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कैंसर और बुढ़ापे से बचना है तो “एंटीऑक्सीडेंट्स”

असल में “एंटीऑक्सीडेंट” एक छाते जैसा टर्म है जो उन सभी पोषक तत्वों के लिये इस्तेमाल होता है जो एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं। शरीर स्वस्थ रखने में सबकी अपनी भूमिका है कोई क्षतिग्रस्त कोशिका रिपेयर करता है, कोई मेम्ब्रेन तो कोई डैमेज डीएनए। यही कारण है डॉक्टर विविधतापूर्ण आहार पर जोर देते हैं ताकि शरीर को अलग-अलग तरह के एंटीऑक्सीडेंट मिल सकें। कौन से एंटीऑक्सीडेंट्स सबसे जरूरी

क्या कैंसर और बुढ़ापे में कोई समानता है? जबाब है, हां। ये दोनों कोशिकाओं (सेल्स) से जुड़ी समस्याएं हैं। बुढ़ापा आता है शरीर में नयी कोशिकायें कम बनने और कैंसर होता है कोशिकाओं के अनियंत्रित होकर बढ़ने से। अगर कोशिकाएं स्वस्थ तो बुढ़ापा देर से आयेगा और कैंसर भी नहीं होगा। अब सवाल है कि ये स्वस्थ कैसे रहेंगी? तो जबाब है एंटीऑक्सीडेंट से।

विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, ऐसे विज्ञापन आपने जरूर देखे होंगे। “विटामिन” से तो आप परिचित भी होंगे लेकिन क्या एंटीऑक्सीडेंट्स के बारे में जानते हैं? कभी सोचा हमारे स्वास्थ्य में इनकी क्या भूमिका है? ये जानने के लिये जरा नाम पर ध्यान दें। दो शब्दों से बना है ये- एंटी और ऑक्सीडेंट। यानी ऐसा कुछ जो ऑक्सीडेंट के खिलाफ हो। ऑक्सीडेंट, नाम से ही जाहिर है कि मामला ऑक्सीजन से जुड़ा है। ऑक्सीजन हमारी प्राण वायु। ऑक्सीडेंट शब्द निकला है शरीर द्वारा ऑक्सीजन कन्ज्यूम करने की बुनियादी क्रिया ऑक्सीडेशन से। जो शुरू होती है सांस लेने से।

क्या है ऑक्सीडेशन प्रोसेस?

अरबों सेल्स (कोशिकाओं) से मिलकर बना है हमारा शरीर। सभी को जीवित रहने के लिये चाहिये ऑक्सीजन, और वह मिलती है सांस लेने से। ये सेल्स, ऑक्सीजन कन्ज्यूम कर खुद को जीवित रखने के साथ शरीर के लिये एनर्जी प्रोड्यूस करते हैं। इस क्रिया में शरीर द्वारा ऑक्सीजन मेटाबोलाइज्ड होने से बनते हैं कुछ सुपर एक्टिव मॉलीक्यूल्स यानी फ्री रेडिकल्स। जिनका काम है इम्यून सिस्टम मजबूत कर रोगाणुओं से लड़ना ताकि हम बीमारियों से बचे रहें। ये इतने सुपर एक्टिव होते हैं कि रोगाणुओं (बैक्टीरिया/वायरस/पैथाजन्स) को अपनी ओर आकर्षित कर नष्ट कर देते हैं।

इनके सुपर एक्टिव होने की वजह है इनमें इलेक्ट्रॉन्स की असमान संख्या। इस असमान संख्या के कारण ये, दूसरे मॉलीक्यूल्स चाहे वे रोगाणु हो या स्वस्थ कोशिकायें, सभी को इंट्रैक्ट कर इलेक्ट्रॉन चुरा लेते हैं जिससे उनके डीएनए को नुकसान होता है। बात रोगाणुओं तक रहे तो दिक्कत नहीं, मामला तब बिगड़ता है जब ये शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं से इलेक्ट्रॉन चुराने लगते हैं। इससे कोशिकाओं की झिल्ली (मेम्ब्रेन) और डीएनए नष्ट होने लगता है।

ऐसे नुकसान से बचने के लिये जरूरत होती है शरीर में फ्री रेडिकल्स को संतुलित करने की। संतुलन के लिये हमारा शरीर एंटीऑक्सीडेंट्स बनाने लगता है। इस प्रक्रिया में शरीर के नार्मल मॉलीक्यूल्स, खुद-ब-खुद अपने इलेक्ट्रॉन फ्री रेडिकल्स को दे देते हैं जिससे इनमें स्थिरता आती है और ये दूसरों के इलेक्ट्रॉन चुराना बंद कर देते हैं।

“ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस”

जब तक संतुलन है हम स्वस्थ है। संतुलन बिगड़ते ही शरीर में फ्री रेडिकल्स की संख्या बढ़ने लगती है। जिसे कहते हैं ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस। वैज्ञानिक प्रमाणों के मुताबिक दीर्घकालिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से जल्द बुढ़ापे, कैंसर, अल्जाइमर, दृष्टि हानि (मैकुलर डिजेनरेशन/मोतियाबिंद), डॉयबिटीज, पुरूष बांझपन, एथेरोस्क्लेरोसिस, पेरिडोन्टल डिस्ऑर्डर, गठिया, स्ट्रोक और हृदय से जुड़ी बीमारियों का रिस्क बढ़ता है।

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस यानी शरीर में फ्री रेडिकल्स बढ़ने के और भी कारण हैं जैसे जला भोजन करने, इस्तेमाल हो चुके कुकिंग ऑयल में खाना पकाने, खाने में रंगों या स्वाद बढ़ाने वाले कैमिकल्स का उपयोग, कृत्रिम स्वीटनर, स्मोकिंग, पॉल्यूशन, प्रोसेस्ड फूड, सैचुरेटेड फैट, रेडियेशन, ज्यादा व्यायाम, गहरी चोट, कीटनाशकों या औद्योगिक सॉल्वेंट के सम्पर्क में आना।

कैसे घटेगा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस?

ऐसा होगा शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स बढ़ाने से। वैसे तो बहुत से एंटीऑक्सीडेंट शरीर में बनते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ इनका बनना कम होने लगता है। ऐसे में जरूरत पड़ती है बाहरी एंटीऑक्सीडेंट्स की जो मिलते हैं डाइट से। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सबसे ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट (फाइटोन्यूट्रिएंट) मिलते हैं शाकाहारी डाइट यानी फल-सब्जियों से। असल में “एंटीऑक्सीडेंट” एक छाते जैसा टर्म है जो उन सभी पोषक तत्वों के लिये इस्तेमाल होता है जो एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं। शरीर स्वस्थ रखने में सबकी अपनी भूमिका है कोई क्षतिग्रस्त कोशिका रिपेयर करता है, कोई मेम्ब्रेन तो कोई डैमेज डीएनए। यही कारण है डॉक्टर विविधतापूर्ण आहार पर जोर देते हैं ताकि शरीर को अलग-अलग तरह के एंटीऑक्सीडेंट मिल सकें। कौन से एंटीऑक्सीडेंट्स सबसे जरूरी

जिन एंटीऑक्सीडेंट्स की शरीर को सबसे ज्यादा जरूरत होती है उनमें प्रमुख हैं विटामिन ए, सी, ई, बीटा-कैरोटीन, लाइकोपीन, ल्यूटिन, सेलेनियम, मैंगनीज, ज़ेक्सैंथिन, फ्लेवोनोइड्स, फ्लेवोन, कैटेचिन, पॉलीफेनोल और फाइटोएस्ट्रोजेन। आप सोच रहे होंगे कि इनमें से कुछ तो विटामिन हैं, तो भ्रमित न हों कुछ विटामिन भी एंटीऑक्सीडेंट्स का काम करते हैं यानी शरीर में फ्री-रेडिकल्स बैलेंस करने का। याद रहे कभी भी कोई एक एंटीऑक्सीडेंट सभी फ्री रेडिकल्स का मुकाबला नहीं कर सकता। जिस तरह फ्री रेडिकल्स शरीर पर अलग-अलग ढंग से प्रभाव डालते हैं, उसी तरह प्रत्येक एंटीऑक्सीडेंट का व्यवहार उसके रासायनिक गुणों के हिसाब से भिन्न होता है।

शरीर को ज्यादा से ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट मिलें इसके लिये डाइट में अलग-अलग तरह के खाद्य पदार्थ शामिल करें विशेष रूप से चमकीले रंगों वाले। गाजर, पालक, शकरकंद, कद्दू, शिमला मिर्च, ब्रोकली, बैंगन, आंवला, अमरूद, आम, पपीता, तरबूज, जामुन, स्ट्रबेरी, लाल अंगूर, ब्लैकबेरी, संतरा, सूरजमुखी का तेल, डेयरी उत्पाद और अंडों से आपको मिलेंगे विटामिन ए, सी, ई, बीटा-कैरोटीन, लाइकोपीन और ल्यूटिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट। सेलेनियम के लिये डाइट में ड्राई फ्रूट्स, फलियाँ, चावल और मक्का की मात्रा बढ़ायें। इन फूड आइटम्स के अलावा काली बीन्स, राजमा, ग्रीन टी, डार्क चॉकलेट और अनार में भी बड़ी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।

इन बातों का ध्यान रखें  

शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स बढ़ाने के लिये भोजन की थाली में रखे खाद्य-पदार्थों के रंगों पर ध्यान दें। अगर पूरी थाली ब्राउन नजर आ रही है तो समझिये इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स कम हैं। इस कमी को पूरा करने के लिये खाने में गाजर, टमाटर, बेरी, मटर, पालक, बैंगन, ब्रोकली जैसी कलरफुल चीजों की मात्रा बढ़ायें। नाश्ते, लंच और डिनर तीनों में कम से कम एक फल, एक सब्जी जरूर होनी चाहिये। दिन में कम से कम एक कप ग्रीन टी पियें।

हल्दी, जीरा, अजवायन, अदरक, लौंग और दालचीनी जैसे मसाले खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स बढ़ाने में मदद करते हैं। इसी तरह बादाम, काजू, अँजीर, किशमिश, खजूर और बीज, विशेष रूप से सूरजमुखी और पम्पकिन सीड्स एंटी-ऑक्सी़डेंट्स रिच फूड आइटम हैं, सम्भव हो तो इन्हें अपनी डाइट में शामिल करें।

कुछ खाद्य पदार्थों को पकाने से उनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स का स्तर बदल जाता है। जैसे टमाटर पकाने से उसमें मौजूद लाइकोपीन एंटीऑक्सीडेंट का स्तर बढ़ता है लेकिन फूलगोभी, मटर और तोरी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट देर तक पकाने से नष्ट हो जाते हैं। इसलिये इन्हें स्टीम देकर थोड़ी देर पकायें ताकि इनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स नष्ट न हों।

और अंत में…

एंटीऑक्सीडेंट के फायदों को देखते हुए बहुत से लोग डाइट से ज्यादा बाजार में बिकने वाले सप्लीमेंट्स पर निर्भर हो जाते हैं जो ठीक नहीं। हाल में हुई एक रिसर्च से सामने आया कि सप्लीमेन्ट के रूप में एंटी-ऑक्सीडेंट्स की ओवरडोज शरीर के लिये हानिकारक हो सकती है। इनसे ट्यूमर डेवलप होने का रिस्क बढ़ता है। उदाहरण के लिये बीटा-कैरोटीन का अधिक सेवन स्मोकिंग करने वालों में लंग्स कैंसर और विटामिन ई की हाई डोज प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क बढ़ाती है। इसलिये कब, कौन सा सप्लीमेंट लेना है इस बारे में डॉक्टर से सलाह लें। हां, भोजन के जरिये आप जितने चाहें उतने एंटीऑक्सीडेंट् ले सकते हैं, इनसे कभी कोई नुकसान नहीं होता।

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