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कहीं पे निगाहें… कहीं पे निशाना

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भोपाल। आज जब देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान चल रहा है, इस दौर में मुझे एक बहुत पुराने फिल्मी नगमें की शीर्ष पंक्तियां याद आ रही है… वह नगमा था- ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना… जीने दो जालिम बनाओं न दीवाना..’ इस नगमें की प्रथम पंक्ति भारतीय जनता पार्टी के लिए है, तो दूसरी पंक्ति सदस्यता ग्रहण करने वाली जनता के लिए है, अर्थात् इस सदस्यता अभियान का मूल मकसद भाजपा को अपनी सत्ता को बरकरार रखना है, तो सदस्यता ग्रहण करने वाली जनता का कहना है कि इस कठिन दौर में जबकि जीना भी मुश्किल हो रहा है, ऐसे में ऐसी राजनीति किसके हित में है? क्योंकि सदस्यता अभियान तो एक सामान्य अभियान है, जो अनवरत जारी रहता है, फिर विशेष रूप से अभियान बनाकर चलाने की क्या जरूरत है।

इसी दौर के सन्दर्भ में मुझे भाजपा के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय गृहमंत्री श्रीयुत अमित शाह जी का वह कथन याद आ रहा है, जब उन्होंने कहा था कि- ‘‘स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष अर्थात् 2047 तक देश पर भाजपा ही राज करेगी और उसे कोई भी उसके इस इरादे से डिगा नही पाऐगा।’’ अब शाह साहब के इस कथन को जिस जरिये से भी देखना हो, जनता व अन्य राजनीतिक दल देखें, किंतु मौजूदा हालात में तो उनके इस कथन की सत्यता पर शंका नही की जा सकती, फिर यह तो कुलटा राजनीति है, कब किसका साथ दे दे, कुछ नही कहा जा सकता।

आज मुझे सहज ही यह पुराना फिल्मी नगमा इसलिए भी याद आ गया, क्योंकि देश में भाजपा का सदस्यता अभियान जारी है और नए सदस्यों को सदस्यता ग्रहण करने के लिए कई तरह के रंगीन सपनें दिखाए जा रहे है, अब यहां सबसे अहम् सवाल यह है कि आखिर इसी समय यह अभियान चलाना जरूरी क्यों समझा गया? इसके पीछे की रहस्यमयी तथ्य यह है कि भाजपा ने पिछले दिनों ‘‘मोदी राज के एक दशक’’ को लेकर देश में एक गुप्त सर्वेक्षण करवाया था, जिसमें मोदी की लोकप्रियता का मीटर जानने की कौशिश की गई थी, इस सर्वेक्षण का परिणाम गोपनीय इसलिए रखा गया, क्योंकि भाजपा की आशा के अनुरूप परिणाम सामने नही आ पाया था, इसमें यह सामने आया की मोदी की लोकप्रियता दिनों-दिन घटती जा रही है, जो इन दिनों राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणामों में स्पष्ट नजर आ रही है। अतः इस सदस्यता अभियान के माध्यम से एक ओर जहां मोदी की लोकप्रियता का सही आंकड़ा सामने आ जाएगा, वहीं भाजपा को अपने भविष्य के बारे में सही स्थिति भी पता चला जाएगी। इस सर्वेक्षण के परिणामों से अब भाजपा सचेत हो गई है और वह सदस्यता अभियान के माध्यम से यह जानना चाहती है कि देश की जनता का कितना प्रतिशत उसके साथ है तथा क्षेत्रीय दलों की राज्यों में क्या स्थिति है।

अब इस सर्वेक्षण रूपि सदस्यता अभियान का परिणाम क्या सामने आता है? भाजपा उससे खुश होती है या उदास, यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु यह सही है कि भाजपा को अपनी ही नब्ज टटोलने में सफलता अवश्य मिल जाएगी और उसका भविष्य भी साफ-साफ नजर आ जाएगा।

यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि भाजपा का इस सर्वेक्षण के पीछे देश की सत्तारूढ़ पार्टी की सही नब्ज टटोलना और उसकी खामियां दूर करना भी है, क्योंकि मोदी जी के पहले डॉ. मनमोहन सिंह की एक दशक पुरानी सरकार थी, जो 2014 मंे पुनः सत्तारूढ़ नही हो पाई, यद्यपि भाजपा के लिए यह सुखद अवसर है, जब उसकी सरकार के एक दशक बाद भी वह पुनः सत्तारूढ़ है, किंतु भाजपा की इस जीत को उसकी स्वयं की लोकप्रियता से नही बल्कि मतदाता की मजबूरी से जोड़कर देखा जाना चाहिए, विकल्प के अभाव ने भाजपा को पुनः सत्तारूढ़ किया है, यह बात भाजपा को हमेशा ध्यान में रखना ही भाजपा के हित में होगा।

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