भोपाल। देश को विचित्र राजनीतिक दौर में धकेलने की कोशिशें होती दिख रही हैं। हालात ऐसे बन रहे है कि संसद से सड़क तक दुविधा, आक्रमकता अराजकता का वातावरण पनपता दिख रहा है। लोकसभा से लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा तक में दलों और नेताओं के बीच रिश्तों में सदन चलाने को लेकर समन्वय-सदभाव कम तल्ख़ी और शत्रुता का भाव ज्यादा दिखा। सदनों में पब्लिक प्रॉब्लम कम पॉलिटिकल टारगेट किलिंग की कूटनीति ज्यादा दिखी।
मीडिया में भी सच बोलना और लिखना हर दिन कठिन होता जा रहा है।कभी सदन में जय फलीस्तीन के नारे लगते हैं तो कभी जय हिंदू राष्ट्र। यद्द्पि इसमें अब अधिसंख्य पत्रकार मित्रों और मीडिया मालिकानों के कुकर्म भी कम नही हैं। अब इसे क्या कहेंगे 293 सीट वाले एनडीए में भाजपा 240 सीटें जीत कर भी कमजोर और 234 सीट वाले इंडी ब्लॉक में कांग्रेस 99 सीटें जीतने पर भी मजबूत। यदि इस मुद्दे पर लिखा पढ़ा और बोला तो किसी न किसी दल के पाले में धकिया दिए जाओगे। दो ही मीडिया है। एक भाजपा का और दूसरा कांग्रेस का। यदि किसी ने राहुल गांधी से पूछा कि भाजपा की दस साल की मोदी सरकार के खिलाफ एन्टीनकमबेसी के बाद भी मात्र 99 सीट पाने वाली कांग्रेस को 272 सीटें क्यों नही मिली..? आखिर इंडी गठबंधन भी 234 पर ही क्यों अटक गया..?
इसी तरह भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह के बड़बोलेपन अबकी बार 400 पार के नारे ने बहुमत के गठबंधन और लोकसभा में सबसे ज्यादा 240 सांसद जीतने भाजपा को मुश्किल में डाल दिया। अगर वे सिर्फ यह नारा दे देते कि अबकी बार फिर 300 पार कोई दिक्कत नही आती। देश की राजनीति दो नेताओं के एक बड़बोलापन का शिकार हो रही है। एक शाह साब तो दूसरा राहुल बाबा । शाह को संभालने और समझाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा और संघ परिवार है। लेकिन 99 सीटें जीतकर सफलता के सातवें आसमान पर आरूढ़ करने वाले राहुल बाबा सपनो के जो अश्वमेघ के घोड़े दौड़ा रहे हैं उन्हें रोकने की हिम्मत कांग्रेस और गठबंधन में से किसी मे नही दिखती। यदि होगी तो अगले साल छह महीने में सबको दिखेगी।
खैर अभी तो लोकसभा से लेकर विधानसभा में जो माहौल है उससे तो लगता है हंगामा, विवाद और बहुत संभव है कि मारपीट के नजारे दिखे तो आश्चर्य नही होगा। जो संकेत दिखे उससे आशंका है लोकसभा में मनमर्जी और बदज़ुबानियों का आलम यह होगा कि मारपीट भी हो सकती है और सदस्यों के निलंबन के फैसले भी देखने को मिल सकते हैं।
अराजकता की आशंका इसलिए भी बलवती हो रही है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने राहुल बाबा सदन में संजीदा, सुसंस्कृत संसदीय नेता कम एंग्रीयंगमैन- काऊ ब्याज की इमेज बनाने की तरफ ज्यादा झुके दिखे। बहुत संभव है इसमे उनके युवा सलाहकारों की टोली की भी अहम भूमिका रही हो। मिसाल के तौर पर लोकसभा में उनके द्वारा विपक्षी सांसदों को गर्भ गृह में आने के लिए इशारे करना, कॉलेज में होने वाले हो हल्ले के साथ बजारू अंदाज़ में आवाजें निकालना। इस सबके बीच देश को लोकसभा में सोनिया गांधी जी खूब याद आई होंगी। हालांकि अब वे राज्यसभा में है। उनकी उपस्थिति में राहुल और कांग्रेस काबू में रहती थी।
सदन में अपनी बात कहने के बाद पीएम और सीएम के उत्तर शांति पूर्वक सुनने की परंपरा रही है। लेकिन राहुल बाबा की कांग्रेस में अब यह महत्वपूर्ण नही रहेगा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा में हुए सवालों के पीएम मोदी के उत्तर को विपक्ष ने लगातार हंगामा कर नही सुना। सम्भवतः ऐसा पहली बार हुआ। मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस अपने नेता राहुल जी का अनुकरण करने में उनसे भी आगे निकल गई। प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा के बजट भाषण पर दिल्ली की तर्ज हंगामा ही करते रहे। मप्र विधानसभा में ऐसे सीन देखने को नही मिलते थे। मगर लगता है अब ऐसे दृश्य आम होने वाले हैं।
नर्सिंग घोटाले के मुद्दे पर करीब पांच घण्टे की ध्यानाकर्षण चर्चा अपने मे एक रिकॉर्ड है। घोटाले की पहले से ही सीबीआई जांच का होना और प्रकरण अदालत में होने और विपक्ष के अरोपित मंत्री विश्वास सारंग के उत्तर के बाद इस्तीफे की मांग और हंगामे ने 20 दिन चलने वाले सदन का पांच दिन में ही अवसान कर दिया। इन घटनाओं को संसदीय लोकतंत्र में हांडी के एक चावल के तौर पर देखने की जरूरत है। हालात गम्भीर और बेहद चिंताजनक लगते हैं। दरअसल सदनों में सत्तापक्ष की रणनीति भी यदि आक्रामक होती है तो बैठकों की संख्या घटती जाएंगी और इससे सभी को नुकसान होगा। अभी तक सियासत में मनमर्जी, बदज़ुबानियों की भरमार थी इससे उसकी बदचलनी भी आम हो जाएगी। यदि कोई उपाय नही किए गए तो इसमे कुटिलता और बढ़ेगी। आशंका है सत्र दर सत्र मारकता का भाव गहन-गम्भीर होता जाएगा।
सौहार्द में कमी के संकेत…
मध्यप्रदेश विधानसभा में आमतौर पर समरसता और सौहार्द का माहौल रहता है। लेकिन सदन के बाहर इस बार एक घटना ऐसी भी हुई जिसकी चर्चा हो रही है। असल मे वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय मालवा के सुस्वादु भोजन करने और कराने के लिए जाने जाते हैं। सत्र के अवसान की शाम उन्होंने भुट्टा पार्टी का आयोजन रखा। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के चेम्बर में पार्टी में शरीक होने का न्यौता विजयवर्गीय दे रहे थे तब वहां मौजूद उप नेताप्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने बातचीत में यह शर्त रख दी कि वे भुट्टा पार्टी में तभी आएंगे जब सदन की कार्रवाई सोमवार तक चले। नतीजा यह हुआ कि बजट सत्र तो शुक्रवार को ही सम्पन्न हो गया। इसके बाद न तो कटारे भुट्टा पार्टी में शामिल हुए और न उनसे इस हेतु आग्रह किया गया। ये तल्खियां हैं इन्हें समझने की जरूरत है।