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हर मन के पिछवाड़े बहती एक उदास नदी

आमिर तारे ज़मीन परसे मिलते-जुलते विषय पर एक कॉमेडी फिल्म सितारे ज़मीन परबना रहे हैं। अपने बेटे जुनैद की बनाई प्रीतम प्यारेमें और फिर एक यूरोपियन फ़िल्म की रीमेक चैंपियन्समें भी वे परदे पर आएंगे। आमिर यह तो नहीं बताते कि महीनों लंबे इस ब्रेक में उन्होंने खुद को दोबारा कैसे ऊर्जायित किया, लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया है कि वे कई साल से मानसिक परेशानियों से उबरने के लिए मनोचिकित्सकों की मदद लेते रहे हैं। 

परदे से उलझती ज़िंदगी

सनी देओल की तो ‘गदर 2’ के बाद जैसे लॉट’री निकल पड़ी है। ‘दंगल’ वाले नितेश तिवारी अपनी तीन भागों में बनने जा रही ‘रामायण’ में सनी देओल को हनुमान बनाना चाहते हैं। उसके बाद तिवारी जी केवल हनुमान पर फिल्म बना सकते हैं जिसमें सनी होंगे। उनकी ‘रामाय़ण’ की शूटिंग कुछ महीने बाद तब शुरू होगी जब अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद देश को राम-मय बनाने की मुहिम चल रही होगी। अयोध्या विवाद पर सनी की एक और फिल्म ‘जन्मस्थान’ की भी चर्चा है जिसमें वे वकील बनेंगे और अदालत में उनके प्रतिद्वंद्वी वकील होंगे संजय दत्त। उधर टी सीरीज़ वाले भी सनी को लेकर ‘बॉर्डर’ का सीक्वल बनाना चाहते हैं। सनी देओल की ऐसी मांग आपने पिछले बीस साल में नहीं देखी होगी। अनिल शर्मा भी नाना पाटेकर के साथ बाप-बेटे की एक मार्मिक कहानी ‘जर्नी’ को पूरा करके ‘गदर 3’ के बारे में सोच सकते हैं, जिसमें सनी तो होंगे ही। मगर सबसे अहम बात यह कि आमिर खान ने भी सनी देओल को लेकर फ़िल्म बनाने की घोषणा की है। राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बन रही इस फिल्म का नाम ‘लाहौर 1947’ होगा जिसमें आमिर खुद भी दिखाई देंगे। कुछ लोगों का मानना है कि यह फ़िल्म असगर वजाहत के जाने-माने नाटक ‘जिस लाहौर नईं वेख्या ओ जम्या ई नईं’ पर आधारित होगी।

आमिर खान महीनों बाद अचानक फिर सक्रिय हुए हैं। सोशल मीडिया पर ‘लाल सिंह चड्ढा’ के ख़िलाफ़ चले अभियान और उसके बुरी तरह फ़्लॉप होने पर आमिर इतने खिन्न हुए थे कि उन्होंने काम से ब्रेक ले लिया था। अब वे कई महीनों के बाद ब्रेक से लौटे हैं और ताबड़तोड़ कई फिल्मों का ऐलान कर दिया है। उनके प्रोडक्शन की और किरण राव के निर्देशन वाली ‘लापता लेडीज़’ तो बस आने ही वाली है। इसके साथ ही आमिर ‘तारे ज़मीन पर’ से मिलते-जुलते विषय पर एक कॉमेडी फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ बना रहे हैं। अपने बेटे जुनैद की बनाई ‘प्रीतम प्यारे’ में और फिर एक यूरोपियन फ़िल्म की रीमेक ‘चैंपियन्स’ में भी वे परदे पर आएंगे। आमिर यह तो नहीं बताते कि महीनों लंबे इस ब्रेक में उन्होंने खुद को दोबारा कैसे ऊर्जायित किया, लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया है कि वे कई साल से मानसिक परेशानियों से उबरने के लिए मनोचिकित्सकों की मदद लेते रहे हैं।

यह बताने के लिए उन्होंने ‘मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ को चुना। अपनी बेटी आइरा खान के साथ एक वीडियो बना कर उन्होंने सोशल मीडिया पर डाला जिसमें बाप-बेटी दोनों मानसिक स्वास्थ्य पर बात करते दिखे। इसमें वे कहते हैं कि बहुत से लोग अपनी मानसिक समस्याओं को छुपाते हैं जबकि उन्हें आगे आकर समस्या बतानी चाहिए और मनोचिकित्सकों से सलाह लेनी चाहिए कि अब मैं क्या करूं। वैसे भी ज़िंदगी में हम अनेक मामलों में संबंधित विषयों के जानकारों से मदद लेते रहते हैं। फिर मानसिक मामलों में ही कोताही क्यों? आमिर और आइरा शायद यह कहना चाहते हैं कि मनोचिकित्सकों की मदद लेना इसलिए ज़रूरी है कि कहीं आपकी समस्या बीमारी तो नहीं बन गई। बन गई है तो यह पता करिए कि आप पुन: सहज कैसे बनेंगे? या फिर, अब ज़िंदगी दवाओं और थेरेपी के सहारे ही बितानी पड़ेगी?

आमिर और उनकी पहली पत्नी रीना दत्ता का तलाक हुआ तो बेटी आइरा डिप्रेशन में चली गईं और कई साल तक उसकी शिकार रहीं। वह चुपचाप अकेले में रोती रहतीं। कई-कई दिन भूखी रहतीं। आखिरकार मनोचिकित्सकों की मदद लेनी पड़ी। तब आइरा को मानसिक समस्याओं की बाबत अनेक बातें पता लगीं। उन्होंने इस दिशा में कुछ करना तय किया। अलग हो चुके आमिर और रीना इस प्रयोजन में उनके साथ थे। आखिर 2021 में आइरा ने अगत्सु फाउंडेशन की शुरूआत की। आज इस फाउंडेशन में एक कम्युनिटी सेंटर है जो इस विषय में कई तरह की गतिविधियां आयोजित करता है जिनमें कोई भी जा सकता है। वहां एक क्लीनिक भी है और मानसिक व्याधियों के चिकित्सकों और संबंधित थेरेपियों का इंतजाम भी। आमिर के मित्र सलमान खान ने आइरा के इस प्रयास के समर्थन में कहा कि कमाल है यार, बच्चे बड़े हो गए। स्ट्रॉन्ग और समझदार भी हो गए। इसके साथ ही सलमान ‘भावनाओं की साफ़-सफ़ाई’ पर ज़ोर देते हैं। इसे आप मन की साफ़-सफ़ाई भी कह सकते हैं।

मनोचिकित्सकों की मदद आमिर और उनकी बेटी आइरा दोनों को लेना पड़ी है। कुछ साल पहले आमिर के छोटे भाई फ़ैसल खान के साथ भी ऐसा हुआ था जिन्होंने 2016 में एक कश्मीरी उपन्यास ‘झील जलती है’ पर आधारित फिल्म ‘चिनार: दास्तान-ए-इश्क’ के साथ करियर में लौटने की नाकाम कोशिश की थी। उन दिनों वे ‘मेंटल खान’ नाम की फ़िल्म भी बनाना चाहते थे। असल में वे मानसिक समस्याओं से परेशान रहे थे और परिवार के साथ उनकी खटपट अदालत तक पहुंची थी। कहीं यह सारा झमेला आमिर खान के परिवार की वंशानुगत समस्या तो नहीं है?

शायद नहीं, क्योंकि जब ऋतिक रोशन भी दावा करें कि अपनी मानसिक समस्याओं के लिए वे भी थेरेपी लेते रहे हैं तो आप क्या कहेंगे। ऋतिक के मुताबिक विनम्र व शांत बने रहने, चुनौतियों का सामना करने और काम में बेहतर प्रदर्शन के लिए उनकी थेरेपी लंबे समय तक चलीं। उन्होंने कहा कि इनके बिना मैं वह हो ही नहीं सकता था जो आज हूं। मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर उनकी ख़्वाहिश थी कि हम सब अपने भीतर देखना सीखें और एक जागरूक समाज बनें। इसी तरह करण जौहर ने भी माना कि दूसरे बहुत से लोगों की तरह वे भी सोचते थे कि मुझे यह परेशानी नहीं हो सकती। मगर पता भी नहीं चलता कि कब यह आपके मन के दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है। आठ साल हो गए, जब करण जौहर को पहली बार यह खटका हुआ कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है। मनोविज्ञानियों की लंबी काउंसलिंग से समझ में आया कि हुआ क्या है। फिर इलाज और लाइफ़स्टाइल में बदलाव से स्थिति सुधरी। संगीतकार एआर रहमान भी इस समस्या से गुज़र चुके हैं और उसे जाहिर भी कर चुके हैं। पिछले कुछ समय में कई कलाकार आत्महत्या भी कर चुके हैं।

कई बार ऐसी स्थितियां आपके काम के कारण पैदा होती हैं। काम नहीं मिलने से या उसके प्रति आपकी चिढ़ से या फिर उसमें आपकी तल्लीनता से। दिलीप कुमार को देश का पहला मैथड एक्टर माना जाता है। इसका मतलब है कि जो पात्र परदे पर उतारना है उसमें पूरी तरह डूब जाना। छठे दशक में लगातार कई फ़िल्मों में गमगीन भूमिकाएं करके दिलीप कुमार निजी ज़िंदगी में भी वे वैसा ही बरताव करने लगे थे। हार कर उन्हें काउंसलिंग में जाना पड़ा जिसके बाद उन्होंने दूसरी तरह की भूमिकाओं की तलाश शुरू की थी।

वैसे आपके निजी हालात इस तरह की समस्याओं का सबसे बड़ा कारण बनते हैं। ऐसा तब भी होता है जब आप अपने काम और निजी ज़िंदगी के बीच अपनी भावनाओं के विभाजन में संतुलन नहीं बिठा पाते। जैसा गुरुदत्त के साथ हुआ। उनके गिर्द कई लोगों को पता था कि वे किस गड़बड़ी से गुज़र रहे हैं। उनके दोस्त देव आनंद और राज खोसला भी समझते थे। उनकी पत्नी गीता दत्त को तो ख़ैर सब मालूम ही था, जोकि उनसे अलग दूसरे घर में जाकर रहने लगी थीं। इसी तरह, निर्देशक व लेखक अबरार अल्वी को भी सब पता था जो कि रोज़ शाम पीने-पिलाने में गुरुदत्त के साथी बनते थे। पर अंतत: कोई उन्हें बचा नहीं पाया। उनकी मानसिक अशांति उनके जीवन के साथ ही ख़त्म हुई

समझना यह पड़ेगा कि ऐसा किसी भी काम या किसी भी पेशे में संभव है। तनाव और चिंता का आधिक्य आपको तरह-तरह से खोखला करता है। धीरे-धीरे यह आपको इतना व्यग्र बना देता है कि आप समझ ही नहीं पाते कि लोग आपको अजीब नज़रों से क्यों देखने लगे हैं। आपके भीतर निरंतर यह घुमड़ता रहता है कि आपके साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है। आप किसी को बताने में सकुचाते रहते हैं। और इस चक्कर में आपका अकेलापन और गहराता चला जाता है।

इस लिहाज से आमिर खान और उनकी बेटी आइरा खान की अपील ख़ासा महत्व रखती है। मगर इस समस्या के कुछ और पहलू भी हैं। कई बार खबर आती है कि देश के इतने प्रतिशत लोग फलानी बीमारी से पीड़ित हैं। कभी गौर कीजिए कि क्या इतने लोग उस बीमारी का इलाज करा रहे हैं? बहुत से लोग तो उस बीमारी के बारे में जानते तक नहीं। अनगिनत स्थानों पर इन बीमारियों के इलाज की सुविधा या तो है नहीं, या इतनी महंगी है कि क्या बताएं। वैसे भी देश की ज्यादातर आबादी ऐसी-ऐसी विकट समस्याओं से जूझ रही है कि उसे अपना निजी तनाव या चिंता कोई समस्या ही नहीं लगते। ऐसी चीज़ों का ज़िक्र करना भी उसे व्यर्थ लगता है। किसी मज़ाक जैसा।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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