एकाध अपवादों को छोड़ दें तो आमतौर पर उपचुनावों का देश या राज्य की राजनीति पर कोई खास असर नहीं होता है। जबलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में शरद यादव की जीत या बिहार की वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव में लवली आनंद की जीत या झारखंड में तमाड़ विधानसभा सीट पर शिबू सोरेन की हार आदि कुछ अपवाद हैं। बाकी उपचुनाव आमतौर पर रूटीन के अंदाज में लड़े जाते हैं और सहज ही उसके फैसले भुला दिए जाते हैं। परंतु इस बार ऐसा नहीं है। इस बार 10 राज्यों की 31 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर बुधवार, 13 नंवबर को मतदान हुआ है और चार राज्यों की 14 विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा।
इन 47 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों के नतीजों का बड़ा असर देश और संबंधित राज्यों की राजनीति पर पड़ेगा। हालांकि इनके नतीजों से केंद्र या संबंधित राज्य की सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं होगा। इसके बावजूद इन चुनावों के नतीजे इसलिए अहम हैं क्योंकि उनसे संबंधित राज्यों की राजनीतिक दशा और दिशा तय होगी। इनसे यह भी पता चलेगा कि लोकसभा चुनाव का नतीजा एक संयोग था या सचमुच ‘इंडिया’ ब्लॉक का प्रयोग कामयाब हुआ था। चुनाव आयोग ने अचानक उत्तर प्रदेश की नौ सीटों का उपचुनाव 13 नवंबर से टाल कर 20 नवंबर क्यों किया इसका भी अंदाजा नतीजों से लगेगा।
उत्तर प्रदेश की नौ सीटों- फूलपुर, कटेहरी, करहल, सीसामऊ, मझवां, गाजियाबाद सदर, खैर, मीरापुर और कुंदरकी में उपचुनाव है। इनमें से चार सीटें समाजवादी पार्टी के, तीन भाजपा के और दो भाजपा के सहयोगियों रालोद व निषाद पार्टी के पास थीं। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा को हरा दिया था। उसके बाद योगी की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा था। यह खतरा तभी टलेगा, जब राज्य की नौ सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा बड़ी जीत हासिल करे। इसके लिए चुनाव की घोषणा के पहले से योगी आदित्यनाथ मेहनत कर रहे हैं।
ऐसा लग रहा था कि मेहनत में कुछ कमी रह गई तभी चुनाव आयोग ने 13 नवंबर का उपचुनाव 20 नवंबर कर दिया। क्योंकि आयोग ने चुनाव टालने का जो कारण दिया है वह निराधार है। आयोग ने गंगा स्नान और गुरु पूर्णिमा का कारण बताया है। लेकिन आठ नवंबर तक छठ होने का कारण बता कर प्रशांत किशोर ने बिहार में उपचुनाव आगे बढ़ाने को कहा था तो आयोग ने उसे खारिज कर दिया था। चुनाव आयोग के तर्क में कोई दम नहीं है। आयोग ने पहले ही मिल्कीपुर का चुनाव घोषित नहीं किया था, जो फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आता है।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश की नौ सीटों का चुनाव योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा और उनके करिश्मे की परीक्षा है। चुनाव से पहले पार्टी के अंदर के मतभेद खुल कर सामने आ रहे हैं। मुख्यमंत्री ‘कटेंगे तो बंटेंगे’ के नारे पर चुनाव लड़ रहे हैं तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को इससे ऐतराज है और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ के नारे का जिक्र कर रहे हैं। प्रयागराज में छात्रों का प्रदर्शन चल रहा है, जिसमें केशव मौर्य, पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह, विधायक देवेंद्र प्रताप सिंह आदि छात्रों का समर्थन कर रहे हैं। दूसरी ओर सपा और कांग्रेस का गठबंधन बिखर गया। सपा अकेले सभी नौ सीटों पर लड़ रही है। अखिलेश यादव ने लोकसभा में आजमाए गए अपने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के फॉर्मूले को ज्यादा आक्रामक तरीके से आजमाया है। उन्होंने चार मुस्लिम, तीन पिछड़े और दो दलित उम्मीदवार उतारे हैं। सो, अखिलेश के पीडीए और योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ की परीक्षा होनी है। इस बार बहुजन समाज पार्टी भी उपचुनाव लड़ रही है लेकिन उसकी नेता मायावती ने सिर्फ उम्मीदवार उतार कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। उपचुनाव का नतीजा बसपा के राज्य की राजनीति में हाशिए पर पहुंच जाने की धारणा को और पुख्ता करेगा।
बिहार की चार सीटों पर उपचुनाव 13 नवंबर को हो गया। इनमें से तीन सीटें- बेलागंज, रामगढ़ और तरारी राजद और सीपीआई माले की थीं, जबकि एक- इमामगंज सीट भाजपा की सहयोगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी हम की थी। इस बार दो सीट पर भाजपा, एक पर जदयू और एक सीट पर हम चुनाव लड़ रहा है तो दूसरी ओर तीन सीटों पर राजद और एक पर माले का उम्मीदवार है। यह पहली बार हो रहा है कि इन सीटों पर चुनाव आमने सामने का न होकर त्रिकोणात्मक हो रहा है क्योंकि चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने चारों सीटों पर अपने जन सुराज पार्टी का उम्मीदवार उतारा है।
वे 2025 का रोडमैप इस उपचुनाव से दिखाने का दावा कर रहे हैं। इस बार जदयू और प्रशांत किशोर दोनों ने राजद के मुस्लिम और यादव वोट में सेंध लगाने का दांव चला है। तो प्रशांत किशोर ने जदयू व भाजपा के लव कुश और सवर्ण वोट को तोड़ने के लिए भी उम्मीदवार उतारे हैं। सो, दोनों पारंपरिक गठबंधनों को साबित करना है कि असली लड़ाई उनकी ही है और प्रशांत किशोर कोई ताकत नहीं बन पाए हैं। इन चार सीटों के नतीजे से अगले साल के विधानसभा चुनाव की संभावनाओं का अंदाजा होगा। साथ ही इसका भी पता चलेगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर चल रही चर्चाओं और तेजस्वी के सीएम पद के दावे को राज्य के मतदाता किस तरह से लेते हैं।
पश्चिम बंगाल की छह विधानसभा सीटों- सिताई, मदारीहाट, नैहाटी, हाड़ोआ, मेदिनीपुर और तालडांगरा में 13 नवंबर को मतदान हुआ। इनमें से दक्षिण बंगाल की पांच और उत्तर बंगाल की एक तालडांगरा सीट है। सभी छह सीटें तृणमूल कांग्रेस की हैं लेकिन उत्तर बंगाल में भाजपा मजबूत असर वाली पार्टी बन गई है। इन छह सीटों के उपचुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरी ताकत लगाई है क्योंकि नौ अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद यह पहला चुनाव है। उस घटना के बाद पूरे बंगाल में ममता सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुआ। महिलाएं सड़कों पर उतरीं और सिविल सोसायटी ने भी ममता का विरोध किया। संदेशखाली से कोलकाता तक मां, माटी और मानुष का उनका नैरेटिव बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। दूसरी ओर भाजपा भी मजबूती से चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस और वाम मोर्चे का गठबंधन बिखर गया है। दोनों पार्टियों ने अपने अपने उम्मीदवार चुनाव में उतारे हैं। इनके नतीजों से पता चलेगा कि ममता बनर्जी सरकार के प्रति लोगों की धारणा कितनी बदली है।
पंजाब की चार सीटों- गिद्दड़बाह, डेरा बाबा नानक, बरनाला और चब्बेवाल पर 20 नवंबर को उपचुनाव होगा। आम आदमी पार्टी की सरकार और कांग्रेस दोनों के बीच जोर आजमाइश है लेकिन चूंकि अकाली दल ने सुखबीर बादल के तनखैया घोषित होने की वजह से चुनाव से अपने को अलग किया है तो भाजपा उसका फायदा उठाने की कोशिश में है। कांग्रेस अपने दो सांसदों अमरिंदर सिंह राजा वडिंग की पत्नी और सुखजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी को टिकट देकर फंसी है तो दूसरी ओर भाजपा मनप्रीत बादल की सीट जीत कर मैसेज देने की कोशिश में है।
राजस्थान की सात सीटों- सलूंबर, चौरासी, झुंझनू, खींवसर, रामगढ़, दौसा और देवली उनियारा सीट पर 13 नवंबर को वोटिंग हो गई। पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कांटे की टक्कर में हार गई थी लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव में 11 सीटें जीत कर उसने भाजपा को बड़ा झटका दिया। इन सात सीटों के नतीजे से पता चलेगा कि कांग्रेस अपना बेहतर प्रदर्शन जारी रख पाती है या नहीं। हालांकि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत आदिवासी पार्टी से गठबंधन टूटने से कांग्रेस बैकफुट पर है। उसके नेता सचिन पायलट की परीक्षा इस चुनाव में होनी है क्योंकि उनके इलाके की तीन सीटों पर उपचुनाव हुआ है। नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी साबित करना है कि वे डमी मुख्यमंत्री नहीं हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी भाजपा के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को अपनी क्षमता दिखानी है। वहां बुधनी और विजयपुर सीट पर मतदान हुआ है। इसमें से बुधनी शिवराज सिंह चौहान की सीट है।
केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर 13 नवंबर को वोटिंग हुई, जबकि महाराष्ट्र की नांदेड़ सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा। दोनों सीटों के नतीजे अहम हैं। वायनाड में प्रियंका गांधी वाड्रा पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। उनके जीत कर लोकसभा पहुंचने से कांग्रेस की राजनीति पर बहुत बड़ा असर होगा और केरल में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस की दावेदारी मजबूत होगी। नांदेड़ सीट पर कांग्रेस के लिए मुकाबला कठिन है क्योंकि यह अशोक चव्हाण की पारंपरिक सीट है। इस बार भाजपा हार गई थी लेकिन पांच महीने बाद ही हो रहे उपचुनाव में अशोक चव्हाण को भाजपा के लिए अपनी उपयोगिता साबित करनी है।