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अपना भी तआल्लुक है दिवाली से, तुम्हारे से !

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दिवाली शुभ हो। सुख संपत्ति लाए। सब खुश रहें। यह कामना तो हमेशा से की जाती रही है। मुगलों के टाइम से दिवाली जोर शोर से मनाने का इतिहास है। मगर आजकल वे कुछ भी नहीं मानते हैं। उर्दू के सबसे बड़े शायरों में एक इकाबल ने राम को इमामे हिन्द कहा। जाने कितने शायरों ने और राम पर दिवाली पर खुश होकर लिखा। लेकिन अब उसकी कोई मान्यता नहीं है।… न मानें। भाईचारा कोई सशर्त नहीं होता है। पहले भी थी हमेशा से थी और आज भी है हैप्पी दिवाली!

दिवाली पर दिवाली के सिवा और क्या याद आता है? हालांकि समय बहुत खराब ला दिया है। दिवाली पर भी हिन्दू, मुसलमान कर रहे हैं। क्या ताल्लुक है मुसलमान का दिवाली से सिवा इसके की वह भी इसे अपने हिन्दू भाइयों के साथ बहुत हर्ष उल्लास से मनाता था। आज से नहीं हमेशा से रोशनी करता था मिठाई खाता और दिवाली की शुभकामनाएं देता था।

मगर अब पटाखों पर प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट ने लगाया है। केन्द्र की भाजपा सरकार और राज्य सरकारें जो सबसे ज्यादा भाजपा की हैं 13 राज्यों में वे प्रदुषण की भयानक स्थिति को देखते हुए चुप हैं। लेकिन खुद उसके नेता, मीडिया और भक्त कह रहे हैं कि मुसलमानों के त्यौहार पर कुछ नहीं कहते केवल हमारे त्यौहार पर रोक!

अब बताइए पटाखे प्रदुषण से मुसलमान का क्या संबंध? किसी मुसलमान ने कभी कहा क्या कि पटाखे मत चलाओ? यह प्रदुषण की भयानक स्थिति के बाद सुप्रीम कोर्ट और भाजपा सरकारों का फैसला है। मगर इसे भी हिन्दू मुसलमान का मुद्दा बनाया जा रहा है। हालत यह हो गई है कि अब कुछ भी हो मुसलमान है क्या? छोटी घटना, बड़ी घटना, काल्पनिक घटना उसमें मुसलमान ढुंढा जाता है। मुसलमान, मुसलमान, मुसलमान देश को यह कहां ले आए हैं! प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री तक मुसलमान में उलझे हुए हैं। दिवाली जिसका संबंध राम से है। वनवास के बाद वापस लौटने से। उसका मुसलमान से क्या संबंध?

लेकिन जैसा कि उपर कहा कि संबंध है। अपने भाइयों की खुशी में शामिल होने का। आज चाहे जैसा माहौल खराब कर दें। मुसलमान दिवाली मनाएगा अपने हिन्दू दोस्तों की दिवाली में शामिल होगा। कोशिश बहुत है। मगर सदियों से जो परंपरा चल रही है एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल होने की, खुशियां बांटने की क्या वह दस साल का शासन खत्म कर देगा?  दस क्या और कितने ही साल हो जाएं प्रेम, भाईचारा ऐसी चीजें हैं जो कभी खत्म नहीं होते। नफरत खत्म हो सकती है। हो जाती है। मगर प्रेम को आज तक तो कोई खत्म नहीं कर पाया।

अब यह सवाल पूछना तो बेकार है इस मुसलमान मुसलमान से इन्हें मिलेगा क्या? वोट? कब तक? हर चीज का एक सेचुरेशन पांइट होता है। जिसे आम भाषा में इस तरह कहते हैं कि जितना निचोड़ सकते थे निचोड़ लिया। अब हिन्दू मुसलमान वोट नहीं दे रहा है। सबसे बड़ा उदाहरण तो यूपी है। जहां सबसे ज्यादा हिन्दू मुसलमान किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने यहीं श्मशान कब्रिस्तान की बात की थी। दिवाली और ईद में विभाजन की भी। यहीं के मुख्यमंत्री योगी अभी भी दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार करते हुए यह कह रहे हैं कि यूपी में अब सड़क पर नमाज नहीं होती। अजान की आवाज नहीं आती। वे इसे सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं।

क्या लोग इससे बहल जाएंगे? सड़क पर नमाज नहीं होती से यूपी के पेपर लीक मामले रुक जाएंगे? अजान की आवाज नहीं आती से जो पिछले सात साल से वैकेन्सी निकलेगी का इंतजार करते हुए ओवर एज हो गए उनकी उम्र वापस आ जाएगी? पहले वैकेन्सी नहीं निकलती। निकलती है तो टेस्ट एक्जाम नहीं होता। वह हो जाता है तो रिजल्ट नहीं आता। रिज्ल्ट आता है तो नियुक्ति नहीं मिलती। क्या यह सब बेरोजगार युवाओं को तोड़ने वाला सिलसिला बंटेगे तो
कटेंगे का नारा देने से खत्म हो जाएगा? बलात्कार, दलित अत्याचार, पुलिस कस्टडी में मौत जो अभी मोहित पांडे की हुई क्या मुसलमान मुसलमान करने से खत्म हो जाएगा?

नहीं। इसलिए अभी लोकसभा में जो मोदी जी को सबसे बड़ा झटका लगा वह यूपी से। अपने पीडीए को जोड़ने की बदौलत वह सबसे बड़ी पार्टी बन गई यूपी में। अकेले 37 सीटें और सहयोगी कांग्रेस के साथ 43 सीटें जीती। भाजपा जिसकी 2019 में 61 सीटें थीं वह केवल 33 पर रह गई। मुसलमान मुसलमान के नाम से वोट नहीं मिलता। बल्कि अब कम होने लगा। सरकार पुलिस प्रशासन सब सिर्फ मुसलमान को ढुंढते रहते हैं। जिस मामले में चाहे वह बरसात का पानी फैंकने
में दर्जनों दूसरे लोगों के साथ हो अगर उसमें कहीं मुसलमान का नाम मिल गया और साथ में यादव का तो मुख्यमंत्री विधनसभा में बोलते हैं। बाकी किसी का नाम नहीं। वे सब भी आरोपी हैं। मुसलमान मिल गया बनाओ माहौल। यादव हो तो और ज्यादा। बाद में उसमें जो पवन यादव का नाम लिया था उसने अखिलेश यादव से मिलकर कहा कि मैं वहां था ही नहीं और वह मुसलमान भी नहीं था।

क्या है यह सब? केवल हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने की कोशिश? मुसलमान ऐसा करते हैं, यादव ऐसा करते हैं। मतलब कोई छोटा मोटा एक्सिडेंट भी हो। कहीं बाजार में मामूली विवाद हो अगर एक पक्ष मुसलमान है तो सरकार से लेकर भाजपा, मीडिया भक्त उसे इतनी बड़ी घटना बना देंगे जैसे कोई देश या समाज खतरे में आ गया हो। आप मीडिया में देखिए एक जैसी दो घटनाएं। एक में मुसलमान नहीं है। उस खबर को ज्यादा महत्व नहीं। दूसरी में अगर मुसलमान
पीड़ित भी हो तो ऐसी खबर की पीड़ित ही दोषी नजर आए।

पुलिस थानों में खबर आते ही मीडिया में खबर आते ही पूछा जाता है मुस्लिम कनेक्शन है कोई?  फैक्ट चेकर रोज बता रहे हैं कि जिस घटना में मुसलमान का नाम लिया था वह नहीं था। कई बार बाद में पुलिस भी बताती है। सोशल मीडिया पर तो कुछ भी मुसलमान के नाम पर लिख दिया जाता है। और बड़े मीडिया हाउस के पत्रकार भी, दूरदर्शन के एंकर भी। क्या होगा इससे?

बेरोजगारी खत्म होगी? महंगाई कम होगी ? सरकारी अस्पताल में पहले की तरह सबका मुफ्त इलाज होगा ? सबके बच्चे पहले की तरह सरकार स्कूलों में पढ़ पाएंगे ? पता नहीं हिन्दू-मुसलमान से क्या होगा?  जैसा कि हमने पहले उपर लिखा कि जिस वोट के लिए कर रहे हैं वह भी अब कम होता जा रहा है। लोग आखिर कब तक इस बात से झुठी खुशी हासिल करेंगे कि मुसलमान टाइट हो रहा है।

दिवाली खुशियों का त्यौहार मगर इसमें वे खुद ही खलल डाल रहे हैं। पटाखे तो चलाएंगे। मुसलमान कुछ भी नहीं बोल रहा। मगर नाम उसका ही ले रहे हैं कि उसके त्यौहार पर कुछ नहीं बोलते। वह तो सारे नियम कायदे मानकर ही करता है। लेकिन फिर भी उसका ही नाम रटे जा रहे हैं।

दिवाली शुभ हो। सुख संपत्ति लाए। सब खुश रहें। यह कामना तो हमेशा से की जाती रही है। मुगलों के टाइम से दिवाली जोर शोर से मनाने का इतिहास है। मगर आजकल वे कुछ भी नहीं मानते हैं। उर्दू के सबसे बड़े शायरों में एक इकाबल ने राम को इमामे हिन्द कहा। जाने कितने शायरों ने और राम पर दिवाली पर खुश होकर लिखा। लेकिन अब उसकी कोई मान्यता नहीं है। हजरत निजामउद्दीन की दरगाह पर हमेशा से दिवाली मनाई जाती रही है। इस साल भी मनाई गई। आरएसएस के वरिष्ठ नेता इन्द्रेश कुमार पहुंचे। दरगाह पर चादर चढ़ाई, दिया जलाया। और अमन एवं शांति की दुआ मांगी। बटेंगे तो कटेंगे पर कहा कि यह कहना चाहिए कि हिन्दुस्तानी नहीं बटेंगे। यही तो सब कहते हैं। यही हम लिख रहे हैं। मगर सब देखकर, सुनकर भी उन्हें नहीं मानना।

न मानें। भाईचारा कोई सशर्त नहीं होता है। पहले भी थी हमेशा से थी और आज भी है हैप्पी दिवाली!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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