राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

ममता का संवैधानिक अतिक्रमण…?

Mamta Banerjee

भोपाल। भारतीय प्रजातंत्र में इससे बड़ा मजाक क्या होगा कि अब राज्य सरकारें संसद के अधिकारों पर अतिक्रमण कर संविधान में संशोधन अपनी विधानसभा के माध्यम से कराये? किंतु अब हमारे संविधान के साथयह मजाक शुरू हो गया है, जिसकी शुरूआत पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने कर दी है, इस राज्य की सरकार ने भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन का अधिकार संसद की उपेक्षा कर अपने हाथों में ले लिया तथा दुष्कर्मियों को फांसी देने वाला संविधान संशोधन (दण्ड संहिता संशोधन) वाला प्रस्ताव अपनी विधानसभा से पारित करवा लिया और अब इसे राष्ट्रªपति की मंजूरी के लिए भेजने का फैसला लेकर पुनः एक बार संसद के अधिकार पर अतिक्रमण की जुर्रत करने की तैयारी की जा रही है, यह भी कहा जा रहा है कि यह कानूनी संशोधन देश के सभी राज्यों पर लागू होगा, आखिर पश्चिम बंगाल सरकार यह सब हमारे संविधान की कौन सी धारा के तहत् करने जा रही है?

यह माना कि कलकत्ता में एक महिला चिकित्सक के साथ घटी घटना राष्ट्रीय शर्म का विषय है और उस पर राष्ट्रव्यापी आक्रोश व्यक्त करना भी सही है, लेकिन इसका मतलब यह तो नही कि पश्चिम बंगाल की सरकार अपनी विधानसभा में संवैधानिक दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन का प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति की मंजूरी को भेज दे? संवैधानिक प्रक्रिया के तहत् उसे अपनी विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर संसद तथा केन्द्र सरकार को पारित करवाने के लिए भेजना चाहिए था और उसे संसद से पारित होने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, उसके बाद संसद ही दण्ड प्रक्रिया कानून में संशोधन कराने की वैधानिक अधिकारी थी, किंतु यदि हमारी राज्य सरकारें इस तरह संसद व केन्द्र के अधिकार अपने हाथ में लेकर ऐसे प्रस्ताव पारित करेगी तो फिर हमारे संविधान का क्या महत्व रह जाएगा? और फिर हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं का क्या हश्र होगा?

यह एक गंभीर विचार विमर्श का विषय है, जिस पर न सिर्फ केन्द्र व राज्य सरकारों बल्कि हमारे संविधान के जानकार विद्वानों को भी गंभीर विचार करना चाहिए, हमारे संविधान व कानून को राजनीतिक हथियार बनाना और उनके माध्यम से राजनीतिक लड़ाई लड़ना कहां तक उचित है? क्या अब हमारे माननीय राजनेता और उनके राजनीतिक दल अपनी संवैधानिक मर्यादा भी भूल गए? जो उन्होंने संसद, विधानसभा और संविधान व कानून को राजनीतिक संघर्ष का हथियार बना लिया? हमारे राजनेताओं व उनके दलों की इस ‘करनी’ को कौन सी श्रेणी में रखा जाए? क्या हमारे व्यक्तित्व, राजनीति और उसके साथ हमारी सोच का स्तर इतना गिर गया?
यह एक गंभीर चिंतनीय विषय है, जिस पर सभी को मिल-बैठ कर गंभीर विचार-विमर्श व चिंतन करना चाहिए।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें