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प्रियंका का पहला ही चुनाव दक्षिण से

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कभी आरएसएस का नारा था गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। देश भर की दिवारों पर लिखवाया गया था। मतलब निर्भय रहो! मगर अब तो डर सिखाया जा रहा है। देश की अस्सी प्रतिशत आबादी को अगर आप डर की स्थिति में पहुंचा रहे हैं तो इसका मतलब क्या है? मतलब है बस हमें वोट देते रहो। और इस डर में जियो की जब हम न होंगे तो तुम खतरे में घिर जाओगे।

नेहरू-गांधी परिवार की और से एक नई शुरूआत है। परिवार का कोई सदस्य पहला ही चुनाव दक्षिण से लड़ रहा है। प्रियंका गांधी ने बुधवार को केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल किया।

ऐसा नहीं है कि पहले दक्षिण से परिवार का कोई सदस्य नहीं लड़ा हो। पंडित जवाहरलाल नेहरू को छोड़कर सब लड़े हैं। इन्दिरा गांधी ने अपने सबसे खराब दिनों जब वे 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गईं उसके अगले ही साल कर्नाटक के चिकमंगलूर से उप चुनाव लड़ा। न केवल शानदार जीत हासिल की बल्कि 1980 में जीत का माहौल भी बना दिया।

दरअसल उस उप चुनाव से पहले बिहार के बेलछी में दलितों का भयंकर नरसंहार हुआ था। हार की निराशा के दौर से गुजर रहीं इन्दिरा इस नरसंहार पर घर बैठी नहीं रह सकीं। वे बेलछी के लिए रवाना हो गईं। भारी पानी बरस रहा था। नदी चढ़ी हुई थी। इन्दिरा हाथी पर बैठकर वहां पहुंची। सरकार जनता पार्टी की थी। मामले को दबाने की पूरी कोशिश हो रही थी। गृहमंत्री चरण सिंह इसे मामूली मामला बता रहे थे। लेकिन इन्दिरा के पहुंचने ने सारी तस्वीर पलट दी।

मीडिया उस समय भी कांग्रेस विरोधी हुआ था। मगर मामला इतना बड़ा था और इन्दिरा गांधी का हाथी पर बैठा फोटो ऐसा असर डाल रहा था कि मीडिया इसे दबा नहीं पाया। 14 दलितों को जिन्दा जला दिया गया था। जिनमें बच्चे औरतें भी थीं। खबर और इन्दिरा का हाथी पर बैठकर जाते हुआ का फोटो अन्तरराष्ट्रीय अखबारों में भी छपने लगा।

यह कहानी अधिकांश लोगो को मालूम है। यह भी मालूम है कि इन्दिरा के बेलछी जाने ने इनकी 1980 की जीत की भूमिका लिख दी थी। मगर यह शायद कम लोगों को मालूम होगा कि देश का यह पहला दलित हत्याकांड ऐसा था जिसमें दोषियों को फांसी मिली हो। यह इन्दिरा इम्पैक्ट था। 1983 में दो हत्यारों महावीर महतो और परशुराम धानुक को फांसी पर चढ़ना पड़ा। इसके बाद भी ऐसा कोई मामला याद नहीं आता, जब दलित हत्याकांड में किसी को फांसी हुई हो। जबकि उससे पहले और बाद में कई दलित लड़कियों के बलात्कार हत्या और सामूहिक दलित हत्याकांड की घटनाएं हुईं।

अभी ताजा तो हाथरस की है जहां दलित लड़की के बलात्कार, हत्या के बाद उसके घर के बाहर ही आरोपियों के समर्थन में धरना लगाया गया। मीडिया को जाने नहीं दिया गया। राहुल गांधी को एक बार वापस लौटना पड़ा। उन्हें सड़क पर धक्का देकर गिराया गया। दूसरी बार में  वे और प्रियंका पीड़ित परिवार के पास जा पाए। लड़की का शव भी घर वालो को नहीं दिया गया। रातों रात जला दिया।

यह न्यू इंडिया है। इसे न्यू नार्मल भी कहते हैं। और यह भी बटेंगे तो कटेंगे! हमें वोट देते रहो। मुसलमानों का जो काल्पनिक भय दिखा रहे हैं उससे डरते रहो। और हम जिस हाल में रखें वैसे रहो। पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था  कि तुम्हारा मंगल सूत्र छीन लेंगे। भेंस ही छीन के ले जाएंगे। मगर उससे चार सौ पार क्या साधारण बहुमत भी नहीं आया तो अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी कह रहे हैं बटेंगे तो कटेंगे!

योगी उत्तर प्रदेश में मोदी जी को लोकसभा की सीटें नहीं दिला पाए। जो मोदी जी बहुमत से दूर रह गए उसमें उत्तर प्रदेश का बड़ा योगदान है। कहां 2019 में वहां बीजेपी की 61 सीटें आईं थी। जो 2024 में केवल 33 रह गईं। नंबर दो की पार्टी हो गई। सपा 37 सीटें जीतकर नबंर एक की पार्टी बन गई। इंडिया गठबंधन को कुल 43 सीटें मिलीं। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से आधे से ज्यादा।

अब वहां 9 सीटों पर विधानसभा का उप चुनाव है। बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती। इतनी बड़ी की खुद बीजेपी के विधायक पुलिस में एफआईआर दर्ज करवा रहे हैं कि बहराइच दंगा बीजेपी के लोगों ने करवाया। अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह के बयानों के बाद साफ हो गया है कि भाजपा अब अपने लोगों को भी मरवाने का काम कर रही है। दंगा करवा रही है। जो सबसे खास बात उन्होंने कही वह यह कि इस तरह की षडयंत्रकारी हरकतों के बाद उसके जो थोड़े बहुत समर्थक और वोटर बचे हैं वे भी नहीं रहेंगे।

इशारा साफ है कि उप चुनाव में भी लोकसभा की तरह भाजपा विरोधी हवा होगी। इसीलिए अब मंगलसूत्र, भैंस छीनने छिनाने से बढ़कर कटने कटाने की बात हो रही है। आरएसएस का नारा था गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। देश भर की दिवारों पर लिखवाया गया था। मतलब निर्भय रहो!

मगर अब तो डर सिखाया जा रहा है। देश की अस्सी प्रतिशत आबादी को अगर आप डर की स्थिति में पहुंचा रहे हैं तो इसका मतलब क्या है? मतलब है बस हमें वोट देते रहो। और इस डर में जियो की जब हम न होंगे तो तुम खतरे में घिर जाओगे। दस साल पहले यही अस्सी प्रतिशत के लोगों के बच्चे पढ़ लिख रहे थे। बढ़िया नौकरी करने विदेशों में जा रहे थे। आज उन्हें भीड़ में बदलकर केवल जुलूस निकलवाया जाता है। नारे लगवाए जाते है। उद्देश्य सिर्फ एक है। हमें वोट देते रहो। लेकिन 2024 लोकसभा ने इस डर, नफरत, विभाजन के जाल से निकलने का प्रयास किया। यूपी में तो भाजपा को बड़ा झटका दिया। लेकिन वे सरकार चलाने के बदले बटने कटने की ही बातें कर रहे हैं।

खैर यूपी के उप चुनाव बताएंगे कि वहां के लोग बीजेपी के दंगे करवाने जिस का आरोप खुद उनके विधायक लगा रहे हैं के षडयंत्र को किस तरह समझ रहे हैं। क्या उन्हें लगता है कि बेरोजगारी, मंहगाई, खराब कानून व्यवस्था से उनका ध्यान हटाने के लिए यह हिन्दू मुसलमान किया जाता है। बटने कटने की बातें की जाती हैं।

जो भी हो खाली यूपी के विधानसभा उपचुनाव ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव भी और वायनाड लोकसभा का उप चुनाव भी बताएगा कि लोग क्या सोच रहे हैं।

वायनाड में बुधवार को प्रियंका की नामांकन रैली में जैसी भीड़ उमड़ी उसने बता दिया कि उत्तर हो या दक्षिण इस परिवार की लोकप्रियता समान है। देश में ऐसा नेता और कौन है जो दक्षिण जाकर चुनाव लड़ सकता है? कहने को तो खुद को विश्वगुरू कहते हैं मगर दक्षिण जो हमारे हिन्दुस्तान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है वहां जाकर चुनाव लड़ने की हिम्मत है?

बड़े नेताओं को जो खुद को राष्ट्रीय नेता कहते हैं उन्हें देश की एकता, अखंडता, एकजुटता का संदेश देने के लिए दक्षिण में जाकर लड़ना चाहिए। कांग्रेस ने तो दक्षिण के नेताओं को यहां उत्तर में भी लड़या और जिताया।

वायनाड केरल की ही बात हो रही है तो 1952 और 1957 में दिल्ली की बाहरी लोकसभा सीट से मलयाली सी कृष्णन नायर चुनाव जीते। नई दिल्ली से 1952 में बंगाली सुचेता कृपलानी भी। और 1980 में केरल के सीएम स्टीफन को तो सीधे अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लड़ाया। स्टीफन हार गए थे। मगर वाजपेयी पर याद आया कि वे एक साथ तीन तीन लोकसभा क्षेत्रों से भी लड़े हैं। मगर दक्षिण से कभी नहीं। यह काम केवल कांग्रेस ने ही किया कि उत्तर के नेताओं को दक्षिण से और दक्षिण के नेताओं को उत्तर से चुनाव लड़वाया।

सोनिया गांधी भी दक्षिण से लड़ चुकी हैं। कर्नाटक की बेल्लारी से। वह उनका भी पहला चुनाव था। मगर साथ ही वे अमेठी से भी लड़ी थीं। 1999। राहुल ने तो यह वायनाड सीट जीत कर छोड़ी ही है। जिस पर उप चुनाव है। प्रियंका लड़ रही हैं। और इसलिए परिवार से दक्षिण से पहला चुनाव लड़ने वालों में फर्स्ट हो गई हैं कि सोनिया पहला चुनाव 1999 लड़ी जरूर थी दक्षिण वेल्लारी से मगर साथ ही उत्तर भारत अमेठी से भी।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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