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अंबेडकर और अमित शाह का सेल्फ गोल!

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कांग्रेस और सभी विपक्षी दल इस मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं। इंडिया गठबंधन वापस एकजुट होने लगेगा। मगर अमित शाह ने अंबेडकर का मुद्दा ऐसा दिया कि अब सब विपक्षी दल वापस एकजुट होने लगे हैं।  बुधवार को संसद में अमित शाह के खिलाफ प्रदर्शन में सब शामिल हुए। राहुल के जाति गणना मुद्दे को भी इससे बल मिलेगा। जाति गणना का सबसे बड़ा फायदा ओबीसी को मिलने वाला है। दलित की आदिवासी की संख्या तो सबको मालूम है।

शकील अख्तर

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का हेडलाईन मेनेजमेंट एक दिन भी नहीं चल सका। भाजपा राहुल की पिच पर फंस गई। मंगलवार की सुबह सारे चुनाव एक साथ का बिल लोकसभा में पेश हुआ और उसी दिन शाम को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में यह कहकर कि एक नया फैशन चला है अंबेडकर अंबेडकर अंबेडकर . ..! अगर इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। राहुल गांधी ने लपक कर इस बात को सही साबित कर दिया कि भाजपा के मन में डा. आंबेडकर और संविधान के लिए कोई सम्मान नहीं है।

अमित शाह की टिप्पणी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने, जिन्होंने एक दिन पहले संविधान पर बोलते हुए ही कहा था कि आरएसएस और भाजपा तिरंगे, अशोक चक्र और संविधान से नफरत करती है एक कदम और आगे बढ़ाते हुए कहा कि आंबेडकर से भी नफरत करती है।

बुधवार को विपक्ष के सासंदों ने संसद परिसर में अमित शाह माफी मांगों के नारों के साथ प्रदर्शन किया। और उसके बाद अंदर जाकर दोनों सदनों में इस मांग को जोरदार तरीके से उठाया। मोदी सरकार के लिए यह बड़ी मुश्किल आ गई। अभी संविधान पर चर्चा के दौरान उनका सारा फोकस इस बात पर था कि कांग्रेस ने अंबेडकर को पर्याप्त सम्मान नहीं दिया। मगर अब उसके उपर ही बाबा साहब अंबेडकर के अपमान का सीधा आरोप आ गया है।

अंबेडकर देश के 20 प्रतिशत दलितों के लिए वाकई भगवान का दर्जा रखते हैं। वह उनका संविधान ही है जिसने आरक्षण के जरिए उनके बड़े वर्ग को पीढ़ीगत काम से निकालकर शहरी मध्यम वर्ग बनाया। शिक्षा में वजीफा, उनके लिए अलग बनाए गए होस्टल, उच्च शिक्षा में आरक्षित सीटें और फिर नौकरी में आरक्षण ने 75 सालों में वह कर दिखाया जो पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। इसके साथ लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव में आरक्षण ने उन्हें राजनीतिक रुप से मजबूत बनाया। नौकरी के आरक्षण ने आर्थिक ताकत के साथ सामाजिक हैसियत और चुनाव प्रणाली में आरक्षण से सत्ता में भागीदारी दी।

पांच हजार साल तक अछूत बने रहने वाले सारे मानवीय अधिकारों से वंचित देश के इस समुदाय के लिए बाबा साहब आंबेडकर भगवान नहीं तो और क्या हैं? कांग्रेस और समूचे विपक्ष को यह एक बहुत बड़ा मुद्दा मिल गया है। खरगे का सवाल है कि क्या अंबेडकर का नाम लेना गुनाह है? खुद दलित समुदाय से आने वाले खरगे ने कहा कि अमित शाह का राज्यसभा में संविधान पर बोलते हुए सवाल था कि क्या अंबेडकर बहुत बड़े आदमी थे? जो अंबेडकर, अंबेडकर करते हो!

कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा कि उनके इस बयान से देश में आग लग जाएगी। उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। और देश से माफी मांगना चाहिए। अंबेडकर दलितों आदिवासियों के भगवान हैं। कांग्रेस महासचिव और खुद दलित समाज से आने वाली कुमारी सैलजा ने कहा कि संविधान हमारा सबसे बड़ी किताब है और बाबा साहब अंबेडकर हमारे भगवान।

दलितों की तरह आदिवासी भी डा. आंबेडकर को अपना उद्धारक मानते हैं। और अन्य पिछड़ा समुदाय ओबीसी जिसकी आबादी 50 प्रतिशत के करीब है भी डा अंबेडकर के सामाजिक न्याय के सिद्धांत का बड़ा लाभार्थी समूह है। दलित 20 प्रतिशत, आदिवासी 9 प्रतिशत और लगभग 50 प्रतिशत के आसपास ओबीसी इतना बड़ा समूह देश का अंबेडकर के विचारों और उनके बनाए संविधान से लाभान्वित हुआ है। इसलिए खरगे ने कहा कि उनका अपमान देश में आग लगा देगा।

अंबेडकर कितनी बड़ी चीज हैं वह इससे समझिए कि कांग्रेस और भाजपा दोनों समान भाव से उनका नाम लेते हैं। अभी चार दिन संविधान पर चर्चा में उनका ही नाम गुंजता रहा। मायावती, रामविलास पासवान ने उनका नाम लेकर ही अपनी पार्टियां चलाईं। दलितों में उनका नाम ही वोट ही गारंटी है। जब ये दोनों नेता इनकी पार्टी नहीं थीं तो कांग्रेस ही उनकी विरासत संभालती थी। और लंबे  समय तक दलित वोटों की एक मात्र प्राप्तकर्ता थी।

मगर बाद में कांशीराम और मायावती ने इसे कांग्रेस से छीना और उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री पद प्राप्त किया। और फिर भाजपा की धर्म की राजनीति ने दलित वोट को मायवती से भी छीन लिया। लेकिन सरकारी नौकरियां नहीं निकलने और इससे उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिलने, तेजी से किए जा रहे नीजिकरण जहां दलितों के लिए नौकरी नहीं थी और डायरेक्ट भर्ती लेटरल एंट्री जिसमें आरक्षण नहीं था के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में यह समुदाय बीजेपी से भी छिटका और कांग्रेस एवं इन्डिया गठबंधन के साथ आया।

यूपी में भाजपा को इसने बहुत बड़ा झटका दिया। लोकसभा में भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिलीं और भाजपा 33 पर रह गई। कांग्रेस को 6 मिलीं। और बसपा जीरो। जबकि पिछले चुनाव 2019 में भाजपा को 61 सीटें मिली थीं।

मायावती से मोहभंग के बाद बीजेपी धर्म के नाम पर दलितों को अपने साथ लाई। और भावनात्मक रूप से उनसे संबंध बनाने के लिए वह डा. अम्बेडकर का नाम भी लेने लगी। दलितों का अंबेडकर से बहुत गहरा लगाव है। उनका जीवन अंबेडकर ने बदला। वे उनके लिए मसीहा हैं। अमित शाह का यह कहना कि क्या अंबेडकर अंबेडकर करते हो भाजपा को बहुत मंहगा पड़ेगा।

कांग्रेस और सभी विपक्षी दल इस मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं। इंडिया गठबंधन वापस एकजुट होने लगेगा। अभी ईवीएम के मुद्दे पर उमर अब्दुल्ला और टीएमसी कांग्रेस पर हमलावर हो रहे थे। लग रहा था कि बीजेपी की कोशिशें सफल हो रही हैं। इंडिया गठबंधन में फूट पड़ रही है। मगर अमित शाह ने अंबेडकर का मुद्दा ऐसा दिया कि अब सब विपक्षी दल वापस एकजुट होने लगे हैं।

बुधवार को संसद में अमित शाह के खिलाफ प्रदर्शन में सब शामिल हुए। राहुल के जाति गणना मुद्दे को भी इससे बल मिलेगा। जाति गणना का सबसे बड़ा फायदा ओबीसी को मिलने वाला है। दलित की आदिवासी की संख्या तो सबको मालूम है। हर दस साल बाद होने वाली जनगणना जो इस बार अभी तक नहीं हुई में इसकी गिनती होती है। आंकड़े आते हैं। लास्ट 2011 में हुई थी। उसके अनुसार देश में 29 प्रतिशत दलित और आदिवासी हैं। ये अंबेडकर के कट्टर समर्थक हैं।

आरक्षण जिसे अंबेडकर की ही देन कहा जाता है के सबसे बड़े लाभार्थी यही हैं। भाजपा और आरएसएस कभी अंबेडकर के साथ एडजस्ट नहीं कर पाए। उनके बनाए संविधान का भी बहुत विरोध किया। अभी राज्यसभा में ही खरगे ने बताया कि जब संविधान बना तो संघ वालों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अंबेडकर का पुतला जलाया था। उन्होंने सदन में ‘बंच आफ थाट्स किताब’ दिखा कर कहा कि दूसरे सर संघ चालक गुरु गोलवलकर ने इसमें वर्णाश्रम व्यवस्था का समर्थन किया है। और आरक्षण का विरोध। राहुल ने लोकसभा में एक हाथ में संविधान और दूसरे में मनुस्मृति लेकर साफ कहा कि हम संविधान वाले हैं और बीजेपी मनुस्मृति वाली।

यह सब बातें अपना असर कर ही रहीं थीं कि अमित शाह का यह बयान आ गया। सीधा अंबेडकर के खिलाफ। भाजपा के लिए यह बड़ी मुसीबत बन गई। कांग्रेस ने बुधवार को ही देशव्यापी प्रदर्शन किए। दलित राजनीतिक रूप से देश में सबसे जागरूक समुदाय है। उसमें एक बार यह बात पहुंच जाएगी कि भाजपा बाबा साहब का अपमान कर रही है तो फिर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को कुछ करने की जरूरत नहीं है। वह भाजपा से अपना हिसाब खुद कर लेगी।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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