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बाहरी और भीतरी का द्वंद्व

कृति सेनन कहती हैं कि अगर कोई फ़िल्मकार इंडस्ट्री से जुड़े किसी व्यक्ति (यानी अपने बेटे-बेटी या किन्हीं रिश्तेदारों या दोस्तों या किसी स्थापित फ़िल्मी हस्ती के परिजनों) को लॉन्च करता है, तो उसे ऐसे व्यक्ति को भी काम देना चाहिए जो बाहरी है, मगर टेलेंटेड है। वे कहती हैं कि अगर हम सभी को समान मौके देने लगें तो यह इंडस्ट्री बाहरी लोगों के लिए आसान हो जाएगी। असल में, यह विवाद काफ़ी समय से चल रहा है कि फ़िल्मों में प्रवेश के लिए बाहरी कलाकारों को भारी स्ट्रगल करना पड़ता है जबकि इंडस्ट्री के स्थापित लोगों के बच्चों को आराम से काम मिल जाता है। हालांकि पिछले दस-पंद्रह सालों में जितने नए लोग फ़िल्मों में आए हैं उतने इससे पहले इतने कम समय में कभी नहीं आए थे। ओटीटी ने नए लोगों की गिनती और बढ़ा दी है। फ़िल्मों और वेब सीरीज़ में अब अक्सर ऐसे चेहरे दिखते हैं जो आपने पहले नहीं देखे और जिन्हें आप नहीं पहचानते। इनमें से कुछ निश्चित रूप से बड़े फ़िल्मकारों और बड़े स्टारों के करीबी होंगे, मगर ज़्यादातर बाहरी हैं। इसके बावजूद इन दिनों फ़िल्म उद्योग में भाई-भतीजावाद का आरोप विस्तृत होता जा रहा है।

हिंदी सिनेमा हो या मराठी, बांग्ला या दक्षिण का सिनेमा, सब कहीं कुछ ऐसे परिवार हैं जिनकी कई-कई पीढ़ियां परदे पर दर्शन दे चुकी हैं। इंडस्ट्री में इन परिवारों की जान-पहचान और रसूख भी ज़्यादा रहता है। इसके बूते वे अपने बच्चों को किसी बड़े फ़िल्मकार से लॉन्च करवा सकते हैं। कंगना रनौत, प्रियंका चोपड़ा आदि के आरोपों से इस मामले में सबसे ज़्यादा करण जौहर घिरे लगते हैं, लेकिन ऐसे और भी फ़िल्मकार हैं। इस चक्कर में स्टारकिड्स का आगमन लगातार जारी है। पिछले दिनों सनी देओल के बेटे राजबीर और पूनम ढिल्लों की बेटी पलोमा लॉन्च हुए थे तो अब शाहरुख खान की बेटी सुहाना और अमिताभ बच्चन के नाती अगत्स्य लॉन्च होने वाले हैं। शाहरुख का बेटा आर्यन भी एक वेब सीरीज़ बना रहा है जबकि सलमान खान अपने भांजे-भांजियों और आमिर खान अपने बेटे-बेटी को लॉन्च होने में मदद कर रहे हैं।

मगर वे कुछ नया नहीं कर रहे। यह तो फ़िल्मी दुनिया में हमेशा से होता आया है, जिसके चलते बाहरी लोगों को इंडस्ट्री में घुसने के लिए जूझना पड़ा है। कुछ दिन पहले दीपिका पादुकोण ने कहा कि बाहरी होने के कारण शुरू में मुझे भी बहुत परेशानी हुईं, लेकिन और कोई चारा भी नहीं था। उन्होंने कहा कि इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद तब भी था, अब भी है और आगे भी रहेगा। मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां यह सब नहीं है। कौन सा करियर ऐसा है जहां स्थापित हो चुके यानी भीतर वाले लोग बाहरी जनों के लिए दरवाज़े खोल कर इंतज़ार कर रहे हैं? भीतर घुसने का संघर्ष हर जगह है। और अगर एक बार घुस कर अपनी जगह बना लेने के बाद लोग बाहर वालों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं करते तो यह प्रवृति भी हर जगह है।

अपनी जगह के लिए हर कहीं आपको जूझना है। अपने देश में तो वैसे भी हर क्षेत्र में उम्मीदवार ज़्यादा हैं। फ़िल्मों में भी। मुंबई में एक मज़ाक चलता है कि अंधेरी स्टेशन पर अगर कोई पत्थर उछाला जाए तो वह जिसे भी लगेगा वह या तो फ़िल्म इंडस्ट्री में कुछ न कुछ काम कर रहा होगा या उसमें काम तलाश रहा होगा। आखिर ‘ओम शांति ओम’ मिलने से पहले करीब तीन साल दीपिका पादुकोण को भी स्ट्रगल करना पड़ा। मुंबई में अकेले रहते हुए उन्होंने यह कठिन समय छोटी-मोटी मॉडलिंग और एक कन्नड़ फ़िल्म ‘ऐश्वर्या’ के सहारे निकाला।

बहुत से लोग बीच में ही हार मान लेते हैं और कोई और काम पकड़ लेते हैं। मगर वे स्थापित लोगों को कोसना बंद नहीं करते। जिमी शेरगिल के मुताबिक नेपोटिज़्म यानी भाई-भतीजावाद की बात वही लोग करते हैं जो कुछ कर नहीं पाते। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मैं भी बाहरी था, लेकिन इंडस्ट्री ने मुझे सब कुछ दिया। मेरे कई रिश्तेदार एक्टिंग में आने के लिए सालों से धक्के खा रहे हैं। अगर नेपोटिज़्म से काम मिलता तो मैं सबसे पहले उन्हें काम दिलाता। लेकिन नहीं दिलवा पा रहा।

ज़्यादा दिन नहीं हुए जब सनी देओल ने भी बॉलीवुड की दोस्ती-यारी या भाईचारे को झूठा बताया था। उन्होंने कहा था कि वक्त आने पर कोई साथ नहीं देता। असल में, जब सनी अपने भाई बॉबी देओल को लॉन्च करना चाहते थे तब उन्होंने कई फ़िल्मकारों से बात की, मगर कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आया, जबकि धर्मेंद्र से लेकर आज तक पूरा देओल परिवार कभी किसी कैंप का हिस्सा नहीं रहा। किसी तरह राजकुमार संतोषी की ‘बरसात’ से बॉबी की शुरूआत हुई। हाल में सनी और बॉबी जब ‘कॉफ़ी विद करण’ शो में आए तो सनी देओल ने वहां भी कहा कि नेपोटिज़्म की बात बकवास है और वही लोग ऐसी बातें करते हैं जो कुछ कर नहीं पाते। सनी ने कहा कि पापा यानी धर्मेंद्र ने उन्हें इंडस्ट्री में प्रवेश ज़रूर कराया, लेकिन हम दोनों भाइयों ने अपनी योग्यता से अपनी जगह बनाई है। यानी स्टारकिड होने के नाते आपके पास लॉन्च होने की सुविधा तो रहती है, लेकिन सफलता के लिए आपको किसी बाहर वाले के बराबर ही मेहनत करनी होगी।

यानी एक मकाम पर आकर सब बराबर हो जाते हैं। कितने ही स्टारकिड हैं जो तमाम कोशिशों के बाद भी वह कामयाबी हासिल नहीं कर पाए जिसके लिए उन्हें लॉन्च किया गया था। उदय चोपड़ा के लिए पिता यश चोपड़ा और भाई आदित्य चोपड़ा ने खूब कोशिश की, लेकिन वे नहीं चल सके। बताइए, यशराज जैसा संस्थान अपने मालिक के बेटे को स्टार नहीं बना सका। राजकपूर भी अपने तीसरे बेटे राजीव कपूर को कामय़ाबी नहीं दिला सके। शशि कपूर के बेटों के साथ भी यही हुआ। यह नाकामी एक अलग किस्म की तकलीफ़ लाती है। पिता अमिताभ बच्चन की भारी-भरकम ख्याति के समक्ष आधे-अधूरे स्टार बन कर रह जाने का दुख अभिषेक बच्चन से ज़्यादा कौन समझ सकता है। सनी देओल खुद अपने बड़े बेटे करण देओल के बाद राजवीर को भी लॉन्च करवा चुके हैं, मगर अभी तक दोनों की लॉन्चिंग फ़्लॉप रही है।

ऐसे कितने ही नाम हैं। एक समय में तनीषा मुखर्जी ने काम को गंभीरता से नहीं लिया। तनुजा की बेटी, काजोल की छोटी बहन और अजय देवगन की साली, तनीषा मुखर्जी हाल में ‘झलक दिखला जा’ शो में पहुंचीं तो उन्होंने माना कि जो भी मौके मिले उनमें उन्होंने मेहनत नहीं की। फिर, यह कहते हुए वे भावुक हो गईं कि आज अपने परिवार में मैं अकेली हूं जो स्टार नहीं है। मगर ऐसी स्थिति वाली वे अकेली स्टारकिड नहीं हैं। हाल में अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर को भी यह सच्चाई झेलनी पड़ी। क्रिकेट वर्ल्डकप के मुंबई में हुए भारत-न्यूज़ीलैंड वाले सेमी-फ़ाइनल को देखने के लिए बीसीसीआई ने इंग्लैंड के पूर्व फ़ुटबॉल खिलाड़ी डेविड बैकहम को भी आमंत्रित किया था जो कि यूनिसेफ़ के किसी कार्यक्रम में आरत आए थे। इस मैच के बाद बैकहम तीन पार्टियों में गए। मुकेश अंबानी और शाहरुख खान के घर के अलावा वे सोनम कपूर और उनके पति आनंद आहूजा की पार्टी में भी पहुंचे। हर्षवर्धन कपूर ने इसी पार्टी में उनके साथ खींचीं अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं तो कई लोगों ने कमेंट किया कि बैकहम तो ठीक है, मगर तू कौन है। खास कर वेब सीरीज़ ‘थार’ में हर्षवर्धन ने अच्छा काम किया था और ऐसे कमेंट करने वालों को उन्होंने पलट कर बखूबी जवाब भी दिए। फिर भी, यह अधूरेपन वाली स्थिति किसी को भी कचोट सकती है।

इसलिए, बाहर वाले जो आरोप लगाते हैं वह राजनीति में लगने वाले परिवारवाद के आरोप जैसा है। कुछ नेताओं के बेटे-बेटी राजनीति में आगे बढ़ते हैं तो कुछ तमाम प्रयासों के बाद भी चल नहीं पाते। फिल्मों में भी आप बाहर वाले हों या भीतर वाले, आपका काम ही आपको बनाता है। और अपनी जगह बनाने में भीतर वालों को भी बाहर वालों जितना समय लग सकता है। वे आर्थिक रूप से सुरक्षित हो सकते हैं, पर नाम के मामले में उनकी लड़ाई भी उतनी ही कठिन है। बाहर वालों के लिए समान मौकों की मांग इसलिए भी अर्थहीन है कि यह कोई सरकारी उपक्रम नहीं है कि हम उसमें आरक्षण मांगने लगें। ‘आर्चीज़’ में शाहरुख खान की बेटी और अमिताभ बच्चन के नाती को लॉन्च करने जा रहीं ज़ोया अख़्तर के पिता जावेद अख़्तर कहते हैं कि फ़िल्में बनाना बिजनेस है और कोई अपना बिजनेस किसे सौंपता है या फ़िल्म में किसे लेता है किसे नहीं, यह सब उसकी मर्ज़ी पर है। कोई इसमें क्या कर सकता है।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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