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प्रकृति के सम्मान का प्रतीक पर्व छठ

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बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड सहित सम्पूर्ण भारत एवं विश्व के अनेक देशों में बड़े हर्षोल्लास के साथ इस व्रत के उपासक एवं सूर्यदेव की भक्ति करने वाले लोग इस पर्व को इस अवसर पर मनाते है। सूर्य एवं षष्ठी देवी से संबंध रखने के कारण इसे अतिप्राचीन एवं वैदिक पौराणिक व्रत माना जाता है। … छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। सूर्य केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं है। वह जीवन के पोषण कर्त्ता भी हैं।

 अशोक “प्रवृद्ध”

पौराणिक मान्यतानुसार संतान प्रदाता और रक्षक के रूप में पूजी जाने वाली माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें माता कात्यायनी भी कहा गया है। नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजार्चना की जाती है। एक अन्य मान्यतानुसार इन्हें सूर्यदेव की बहन भी माना गया है। इन माता षष्ठी देवी को ही पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार व झारखण्ड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है। और इनकी पूजा- अर्चना छठ मैया के रूप में सूर्य षष्ठी व्रत के समय प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी एवं चैत्र शुक्ल षष्ठी को विधि विधान से किया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत भगवान सूर्यदेव एवं छठ मैया के निमित्त मनाया जाने वाला बड़ा ही पुण्यफल प्रदाता पर्व माना जाता है।

बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड सहित सम्पूर्ण भारत एवं विश्व के अनेक देशों में बड़े हर्षोल्लास के साथ इस व्रत के उपासक एवं सूर्यदेव की भक्ति करने वाले लोग इस पर्व को इस अवसर पर मनाते है। सूर्य एवं षष्ठी देवी से संबंध रखने के कारण इसे अतिप्राचीन एवं वैदिक पौराणिक व्रत माना जाता है। छठी मैया को सूर्य देवता की बहन होने की मान्यता होने के कारण छठ पूजा के दौरान छठी मैया के साथ-साथ सूर्य देवता को भी अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यदेव की बहन छठ मैया की कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। छठी माता और इनकी पूजा के संबंध में विस्तृत वर्णन महाभारत, ब्रह्मवैवर्त पुराण, देवी भागवत पुराण, विष्णु पुराण, वेद, उपनिषद, सूर्याष्टक, शिव महापुराण, मत्स्य पुराण, वराह पुराण आदि ग्रंथों में अंकित हैं।

मान्यतानुसार माता षष्ठी वनस्पतियों व प्रजनन की देवी हैं और प्रजनन व संतानोत्पति के समय सहायता करती हैं। निसंतान लोगों को संतान प्राप्ति में मदद करती हैं। इसीलिए वे संतान दाता और रक्षक के रूप में पूजी जाती हैं। माता षष्ठी को दक्षिण भारत के लोग देवी देवसेना कह कर पुकारते हैं। माता षष्ठी के इंद्रसूता, षष्टी, पुत्रदायनी, मोक्षदायनी, सुखदायनी, देवसेना, वरदायनी, षष्ठी, बालाधिष्ठात्री, छठी, षष्ठांशरुपाये, रौना माता, मैया और देवी आदि 108 नाम प्रचलित हैं। षष्ठी देवी को वंश, शक्ति, जीवनकाल, अर्घ्य, खुशी, आनंद, प्रेम, भक्ति, देवत्व, ईश्वर प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, आकर्षण, समय, ऋतुओं, जोड़ों, विवाह, दान, दंड, शक्ति, ऊर्जा, वैवाहिक सुख, , निर्माण, संरक्षण, विनाश, प्रकृति, भ्रूण, गर्भावस्था, दीर्घायु, संतान, मातृत्व और प्रजनन की देवी, शिशुओं की संरक्षिका, महामारि, रोग, दोषों को दूर करने वाली देवी, आदिशक्ति,पराशक्ति, जगतमाता के रूप में जाना जाता है। इनका निवासस्थान स्कंद लोक, और मणिद्वीप, इंद्र लोक माना गया है।

छठ मैया का यह पर्व अति श्रद्धा एवं शुद्धता, धार्मिकता का अत्यंत कठिन अनुष्ठान एवं व्रत माना जाता है, जिसके के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन मे आरोग्यता एवं यश कीर्ति आदि प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद, विष्णु पुराण एवं रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों में सभी कालों में सूर्यदेव की पूजा एवं उपासना के प्रसंग अंकित हैं। सूर्य देव पंच देव समूह में शामिल है। इसलिए किसी भी छोटी एवं बड़ी पूजा एवं हवन आदि कार्यों में सूर्य की पूजा बिना कार्यो की सफलता में संशय बना हुआ रहता है। इस व्रत का पालन सभी स्त्री एवं पुरूष करते हैं। क्योंकि सूर्य सभी की आत्मा है। उनके बिना इस प्रकृति का संतुलन बनाना असंभव है। इसलिए जल एवं ज्योति तथा हमारे प्राणों के कारण सूर्य की पूजा का बड़ा ही विशाल एवं महान पर्व है।

छठ त्योहार को छठ पूजा, छठ पर्व, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी आदि नामों से जाना जाता है। इस त्योहार के अनुष्ठान नियम बहुत सख्त हैं, और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इस वर्ष 2024 में छठ पूजा अर्थात सूर्य षष्ठी का पर्व 5 नवम्बर से 8 नवम्बर तक मनाया जाएगा। 5 नवम्बर दिन मंगलवार को नहाय-खाय छठ पर्व का पहला दिन, 6 नवम्बर दिन बुधवार को छठ पर्व का दूसरा दिन खरना और लोंहड़ा, 7 नवम्बर दिन बृहस्पतिवार को छठ पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य, और 8 नवम्बर दिन शुक्रवार को छठ पर्व का उषा अर्घ्य चौथा दिन होगा।

सूर्य षष्ठी व्रत के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं होने से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके लिए उपाय पूछा। इस पर महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। राजा ने संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं। नौ महीने बाद उन्हें संतान सुख तो प्राप्त हुआ, लेकिन प्रसव के समय  रानी को मृत पुत्र प्राप्त हुआ। जिससे राजा को बहुत दुःख हुआ। संतान शोक में राजा ने आत्महत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुई, और उसने राजा से कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। सच्चे भाव से मेरी पूजा करने वाले की मैं सर्वमनोरथों को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें भी पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की आज्ञा का पालन करते हुए राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की विधि -विधान से पूजा की।

इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उस समय से ही छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा। महाभारत व पुराणों के अनुसार सूर्यपुत्र कर्ण भी भगवान सूर्य की नियमित रूप से पूजा करते थे। उनके लिए उपवास रखते थे तथा भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कर्ण पर बहुत कृपा रहती थी। मान्यता है कि कर्ण द्वारा किए गए नियमित पूजा अनुष्ठानों को ही वर्तमान में छठ पूजा कहा जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार पांडवों के द्वारा सम्पूर्ण राज- पाट द्युत क्रीड़ा में हार जाने पर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत रखने को कहा। द्रौपती ने व्रत का पूरा किया तब उसकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। ऐसी भी मान्यता है कि त्रेतायुग में लंका विजय पश्चात रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की थी।

सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य छठ पूजा के समय जल में खड़ा होकर सूर्य के प्रकाशस्नान से प्राप्त होता है। छठ पूजा के त्योहार का पालन करने से सूर्य प्रकाश के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा होती है। कुष्ठ रोगों सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के इलाज के लिए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है।

छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। सूर्य केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं है। वह जीवन के पोषण कर्त्ता भी हैं। मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने वाली इस पर्व के समय उन्हें प्रसन्न करके प्रकाश, ऊर्जा और जीवन को बनाए रखने की शक्ति देने के लिए धन्यवाद अर्पित किए जाने की परिपाटी है। यह पूजा जीवन, ऊर्जा और समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले सूर्य देवता और छठी मैया के प्रति आभार व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य और सम्मान का प्रतीक भी है। यह प्रकृति की शुद्धता और संतुलन को बनाए रखने की प्रेरणा और जलवायु संरक्षण की शिक्षा देती है। इसके अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार की दूषित सामग्री अथवा प्रदूषण को बढ़ावा नहीं दिया जाता। इसलिए स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश फैलाना भी छठ पूजा का एक उद्देश्य है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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