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आखिर क्यों केजरीवाल गिरफ्तार हुए?

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं उनमें मुख्य रूप से दो सवाल हैं। पहला, क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए वे कोई चुनौती खड़ी कर रहे थे? दूसरा, क्या उनकी गिरफ्तारी के बगैर शराब नीति में हुए कथित घोटाले की जांच आगे नहीं बढ़ रही थी? इन दोनों सवालों का जवाब नकारात्मक है। न तो केजरीवाल लोकसभा चुनाव में देश के स्तर पर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर रहे थे और न उनके बाहर रहने से जांच प्रभावित हो रही थी।

केंद्रीय एजेंसियां डेढ़ साल से ज्यादा समय से शराब नीति में हुए कथित घोटाले की जांच कर रही हैं। 13 महीने से तो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया इसी मामले के कथित मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर जेल में बंद हैं। छह महीने से राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी जेल में हैं। कथित तौर पर सीबीआई और ईडी के पास बहुत सारे सबूत हैं फिर भी डेढ़ साल से ज्यादा समय बाद भी जांच पूरी नहीं हुई है और मामले में ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।

जहां तक लोकसभा चुनाव में चुनौती का सवाल है तो केजरीवाल देश के स्तर पर भाजपा के लिए कोई खतरा नहीं हैं। हां, यह जरूर है कि उन्होंने लगातार दो विधानसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा को हराया। यह बात भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को निश्चित रूप से नागवार गुजरी होगी क्योंकि इतनी ताकत लगाने के बाद भी दिल्ली में लगातार दो बार भाजपा बहुत बुरी तरह से हारी। इसके अलावा केजरीवाल कोई चुनौती नहीं दे रहे थे। गुजरात में पिछली बार उनके पांच विधायक जीते थे।

लेकिन उनके लड़ने का तो भाजपा को फायदा ही हुआ था! उन्होंने कांग्रेस का इतना वोट काट लिया कि कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनने लायक सीटें भी हासिल नहीं कर पाई और भाजपा पहली बार डेढ़ सौ के ऊपर पहुंच गई। इसके लिए तो भाजपा को केजरीवाल का शुक्रिया करना चाहिए था।

सबको पता है कि गुजरात में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कुछ नहीं कर पाएगी। गुजरात के अलावा आम आदमी पार्टी गोवा में मजबूत है लेकिन वहां भी लोकसभा चुनाव में उसके समर्थन करने से कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी, ऐसा नहीं लग रहा है। पंजाब में उसने कांग्रेस से तालमेल नहीं किया है।

वहां दोनों पार्टियां अलग अलग लड़ रही हैं, जिसका फायदा भाजपा और अकाली दल के गठबंधन को मिल सकता है। दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी मिल कर लड़ रहे हैं। क्या इस वजह से भाजपा को कोई खतरा दिख रहा है और इस वजह से उनके खिलाफ कार्रवाई हुई है? ऐसा मानना बिल्कुल फालतू की बात होगी क्योंकि हरियाणा में केजरीवाल की कोई ताकत नहीं है और दिल्ली में दोनों का वोट एक ही है, जो वैसे भी भाजपा के खिलाफ जाता है।

तभी केजरीवाल की गिरफ्तारी का कारण वह नहीं है, जो दिख रहा है, बल्कि कुछ और है। मुख्य रूप से इसके तीन कारण समझ में आते हैं।

पहला, भाजपा और नरेंद्र मोदी के ईमानदार होने के नैरेटिव को मजबूती से स्थापित करना और विपक्ष को भ्रष्ट साबित करना। चुनावी बॉन्ड के खुलासे के बाद यह बहुत जरूरी हो गया था कि संदिग्ध कंपनियों या केंद्रीय एजेंसियों की जांच झेल रही कंपनियों से चंदा लेने के मामले में भाजपा के ऊपर फोकस न बने।

केजरीवाल की गिरफ्तारी से इसका पूरा नैरेटिव बदल गया है। भाजपा और खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले भी कह रहे थे और अब अपनी इस बात को हर सभा में दोहराएंगे कि विपक्ष भ्रष्ट है और सबसे कट्टर ईमानदार होने का दावा करने वाले केजरीवाल भी उसी जमात में हैं। वे इस बात को भी दोहराएंगे कि भ्रष्ट लोगों से लूट की पाई पाई वसूली जाएगी। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से भी यह नैरेटिव बना था। इसका तात्कालिक मकसद यह नैरेटिव स्थापित करना है कि समूचे विपक्ष के मुकाबले सिर्फ भाजपा ईमानदार पार्टी है।

दूसरा, विपक्षी नेताओं के ऊपर दबाव बनाने के लिए इस गिरफ्तारी का इस्तेमाल हुआ दिखता है। ज्यादातर विपक्षी पार्टियों के नेताओं को लग रहा था कि लोकसभा चुनाव की घोषणा और आचार संहिता लागू होने के बाद केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई थम जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। आचार संहिता लागू होने के बाद केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई है और इसका मैसेज दूर तक गया है। पता नहीं यह कितना सही है लेकिन यह धारणा बनी है कि अगर केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ तालमेल नहीं किया होता तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई नहीं होती।

ऐसी ही धारणा हेमंत सोरेन को लेकर भी है। इस धारणा का पहला शिकार बिहार में महागठबंधन होता दिख रहा है। लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव ने एक तरह से अपने और कांग्रेस के चुनावी अभियान को पंक्चर कर दिया है। कांग्रेस की मांगी लगभग सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। बड़े जोश खरोश के साथ कांग्रेस में शामिल हुए पप्पू यादव की वजह से बनी हवा को खत्म कर दिया है। माना जा रहा है कि यह केजरीवाल इफेक्ट है।

गिरफ्तार होकर केजरीवाल जेल में होंगे और उनकी पार्टी के बाकी बड़े नेता पहले से जेल में हैं तो उससे आम आदमी पार्टी का प्रचार प्रभावित होगा और पंजाब व दिल्ली दोनों जगह लड़ाई की कमजोर पड़ेगी। सो, विपक्ष के भ्रष्ट होने की धारणा बनाने से लेकर विपक्ष को डराने और उसकी लड़ाई को कमजोर करने के लिहाज से देखें तो गिरफ्तारी का एक पैटर्न समझ में आता है।

अंत में तीसरा और सबसे अहम कारण है आम आदमी पार्टी की हिंदुवादी, राष्ट्रवादी और लोक लुभावन राजनीति। ध्यान रहे अरविंद केजरीवाल देश की दूसरी तमाम विपक्षी पार्टियों से अलग राजनीति करते हैं। वे नेहरूवादी समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के मॉडल को नहीं मानते हैं। वे नरम हिंदुत्व की राजनीति करते हैं। तिरंगा लहराते हैं, वंदे मातरम गाते हैं और मंदिर में बैठ कर हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का पाठ करते हैं। वे बुजुर्गों को सरकारी खर्च पर तीर्थयात्रा कराते हैं।

साथ ही समाज के वंचित, कमजोर तबके को सरकारी खजाने से सीधा लाभ पहुंचाते हैं। यह बिल्कुल वही राजनीति है, जो भाजपा कर रही है। भविष्य में भाजपा को इसी राजनीति से चुनौती मिलने वाली है। पुरानी विपक्षी पार्टियां चुनौती नहीं बन सकती हैं। कम से कम अगले कुछ दशकों तक भाजपा ब्रांड की राजनीति मजबूत होगी और उसी ब्रांड की राजनीति करने वाली दूसरी पार्टी से उसे चुनौती मिलेगी।

तभी महाराष्ट्र में शिव सेना को कमजोर करना जरूरी समझा गया। उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ कर उसे कमजोर किया गया और अब केजरीवाल की पार्टी को कमजोर करने का प्रयास चल रहा है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति पर भाजपा एकाधिकार बनाए रखना चाहती है। केजरीवाल ने भाजपा जैसी राजनीति करके देश के बड़े तबके के बीच वैसी ही जिज्ञासा पैदा की है, जैसी 10 साल पहले नरेंद्र मोदी ने की थी।

10 साल के भीतर उनकी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बन गई है और दिल्ली जैसे अर्ध राज्य और पंजाब में ही सरकार होने के बावजूद उनको राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी दूसरी विपक्षी पार्टी से ज्यादा तवज्जो मिलती है। तभी ऐसा लग रहा है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के दो तात्कालिक उद्देश्यों के अलावा एक दीर्घकालिक उद्देश्य भी है- इससे पहले कि लोग ‘गुजरात मॉडल’ की तरह ‘दिल्ली मॉडल’ के बारे में सोचने लगे, ‘दिल्ली मॉडल’ को पंक्चर करना।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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