जम्मू-कश्मीर में विकास के लिए लाखों करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। पर्यटन से आम नागरिकों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी आई है और जम्मू कश्मीर पूरी तरह से देश की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है। अपने निहित स्वार्थ के लिए इस प्रक्रिया को पटरी से उतारने वाली ताकतों से सावधान रहते हुए राज्य के नागरिकों को मताधिकार करना है।
एस. सुनील
जम्मू कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। जम्मू कश्मीर में पहले चरण के लिए 18 सितंबर को मतदान होगा। इसके बाद 25 सितंबर को दूसरे चरण का और एक अक्टूबर को तीसरे व आखिरी चरण का मतदान होगा। उसी दिन हरियाणा की सभी 90 सीटों के लिए भी वोट डाले जाएंगे। दोनों राज्यों के नतीजे चार अक्टूबर को आएंगे। चार अक्टूबर को जब नतीजे आएंगे तब देश में दुर्गापूजा शुरू हो चुकी होगी। उस दिन जो भी नतीजा आएगा वह इन दो राज्यों और इनके करीब साढ़े चार करोड़ नागरिकों के भविष्य का फैसला करने वाला तो होगा ही साथ ही देश की राजनीति पर भी बड़ा असर डालने वाला होगा। लोकसभा चुनाव के बाद जो राजनीतिक हालात बने हैं उन्हें देखते हुए इन दोनों राज्यों के चुनाव नतीजों के महत्व को रेखांकित करने की जरुरत है। इसलिए इन दोनों राज्यों के नागरिकों के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। उनको यह सुनिश्चित करना है कि राज्य में विकास की जो कहानी शुरू हुई है उसका निराशाजनक अंत नहीं हो। साथ ही उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता लाने के लिए गिद्ध की तरह नजर जमाए जो नेता बैठे हैं उनकी मंशा भी विफल हो। एक राज्य में विभाजनकारी ताकतों का खतरा है, जो अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही हैं तो दूसरे में भ्रष्टाचार की ताकतों से राज्य को बचाना है।
हरियाणा में एक दशक पहले कई दशकों से बारी बारी जिन पार्टियों की सरकार बन रही थी उनके कारनामों से राज्य से नागरिक अपरिचित नहीं हैं। एक कारनामे की झलक तो पिछले ही हफ्ते देखने को मिली, जब प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने 834 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और इस बार चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ईडी की इस कार्रवाई के बाद कहा कि जो जमीन ईडी ने अटैच की है वह पुराना मामला है और इससे उनका कोई लेना देना नहीं है। सवाल है कि उनको यह सफाई देने की जरुरत क्यों पड़ी? असल में ईडी की कार्रवाई के बाद मीडिया में खबर आई कि यह भूमि घोटाला हुड्डा की सरकार के समय ही हुआ था और भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई ने शुरू की थी, जिसमें अब ईडी कार्रवाई कर रही है। भूमि घोटाले का यह सिर्फ एक मामला है। इस तरह के अनेक मामले 2004 से 2014 के बीच के हैं, जिनकी जांच अलग अलग एजेंसियां कर रही हैं।
कांग्रेस के 10 साल के शासन में गुड़गांव से लेकर पंचकूला तक जमीन के मनमाने आवंटन की खबरें आईं। राजीव गांधी फाउंडेशन को जमीन देने से लेकर सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को जमीन आवंटित करने के अनेक मामले सामने आए, जिनकी जांच चल रही है और मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा से कई बार केंद्रीय एजेंसियों ने पूछताछ की है। 10 साल तक कांग्रेस ने हरियाणा का इस्तेमाल अपनी जरुरतों और अपनी पार्टी के लालची नेताओं की जरुरतें पूरी करने के लिए एटीएम की तरह किया। इसी का नतीजा था जो 2014 में हरियाणा के नागरिकों से कांग्रेस को बुरी तरह से हराया। उसे 90 में से सिर्फ 15 सीटें मिलीं। कांग्रेस के कुशासन से परेशान नागरिकों ने भाजपा को चुना। पिछले 10 साल से भाजपा के शासन में भ्रष्टाचार पर लगभग पूरी तरह से रोक लग गई। 10 साल में भूमि आवंटन से लेकर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का एक मामला सामने नहीं आया है। मुख्यमंत्री के तौर पर मनोहर लाल खट्टर ने शासन के कामकाज में शुचिता और पारदर्शिता सुनिश्चित की और साथ ही जाति राजनीति से परे हरियाणा में एक समावेशी शासन व्यवस्था स्थापित की। राजनीतिक स्थिरता और विकास का मानक उन्होंने स्थापित किया, जिसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी पिछड़े समाज से आने वाले नायब सिंह सैनी को सौंपी गई है।
हरियाणा के मतदाताओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि 10 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पहले ओमप्रकाश चौटाला की सरकार थी, जो शिक्षक भर्ती घोटाले में सजायाफ्ता हैं और कुछ दिन पहले ही जेल काट कर निकले हैं। इससे स्पष्ट है कि इंडियन नेशनल लोकदल हो या कांग्रेस उनके मुख्यमंत्रियों का उद्देश्य राज्य की जनता की भलाई नहीं है, बल्कि हरियाणा के हर तरह के संसाधन का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना है। हरियाणा के नागरिकों को इनसे सावधान रहना होगा और विकास व स्थिरता की निरंतरता को बनाए रखना होगा। ध्यान रहे चुनाव से पहले ही कांग्रेस के अंदर सत्ता के लिए जिस तरह का घमासान छिड़ा है उससे भी स्पष्ट है कि कांग्रेस के नेता हरियाणा को क्या समझते हैं और किस उद्देश्य से उनको हरियाणा में अपने राज की जरुरत है। उन्होंने मान लिया है कि चुनाव तो जीतने जा ही रहे हैं पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी का फैसला कर लें। कांग्रेस को कुर्सी की ऐसी जल्दी है कि वह सामाजिक विभाजन से लेकर खेल को राजनीति में घुसाने से भी परहेज नहीं कर रही है। इससे भी प्रदेश के लोगों को कांग्रेस की मंशा समझ में आ रही होगी। जाति के नाम पर सामाजिक विभाजन और लूट की मंशा को विफल करने की जिम्मेदारी हरियाणा के मतदाताओं के ऊपर है।
जम्मू कश्मीर का मामला अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील है। वहां कांग्रेस ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। वह अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली का वादा करने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों को लग रहा है कि जम्मू कश्मीर विधानसभा की कुल 90 में से कश्मीर घाटी में 47 विधानसभा सीटें हैं और वहां अगर सांप्रदायिक आधार पर एकतरफा मतदान हो जाए तो वही से बहुमत हासिल हो जाएगा। कश्मीर घाटी के लोगों को भी इस डिजाइन को समझना होगा। उन्हें समझना होगा कि इन पार्टियों का मकसद कश्मीर घाटी के लोगों का भला करना नहीं है, बल्कि उन्होंने उकसाए रख कर अपना हित पूरा करना है। सत्ता के लिए बेतरह तड़प रही इन पार्टियों को किसी तरह से चुनाव जीतना है। इसके लिए राज्य के लोगों की भावनाओं को भड़काने से इन्हें परहेज नहीं है और भारत विरोधी ताकतों की प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद लेने से परहेज है। तभी राज्य के लोगों के ऊपर यह जिम्मेदारी है कि वे तमाम विभाजनकारी ताकतों को विफल करें और अपने व अपने बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दें।
जम्मू कश्मीर में पिछले छह साल में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सबसे दुर्गम और दूर दराज के क्षेत्रों को सड़क मार्ग से जोड़ा गया है और पर्यटन को प्रोत्साहित करने के कई कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा शांति और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मान कर काम हुआ है, जिसका परिणाम यह है कि आतंकवाद और हिंसा की खबरों की बजाय राज्य में पर्यटकों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी की खबरें आ रही हैं। इससे राज्य के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और खुशहाली लौटी है। हाल के दिनों में जम्मू क्षेत्र में जरूर आतंकवादी हमले हुए हैं, लेकिन सबको पता है कि उनके पीछे क्या उद्देश्य है। असल में राज्य में शांति बहाली और सुरक्षा को पुख्ता बंदोबस्तों का परिणाम था कि लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में लोग मतदान के लिए निकले। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि राज्य की सभी पांच लोकसभा सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम कश्मीरी नागरिक की इतनी बड़ी भागीदारी को देख कर भारत विरोधी ताकतों की परेशानी बढ़ना स्वाभाविक है। इसलिए उन्होंने आतंकवादी हमले बढ़ाए ताकि विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को बाधित किया जा सके।
भारत विरोधी पड़ोसी और उसकी शह पर विभाजनकारी गतिविधियों में शामिल थोड़े से लोगों की मंशा को विफल करना आम कश्मीरी नागरिकों की जिम्मेदारी है। अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा ‘कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत’ की बात करते थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी हमेशा इसका सम्मान किया है। जम्हूरियत यानी लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का ही नतीजा है कि शांति बहाल होने और राज्य के विकास के रास्ते पर मजबूती से अग्रसर होने के साथ ही राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई। राज्य में शांति बहाल हो गई है। नागरिकों में सुरक्षा की भावना मजबूत हुई है। विकास के लिए लाखों करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। पर्यटन से आम नागरिकों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी आई है और जम्मू कश्मीर पूरी तरह से देश की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है। अपने निहित स्वार्थ के लिए इस प्रक्रिया को पटरी से उतारने वाली ताकतों से सावधान रहते हुए राज्य के नागरिकों को मताधिकार करना है। (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)