बिहार के श्रम साधक समाज ने देश ही नहीं विदेश तक सभी लोगों को सूर्योपासना के महान पर्व से परिचित कराया है। आज सरकारी आंकड़ों के हिसाब से सिर्फ दिल्ली में छोटे बड़े लगभग 11 सौ छठ घाटों पर छठ पूजा की जाती है। वैसे ही यमुना, गंगा, ब्रह्मपुत्र, मुंबई का जूहू समुद्र तट, हर जगह छठ के महापर्व की धूम हो रही है। छठ पर्व पर छठी मैया की पूजा की जाती है।
दशहरा के बाद से ही ‘कांच ही बांस की बहंगिया, बहंगी लचकत जाय…’ जैसे लोकप्रिय गीतों से शहर, गांव, गली जब गूंजने लगती है तब एक अद्भुत तरंग छठ पर्व की पवित्रता लिए हुए तन और मन को पुलकित कर देती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी छठ पर्व आते ही सांस्कृतिक, सामाजिक गतिविधियों के संग राजनीतिक हलचल भी तेज हो जाती है। इस बार दिल्ली में उप राज्यपाल महोदय ने छठ पर्व के सार्वजनिक अवकाश के लिए दिल्ली सरकार से आग्रह किया और अच्छी बात ये रही कि दिल्ली सरकार ने छठ पर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित भी कर दिया है।
दिल्ली की आप सरकार ने लगभग 11 सौ घाटों के लिए अपना नियमित बजट प्रदान किया है। साथ ही 70 विधानसभा क्षेत्रों में 70 मॉडल घाट बनाने के लिए सरकार ने कदम उठाए हैं। कई वर्षों के बाद यमुना जी किनारे स्थित लगभग 80 तालाबों में छठ पर्व की अनुमति मिली है, जो सराहनीय है। भाजपा द्वारा भी निरंतर छठ पर्व को लेकर सरकार से सवाल किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि दिल्ली में छठ व्रतियों को खुश रखना एक राजनीतिक गतिविधि भी है जो छठ व्रतियों के राजनीतिक महत्व को रेखांकित करता है।
नहाय-खाय, खरणा, प्रथम अर्घ्य और द्वितीय अर्घ्य के साथ चार दिवसीय छठ पर्व का महानुष्ठान जब अपनी सकारात्मक ऊर्जा बिखेरता है, तब मनुष्य जाति का एक एक सदस्य शुचिता और पवित्रता के सरिता में गोते लगाने लगता है। छठ की इसी गौरव महिमा का बखान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हम सभी उगते सूरज के पुजारी हैं लेकिन बिहारी समाज ऐसा है जो सूरज के हर रूप की पूजा करता है। ढलते सूरज की पूजा करना एक अनोखे संस्कार के बगैर संभव नहीं है। उगते सूरज की पूजा तो सब करते हैं लेकिन सूरज के हर रूप की पूजा करना और छठ की पूजा करना अपने आप में अद्भुत है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह में कहा था कि ‘नवादा से न्यू जर्सी तक और बेगूसराय से बोस्टन तक छठ मैया को नमन किया जाता है’। दुनिया भर में बिहार से जुड़े उद्यमी लोगों ने विश्व में अपनी जगह बनाई है। वे जहां जहां गए हैं अपनी छठ संस्कृति को साथ लेकर गए हैं।
छठ महापर्व यानि सूर्य षष्ठी व्रत यानी सूर्योपासना का महान त्योहार यूं तो बिहार की धरती से निकला एक महान सनातनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन है, मगर अब यह पर्व सिर्फ बिहार का पर्व नहीं रह गया है। अब तो भारत वर्ष के कोने कोने के अलावा पूरी दुनिया के कई देशों में जहां पुरबिया सनातनी समाज रहता है वहां यह सांस्कृतिक पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जापान, मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिनाद सहित अनेकों दक्षिण अफ्रीका के देशों में भी इस पर्व को मनाए जाने की खबरें मीडिया के माध्यम से दिखाईं देती हैं। भारत के दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, से लेकर सूरत, रायपुर, भोपाल, हैदराबाद, अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, लुधियाना, जम्मू और देश के लगभग हर शहर से हर वर्ष छठ पूजा मनाए जाने की तस्वीरें दिखाईं पड़ती हैं। ये देख, सुनकर एक पूर्वांचली होने के नाते मन हर्षित हो जाता है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड तो इस पर्व का मूल स्थान है ही मगर जैसे जैसे प्रवासी पूर्वांचली समुदाय देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवास किया वैसे वैसे इस पर्व की महिमा गैर पूर्वांचली समाज में भी बढ़ती जा रही है।
रोजी कमाने के लिए बिहार, यूपी झारखंड की जन्मभूमि को छोड़कर अपने परिवार का भरण पोषण करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रांतों में गए पूर्वांचली समुदाय के लोग अपनी लोक संस्कृति का झंडा ऊंचा करते रहे हैं। अब तो गैर पूर्वांचली समाज भी छठ महापर्व को उसी उत्साह और उमंग से मनाता है जो छठ पर्व की व्यापकता और विस्तार को परिलक्षित करता है। इस श्रम साधक समाज ने देश ही नहीं विदेश तक सभी लोगों को सूर्योपासना के महान पर्व से परिचित कराया है। आज सरकारी आंकड़ों के हिसाब से सिर्फ दिल्ली में छोटे बड़े लगभग 11 सौ छठ घाटों पर छठ पूजा की जाती है। वैसे ही यमुना, गंगा, ब्रह्मपुत्र, मुंबई का जूहू समुद्र तट, हर जगह छठ के महापर्व की धूम हो रही है।
छठ पर्व पर छठी मैया की पूजा की जाती है। छठ पूजा में पानी में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना बहुत धार्मिक भावना के साथ की जाती है। छठ अराधना का लोकपर्व है। छठ साधना का पर्व है। यह समन्वय का पर्व है। यह जीवन की जरूरी ऊर्जा को संयोजित करने की साधना है। यह प्रकृति की उपासना का तप है। यह विशुद्ध वैज्ञानिक और लोक आस्था का भी एक अनुष्ठान है, जिसमें कोई पुरोहित यजमान नहीं। कोई मूर्ति नहीं, कोई भी स्थापित देवता नहीं होते हैं। छठ व्रती के प्रति समाज के अन्य लोगों में अगाध श्रद्धा का प्रस्फुटन परिलक्षित होता है। यह पर्व सृष्टि के नियामक सूर्य को समर्पित है इस पर्व में ऋतु वानस्पतिक उत्पादों की प्रयोग की अद्भुत लोक परम्परा है। मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी किरणें ऊषा और प्रत्युषा हैं। छठ में सूर्य नारायण के साथ-साथ दोनों शक्तियों की आराधना होती है। यह सूर्योपासना की परम्परा ऋग्वेद काल से होती आ रही है, जो आज तक चली आ रही है। सूर्य नारायण की उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में मिलता है। इसके बाद वेदों के साथ उपनिषद् आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। आज यह पर्व पूर्वांचल की सांस्कृतिक समृद्धि के प्रतिबिंब के रूप में देश ही नहीं पूरी दुनिया में मनाया जाता है। (जारी)
(लेखक विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मैथिली-भोजपुरी अकादमी दिल्ली के पूर्व उपाध्यक्ष व सामाजिक सांस्कृतिक भाषा जैसे विषयों के विचारक हैं।)