और कई विधानसभा में तो कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट देना तक भाजपा की मजबूरी देखी जा रही है। शहर में चर्चा तो यहाँ तक हो चली है कि कांग्रेस को जिताने के लिए भाजपा उसकी हर मदद को तैयार होती दिख रही है। मज़े की बात देखिए कि कस्तूरबा नगर विधानसभा से भाजपा ने 2013 और 2015 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हारे पूर्व कांग्रेसी विधायक को उम्मीदवार बनाया है।

यही नहीं आम आदमी पाटी ने भी कांग्रेस की टिकट पर निगम का चुनाव हार चुके को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने तो पार्षद रहे कांग्रेसी को हा अपना उम्मीदवार बनाया है। तब भला लोग यह कहें कि कांग्रेस मुक्त भारत के बजाए सभी पार्टियाँ कांग्रेस युक्त दिख रही हैं तो इसमें खिसियाने के सिवाय भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं के पास बचता भी क्या है। अब भाजपा में कितना दम बाक़ी है और क्या दिखेगा यह तो इंतज़ार की बात रही पर इसी विधानसभा के लाजपत नगर ,अमर कालोनी में तो भाजपा कार्यकर्ताओं को कई जगहों पर मुश्किल का सामना तक करना पड़ रहा है। पिछले हफ़्ते जब संघ व भाजपा कार्यकर्ताओं की एक टोली बाज़ार से गुजरी तो एक बुजुर्ग चुस्की लेने से नहीं चूके।

बोले जिस कांग्रेस को भाजपाई पानी पी-पी कर कोसते थे आज उसी कांग्रेसी को उन्हें सिर माथे बैठाना पड़ रहा है। आज भाजपा को मन मार कर कांग्रेसी के लिए काम करना पड़ रहा है, जिताने के लिए वोट देना पड़ रहा है, दिलवाना पड़ रहा है।और जो भाजपा के हाथों थोपे गए कांग्रेसी उम्मीदवार को देख नाक मुँह सिकोड़ रहे थे वोट उन्हें भी कांग्रेसी को ही देना पड़ेगा। तब भला बताओ मोदी जी का भारत कैसे कांग्रेस मुक्त हो पाएगा ।

चुनाव में अपनों से ही जूझती कांग्रेस
कांग्रेस के नेता भले यह कह रहे हों कि कांग्रेस पूरे दमख़म से विधानसभा का यह चुनाव लड़ रही है या फिर भाजपा ी बात देकांग्रेस के सहारे जीत काज़मी भरे हों पर दिल्ली के लोग तो मान रहे हैं कि कांग्रेस चुनाव से पहले ही खुद हारा हुआ मान चुकी है। उम्मीदवारों के साथ नामांकन भरवाने जाने की बात तो छोड़िए वे घर से बाहर निकलने को ही राज़ी नहीं हैं। सालों तक दिल्ली की सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस आख़िर आज क्या संदेश देना चाहती है। और तो और कई विधानसभा में तो उम्मीदवार के साथ कार्यकर्ताओं तक का टोटा ही देखा गया। वरिष्ठ नेता के नाम पर सिर्फ़ कांग्रेस के पूर्व मंत्री अजय माकन ही नई दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित के साथ नामांकन के समय देखे गए।

जबकि भाजपा और आप पार्टी के उम्मीदवारों के नामांकन में नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में देखे गए। यह बात अलग है कि भाजपा की इस भीड़ में वोट कितने होते हैं पर आप उम्मीदवारों के साथ समर्थकों का हुजूम ज़रूर देखा गया। आर के पुरम से कांग्रेस उम्मीदवार विशेष टोकस नेता दूर दूर तक नहीं देखा गया। पदयात्री निकली तो उसमें शामिल कांग्रेस समर्थकों की भीड़ कुछ दूर जाकर ही आप उम्मीदवार के हो चली। कालकाजी विधानसभा की बात हो तो कांग्रेस उम्मीदवार अलका लांबा चुनाव से पहले ही सरेंडर करती दिख रही हैं। आलम यह होता जा रहा है कि अलका को कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ा हुआ है। और तो और कांग्रेस के खड़ूस नेता नहीं चाहते अलका यहाँ से जीत के मुक़ाम तक पहुँचें। या यूँ कहिए कि कांग्रेस के कई नेता नहीं चाहते थे कि अलका लाइब्रेरी को कालकाजी से पार्टी उम्मीदवार बनाया जाए पर कांग्रेसियों विरोध के बावजूद अलका टिकट दी गई तो नेता विरोध में आ गए बताए जा रहे हैं।

भला अब कांग्रेसी ही यह कहें कि पिछले दिनों अलका लांबा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील आर के आनंद से मिलने और विरोधियों के साथ शांति और समझौते का पाठ करने विधानसभा में आईं तो भी नतीजा नहीं निकला । चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेस के ही एक नेता अलका पर यहाँ से चुनाव नहीं का दबाव बनाते रहे पर जब खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के सी वेणुगोपाल ने अलका को टिकट दे चुनावी मैदान में उतरने को कहा तो कांग्रेस के ही नेताओं ने अलका के रास्ते रोकना शुरू कर दिया है। हालत यह हो चली है कि अलका को कार्यकर्ताओं का मिलना मुश्किल हो चला है। लोग कह रहे हैं कि अलका को चुनाव के लिए दफ़्तर तक मिलना मुश्किल हो गया है। यह बात दूसरी है कि जिस कालकाजी विधानसभा में उम्मीदवार को परेशानी हो रही है वहीं कांके नेता दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। अब भला जब कांग्रेस ही कांग्रेस को हराने पर आमादा हो तो पार्टी सत्ता में आएगी भी तो कैसे। तभी तो लोग कहने लगे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में अपना खाता खोल लेती है तो उसका नसीब अच्छा मानिए।

मोदी के नहीं अपने काम व नाम पर भरोसा
दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए सीएम का चेहरा तलाशने में भाजपा भले थक चुकी हो और मजबूरन उसे यह चुनाव भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ना पड़ रहा हो लेकिन भाजपा में ही कुछ चेहरे ऐसे ज़रूर छिपे हैं जो अपने या अपने काम के दम पर चुनाव जीतने का दंभ रखते हैं। जी अपन बात कर रहे हैं दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता और रोहिणी से विधायक विजेन्द्र गुप्ता की। तक़रीबन तीन दशक से दिल्ली की सत्ता का वनवास झेल रही भाजपा के सामने ये चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। कांग्रेस के कंधे पर रखी भाजपा की बंदूक़ इन चुनावों में कितने वोट हासिल कर पाती है यह अलग बात है पर चुनाव जीतने के उसे गुप्ता जैसे उम्मीदवारों की ज़रूर ज़रूरत है।

यूँ अपने इन नेताजी को अपनी बाजूओं पर कितना भरोसा है इसका आधार उनके किए कामों पर निर्भर है। और तभी नेताजी अपने विधानसभा में वोट हासिल करने के मक़सद से एक पोस्टर भी जारी किया है। सोशल मीडिया पर यह पोस्टर उनके वोटरों को रिझाएगा शायद यही उम्मीद है अपने नेताजी को। पोस्टर मेडं नेताजी ने साफ़ कर दिया है कि ‘नारे को न नाम को वोट विकेन्द्रीकरण के काम को ‘ पोस्टर में नेताजी की गुज़ारिश है कि उन्हें इस चुनाव में भारी मतों से जिताया जाए। अब भला अपने नेताजी की जीत इस बार कितने वोटों से होती है यह तो इंतज़ार की बात है पर लोग ही नहीं भाजपाई भी कह रहे हैं कि दिल्ली विधानसभा में पार्टी के 68 उम्मीदवारों में कोई कोई उम्मीदवार तो ऐसा निकला जो न तो मोदी के नाम पर और न ही ‘आपदा न सहेंगे – बदल कर रहेंगे’ के नाम पर बल्कि अपने नाम और अपने काम पर वोट माँग रहा है। अब भला अपने नेताजी ने तो जीत के लिए दम लगा दिया है पर नेताजी को लेकर पार्टी कितना दम लगाती है नतीजों के साथ इसका भी इंतज़ार रहेगा भाजपाईयों को।

By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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