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“सीजेरियेन डिलीवरी” फायदे या नुकसान

हर साल 55 प्रतिशत महिलायें बिना जरूरत अपनी मर्जी से सीजेरियेन डिलीवरी चुनती हैं। ऐसा तब, जब दुनियाभर के डॉक्टरों का मानना है कि अगर प्रसव में कोई गंभीर समस्या नहीं है, तो नार्मल डिलीवरी यानी योनि से बच्चे का जन्म का सबसे सुरक्षित तरीका है। अपने देश में बीते दस सालों में सालाना 5 प्रतिशत की दर से सीजेरियेन केस बढ़े हैं।

जो प्राकृतिक वही सबसे अच्छा, चाहे भोजन हो या चाइल्ड बर्थ। इसके बाबजूद पढ़ी-लिखी शहरी आबादी में सीजेरियेन (सी-सेक्शन) डिलीवरी का चलन बढ़ रहा है। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 55 प्रतिशत महिलायें बिना जरूरत अपनी मर्जी से सीजेरियेन डिलीवरी चुनती हैं। ऐसा तब, जब दुनियाभर के डॉक्टरों का मानना है कि अगर प्रसव में कोई गंभीर समस्या नहीं है, तो नार्मल डिलीवरी यानी योनि से बच्चे का जन्म का सबसे सुरक्षित तरीका है।

अपने देश में बीते दस सालों में सालाना 5 प्रतिशत की दर से सीजेरियेन केस बढ़े हैं। जहां अपने यहां में सीजेरियेन केस बढ़ रहे हैं वहीं अमेरिका-योरोप में नार्मल डिलीवरी को प्राथमिकता दी जाती है, सीजेरियेन डिलीवरी तभी कराते हैं जब इमरजेंसी हो।

सी-सेक्शन (सीजेरियेन) डिलीवरी एक ऐसा सर्जिकल प्रोसीजर, जिसमें मां के पेट और गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे का जन्म कराते हैं। इसकी जरूरत तब पड़ती है जब योनि से बच्चे का जन्म सम्भव न हो। जैसे गर्भाशय ग्रीवा, प्लेसेंटा से अवरुद्ध हो, लेबर पेन न शुरू हों, सिर के बजाय शिशु के पैर नीचे हो जायें, गर्भ में 2 से ज़्यादा बच्चे हों, पहली डिलीवरी सीजेरियन हुयी हो, बच्चे जुड़वां हों और पहले के पैर गलत दिशा में हों या शिशु, गर्भ में हॉरीजोन्टल हो जाये।

इमरजेंसी सिचुयेशन जैसे मां का ब्लडप्रेशर बढ़ जाये, गर्भ में बच्चे की सेहत बिगड़ने लगे। गर्भनाल, शिशु की गर्दन से लिपट जाये। बच्चे का सिर बड़ा हो। गर्भनाल, बच्चे से पहले योनि से बाहर आ जाये। प्रसव आगे न बढ़ रहा हो यानी यूट्राइन सर्विक्स न खुले तो सी-सेक्शन की जरूरत होती है।

सीजेरियेन डिलीवरी में दो तरह के कट (चीरे) लगाते हैं। नार्मल सीजेरियेन में बिकनी लाइन और इमरजेंसी में क्लासिकल कट। बिकनी लाइन कट कम दिखाई देता है जबकि क्लासिकल से पेट पर बड़ा निशान बनता है इसे इमरजेंसी में लगाते हैं।

शहरी परिवेश की ज्यादातर महिलायें सब नार्मल होने पर भी सीजेरियेन विकल्प चुनती हैं। इसके पीछे उनकी अपनी सोच, अपने तर्क हैं जैसे- प्रसव पीड़ा नहीं होती। वजाइना शेप नहीं बिगड़ती। पेल्विक मसल्स कमजोर नहीं होती। यूट्राइन प्रोलेप्स (गर्भाशय नीचे आना), अनकंट्रोल्ड यूरीनेशन, यूरीन लीकेज जैसी समस्यायें नहीं होती बगैरा-बगैरा। इनके अलावा अस्पताल भी मोटा बिल बनाने के चक्कर में सिजेरियेन डिलीवरी को बढ़ावा देते हैं।

सीजेरियेन डिलीवरी से नुकसान?

अगर सिजीरियेन साइड इफेक्ट्स की बात करें तो इसमें औसत से ज्यादा ब्लीडिंग, पैरों में ब्लड क्लॉट, यूट्रेस लाइनिंग में इंफेक्शन, जख्म के आसपास दर्द, अस्पताल में ज्यादा समय रहने और भविष्य में अनिवार्य सीजेरियेन डिलीवरी जैसी समस्यायें हो सकती हैं। इसके अलावा अस्पताल का मोटा बिल चुकाना पड़ता है सो अलग। कुछ महिलाओं को एनीस्थीसिया इंजेक्शन से पीठ दर्द, यूरीनेशन के समय दर्द-जलन, सांस लेने में तकलीफ, सिरदर्द, पेट दर्द,  पिंडलियों में सूजन, वर्टिब्रल कैनाल हेमेटोमा और स्टूल पास करने में दिक्कत हो जाती हैं।

असल में एनीस्थीसिया ही वो जादू है जिससे प्रसव पीड़ा नहीं होती। इसके बिना सीजेरियन डिलीवरी सम्भव नहीं। ऐनीस्थीसिया तीन तरह से दिया जाता है- स्पाइनल, एपिड्यूरल और जनरल। स्पाइनल और एपिड्यूरल में रीढ़ (स्पाइन) में एक नीडिल/ट्यूब के जरिये लोकल एनेस्थेटिक इंजेक्ट करते हैं जिससे छाती से नीचे का भाग सुन्न हो जाता है। डिलीवरी में दर्द नहीं होता केवल खिंचाव जैसी संवेदनायें महसूस होती हैं। अर्जेन्ट डिलीवरी में ड्रिप के जरिये जनरल एनीस्थीसिया देते हैं।

एनीस्थीसिया से प्रसव पीड़ा नहीं होती लेकिन इससे पेरीफेरल नर्व इंजरी, डीप वेन थ्रोम्बोसिस, स्पाइनल कॉर्ड इस्केमिया, कॉडा इक्विना सिंड्रोम, एराक्नोइडाइटिस, मेनिनजाइटिस, एब्सस इंफेक्शन, कार्डियोवैस्कुलर कोलेप्स जैसे कॉम्प्लीकेशन हो जाते हैं। अगर एनीस्थीसिया देने में सावधानी न बरती जाये तो मरीज कोमा में जा सकता है, उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

अगर सीजेरियेन विकल्प चुना है तो…    

अगर आपने बिना जरूरत सोच समझकर सीजेरियेन विकल्प चुना है तो डॉक्टर को अपनी मेडिकल कंडीशन, ब्लड ग्रुप, किन दवाओं से एलर्जी है, इस समय कौन सी दवायें चल रही हैं खासतौर पर ब्लड थिनर इत्यादि के बारे में जरूर बतायें। अस्पताल में रजिस्ट्रेशन से पहले डॉक्टर से ईआरएसी के बारे में बात करें। ये सीजेरियेन डिलीवरी स्टैंडर्ड हैं। अस्पताल इन्हें फॉलो कर स्ट्रेस और पेन फ्री सीजेरियेन डिलीवरी का दावा करते हैं। इन मानकों के मुताबिक डिलीवरी प्रोसेस में अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉक्टर्स और सहायकों को टीम की तरह मिलकर काम करना चाहिये ताकि सुरक्षित और दर्दरहित डिलीवरी हो।

डिलीवरी के बाद पहले 6 सप्ताह

सीजेरियेन डिलीवरी के बाद, महिलाएं आमतौर पर 2 से 5 दिन तक अस्पताल में रहती हैं। यह स्टे डिपेंड होता है रिकवरी पर। जल्द रिकवरी के लिये ज्यादा से ज्यादा आराम करें। भारी सामान या ऐसा कुछ भी न उठाएँ जिससे दर्द हो। रोजाना थोड़ा चलें फिरें, इससे शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य लाभ होगा। खूब पानी पिएँ। हाई फाइबर हेल्दी डाइट लें। गर्म पानी की बोतल से जख्म की सिकाई करें। घाव साफ और सूखा रखें। संक्रमण के लक्षण (लालिमा, दर्द, घाव की सूजन या बदबूदार स्राव) नजर आने पर डॉक्टर को बतायें।

जख्म के आस-पास सुन्नपन या खुजली सामान्य है, इसे लेकर चिंतित न हों। पेट को सपोर्ट देने के लिए टाइट, हाई-वेस्ट कम्प्रेशन अंडरवियर या कंट्रोल ब्रीफ पहनें। इनसे दर्द कम होता है। जब तक सहज महसूस न करें सेक्स से बचें। सेक्स के लिए तैयार होने में हफ़्तों, यहाँ तक कि दो-तीन महीने का समय भी लग सकता है।

डिलीवरी के बाद सेल्फ केयर

कई महिलाएं सीजेरियेन डिलीवरी के बाद सकारात्मक महसूस करती हैं, जबकि कुछ निराश या उदास। ऐसे में साथी, परिवार, दोस्तों और देखभाल करने वालों के साथ अपनी भावनायें शेयर करें। इससे हल्का महसूस होगा। अगर उदासी ज्यादा है तो डॉक्टर को बतायें ताकि वह आपके लिये काउंसलिंग का प्रबन्ध करे।

नवजात को सभांलना सभी के लिए कठिन होता है, लेकिन सीजेरियेन डिलीवरी के बाद यह और भी कठिन हो जाता है। ऐसे में अपना अच्छी तरह ख्याल रखें। ढंग से खायें-पियें। ठीक होने में कुछ सप्ताह या उससे अधिक समय लग सकता है, इसलिये धैर्य रखें। जब तक जख्म पूरी तरह ठीक न हो (आमतौर पर 6 सप्ताह) तब तक भारी सामान उठाने और कार चलाने से बचें।

और अंत में…..

यदि फिर से प्रेगनेन्सी ठहर जाये तो डॉक्टर से डिलीवरी के बारे में खुलकर बात करें कि यह सीजेरियेन होगी या नार्मल। अगर पहली सीजेरियेन डिलीवरी में कोई कॉम्प्लीकेशन नहीं थे तो दूसरी डिलीवरी नॉर्मल हो सकती है। इसे वीबीएसी कहा जाता है। यदि ऐसा सम्भव है तो इसे प्राथमिकता दें। इससे इंफेक्शन, ब्लड लॉस, डीप वेन थ्रोम्बोसिस, ऐडिमा इत्यादि का रिस्क कम होता है। रिकवरी फास्ट होती है। बच्चे को सांस सम्बन्धी तकलीफ नहीं होती, न ही उसे नर्सरी में रखना पड़ता है। हलांकि इसमें कुछ जोखिम भी हैं जैसे गर्भाशय पर पहली सीजेरियन डिलीवरी के निशान का फटना। एक रिपोर्ट के मुताबिक 200 वीबीएसी डिलीवरी में से एक में गर्भाशय इसी निशान से फट जाता है जिससे हिस्टेरेक्टॉमी और स्टिल बर्थ का रिस्क बढ़ता है। इसलिये बच्चे को जन्म देने से पहले अच्छी तरह सोच समझ लें कि सीजेरियेन और नार्मल में से कौन सी डिलीवरी ज्यादा सुरक्षित होगी। याद रखें जो नेचर ने बनाया वही सर्वश्रेष्ठ है और जब तक बहुत जरूरी न हो नेचर के विरूद्ध न जायें।

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