हाल की सदियों में दीपावली ऐश्वर्य, सौभाग्य, समृद्धि और वैभव की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी की आराधना, उपासना और स्तुति का पर्व बन गया है। दीपोत्सव के इस गौरवमयी पर्व में असंख्य दीपों की रोशनी में विष्णुप्रिया महालक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। और अद्वितीय सौन्दर्य एवं आरोग्य की दाता श्री महालक्ष्मी के आगमन की कामना की जाती है।
भारत में प्राचीन काल से कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी की आराधना- उपासना की परिपाटी है। कार्तिक अमावस्या की तिथि को इसलिए आवाहन किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि जिनके आगे घोड़े तथा पीछे रथ रहते हैं, जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन श्रीदेवी को प्रणाम कर उनका आवाहन करते हुए उनसे लक्ष्मी देवी की प्राप्ति के लिए प्रार्थना कार्तिक अमावस्या की रात्रि में ही हो। लोग इस दिन कमल के आसन पर विराजमान लक्ष्मीदेवी की प्रार्थना करें। ताकि घर से सभी प्रकार के दारिद्रय और अमंगल दूर हो।
ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अंत में अंकित ऋग्वेद के खिल सूक्त श्रीसूक्त के मंत्र वर्तमान में देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु प्रयुक्त होते हैं। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसे लक्ष्मी सूक्तम् भी कहा जाता है। श्रीसूक्त में मंत्रों की संख्या पंद्रह है। सोलहवें मंत्र में फलश्रुति है। बाद में ग्यारह मंत्र परिशिष्ट के रूप में अंकित हैं। श्रीसूक्त के चार ऋषि हैं- आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत। ये चारों श्री के पुत्र बताए गए हैं। श्रीपुत्र हिरण्यगर्भ को भी श्रीसूक्त का ऋषि माना जाता है। श्रीसूक्त का चौथा मंत्र बृहती छंद में, पांचवाँ और छटा मंत्र त्रिष्टुप छंद और अंतिम मंत्र का छंद प्रस्तारपंक्ति है। शेष मंत्र अनुष्टुप छंद में है। श्री
शब्दवाच्या लक्ष्मी इस सूक्त की देवता हैं। महर्षि बोधायन, वशिष्ठ आदि के द्वारा बतलाये गए विशेष प्रयोग के अनुसार श्रीसूक्त का विनियोग लक्ष्मी के आराधन, जप, होम आदि में किया जाता है। श्रीसूक्त की फलश्रुति में भी इस सूक्त के मंत्रों का जप तथा इन मंत्रों के द्वारा होम करने का निर्देश किया गया है। आराधनाक्रम में श्रीसूक्त के पंद्रह मंत्रों का इस क्रम से विनियोग किया जाता है- आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, भूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, प्रदक्षिणा, उद्वासन। श्रीसूक्त के मंत्रों का विषय -भगवान से लक्ष्मी को अभिमुख करने, लक्ष्मी को अभिमुख रखने की प्रार्थना, लक्ष्मी से सान्निध्य के लिए प्रार्थना, लक्ष्मी का आवाहन, लक्ष्मी की शरणागति एवं अलक्ष्मीनाश की प्रार्थना, अलक्ष्मी और उसके सहचारियों के नाश की प्रार्थना, मांगल्यप्राप्ति की प्रार्थना, अलक्ष्मी और उसके कार्यों का विवरण देकर उसके नाश की प्रार्थना, लक्ष्मी का आवाहन, मन, वाणी आदि की अमोघता तथा समृद्धि की स्थिरता के लिए प्रार्थना, कर्दम प्रजापति से प्रार्थना, लक्ष्मी के परिकर से प्रार्थना, लक्ष्मी के नित्य सान्निध्य के लिए पुनः भगवान से प्रार्थना, पुनः लक्ष्मी के नित्य सान्निध्य के लिए भगवान से प्रार्थना, भगवान से लक्ष्मी के आभिमुख्य की प्रार्थना और फलश्रुति आदि हैं।
लक्ष्मी सूक्त परिशिष्ट के मंत्रों के विषय हैं- सौख्य की याचना, समस्त कामनाओं की पूर्ति की याचना, सान्निध्य की याचना, समृद्धि के स्थायित्व के लिए प्रार्थना, देवताओं में लक्ष्मी के वैभव का विस्तार, सोम की याचना, मनोविकारों का निषेध, लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए प्रार्थना, लक्ष्मी की वंदना, लक्ष्मीगायत्री और अभ्युदय के लिए प्रार्थना। श्रीसूक्त के पंद्रह मंत्रों में श्रीदेवी अर्थात श्री लक्ष्मी के निम्न नाम अंकित हैं- हिरण्यवर्णा, हरिणी, सुवर्णरजतस्रजा, चन्द्रा, हिरण्मयी, लक्ष्मी, अनपगामिनी, अश्वपूर्वा, रथमध्या, हस्तिनादप्रयोधिनी, श्री, देवी, का, सोस्मिता, हिरण्यप्राकारा, आर्द्रा, ज्वलन्ती, तृप्ता, तर्पयन्ती, पद्मे स्थिता, पद्मवर्णा, प्रभासा, यशसा ज्वलन्ती, देवजुष्टा, उदारा, पद्मनेमि, आदित्यवर्णा, गन्धद्वारा, दुराधर्षा, नित्यपुष्टा, करीषिणी, ईश्वरी, माता, पद्ममालिनी, पुष्करिणी, यष्टि, पिंगला, पुष्टि, सुवर्णा, हेममालिनी, सूर्या। परिशिष्ट के ग्यारह मंत्रों में श्रीलक्ष्मी के निम्न नाम अंकित हैं- पद्मानना, पद्मोरू, पद्माक्षी, पद्मसम्भवा, अश्वदायी, गोदायी, धनदायी, महाधना, पद्मविपद्मपत्रा, पद्मप्रिया, पद्मदलायताक्षी, विश्वप्रिया, विश्वमनोनुकूला, सरसिजनिलया, सरोजहस्ता, धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभा, भगवती, हरिवल्लभा, मनोज्ञा, त्रिभुवनभूतिकारी, विष्णुपत्नी, क्षमा, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युत वल्लभा, महादेवी, विष्णुपत्नी।
बहरहाल, स्त्री देवता देवी के रूप में इनका पहला प्राकट्य ऋग्वेद के खिल सूक्त में श्रीसूक्तं अर्थात लक्ष्मी सूक्तं के रूप में ही दिखाई देता है। इसमें श्री लक्ष्मी की महिमा गान की गई है। वर्तमान में यह सूक्त लक्ष्मी पूजन का सर्वप्रचलित सूक्त बन गया है। इस सर्वाधिक प्राचीन श्रीसूक्त की ऐसी महिमा है कि वर्तमान में लक्ष्मी सबसे अधिक पूजनीय है। कालांतर में लक्ष्मी उपासना विभिन्न धार्मिक शाखाओं में शक्ति प्राप्त की। और लक्ष्मी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। वर्तमान में दीपावली प्रचुर ऐश्वर्य, सौभाग्य, समृद्धि और वैभव की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी की आराधना, उपासना और स्तुति का पर्व बन गया है। दीपोत्सव के इस गौरवमयी पर्व में असंख्य दीपों की रोशनी में विष्णुप्रिया महालक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। और अद्वितीय सौन्दर्य एवं आरोग्य की दाता श्री महालक्ष्मी के आगमन की कामना की जाती है।