भोपाल। आज के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक दौर में हमारे भारत की स्थिति द्वापर के महाभारत के अभिमन्यू जैसी हो गई है, आज हमारा देश दुश्मन देशों के चक्रव्यूह में फंसा नजर आ रहा है, ये सभी देश यवन शासित है, फिर वह चाहे पड़ौसी अफगानिस्तान हो या पश्चिम बांगलादेश या दक्षिण का श्रीलंका, ये सभी देश आज भारत के दुश्मन की भूमिका में है, यद्यपि हमारे देश की नीति पड़ौसियों से मधुर व अच्छे सम्बंध बनाए रखने की रही है, इसी गरज से पंचशील सिद्धांत बनाए गए थे और हम किसी पड़ौसी के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप भी नही करते, किंतु आज समय के साथ सब कुछ बदल गया और राजनीति पर धर्म हावी हो गया, जिसके लिए हमारा इतिहास गवाह है, जिसने सबके सामने हमारी तबाही की तस्वीर एक नही कई बार प्रस्तुत की है, किंतु हमने चूंकि अब हमारे अतीत से सबक नही लेने की कसम खा रखी है? इसलिए हम आए दिन नई नई मुश्किलों में फंसते जा रहे है।
आज के मौजूदा हालातों में हमारे आसपास के सभी देश हमें दुश्मन की नजरों से देखते है, अकेला बंग्लादेश ही था, जिसने हमारी दोस्ती पर कभी शक नही किया, आज बदले हालातों में वह भी हमारे दुश्मनों की कतार में खड़ा नजर आ रहा है, अपना देश छोड़कर हमारे देश में आकर शरण लेने वाली बंग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रति हमारी हमदर्दी से ही हमारे पड़ौसियों की बैचेनी बढ़ गई और वे हमारे दुश्मनों की कतार में जा कर खड़े हो गए, जबकि पड़ौसी देशों के अंदरूनी मामलों में हमने कभी कोई हस्तक्षेप नहीं किया, जबकि भारत चाहता तो यह कर सकता था। बस हमारी इसी भूमिका से पड़ौसी देश नाराज होकर हमारे खिलाफ एकजुट हो गए, अब उन्हें अपनी स्वयं की चिंता नही, हमारे सम्बंधों की चिंता है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हमारे देश का एक नाम ‘हिन्दुस्तान’ भी है और इस नाम पर हर भारतवासी को गर्व है, फिर वह चाहे गैर हिन्दू ही क्यों न हो? और राजनीतिक मौजूदा दौर में इस विवाद का मुख्य आधार हिन्दू माना जा रहा है, इसीलिए बंग्लादेश में हिन्दूओं पर चुनचून कर अत्याचार, हमले और उनकी हत्याऐं की जा रही है, सत्रह करोड़ की जनसंख्या वाले बंग्लादेश में हिन्दू महज सवा करोड़ ही है और वे भी बंग्लादेशवासियों को रास नही आ रहे है और उन पर अत्याचार किए जा रहे है, अब ये बंग्लादेशी हिन्दू आज भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे है और भारत में प्रवेश के प्रयास कर रहे है।
आज के इस दौर में सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि महज पांच दशक पूर्व जिस छोटे से देश के धर्म निरपेक्ष प्रधानमंत्री मुजीबुर्रहमान ने पूरे विश्व को शांति का सबक सिखाया, उसी में आज धार्मिक प्रतिद्वंदिता चरम पर है और धार्मिक सशस्त्र संग्राम जारी है और उसी शांतिदूत की वंशज महिला राजनेत्री को अपना वतन छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।
आज यद्यपि मौजूदा स्थिति को भावी विश्वयुद्ध की भूमिका बताया जा रहा है और यदि हमारे पड़ौसियों ने इस विभीषिका को गंभीरता से नही लिया तो विश्वयुद्ध संभव भी है, इसलिए आज की सबसे बड़ी जरूरत शांति कायम करने की है और यह अहम् दायित्व भारत पूरा कर सकता है, मौजूदा स्थिति में मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि भारत को मौनधारक व मौन दर्शक की भूमिका तत्काल त्यागकर विश्वशांति कायम करने की कौशिश करना चाहिए तथा सम्बंधित देशों को समझाने का प्रयास करना चाहिए, यह भारत का पूरे विश्व पर एक महान अहसान होगा।