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धर्म सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होगा

राममंदिर

कोई कुछ भी कहे अगले लोकसभा चुनाव में व्यापक रूप से हिंदुत्व और खासतौर से राममंदिर सबसे बड़ा मुद्दा होने जा रहा है। कुछ समय पहले तक राजनीतिक रूप से राममंदिर का मुद्दा समाप्त मान लिया गया था। लेकिन उस समाप्त हो चुके मुद्दे को भाजपा ने फिर से जिंदा कर दिया है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का जैसा भव्य आयोजन हुआ है और कार्यक्रम के हर फ्रेम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जैसी मौजूदगी रही है उसके बाद कोई संदेह नहीं रह गया है कि यह अगले चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होने वाला है।

चुनाव की घोषणा से पहले पूरे देश और पूरी दुनिया को राममय करने का विशाल अभियान चुनाव को ध्यान में रख कर ही चलाया गया था। प्राण प्रतिष्ठा के दिन पूरा देश उत्सव के माहौल में था और अगले तीन महीने इस माहौल की तीव्रता कम नहीं होने दी जाएगी।

अयोध्या में राममंदिर को लेकर कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत पीवी नरसिंह राव की दो बातें मिथक की तरह प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने दक्षिणपंथी विचारों का बचाव करते हुए किसी नेता से कहा था कि कांग्रेस भाजपा से तो लड़ सकती है लेकिन भगवान राम से कैसे लड़ सकती है। उनकी दूसरी बात यह है कि वे मानते थे कि विवादित ढांचा टूट जाने के बाद अयोध्या का मामला समाप्त हो जाएगा। उनका दावा था कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा टूटने के बाद अयोध्या का मामला भाजपा के हाथ से निकल गया है। यह बात पूरी तरह से सही नहीं साबित हुई। क्योंकि उसके बाद भाजपा 1991 के 89 सीटों से 1996 में 161 सीटों पर पहुंच गई और उसके बाद 1999 और 2004 के चुनावों में 183 सीटों पर रही।

अब अब उसके 20 साल बाद राममंदिर एक बार फिर चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है। ध्यान रहे नरेंद्र मोदी ने अपने दो चुनावों में इसे मुद्दा नहीं बनाया था। उनका पहला चुनाव यानी 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस सरकार की एंटी इन्कम्बैंसी पर था। हिंदुत्व का अंडरकरंट भी था क्योंकि 2002 के गुजरात दंगों के बाद से नरेंद्र मोदी खुद कट्टपंथी हिंदुत्व का प्रतीक चेहरा बन कर उभरे थे। लेकिन प्रचार की थीम मोटे तौर पर महंगाई, भ्रष्टाचार और कमजोर नेतृत्व पर थी। दूसरा यानी 2019 का चुनाव व्यापक रूप से राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के मुद्दे पर लड़ा गया। इसके लिए पुलवामा कांड और उरी व बालाकोट स्ट्राइक को मुद्दा बनाया गया।

लेकिन इस दस साल की अवधि में ऐसा नहीं है कि अयोध्या के प्रोजेक्ट को भुला दिया गया था। वह मंथर गति से आगे बढ़ रहा था। साथ ही लोगों को ज्यादा से ज्यादा धार्मिक बनाने का अभियान भी चल रहा था। मैकियावेली ने ‘द प्रिंस’ लिखा है कि ‘राजा को चाहिए कि वह जनता को ज्यादा से ज्यादा धार्मिक बनाए क्योंकि धार्मिक जनता पर शासन करना बहुत आसान होता है’। सो, नरेंद्र मोदी देश की जनता को धार्मिक बनाने में लगे रहे। उन्होंने अपनी छवि एक समर्पित हिंदू बुजुर्ग की बनाई। वे मंदिरों में जाते तो पूरी भाव भंगिमा एक धर्मप्राण हिंदू की होती। कैमरे के साथ मंदिर में जाने की चाहे जितनी आलोचना की जाए लेकिन उससे उनकी छवि आम हिंदू के मन में स्थापित हुई। इस लिहाज से उनका दूसरा पांच साल पहले पांच साल से बहुत अलग था।

पहले पांच साल में वे योजनाओं की बात करते रहे लेकिन दूसरे पांच साल में भाजपा के पुराने वादों को पूरा करने पर जोर दिया और मंदिरों की परियोजनाओं को पूरा कराया। कॉशी कॉरिडोर परियोजना और उसके उद्घाटन समारोह में गंगा में डुबकी लगाने के बाद जलपात्र हाथ में लिए मोदी की जो छवि बनी उसने व्यापक हिंदू समाज को अभिभूत किया। उनकी सरकार ने अनुच्छेद 370 समाप्त किया तो राममंदिर का निर्माण भी करा दिया। निश्चित रूप से राममंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हुआ है लेकिन आदेश देने वाले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा भेज कर नरेंद्र मोदी ने अपना मैसेज हिंदू जनता तक पहुंचा दिया।

धार्मिक परियोजनाओं को पूरा करने और देश की जनता को ज्यादा से ज्यादा धार्मिक बनाने के बाद मोदी अपने तीसरे चुनाव में धर्म का मुद्दा लेकर मैदान में उतरेंगे। देश की जनता किस तरह से धार्मिक हुई है और धार्मिक जनता का रूझान कैसे भाजपा की ओर बना है यह सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वेक्षण से जाहिर होता है। इस संस्था जुड़े जाने माने चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने एक लेख लिखा है, जिसमें बताया है कि देश की हिंदू धर्मप्राण जनता का 51 फीसदी हिस्सा भाजपा को वोट करता है। पिछले चुनाव में 49 फीसदी ने भाजपा को वोट किया था और उससे पहले 31 फीसदी धर्मप्राण जनता भाजपा को वोट करती थी। उनके सर्वेक्षण के मुताबिक ऐसे हिंदू जो नियमित पूजा-पाठ करते हैं उनमें से 53 फीसदी ने पिछले चुनाव में भाजपा को वोट किया था और सिर्फ 10 फीसदी ने कांग्रेस को वोट डाला था।

इसके साथ ही भारत में धर्मप्राण हिंदुओं की संख्या भी बढ़ रही है। कई सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मंदिर जाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। जींस-टीशर्ट पहनने वाले युवाओं में मंदिर जाने का चलन बढ़ा है तो सोशल मीडिया में धार्मिक कंटेंट सबसे ज्यादा पसंद किया जाने लगा है। धार्मिक गाने रातों रात हिट हो रहे हैं और धर्मगुरुओं की बाढ़ आई हुई है। इस बीच एक आंकड़ा यह आया है कि गोरखपुर में गीता प्रेस की छपाई मशीनें 24 घंटे चल रही हैं और तब भी रामचरितमानस की मांग पूरी नहीं हो रही है। गीता प्रेस में हर महीने रामचरितमानस की एक लाख प्रतियां छप रही हैं फिर भी गोदाम में कोई कोई स्टॉक उपलब्ध नहीं है। सोचें, एक तरफ रामचरितमानस और तुलसीदास पर हमले हैं तो दूसरी ओर बिक्री का रिकॉर्ड है!

बहरहाल, जनता को धार्मिक बनाने का प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद भाजपा अगले चुनाव में व्यापक रूप से हिंदू धर्म और खासतौर से राममंदिर का मुद्दा बना रही है। जिस तरह का आयोजन 22 जनवरी को हुआ है और जैसा आयोजन आने वाले दिनों में होगा उसे देखते हुए कोई संदेह नहीं कि यह सबसे बड़ा मुद्दा होने वाला है। अगले दो महीने में 50 लाख लोग अयोध्या पहुंचेंगे और चुनाव के बीच रामनवमी के दिन बड़ा आयोजन होगा, उस समय देश में चुनाव चल रहा होगा।

सो, इस बार का चुनाव रामलला के नाम है। वैसे भी यह गाना इन दिनों बहुत मशहूर हो रहा है कि ‘जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे’। हालांकि कई समझदार लोग इसका विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि कोई व्यक्ति कैसे राम को ला सकता है। राम तो सबको लाए हैं फिर राम को लाने की बात का क्या मतलब है? लेकिन समझदार लोगों की बात सुनता ही कौन है!

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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