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लोक लुभावन घोषणाओं का भविष्य क्या है?

चुनाव नतीजों

पांच राज्यों के चुनाव नतीजों की कई अलग अलग पहलुओं से व्याख्या हो चुकी है। नतीजों से उठा गुबार थमने के बाद सभी मुद्दों और पार्टियों की ओर से किए तमाम राजनीतिक उपायों पर बात हुई है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि लोक लुभावन घोषणाओं का मुद्दा पीछे छूट गया है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों में एक मध्य प्रदेश के छोड़ दें, जहां भाजपा की जीत का श्रेय मुख्य रूप में लाड़ली बहना योजना को दिया जा रहा है तो बाकी चार राज्यों के नतीजों में मुफ्त की चीजें या सेवाएं बांटने की घोषणाओं का असर नहीं देखा जा रहा है।

हो सकता है कि हर राज्य में नतीजों पर किसी न किसी स्तर तक इन घोषणाओं या गारंटियों का भी असर हुआ हो लेकिन यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि लोक लुभावन घोषणाओं ने नतीजों को बड़े पैमाने पर प्रभावित नहीं किया है। मई में कर्नाटक के चुनाव नतीजों के बाद यह दावा किया गया था कि कांग्रेस की पांच गारंटियों ने उसे चुनावी जीत दिलाई लेकिन यह बात भी आंशिक रूप से ही सही थी। कांग्रेस की जीत के कई राजनीतिक और सामाजिक कारण भी थे।

तभी सवाल है कि लोक लुभावन घोषणाओं, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कहा था उसका भविष्य क्या है? आगे भी पार्टियां वैसे ही अनाप-शनाप घोषणाएं करती रहेंगी, जैसी इस साल के चुनावों में की हैं या उनकी रफ्तार धीमी होगी? गौरतलब है कि ‘मुफ्त की रेवड़ी’ की जो राजनीति अभी हो रही है उसका नया दौर अरविंद केजरीवाल ने शुरू किया है। हालांकि पहले भी लोक लुभावन घोषणाएं होती थीं लेकिन बहुत सीमित होती थीं और आमतौर पर चुनाव दूसरे मुद्दों पर लड़ा जाता था। सरकारों के कामकाज, भ्रष्टाचार, मंहगाई के साथ साथ विचारधारा का मुद्दा भी होता था।

लेकिन पिछले कुछ बरसों से भाजपा विरोधी पार्टियों के लिए बाकी मुद्दे हाशिए में चले गए हैं और मुफ्त की चीजों की घोषणाएं सबसे मुख्य हो गई हैं। अब ऐसा लग रहा है कि इसमें बदलाव आना शुरू हो रहा है। हालांकि ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक इसे अभी स्वीकार नहीं करेंगे और पार्टियां भी अगले कुछ चुनावों तक मुफ्त की चीजों की घोषणा करती रहेंगी लेकिन यह बहुत स्मार्ट राजनीति नहीं होगी। क्योंकि जो पार्टी इसकी मात्रा घटाएगी और दूसरे मुद्दों को इससे जोड़ेगी उसे फायदा होगा। जैसे इस बार भाजपा ने मुफ्त की चीजों के साथ दूसरे एजेंडे जोड़ कर चुनाव जीते।

तभी चुनाव नतीजों के बाद भाजपा मुफ्त की चीजों की घोषणाओं पर अमल की जल्दी में नहीं है। मिसाल के तौर पर मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के तहत 10 दिसंबर को महिलाओं के खाते में साढ़े 12 सौ रुपए की रकम पहुंचनी चाहिए थी। शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया एक्स पर याद भी दिलाया था कि ‘आज 10 तारीख है’ लेकिन उसके कई दिन बाद भी राज्य सरकार ने महिलाओं के खाते में रकम ट्रांसफर करने की जल्दी नहीं दिखाई। उलटे नई सरकार ने एक आदेश जारी करके कुछ महिला समूहों को इस योजना से बाहर करने की पहल की है। विपक्षी पार्टियां इसकी आलोचना कर रही हैं।

दूसरी ओर राज्य सरकार शिवराज सिंह चौहान की ओर से घोषित योजनाओं की बजाय मोदी की गारंटी पर फोकस कर रही हैं। मोदी ने महिलाओं को सशक्त बना कर लखपति बनाने, उन्हें आवास देने और सस्ता सिलेंडर देने की गारंटी दी थी। मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार सिर्फ इसी की बात कर रही है। हालांकि संभव है कि लाड़ली बहना योजना चलती रहे लेकिन रकम बढ़ा कर तीन हजार प्रति महीना तक ले जाने की कोई संभावना नहीं दिख रही है।

इसी तरह जिन पांच राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू की गई है उनमें सिर्फ एक में इसे आंशिक रूप से लागू किया गया है। हिमाचल प्रदेश में करीब साढ़े पांच सौ कर्मचारियों को आखिरी वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन देने की घोषणा हुई है। वहां एक हजार करोड़ का प्रावधन भी किया गया है। लेकिन बाकी चार राज्यों में इस पर अमल नहीं हुआ है। अब दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार भी बदल गई है। सो, इन दोनों राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू होने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। वैसे कांग्रेस की सरकार ने भी इसे लागू नहीं किया था।

छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार का दावा था कि राज्य के कर्मचारियों का 17 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पीएफआरडीए के माध्यम से एनएसडीएल में जमा है। वह लौटाया जाए तभी पुरानी पेंशन योजना शुरू होगी। राजस्थान सरकार का कहना था कि एनपीएस के तहत पेंशन पा रहे कर्मचारियों ने सेवाकाल में एनपीएस से जो पैसे निकाले हैं उसे लौटाएं तभी पुरानी पेशन योजना शुरू होगी। झारखंड सरकार का भी यही तर्क है। पंजाब की आम आदमी पार्टी ने भी पुरानी पेंशन योजना की अधिसूचना जारी कर दी है लेकिन किसी को पैसे नहीं मिल रहे हैं।

हालांकि कुछ योजनाओं पर अमल हो गया है। जैसे कई राज्यों में मुफ्त में दो सौ या तीन सौ यूनिट बिजली दी जा रही है। पानी मुफ्त में देने की घोषणा पर अमल हो रहा है। महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की योजना लागू हो गई है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारों ने महिलाओं के खाते में पैसे डालने भी शुरू कर दिए हैं। लेकिन इस तरह की योजनाओं के बगैर भी भाजपा की जीत ने विपक्ष को भी सोचने पर मजबूर किया है। वे भाजपा से लड़ने के लिए कोई बड़ा नैरेटिव खड़ा करें या मुफ्त की चीजों और सेवाओं की घोषणा पर निर्भर होकर चुनाव लड़ें? उन्हें मुफ्त की चीजों की घोषणाओं के साथ साथ देश या राज्यों की आर्थिक सेहत के बारे में भी लोगों को बताना होगा क्योंकि भाजपा यह मुद्दा बना रही है कि ‘मुफ्त की रेवड़ी’ की वजह से राज्यों की आर्थिक सेहत खराब हो रही है।

विपक्ष के नेता आधे अधूरे तरीके से बताते हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़े कारोबारियों का 10 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है और कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की है, जिससे बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों को लाखों करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। अगर विपक्ष लोगों को यह यकीन दिलाने का प्रयास करे कि उसकी सरकार बनी तो वह बड़े डिफॉल्टर उद्योगपतियों से वसूली करके आम लोगों को पैसे देगी या सुविधाएं देगी तो उसका बड़ा असर हो सकता है।

ध्यान रहे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने यहीं नैरेटिव बनाया था। उनके साथ रामदेव और रविशंकर जैसे बाबा लोग भी इसका प्रचार करते थे। रामदेव तो कहते थे कि विदेश में भारत का चार सौ लाख करोड़ रुपया है। विपक्ष को ऐसे झूठ बोलने की जरुरत नहीं है, बल्कि वास्तविकता बतानी है और एक आर्थिक योजना लोगों के सामने रखनी है। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो सिर्फ मुफ्त की घोषणाओं से काम नहीं चलेगा क्योंकि भाजपा के पास मुफ्त की घोषणाओं के साथ साथ और भी बहुत सी चीजें हैं, जिनका मुकाबला करना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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