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दबाव के बाद आख़िरी दांव ‘आप’ पर

Delhi Assembly Election 2025Image Source: ANI

Delhi Assembly Election 2025: विधानसभा चुनावों में कांग्रेस आप पार्टी को कितना नुक़सान पहुँचा सकती है और किन दाँवपेंच को खेलकर भाजपा दिल्ली में सरकार बना सकती है इसी उधेड़बुन में आजकल भाजपा के वरिष्ठ नेता विजी बताए जा रहे हैं।

एक तरफ़ आपसे नेताओं का भाजपा की ओर पलायन और दूसरी ओर कांग्रेस और भाजपा की दबाव की राजनीति से निश्चित तौर आपपार्टी और ख़ासकर पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल टेंशन में बताए जा रहे हैं।

भले कांग्रेस इस चुनाव में आप कोउम्मीद से भी कम ही नुक्सान कर पाए पर यह ज़रूर है कि चुनावी खेल से भाजपा बल्ले ज़रूर दिख रही है।(Delhi Assembly Election 2025)

समझा जासकता है कि जब कांग्रेस 70 विधानसभा सीटों में मात्र 10-12 सीटों पर ही जीतने की उम्मीद मान रही है तो वह जीतकितनी सकेगी और आप को नुक़सान और भाजपा को फ़ायदा कितना पाएगी ।

मतदान से दो दिन पहले तक कोईविश्लेषक यह दावा नहीं कर पा रहा कि कांग्रेस कितनी सीटें जीत पाएगी।

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पर यह ज़रूर कहने का दम भरा जा रहा किआप पार्टी कम से कम कितनी सीटें जीत लेगी या फिर कितनी सीटों पर उसकी भाजपा से सीधी फाइट है तब भला यह भीकैसे माना जा सकता है कि आप छोड़कर भाजपा में शामिल हुए आप के विधायक आप को नुक़सान पहुँचा पाएँगे।

ज़ाहिरहै कि अगर पार्टी छोड़ने वाले ये विधायक कुछ नुक़सान कर सकते हैं तो इनकी जगह जिनको टिकट दी गई है वे क्याचुनाव में शांत ही बैठे रहेंगे।

यूँ भी ये विधायक कोई तुर्रमखां तो थे नहीं ,होते तो टिकट ही क्यों काटा जाता। और फिरआप पार्टी में पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होने का यह खेल कोई पहलीबार तो हुआ नहीं है।

इससे पहले परिवहन मंत्री रहेकैलाश गहलोत, राजेन्द्र पाल गौतम , करतार सिंह तंवर और राजकुमार आनंद सहित कई और नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं।(Delhi Assembly Election 2025)

भले पार्टी छोड़ने की बजह कोई भी रही। अब देखना यही है कि इन नेताओं के पार्टी छोड़ने और केजरीवाल के ख़िलाफ़लामबंद होने का केजरीवाल की राजनीति और चुनाव पर क्या असर डाल पाते हैं।

यह अलग बात है कि आप को तनिकया ज़्यादा नुक़सान पहुँचाने के अलावा कांग्रेस के हाथ ख़ाली ही रहने हैं पर 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर रह रहीभाजपा सत्ता पाने के लिए बेताब हैं। सत्ता पाने के लिए उसने चौतरफ़ा घोड़े दौड़ा रखे हैं।

रही बची कसर उसने शनिवार कोअपने आम बजट 2025 में मध्य वर्ग को कुछ लॉलीपॉप देकर या फिर आयकर में थोड़ी छूट बढ़ाकर खुश कर वोट कीराजनीति खेलने की कोशिश की है पर ऐन टाइम पर भाजपा का यह खेला पांच फ़रवरी को क्या खेला दिखा सकेगाइंतज़ार दिल्ली को रहेगा।

कांग्रेस का कुछ पर दम तो बाक़ी पर ख़म

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से भाजपा की कितनी उम्मीदें पूरी हो पाती हैं और कितनी सीटें हासिल कर पाती यह तो बसइंतज़ार की बात रह गई पर यह ज़रूर है कि कांग्रेस को खुद ही ज़्यादा सीटों की उम्मीद कम ही है।

संसाधन कम होने केचलते वह सभी सीटों पर दम दिखाती नहीं दिख रही है और वह तभी 10 से 12 सीटों दमदारी से लड़ती दिख रही है।

उसेभरोसा है कि इस बार विधानसभा में कांग्रेस का कम से कम 6-7 सीटों के साथ खाता खुलेगा।(Delhi Assembly Election 2025

सीलमपुर, बादली, मुस्तफ़ाबाद, विकापुरी, ओखला, जंगपुरा, बाबरपुर, कस्तूरबा नगर, चाँदनी चौक ,नई दिल्ली, सुल्तानपुर माजरा, माडलटाउन, पटेल नगर, और घोंडा आदि सीटें जीतने की पार्टी को उम्मीद है।

कांग्रेस की कोशिश होगी कि इस बार उसका वोटप्रतिशत दहाई में पहुँच सके।

अब ऐसा उसे कोरोना के दौरान हुए दंगों के समय मुसलमानों का आप से मोहभंग होने सेदिख रहा है या फिर बजह कोई दूसरी हो यह बात अलग है पर कांग्रेस मानती है कि 2022में हुए निगम चुनाव में कांग्रेस कावोट क़रीब 12 फ़ीसदी पहुँच गया था।

मुस्लिम बाहुल्य सीटें प्राथमिकता पर(Delhi Assembly Election 2025)

जिससे उसकी उम्मीद जागी है। यह बात दूसरी है कि 2020 में हुए विधानसभाचुनावों में उसे साढ़े चार फ़ीसद ही वोट मिले थे लेकिन निगम चुनाव से उसे बढ़ की उम्मीद हुई है।

तभी अब वह थोड़ा करबेहतर कर के सिद्धांत को अपनाती बताई जा रही है। भला अब कांग्रेस को ही नहीं भाजपा को भी उम्मीद है कि कांग्रेसपिछले चुनावों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करेगी जिससे कांग्रेस तो बढ़ेगी ही पर इन चुनावों फ़ायदा भाजपा को होसकेगा।

चर्चा तो है कि कांग्रेस की इन चुनावों मुस्लिम बाहुल्य सीटें प्राथमिकता पर रहेंगीं।(Delhi Assembly Election 2025)

भला मुस्लिम सीटों से पार्टीक्या हासिल कर पाती है यह बात दूसरी रही पर आप और भाजपा ने भी इस बार मुस्लिम सीटों पर ध्यान रखते हुए मुस्लिमउम्मीदवारों को कुछ ज़्यादा ही तब्बजो दी है और सवाल लोगों को यह इंतज़ार भी है कि तीनों पार्टियों में कौन कितनीमुस्लिम सीटें सीटें जीत पाता है। और कौन पहुँच पाता है इनके बूते सत्ता के नज़दीक।

अपने वोटरों से ही दूर होते नेता जी

दिल्ली की सत्ता को बेताब भाजपा भले इस चुनाव में वोट के लिए एक-एक वोट गिन रही हों पर भाजपा के ही एक नेतावोटों से छिटकते बताए जा रहे हैं। अपन बात कर रहे हैं रोहिणी विधानसभा की।

बात सत्ता की हो और परंपरागत भाजपाईवोटर ही नहीं कार्यकर्ता भी वोट देने को लेकर पशोपेश में हों तो थोड़ा अटपटा तो लगता ही है मुद्दा उनका भाजपा सेनाराज़गी या बिरादरी के केजरीवाल से मोह उमड़ने का नहीं बल्कि दिल्ली के बढ़ते ट्रैफ़िक का है।

अब भला ट्रैफ़िक केबढ़ने का भाजपा को वोट न देने का क्या तुर्रा तो इसका खुलासा भाजपा नेता ने यूँ किया किया कि दरअसल विधायक जीअब रोहिणी में नहीं ग्रेटर कैलाश में रहने लगे हैं।(Delhi Assembly Election 2025)

तो जनता क्या भाजपा पदाधिकारियों के लिए भी उनसे मिलना मुश्किलहो चला है। जनता तो स्थानीय मसलों पर विधायक जी से मिलने ग्रेटर कैलाश जाने से रही और पदाधिकारियों व पार्षदको अगर कोई काम पड़ जाए तो 41 किलोमीटर दूर जाना भारी पड़ जाता है।

एक तो दूरी और दूसरे इस रूट पर भारीयातायात अलग से। और रो-पिट कर पहुँच भी गए और पता चला कि विधायक जी घर से निकल गए।

जब ग्रेटर कैलाशही रहना था तो वहीं से टिकट लेकर लड़ने में अपने नेताजी की कौनसी नाक कटी जा रही थी।

आप विधायक सौरभभारद्वाज को चुनौती मिलती और रोहिणी वालों को भी दूरी का संकट नहीं झेलना पड़ता। अब भला अपने वोटर ही यहकहने लगें कि एक वोट की क़ीमत तुम क्या जानो नेताजी तो ग़लत भी क्या।

By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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