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‘किलकारी’ की रंगमंचीय गूंज

भोपाल। कुछ साल पहले चर्चित फिल्म ’सुपर-30’ का निर्माण हुआ था। इस फिल्म में कलाकारों के चयन के लिये प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा पटना आये हुए थे। उन्होंने फिल्म के लिये जिन 30 बच्चों का चयन किया उसमें 16 बच्चे वे थे जो किलकारी पटना में रंगमंच का प्रशिक्षण ले रहे थे। बड़े गर्व और खुशी के साथ किलकारी के रंग प्रशिक्षक रवि मुकुल बताते हैं कि किलकारी में रंग प्रशिक्षण ले रहे बच्चे थियेटर में तो सक्रियता से काम कर ही रहे हैं, साथ ही रियलिटी शो और फिल्मों में भी उनको काम करने का मौका मिल रहा है। कपिल शर्मा के शो में खजूर नाम से जिस बाल कलाकार ने दर्शकों को आकर्षित किया था, वह भी किलकारी का ही स्टुडेंट था।

बिहार सरकार शिक्षा विभाग द्वारा संचालित किलकारी में 8 से 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए सृजनात्मक विकास की अनेक गतिविधियाँ संचालित होती है जिसमें रंगमंच भी शामिल है। इस बाल भवन का नाम दिया गया किलकारी और शिक्षा विभाग के इस संस्थान की डायेक्टर बनी श्रीमती ज्योति परिहार जिनकी सांस्कृतिक गतिविधियों में गहरी दिलचस्पी है।

इस दौरान रवि मुकुल मधुबनी में थियेटर कर रहे थे। उन्होंने संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित नाट्य कार्यशालाओं में भाग ले चुके थे तथा दिल्ली में रंग निदेशक सतीश आनंद के गु्रप में भी काम कर चुके थे। दिल्ली छोड़ मधुबनी लौटकर वे बच्चों के साथ नाटक करने लगे। साथ ही इप्टा में भी नाटक करते थे।

2008 में दरभंगा के एक उत्सव में रवि मुकुल के बाल नाटक ”उदास मत हो चिन्नी“ का मंचन हुआ जिसे उत्सव में आयी बाल भवन किलकारी की डायरेक्टर ज्योति परिहार ने देखा। वे इस नाटक से इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने मुकुल को किलकारी में नाट्य प्रशिक्षक के रूप में जुड़ने को प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हफ्ते में पांच दिन वे मधुबनी में अपना रंगमंच करते और मधुबनी से पटना आकर दो दिन किलकारी में बच्चों को नाटक सिखाते। मुकुल का काम किलकारी की डायरेक्टर व सीखने वाले बच्चों दोनों को पसंद आया और उन्हें नियमित आधार पर वहां रख लिया गया। मुकुल जानते थे कि स्वतंत्र रूप से नाट्य दल चलाना आसान नहीं है। लिहाजा उन्होंने किलकारी से पूरी तरह जुड़ना स्वीकार कर लिया।

किलकारी में आकर उन्होंने उसी ”उदास मत हो चिन्नी“ नाटक को बड़े पैमाने पर किया जो बेहद पसंद किया गया। यह नाटक पटना के एक वर्कशाप में बेगुसराय के प्रवीण गुंजन तथा अन्य वरिष्ठ रंगकर्मियों के सहयोग लिखा और तैयार किया था। मुकुल किसी तैयार स्क्रिप्ट पर काम करने के बजाय रंगकर्मियों के साथ संवाद करते हुए किसी कहानी या प्रसंग पर स्क्रिप्ट तैयार करते हैं। ’एक था राजा एक थी रानी‘ वाली कहानी पर इसी प्रक्रिया में उन्होंने ’बेबी डाल’ नामक नाटक तैयार किया।

किलकारी में उन्होंने दूसरा नाटक किया ”मैं बिहार हूँ“। श्रीकांत द्वारा लिखित इस नाटक का मंचन इप्टा द्वारा किया गया था। यह नाटक इतना लोकप्रिय था कि इसके सौ से अधिक शो हो चुके थे। मुकुल यह नाटक किलकारी के बच्चों के साथ करना चाह रहे थे लेकिन नाटक की विषय वस्तु में बदलाव के साथ। उन्होंने नाटककार श्रीकांत से बात की और उनके साथ बैठकर नाटक के राजनीतिक सामाजिक संदर्भों को बदलकर इसे बच्चों के लायक बनाया और फिर इसका मंचन किया जो उतना ही लोकप्रिय हुआ जितना पुराना नाटक था। किलकारी के बच्चों द्वारा तैयार नाटकों का प्रदर्शन ’जश्ने बचपन’ जैसे प्रतिष्ठित नाट्य समारोह के अलावा देश भर के कई समारोह में होता रहा है।

रवि मुकुल की सक्रियता के चलते किलकारी की पहचान देश भर में बाल रंगमंच को लेकर बनती गई। दसअसल मुकुल और किलकारी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं तथा दोनों की रंगयात्रा समानांतर चल रही है। किसी सरकारी संस्था में रंगमंच की ऐसी सक्रियता इसलिये भी संभव हो सकी कि मुकुल की कोशिशों और जरूरतों को किलकारी की डायरेक्टर ज्योति परिहार ने उत्साह के साथ पूरा किया।

मुकुल ने अपने नाट्य प्रशिक्षण में प्रक्रिया को विशेष महत्व दिया जिससे प्रशिक्षणार्थियों की सृजनशीलता और कल्पना शक्ति का भरपूर विकास हो। रंग प्रशिक्षण की यह प्रक्रिया केवल अभिनय या निदेशन तक सीमित न होकर नाट्य लेखन से लेकर लाइट, कास्ट्यूम, सेटडिजाइन, मेकअप म्युजिक आदि सभी विधाओं तक विस्तारित रही। इसका परिणाम यह हुआ है कि किलकारी से निकले बच्चे रंगमंच और फिल्मों मंे अभिनय के अलावा बिहार थियेटर में बैक स्टेज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। किलकारी के बच्चे यहां से निकलकर अन्य संस्थाओं में प्रशिक्षण के लिये चुने गये। हाल ही में किलकारी के दो छात्रों का चयन फिल्म इंस्ट्यिूट आॅफ इंडिया में संपादन व साउंड एडीटिंग में प्रशिक्षण के लिये हुआ।

किलकारी में तीन साल तक बाल नाट्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें देशभर के उन निदेशकों के नाटक आमंत्रित किये गये जो बालरंग मंच में काम कर रहे हैं। इनमें पटना के एनएसडी स्नातक विनोद राय भी रहे जिन्हें कुछ नाटकों के निदेशन के लिये आमंत्रित किया जो मुम्बई में थियेटर कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ और निर्देशकों को भी आमंत्रित किया गया लेकिन उन्हें उन्हीं नाटकों को तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई जिनका कथानक किलकारी के बच्चों के साथ तैयार किया गया था। तैयार स्क्रिप्ट पर काम करने के बनाम इंप्रोवाइज कर स्क्रिप्ट तैयार करने का बड़ा लाभ यह हुआ कि प्रशिक्षण ले रहे बच्चों की भी नाट्य लेखन में भागीदारी रही।

रवि मुकुल अपने साथ रंगमंच करने वाले बच्चों से बेहद आत्मीय लगाव रखते हैं और उनकी रूचि के आधार पर रंगमंच के विविध आयामों में प्रशिक्षण देने पर ध्यान देते हैं। अपने बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारी उन्हें प्रशिक्षित करने तक सीमित नहीं है बल्कि किलकारी से निकलने के बाद उन्हें उच्च प्रशिक्षण मिले और काम मिले, इसके लिये भी कोषिष करते रहते हैं। लिहाजा बच्चों से उनका रिश्ता किलकारी के बाद भी बना रहता है। वे उनका आडिशन कराते हैं, अनेक नाट्य दलों के पास भेजते हैं। उन्हें काम मिले और वे रंगमंच के जरिये ही अपनी आजीविका चलायें, इस बात की कोशिश करते हैं।

मुकुल कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि किलकारी में नाट्य प्रशिक्षण लेने के बाद वे केवल थियेटर ही करें। अपनी प्रतिभा के आधार पर यदि वे फिल्मों या टी.वी. शो में जाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं हैं। उन्हे गर्व है कि उनके बच्चों के साथ किसी बड़े संस्थान का टैग नहीं होने के बाद भी वे बच्चे देश भर में अपने काम का डंका बजा रहे हैं। मनीष कुमार, वर्षा कुमारी, कृष्ण कुमार आदि को नाटकों के लिये राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान मिल चुका है तो सुपर-30 के अलावा केतन मेहता व प्रकाश झा की फिल्मों में भी इन बच्चों को काम मिला। टी.वी. के कई रियलटी शो में भी किलकारी के बच्चों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। किलकारी के बच्चे खुद भी शार्ट फिल्म और डाकुमेटरी बना रहे हैं और पुरस्कृत भी हो रहे हैं। बहुत से बच्चों का चयन स्कालरशिप व फेलोशिप के लिये भी हुआ। कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जिन्होंने किलकारी में प्रशिक्षण लेने के बाद इस विधा में आगे काम करने के बजाय अन्य व्यवसायों में चले गये लेकिन रंगमंच से उनका लगाव बना हुआ है और दर्षक के रूप में रंगमंच से जुड़े हुए हैं।

अपने बच्चों को लेकर मुकुल बेहद संवेदनशील हैं। किलकारी और रंगमंच को पूरी तरह समर्पित मुुकुल अपने बच्चे की सफलता की बात करते हुए गर्व से भावुक भी हो जाते हैं और उनकी आंखे भर आती हैं। वे कहते हैं कि मैं तो अब तक कोई हवाई यात्रा नहीं कर सका लेकिन मेरे बच्चे न केवल खुद हवाई यात्रा करते हैं बल्कि रंगमंच के बल पर अपने परिवार को भी हवाई यात्रा करा चुके हैं। मेरे लिये यही बहुत है। मुकुल इन दिनों पूर्णिया बाल भवन किलकारी का दायित्व सम्हाल रहे हैं और पटना किलकारी के रंगकर्मियों से भी जुड़े हुए हैं। मुकुल का कहना है कि उनके सिखाये बच्चे स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर मार्गदर्षन लेते रहते हैं।

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