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आर्यन मिश्रा के मारे जाने पर लोग चौंके तो सही!

देखिए, देश में सब और नफरत फैलाने के बाद मोदी जी ब्रुनई में मस्जिद जा रहे हैं। और केवल जा ही नहीं रहे वहां की अपनी मौजूदगी के कई कई फोटो भी ट्वीट कर रहे हैं। उधर उन्हीं  की पार्टी का महाराष्ट्र का विधायक नितेश राणे यह कह रहा है कि मस्जिद में घुसकर चुन चुन कर मारेंगे।…मगर मोदीजी अभी भी अपने विधायक की धमकी नहीं सुनेंगे और न टीनएज आर्यन मिश्रा के पिता का यह सवाल भी कि मोदीजी गौ तस्कर समझकर मारने का अधिकार क्या आपने इन्हें दिया है?

उसका नाम भी आर्यन था मगर साथ में खान लगा हुआ था इसलिए उस मामले में लोगों को मजा आ रहा था। मगर अब वह लोगों भी बोल रहे हैं जो इससे पहले गौ रक्षकों द्वारा बेरहमी से मार दिए गए लोगों पर या तो चुप थे या मारे जाने के कारण बता रहे थे। लिंचिंग को जस्टिफाई कर रहे थे।

आर्यन मिश्रा के साथ बहुत बुरा हुआ। 12 वीं में पढ़ने वाला लड़का। वैसे ही परिवार के साथ नूडल्स खाने गया हुआ था जैसे इस उम्र के बाकी लड़के जाते हैं। घटना उस हरियाणा की है जहां उसी दौरान वहां के भाजपा मुख्यमंत्री एक मुस्लिम मजदूर को पीट पीट कर मार डालने और दूसरे को मौत के करीब पहुंचाने के बाद हत्यारों के पक्ष में बोल रहे थे कि यह आस्था का मामला है। यह मामला भी बिल्कुल वैसा ही था जैसा आर्यन मिश्रा का था।

सूचनाएं शक!

सारे लिंचिंग के मामले ऐसे ही हैं। मारने वाले जो एक ही विचारधारा से जुड़े हुए हैं कहते है कि हमें सूचना मिली। फिर हमें उस पर शक हुआ। और फिर क्रूरता और जिसे वे शौर्य प्रदर्शन कहते हैं भीड़ द्वारा एक आदमी को घेर कर मारना।

आर्यन मिश्रा के पिता सियानंद मिश्रा ने बहुत बड़ा सवाल पूछा है। गौ तस्कर समझ कर गोली मार देने का अधिकार इन्हें किसने दिया है? मोदी सरकार ने?

इसका जवाब प्रधानमंत्री मोदी के देना पड़ेगा। आज नहीं तो कल देना पड़ेगा। भाजपा के मुख्यमंत्रियों को भी देना पड़ेगा। मीडिया को भी जो दस साल से लगातार इस माहौल को हवा देते रहे। और संघ को भी। जिसने मोदी सरकार बनते ही देश में नफरत और विभाजन की आग को तेज कर दिया।

याद कीजिए सबसे पहले चर्चों पर हमले शुरू हुए। फिर घर वापसी, लव जेहाद, बीफ, तीन तलाक, हिजाब, कामन सिविल कोड और फिर विभाजन नफरत के इतने मुद्दे कि उन्हें याद करना और गिनना भी मुश्किल। अभी जैसे संघ का अखबार है पांचजन्य। भाजपा के बड़े बड़े नेता इसके संपादक रहे हैं। कई नेताओं और आज जो पत्रकार हैं उन्होंने इसमें काम किया है। वह अपने ट्विटर हैंडल से नफरत और विभाजन के रोज नए नए मुद्दे लाता है। कहां तक आ गया!

अभी देखा कि कह रहा है मुसलमान मंदिर के सामने सिगरेट पी रहा था। सामने मस्जिद थी उसके सामने नहीं पी रहा था। आप हंसे या रोएं! इस स्तर तक आ गए हैं। लेकिन खबर यहीं खत्म नहीं होती। उसमें साथ में बुर्का भी डाला। कि एक बुर्का पहने महिला भी थी। और हिन्दू युवक भी। कि उसने सिगरेट पीते पकड़ा। लोग इससे भी भड़कें!

लेकिन इन छोटे छोटे नफरतियों का जिक्र क्या? यहां तो खुद प्रधानमंत्री श्मशान और कब्रिस्तान के बीच सुविधाओं की तुलना करते हैं। विभाजन बढ़ाने के लिए कहते हैं कि तुम से छिनेंगे और उन्हें दे देंगे! होना तो यह चाहिए

था कि इस पर संघ जोर से डांट लगाता कि इतना कमजोर समझ रखा है कि हमसे छीन लेंगे! मगर वह तो मोदी जी के हिसाब से कभी शौर्य की जैसे मोदी कहते है 56 इंच की छाती, लाल आंखे, एक अकेला सब पर भारी और कभी रोने की बात जैसा मोदी जी करते हैं कि मुझे इतनी गालियां दीं, मुख्यमंत्री से कह देना कि जिन्दा बच कर जा रहा हूं, जिस चौराहे पर कहोगे वहां आ जाऊंगा जैसे रूप बदलता है। कहां वह कहता है गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। कहां मोदी जी जब कहते हैं कि मंगलसूत्र छीन लेंगे तो चुप रहता है।

मोदीजी और संघ के संबंध क्या हैं? क्या संघ पहली बार भाजपा के सामने मतलब मोदी के सामने कमजोर हुआ है?  क्या उसके लोगों में सारी हिन्दुत्ववादी विचारधारा के बावजूद एक इन्सानियत, लिहाज और प्रेम के तत्व जो थे वह पूरी तरह खत्म हो गए हैं? इसमें से पहले सवाल संघ और भाजपा के संबंधों के बारे में तो तब मालूम पड़ेगा जब मोदी सत्ता में नहीं रहेंगे।

तब खुद भाजपा के नेता और संघ के लोग इस पर चुप नहीं रहे पाएंगे। और बचते बचाते भी बोलेंगे। मगर दूसरे सवाल विभाजनकारी विचारधारा के बावजूद मानव के मूल स्वाभाव इन्सानियत, लिहाज, प्रेम के बने रहने पर हम जरूर कुछ कह सकते हैं।

संघ के तमाम लोग हमारे संपर्क में रहे। कई बहुत नजीदीकी पारिवारिक दोस्त भी। हमने उनमें वह सारे मानवीय गुण देखे हैं इसलिए कहते हैं कि कोई भी विचारधारा मनुष्यता के बोध को हमेशा के लिए खत्म नहीं कर सकती। उग्र विचारधारा समूह में मनुष्य को भीड़ तंत्र में बदल देती है। मगर खुद में वापस लौटने में वह वापस मनुष्यता की तरफ आता है।

इसलिए हमारा विश्वास कभी खत्म नहीं होता। इन दस सालों में ही हमने कई संघियों को मोदी के खिलाफ आते देखा है। जिनमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। खुद हमारे पत्रकार समुदाय के कई बड़े नाम। यहां से वहां जाते भी देखा है। जो दस साल पहले तक ऐसे दोस्त हुआ करते थे कि जो खुद को परिवार का हिस्सा बताते थे। वह ऐसे बदले कि व्यक्तिगत हमले करने के भी मौके ढुंढने लगे।

तो कुछ भी स्थाई नहीं है। संघ की देशभक्ति की भावना। भारत की एकता के लिए उसका सोच हो सकता है वह परिवर्तन लाए कि एकता नफरत से नहीं रहेगी। प्रेम\ ही एकता को मजबूत करेगा। नफरत और विभाजन की पराकाष्ठा वह देख चुकी है। इससे ज्यादा वह और मोदी क्या करेंगे? प्रतिक्रियात्मक राजनीति बैक फायर करने लगी है।

आर्यन मिश्रा पहला केस नहीं है। हमने पहले भी बताया कि उससे कई गुना बड़ा समाज में स्थान रखने वाले भाजपा के मध्य प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की पत्नी को यह भाजपा वाले ही बुरी तरह ट्रौल कर चुके हैं। उन्हें ट्विटर छोडना पड़ा। कारण? रात को एक कैमिस्ट द्वारा उन्हें कोई जरूरी दवा देने और कहने की दीदी इसके यह इफेक्ट हैं ध्यान रखना को उन्होंने यह कह कर ट्विट कर दिया कि अच्छा लगा। तूफान आ गया। क्यों? क्योंकि वह कैमिस्ट मुसलमान था। भाजपा के नेताओं तक ने ट्रौल किया। हमारा तो सारा प्रोपोगन्डा मिट्टी में मिला दिया कि मुसलमान अच्छा होता ही नहीं है।

मगर मजेदार यह कि देश में यही सब नफरत फैलाने के बाद मोदी जी ब्रुनई में मस्जिद जा रहे हैं। और केवल जा ही नहीं रहे वहां की अपनी मौजूदगी के कई कई फोटो भी ट्वीट कर रहे हैं। उधर उन्हीं  की पार्टी का महाराष्ट्र का विधायक नितेश राणे यह कह रहा है कि मस्जिद में घुसकर चुन चुन कर मारेंगे।

मगर मोदी जी अभी अपने विधायक की धमकी भी नहीं सुनेंगे और टीनएज आर्यन मिश्रा के पिता के सवाल भी कि मोदी जी गौ तस्कर समझकर मारने का अधिकार आपने इन्हें दिया है? अभी नहीं सुनेंगे! मगर जब सत्ता में नहीं होंगे तब सुनना भी पड़ेगा और जवाब देना भी पड़ेगा।

और केवल मोदी को नहीं सबको। खासतौर से मीडिया को भी। अकेली बीजेपी और मोदी देश को ऐसे नफरत और विभाजन के दहाने पर नहीं ला पाते। राहुल गांधी ने कहा था देश में केरोसिन छिड़क दिया गया है। एक तीली ही सब कुछ जला देगी। यह केरोसीन भाजपा लाई और इसे देश भर में छिड़का मीडिया ने।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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