भोपाल। ईश्वर का यह एक शाश्वत नियम है कि ‘‘जन्मदाता ही खात्मे का अधिकारी भी होता है’’ और ईश्वर ने मानव सहित सभी जीवों पर स्वयं ही लागू भी किया, किंतु अब समय के बदलाव के साथ यह ईश्वरीय नियम हर कहीं लागू हो गया है और अब तो राजनीति भी इससे अछूती नही रही है, जिसके साक्षात दर्शन आज देश के मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस में हो रहे है, यद्यपि कांग्रेस के मुख्य जन्मदाता एक विदेशी राजनेता ए.ओ.ह्यूम माने जाते है, किंतु ह्यूम से अधिक इसका श्रेय इलाहाबाद के नेहरू खानदान के स्व. मोतीलाल नेहरू को दिया जाता है उन्होंने ही जन्म के बाद इस राजनीतिक दल की न सिर्फ परवरिश की बल्कि इसे अपने पैरो पर खड़ा कर भारत की आजादी को श्रेय दिलाने तक पहुंचाया जिसकी मोतीलाल जी के बाद इसकी परवरिश का दायित्व पं. जवाहरलाल नेहरू ने संभाला, अर्थात् कुल मिलाकर कांग्रेस के मुख्य जन्मदाता के रूप में मोतीलाल नेहरू जी की ही पहचान रही है, उन्ही के नेतृत्व में कांग्रेस ने महात्मा गांधी व जवाहर लाल जी के अहम् योगदान से आजादी की जंग जीती और आजादी के बाद देश की बागडोर जवाहरलाल जी को सौंपी, पन्द्रह अगस्त 1947 से लेकर 27 मई 1964 तक जवाहर लाल जी प्रधानमंत्री के रूप में इस देश के नियंता बने रहे, उनके निधन के बाद अल्प महीनों तक गुलजारी लाल नन्दा जैसे अन्य नेताओं के हाथों में देश की बागडोर रही, बाद में 1966 में नेहरू जी की लाड़ली बेटी इंदिरा जी ने भारत सरकार की लगाम अपने हाथों में संभाली और आपातकाल जैसे कोड़ों के बाद 1984 में उनकी हत्या हुई और उसके चंद अर्से बाद ही इंदिरा पुत्र राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, किंतु वे भी गोली के शिकार हुए और उसके बाद से नेहरू खानदान पर सत्ता पर कब्जा नही रह पाया और उसके बाद से ही कांग्रेस का पराभव भी प्रारंभ हो गया, जिसका नेतृत्व एक विदेशी महिला सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी के पास है, दिखावे के लिए मल्लिकार्जुन खरगे इसके अध्यक्ष है, किंतु पार्टी की वास्तविक कमान सोनिया-राहुल के हाथों में ही है।
अब यहां इस पार्टी के बारे में एक विचारणीय तथ्य यह है कि कई दशकों तक देश पर राज करने वाले यह राजनीतिक दल आज अपनी अग्निपरीक्षा के दौर से क्यों गुजर रहा है? तो इसका ईमानदारीपूर्ण जवाब यह है कि इसके लिए देश या उसकी जनता दोषी नही बल्कि स्वयं इस दल के अभिकर्ता ही है, जो अपनी अनुभवहिनता के कारण राजनीति के अजूबे बने हुए है, वास्तव में इस दल का दुर्भाग्य यह है कि पण्डित जवाहर लाल जी को तो उनके पिता ने पूरी राजनीतिक शिक्षा-दीक्षा दी थी, वहीं इंदिरा जी ने भी अपने पिता के करीब रहकर सीखा था, किंतु इंदिरा जी की असमय हत्या या उनके जीवित रहने तक राजीव जी को राजनीति का पूरा प्रशिक्षण नहीं दे पाई थी और वही बाद में राहुल के साथ हुआ, राजीव के भाई स्व. संजय राजनीति में माहिर अवश्य थे, किंतु राहुल राजनीति सीख नही पाए और उनके उस अभिशाप को आज तक कांग्रेस झेलते हुए, अपने अंतकाल की ओर अग्रसर होती नजर आ रही है, कांग्रेस के नेतृत्व में अनुभव का अभाव कांग्रेस के अंत का कारण बन रहा है, इसीलिए अब कोई भी राजनीतिक भविष्यकर्ता या राजनीतिक पंडित इस दल की सुखद भविष्यवाणी नही करता।
अतः कुल मिलाकर यहां इस सबसे पुराने राजनीतिक दल के साथ भी वहीं ईश्वरीय सिद्धांत चरितार्थ हो रहा है कि ‘‘जन्मदाता ही अंत का हकदार होता है’’ और आज कांग्रेस इसीलिए आज अपने अंतिम दौर से गुजरती नजर आ रही है, जिसके सर्वेसर्वा नेहरू खानदान के ही ‘कुलदीपक’ राहुल गांधी है।