दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और आप उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होने से क्या भाजपा की उम्मीदें बढ़ीं हैं ? भाजपा और कांग्रेस के बीच आज यह चर्चा का सवाल वन चुका है। कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर यह जता दिया है कि वह किसी के न तो दवाब में चुनाव लड़ रही है और न ही किसी के दवाब में उम्मीदवारों का चयन कर रही है बल्कि आप के सामने वह फ़्रंट फुट खड़ी हो चुनाव को तैयार हैं। या यूँ कहिए कि चाहे -अनचाहे कांग्रेस इस चुनाव में पूरे दम-ख़म से चुनाव में उतरी है। और भाजपा यही चाहती थी। भाजपाई तो कह रहे हैं कि उनकी पार्टी ने इसीलिए टिकट देने की जल्दबाज़ी नहीं की है। भाजपा मान चुकी है कि जितनी कांग्रेस मज़बूती से से चुनाव लड़ेंगी भाजपा को उतना ही फ़ायदा हो सकेगा इन चुनावों में। भाजपा शुरू से ही इस भरोसे में बताई जाती रही कि इस चुनाव में उसे तभी फ़ायदा होना है जब कांग्रेस से आप पार्टी में शिफ़्ट हुआ उसका मुस्लिम और दलित वोट वापिस कांग्रेस में लौटेगा । ज़ाहिर है कि आप और कांग्रेस में गठबंधन नहीं होने से ऐसा हो सके। सीधी बात कि अगर ऐसा होता है तो आप कमजोर हो सकेगी। पर अब भला राजनीतिक गलियारों में यह कहा ज़ारा हो कि यह गणित तो भाजपा का होगा लेकिन केजरीवाल का गणित अलग ही होगा तो ग़लत भी क्या ? चर्चा तो यह भी है कि जिस तरह से कांग्रेस के टिकट वितरण से भितरघात और विरोध पनपना शुरू होने लगा है उससे भाजपा के मंसूबे पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस ने कई जगह पर ऐसे उम्मीदवार तय किए हैं जहां से उम्मीदवार या तो लड़ना नहीं चाहता था या फिर उस विधानसभा पर कांग्रेस के कई पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेताओं का एकाधिकार है और जहां दूसरी लाइन का नेता पैदा ही नहीं होने देते। या फिर कई सीटें ऐसी भी हैं जहां लोकसभा में कांग्रेस का नेता भले हार गया हो पर वोटर वहाँ से नेता के बेटे या बेटी को जिताने के मूड में नहीं। इसके साथ ही भाजपा में जिन नेताओं पर पार्टी भरोसा जता रही है वे ही सुरक्षित सीट तलाश रहे हों तो भाजपा के सत्ता में वापिसी की संभावनाओं को समझा जा सकता है। सिर्फ़ नई दिल्ली विधानसभा की बात करो तो यह सीट दिल्ली की सबसे हाई प्रोफ़ाइल सीट मानी जाती है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्व: शीला दीक्षित की यह पारंपरिक सीट रही है पर 2013 से लगातार तीन बार से आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल लगातार जीत रहे हैं। कांग्रेस ने यहाँ से शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को टिकट दी है । अब कौन जीतता है यह बाद की बात रही पर संदीप दीक्षित के आने से चुनाव दिलचस्प ज़रूर बनता जा रहा है।
आप के सामने संदीप को उतार मुखर हुई कांग्रेस
पहले कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाने और फिर उसी को शिकस्त देने वाली वाली आम आदमी पाटी के सामने फिर कांग्रेस है। और इस बार आप को चेलेंज देने के लिए कांग्रेस ने शिकस्त खाई मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप को मैदान में उतारा है। चुनाव शीला के दिल्ली में किए गए विकास कार्यों के बूते लड़ा जाना है। पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को नई दिल्ली से उतारने का संदेश है कि कांग्रेस पूरी ताक़त से चुनाव लड़ने जा रही है। यह अलग बात है कि कांग्रेस पिछले छह महीने से सीएम चेहरे की तलाश में थी पर शायद उसे कोई दमदार नेता नहीं मिला और आख़िर में संदीप पर दांव लगाने को मजबूर होना पड़ा। सवाल यही है कि क्या संदीप अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे पाएँगे ? या फिर इसे कांग्रेस की मजबूरी समझी जाएगी। हांलाकि संदीप कह रहे हैं कि वे अभी नई दिल्ली से ही कांग्रेस का चेहरा हैं पर हाँ एक पूर्व सीएम के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहा हूँ,सवाल तो पूछूँगा ही। पर सवाल यह भी आना है कि क्या अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं ? या फिर पत्नी मैदान में होंगी। 2013 में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था, और फिर कांग्रेस के सपोर्ट से ही सरकार बनाई। अब फिर बाज़ी चुनौती की है….एक पूर्व मुख्यमंत्री को पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे की। 2015 में केजरीवाल के ख़िलाफ़ कांग्रेस ने किरण वालिया को उतारा था वे तीसरे नंबर पर आईं। 2020 में रमेश सब्बल वाल को लेकिन उनका भी यही हाल रहा। अब देखना है कि संदीप क्या कुछ कर पाते हैं। यूँ संदीप शुरू से ही केजरीवाल या फिर आप के ख़िलाफ़ रहे हैं। माँ शीला की तर्ज़ पर कभी आप के साथ गठबंधन के समर्थन में नहीं रहे। शायद और कोई नेता भी नहीं ।मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने तो पहले ही मना कर दिया था। जबकि पूर्व अध्यक्ष अरविन्दर लवली ने तो गठबंधन के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ इस्तीफ़ा दिया बल्कि कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। अब चर्चा तो यह भी चल रही कि भाजपा आप पार्टी के ख़िलाफ़ सीएम चेहरे को लेकर मज़बूत चेहरा तलाश रही है। और इसी लिए वह अभी तक अपने उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाई है। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चेहरा बनाया जाता है या फिर पार्टी पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा,या किसी दूसरे को यह बात दूसरी है पर कांग्रेस को राहत होगी कि भाजपा परिवारवाद का मुद्दा नहीं उठा सकेगी।
केजरीवाल के अगले दांव में कितना दम
हर चुनाव में अपने दांव से चुनाव जीतते रहे अरविंद केजरीवाल ने इस बार फिर दांव चला है। इस बार यह दांव महिला मतदाताओं को एक हज़ार रूपए हर महीने देने का है। पानी बिजली और बसों में फ़्री यात्रा करने की सौग़ात ले रहीं महिलाओं पर कितना असर पड़ता है भाजपा और कांग्रेस इससे चिंतित हैं। ऐसा नहीं है कि आप पार्टी या केजरीवाल पहली बार वोटरों को वोट के लिए लालच दिया जा रहा हो ।पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भी वोट हासिल करने के इरादे से 15 -15 लाख रूपये ग़रीबों के खातों में देने की बात कही थी भाजपा चुनाव जीती पर रूपए खाते में डालने के वायदे को बाद में चुनावी जुमला करार दे दिया गया। अब चुनावी दौर में केजरीवाल का महिलाओं को एक हज़ार रूपये देने का वादा इस बार चुनाव में क्या असर डालता इंतज़ार की बात है। पर यह ज़रूर है कि गरीब घरों की महिलाएँ केजरीवाल की इस घोषणा से खुश ज़रूर बताई जा रही हैं। हांलाकि पंजाब में भी आप सरकार ने महिलाओं को 1000 रूपये देने की जगह अब 2100 करने की घोषणा की है। और वो भी जल्दी ही। ताकि महिलाओं के साथ शांति स्थापित की जा सके। और दो साल पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी को इसका लाभ भी मिल सके। पर भाजपाईयों को केजरीवाल या मान सरकार पर भरोसा नहीं है उन्हें जनता के साथ यह छलावा दिख रहा है। अब सवाल यही है कि दिल्ली की महिलाओं आप पार्टी का यह प्रस्ताव मंज़ूर करेंगीं या फिर भाजपा और कांग्रेस इसके ख़िलाफ़ शोर शराबा कर उन्हें गुमराह कर राजनीति कर फ़ायदा लेंगी। हालांकि महिलाओं के पास केजरीवाल को वोट देने या नहीं देने का मन बनाने के लिये क़रीब दो महीने हैं।