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राहुल का यात्रा से सभी विपक्षी दलों को लाभ

राहुल गांधी की यात्रा से सभी विपक्षी दलों को फायदा मिलेगा। इसलिए क्योंकि जब डर कामाहौल हटेगा तो उसका सभी विरोधी नेताओं को फायदा है। और डर एक ऐसी चीज है जब हटेगीतो जैसे अब कुछ ही दिनों बाद वसंत आने वाला है। कोहरा एकदम से छंट जाएगा।वैसे ही डर की ठिठुरन भी सूरज के तेज निकलने से एकदम से गायब हो जाएगी।और जैसे सूर्य के ताप का फायदा सबको मिलता है वैसे ही राहुल की इस न्यायभारत जोड़ो यात्रा का फायदा सभी विपक्षी दलों को मिलेगा। बशर्त की वेऐन वक्त वे मायावती वाली राजनीति न कर लें।

सवाल है राहुल गांधी की न्यास यात्रा से क्या होगा?होगा यह कि जैसे जैसे राहुल आगे बढ़ते जाएंगे इन्डिया गठबंधन के घटक दलोंको होश आता जाएगा! अभी जो ममता या अखिलेश बार बार कांग्रेस सेपूछने, उसे हैसियत बतलाने के लिए कह रहे हैं कि आप बंगाल या यूपी में हो क्या?  इसलिए यात्रा दौरान वे यह महसूस करेंगे तो समझ आएंगा कि देश में यह जो डर खत्म हो रहा है,लोग भावनाओं के जाल से निकलना चाह रहे हैं और राहुल की न्याय की बात, रोजगार की बात, महंगाई की बात, सरकारीशिक्षा के जरिए उनके बच्चों के भविष्य की बात अब लोगों के दिमाग मेंपहुंच रही है तो जाहिर है  यात्रा विपक्ष के दिमाग के जालों को भी साफ करेगी।

मामूली बात नहीं जो अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की। भरोसा दिया कि सीट शेयरिंग में कोईपरेशानी नहीं होगी। क्यों?  इसे समझना मुश्किल नहीं है। उन्हे हाल में ईडी काचौथा सम्मन आया है। उनके पास बीच का कोई रास्ता नहीं है। या तो मोदी के सामने समर्पण कर दें या खड़हे, राहुल गांधी के साथ और दूसरे विपक्षी नेताओं उद्धव ठाकरे, लालू यादव, तेजस्वी, स्टालिन जैसे नेताओं के साथ मिलकर मोदी से चुनावी लड़ाई लड़े। केजरीवाल को भी समझ में आ गया है कि मोदी से अगर अभी अभय दान मिला भीतो वह स्थाई नहीं होगा। लोकसभा चुनाव के बाद तो और बड़ा हमला होगा।तीसरी बार जीते हुए नरेंद्र मोदी का मुकाबला कोई नहीं कर पाएगा। खुद भाजपा और संघभी नहीं।

मगर अभी यह बात ममता बनर्जी और अखिलेश यादव कोपूरी तरह समझ में नहीं आ रही है।उन्हें अपने बंगाल और  उत्तर प्रदेश की ताकत पर बड़ा घमंड है। मगर दोनों यह भूल रहे हैंकि लोकसभा जीतने के बाद फिर जो पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश के चुनावों में मोदीजी लडेंगे तोइन दोनों दलों का नामो निशान भी मिट जाएगा।

विपक्ष में सभी अनुभवी नेता हैं। इसलिए ये क्या यह नहीं जानते कि हैट ट्रिक के बाद मोदीजी किसतरह व्यवहार करेंगे? चक्रवर्ती सम्राट की तरह। कोई विपक्ष रहना ही नहींचाहिए। और अगर विपक्ष में रहने का शौक ही है तो मायावती की तरह चुपचाप बैठे रहिए।

मायवती ने सोमवार को अपने जन्म दिन घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी लोकसभा काचुनाव अकेले ही लड़ेंगी। मतलब भाजपा को बाहर से समर्थन देते हुए। सपा औरकांग्रेस के वोट काटते हुए। सपा को यह बात समझना चाहिए। विपक्ष के जोपूर्व मुख्यमंत्री हैं उनमें सबसे युवा अखिलेश यादव हैं। उनके पास राजनीति करने का बहुत समय पड़ा हुआ है। जिस पीडीए की वह बात करते हैं उसका बड़ाहिस्सा उनके पास है। पिछड़ा मुख्यत: उनकी अपनी जाति के यादव, दलित मेंमायावती की जाति को छोड़कर बाकी दलितों का एक हिस्सा और अल्पसंख्यकों का भी एक बड़ा हिस्सा।

आखिर 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें इतना वोट ऐसे हीनहीं मिला। सपा बनने के बाद से पहली बार उसने 32 प्रतिशत वोट निकाला है।1993 में मुलायम सिंह यादव ने पार्टी बनाई थी और उस वक्त 18 प्रतिशत वोट पायाथा। जो अब बढ़ते-बढ़ते 32 प्रतिशत तक पहुंच गया है। और यहां अखिलेश यादव के लिए यह बातसमझने की है कि यह वोट उन्हें तभी तक मिलेगा और बढ़ भॉ सकता है जब तक वे ताकतवर दिखेंगे, मुकाबले में दिखेंगे। जिस दिन मायावतीजैसे वे कमजोर दिखे उनका जनाधार भी खिसक जाएगा। क्योंकि मूलत: उनका आधारकमजोर पृष्ठभूमि के लोग ही हैं। वे ऐसे कमजोर नेता के साथ नहीं रह सकतेजो उन्हें मुसीबत में बचा नहीं सकता हो।

सोमवार को मायावती ने समाजवादी पार्टी पर खूब हमले किए। मायावती, बीजेपी को खुशकरने के लिए हर उस आदमी पर हमले करती हैं जिससे बीजेपी को चुनौती मिलनेकी संभवना होती है। लेकिन अखिलेश के लिए मायावती पहले नंबर की शत्रु नहींहैं। उन्हें तो भाजपा से ही मुकाबला करना होगा। और इस  समय बहुत मजबूत होगई भाजपा को हिलाने के लिए उन्हें कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों कीपूरी मदद चाहिए। वे मायावती नहीं बन सकते। मायावती अपनी पारी खेल चुकीहैं। भतीजे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। मगर कोई पूछे कि आपउत्तराधिकार में छोड़कर यूपी में क्या बचाए हुए हैं? केवल एक विधायक!

बाकी लोकसभामें उनके सपा के साथ गठबंधन में लड़ने से दस जीते थे वह अब भाजपा के साथअप्रत्यक्ष गठबंधन में कितने रह जाएंगे, कोई नहीं जानता। तो मायावती कहतो यह रही हैं कि मेरे एक मात्र उत्तराधिकारी आकाश आनंद। मगर उसेराजनीतिक रूप से क्या मिलेगा, कहना मुश्किल है। बाकी पैसों, वैसों के साथतो इतने मामले मुकदमे आएंगे कि उस युवा लड़के के लिए सामान्य रूप से जीनाभी मुश्किल हो जाएगा। और सबसे बड़ी बात वे कांशीराम जी नहीं हैं कि जिनकेद्वारा मायावती को उत्तराधिकारी बना देने के बाद दलितों ने उन्हे स्वीकारकर लिया था। खुद मायवती की स्वीकृति दलितों में कम होती चली जा रही है।मुसलमानों में खत्म हो गई है। एक लोकसभा सदस्य अमरोहा के दानिश अली कोउन्होंने पार्टी से इसलिए निकाल दिया कि वे भाजपा के खिलाफ मुखर हो रहेथे। तब ऐसे में अल्पसंख्यक वोट का उनके साथ रहना मुश्किल है।

तो इन परिस्थितियों में अखिलेश यादव को फायदा ही फायदा है। लेकिन अगर वे यूपीके सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में भाजपा हराने के अलावा कुछ औरसोचेंगे जैसे कांग्रेस को दबाना तो वे अपना ही सबसे बड़ा नुकसान करेंगे।

राहुल गांधी की इस दूसरी यात्रा का बड़ा फायदा यूपी में अखिलेश को भी मिलेगा।यूपी में पिछला 2022 का विधानसभा चुनाव वे हारे तो इसकी प्रमुख वजह गरीब,पिछड़ों, अति पिछड़ो, दलितों में बैठ गया डर भी था। राहुल इस बार सबसेज्यादा समय यूपी को ही दे रहे हैं। पूरे 11 दिन। और उद्देश्य सीधा सीधासबको मालूम है कि लोगों के मन में जो डर बैठ गया है उसे निकलाना। जोनिराशा आ गई है कि अब कुछ नहीं हो सकता। युवाओं को रोजगार, मंहगाई हटाना,सरकारी अस्पतालों और सरकारी स्कूलों की अब वापसी नहीं होने वाली। केवलधर्म की राजनीति चलेगी। तो इसे दूर करके बताना कि नहीं आम आदमी के रोजीरोटी की बात फिर से होगी।

राहुल की यह यात्रा सिर्फ और सिर्फ एक पार्टी भाजपा को नुकसानपहुंचाएगी। मगर यह नहीं है कि केवल एक पार्टी¸ उनकी पार्टी कांग्रेस कोफायदा पहुंचाएगी। बल्कि सभी विपक्षी दलों को फायदा मिलेगा। इसलिए क्योंकि जब डर कामाहौल हटेगा तो उसका फायदा सभी को मिलेगा। और डर एक ऐसी चीज है जब हटेगीतो जैसे अब कुछ ही दिनों बाद वसंत आने वाला है। कोहरा एकदम से छंट जाएगा।वैसे ही डर की ठिठुरन भी सूरज के तेज निकलने से एकदम से गायब हो जाएगी।और जैसे सूर्य के ताप का फायदा सबको मिलता है वैसे ही राहुल की इस न्यायभारत जोड़ो यात्रा का फायदा सभी विपक्षी दलों को मिलेगा। बशर्त की वेमायवती न बन जाएं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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