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डॉ. मोहनराव भागवत: उपेक्षा जनित सक्रियता…?

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भोपाल। वह भी एक जमाना था, जब भारतीय जनता पार्टी के सत्तारूढ़ वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवानी अपनी सरकार का कोई भी अहम फैसला बिना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राय व पूर्व अनुमति के बिना नही लेते थे, पहले संघ को विश्वास में लेते थे, उसके बाद फैसला, किंतु पिछले एक दशक से स्थिति ठीक इसके विपरीत है, सत्ता उसी भारतीय जनता पार्टी की है किंतु आज वही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी उपेक्षा से काफी पीडि़त व उद्वेलित है और इसी सत्ता की उपेक्षा ने संघ को अपने संगठन की साख बचाने हेतु नई सक्रियता की ऊर्जा प्रदान कर दी है, इसीलिए पिछले कुछ दिनों से संघ प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत काफी सक्रिय और व्यस्त नजर आने लगे है, अब उन्हें अपनी सरकार की किसी तरह की भी चिंता नही रही, इसीलिए वे अपने संगठन की साख की रक्षा में पूरी तरह जुट गए है, चाहे फिर सत्तारूढ़ नेता उनसे अनवरत् सम्बंध बनाकर रखें या नहीं?

इसकी उन्हें अब कोई चिंता नही रही, अब वे अपने संगठन की साख को कायम रखने में ही अपना सर्वस्व न्यौछावर करना चाहते है, ऐसे में यदि यह कहा जाए कि सत्तारूढ़ भाजपा व संघ के पदाधिकारी आमने-सामने खड़े नजर आ रहे है, तो कतई गलत नही होगा? इसी सन्दर्भ में यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों दक्षिण भारत में आयोजित संघ के राष्ट्रीय सम्मेलन में जाकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जो तेवर दिखाए थे, उनसे तभी यह तय हो गया था कि अब संघ और भाजपा एक साथ नही बल्कि दोनों आमने-सामने है और इस घटना के बाद से ही संघ के शीर्ष पदाधिकारियों ने अपने संगठन के अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ना शुरू कर दिया है, इसीलिए आज दोनों ही समान विचारधारावाले संगठनों के नेता अलग-अलग नजर आने लगे है और संघ कुछ अधिक ही सक्रिय नजर आने लगा है और शायद इसीलिए संघ प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत का शब्द चयन काफी तीखा हो गया है, कोई आश्चर्य नही कि संघ सक्षम प्रतिपक्ष की भूमिका में नजर आने लगें, क्योंकि जो आज सत्ता के सामने प्रतिपक्ष है, वह देश व देशवासियों के अधिकारों व सहूलियतों की रक्षा के लिए इतना सक्षम नजर नही आ रहा है और इन्हीं सब स्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए नेता प्रतिपक्ष की आलोचना भी शुरू हो गई है, इसीलिए ऐसी स्थिति में यदि संघ व उसके नेता प्रतिपक्षी की भूमिका में नजर आने लगे तो कोई आश्चर्य नही होगा?

इन्हीं सब स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में संघ प्रमुख मोहनराव भागवत के व्याख्यान ‘‘द्विअर्थी’’ नजर आने लगे है, कभी वे हिन्दू और हिन्दुत्व के नाम पर अपरोक्ष रूप से सत्ता पर हमला करते है तो कभी हमारे पड़ौसी देशों की साजिशों को सामने लाकर, आज एक और जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने आपको विश्वस्तरीय लोकप्रिय नेता होने की झलक दिखाने का प्रयास करते है, तो कभी डॉ. मोहनराव भागवत विदेशी सम्बंधों व पड़ौसी देशों की कार-गुजारियों की आड़ में हमारी विदेश नीति की आलोचना कर रहे है, भागवत का स्पष्ट आरोप है कि हमारे सामाजिक रिश्तों को विदेशी ताकते अपनी साजिशों के माध्यम से ध्वस्त करने का प्रयास कर रही है और हम और हमारी सरकार खुली आंखों से यह सब चुपचाप देख रहें है, इस प्रक्रिया को नही रोका गया तो हमारा काफी नुकसान होगा।

अब उन्होंने यह चेतावनी भी देनी शुरू कर दी है कि यदि हम दुर्बल और असंगठित रहे तो वह हमारे लिए अत्याचार को निमंत्रण देने जैसा होगा, इसलिए हमें अभी से सचेत हो जाना चाहिए। इस प्रकार कुल मिलाकर अब भाजपा के ही शासनकाल में सत्ता-संगठन और संघ तीनों के स्वर अलग-अलग हो गए है और सत्तारूढ़ दल के साथ ऐसा होना स्थिति, परिस्थिति और देशकाल के लिए शुभ नही है। हमें समय रहते इस दिशा में सजग होना पडे़गा।

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