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मोदी की तरह राहुल का प्रचार

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ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टीम में से किसी ने नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। क्योंकि इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी उसी तर्ज पर प्रचार कर रहे हैं, जिस तर्ज पर मोदी ने शुरू किया था। प्रधानमंत्री मोदी अब भी उस प्रचार अभियान के कुछ हिस्सों को दोहराते रहते हैं। हालांकि कुछ मुद्दे वे छोड़ चुके हैं। उन्होंने जो मुद्दे छोड़ दिए राहुल की टीम उन्हें भी भाषणों में या चुनावी नैरेटिव बनाने में इस्तेमाल कर रही है। इससे ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने 2014 में मोदी की ओर से किए गए वादों के असर का आकलन भी कराया है और अब भी उससे फायदा होने की उम्मीद कर रहे हैं।

इसके लिए राहुल गांधी ने तेलंगाना को प्रयोगशाला बनाया है। उन्होंने तेलंगाना विधानसभा चुनाव में दो ऐसी बातें कह रहे हैं, जो मोदी की प्रचार थीम से ली गई हैं। पहली बात यह है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो केसीआर सरकार की लूट का पैसा लोगों को लौटाएगी और दूसरी बात यह कि राज्य के संसाधनों पर एक परिवार का कब्जा है। याद करें कैसे मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार में कहा था कि देश का लाखों करोड़ रुपए का काला धन लूट कर विदेश ले जाया गया है और अगर उनकी सरकार बनेगी तो विदेश में जमा काला धन वापस लाया जाएगा।

उन्होंने इस बात को समझाने के लिए एक ‘जुमला’ बोला था, जिसमें कहा था कि विदेशों में इतना काला धन जमा है कि उसे अगर भारत वापस लाया गया तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे। यह काले धन की विशालता के बारे में समझाने का एक तरीका था, जिसे विपक्षी पार्टियां आज तक उनके वादे के तौर पर दोहराती हैं और कहती हैं कि यह वादा मोदी ने पूरा नहीं किया है।

इसी तर्ज पर राहुल गांधी तेलंगाना में कह रहे हैं कि के चंद्रशेखर राव की सरकार ने 10 साल में एक लाख करोड़ रुपए लूटे हैं। हालांकि उनके इस आंकड़े का क्या आधार है यह किसी को पता नहीं है। लेकिन वे हर जगह इसका जिक्र कर रहे हैं। इसके बाद वे कह रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो जितना पैसा केसीआर ने लूटा है वह वसूला जाएगा और उसे जनता को दिया जाएगा।

उन्होंने यह भी कहा है कि केसीआर सरकार की लूट का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर हुआ है इसलिए कांग्रेस सरकार महिलाओं को पैसे लौटाएगी। उन्होंने एक बार में लाखों रुपए देने का वादा तो नहीं किया है लेकिन कहा है कि हर महीने महिलाओं को चार हजार रुपए मिलेंगे। इसमें ढाई हजार रुपए नकद मिलेंगे और उसके बाद रसोई गैस पर पांच सौ रुपए की सब्सिडी और मुफ्त की बस यात्रा के रूप में पैसे मिलेंगे।

इसी तरह नरेंद्र मोदी ने 2014 के प्रचार में नेहरू-गांधी परिवार पर हमला करते हुए यह नैरेटिव सेट किया था कि देश पर एक परिवार का कब्जा रहा है। बिल्कुल यही बात तेलंगाना में राहुल गांधी चंद्रशेखर राव के परिवार के लिए कह रहे हैं। उन्होंने अक्टूबर में अपना प्रचार अभियान शुरू करते ही कहा था कि तेलंगाना राज्य का पूरा कंट्रोल एक परिवार के हाथ में है और देश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार इसी राज्य में है। गौरतलब है कि तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं और उनके बेटे केटी रामाराव राज्य सरकार में मंत्री हैं।

उनके भतीजे टी हरीश राव भी राज्य सरकार में मंत्री हैं और उनकी बेटी के कविता एमएलसी हैं। वे पहले सांसद थीं। लेकिन राहुल गांधी सिर्फ सरकार में या राजनीति में पद लेकर काम करने की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि पूरा राज्य केसीआर का परिवार चला रहा है। नरेंद्र मोदी भी नेहरू-गांधी परिवार पर रिमोट कंट्रोल से मनमोहन सिंह की सरकार चलाने के आरोप लगाते रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि राहुल गांधी तेलंगाना में जो बात कह रहे हैं वह बात मध्य प्रदेश में नहीं कह रहे हैं। मध्य प्रदेश में मतदान हो चुका है लेकिन प्रचार में राहुल ने कहीं यह नहीं बताया कि पिछले 18 साल में राज्य की भाजपा सरकार ने आम लोगों से कितना पैसा लूटा है और कांग्रेस की सरकार बनी तो वह पैसा वसूलेगी या नहीं? यह जरूर है कि राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे तक यह आरोप लगा रहे हैं कि राज्य में 50 फीसदी कमीशन की सरकार चल रही है। लेकिन यह नहीं कह जा रहा है कि लूटा हुआ पैसा वसूला जाएगा।

सवाल है कि तेलंगाना फॉर्मूला मध्य प्रदेश में इस्तेमाल नहीं करने के पीछे क्या वजह है? क्या अभी राहुल गांधी भाजपा के साथ वैसा पंगा नहीं करना चाह रहे हैं, जैसा उन्होंने केसीआर के साथ किया है या उनको लग रहा है कि भाजपा के खिलाफ यह मुद्दा नहीं चल पाएगा या उनको लग रहा है कि यह तुरुप का पत्ता है और इसका इस्तेमाल लोकसभा चुनाव में किया जाएगा?

ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी इसे प्रयोग के तौर पर तेलंगाना में आजमा रहे हैं। वहां एक परिवार की पार्टी है और परिवार के अनेक सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं और उनमें से कई लोगों का नाम किसी न किसी घोटाले में फंसा है। इसलिए भ्रष्टाचार के आरोप और पैसे की वसूली का नैरेटिव आसानी से चल सकता है। दूसरे एक परिवार के कब्जे का नैरेटिव राहुल ने जाति गणना के साथ जोड़ कर बनाया है। ध्यान रहे के चंद्रशेखर राव वेलम्मा जाति से आते हैं, जो राजाओं की जाति मानी जाती है। वे अगड़ी जाति के वैष्णव होते हैं। और राहुल पिछड़ी जाति की राजनीति का नैरेटिव सेट कर रहे हैं। ऐसे में एक परिवार का कब्जा हटाने का मतलब अगड़ा वर्चस्व खत्म करना भी है। इससे ओबीसी जातियों का समर्थन मिलने की उम्मीद है।

अगर तेलंगाना में यह मुद्दा सफल रहता है तो यह तय मानना चाहिए कि अगले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी पूरे देश में इसे बड़े पैमाने पर आजमाएंगे। वे कॉरपोरेट टैक्स में छूट और बैंकों की कर्ज माफी के आंकड़े निकाल कर उद्योगपतियों और कारोबारियों को लाखों करोड़ रुपए दिए जाने का मुद्दा बनाएंगे और कांग्रेस की सरकार बनने पर उस पैसे की वसूली का वादा भी कर सकते हैं। वे राज्यों के चुनाव प्रचार में कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 20-25 दोस्तों का 14 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है।

इसे लोकसभा चुनाव में मुद्दा बना कर वे अडानी समूह का नाम भी ले सकते हैं। पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में उनके नाम से ऐसी पोस्ट खूब वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि राहुल ने कहा है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो अडानी से लूट का पैसा वसूला जाएगा। कहा जा सकता है कि एक स्तर पर राहुल गांधी को रॉबिनहुड बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अमीरों से लूट का पैसा वसूल कर उसे गरीबों में बांटने वाले मसीहा की उनकी छवि बनाने की कोशिश की जा रही है। आने वाले दिनों में यह अभियान तेज होगा।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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