राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

ट्रंप से भारत में किस बात की खुशी?

Image Source: ANI

अमेरिका के चुनाव नतीजे पर जितनी खुशी डोनाल्ड ट्रंप समर्थक रिपब्लिकन मना रहे हैं उससे कम खुशी भारत में नहीं मनाई जा रही है। भारत में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तमाम समर्थक ट्रंप की जीत की खुशी मना रहे है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस उत्साह के साथ ‘माई फ्रेंड डोनाल्ड ट्रंप’ को बधाई देने और उसके बाद उनसे बात करने की दो पोस्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर डाली उससे उनके समर्थकों की खुशी और बढ़ गई। यह अलग बात है कि उनकी खुशी का कोई ठोस आधार नहीं है। अगर वस्तुनिष्ठ तरीके से देखें और ट्रंप के पहले चार साल के कार्यकाल का आकलन करें तो पता चलेगा कि उनका राज भारत के लिए कोई बहुत अच्छा नहीं रहने वाला है।

अगर कुछ मसलों पर उनकी नीतियों से भारत को फायदा होगा तो बहुत सारे मसलों पर उनकी नीतियां भारत को नुकसान पहुंचाने वाली होंगी। चुनाव प्रचार के दौरान बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठा कर ट्रंप ने अमेरिका से ज्यादा भारत के हिंदुओं का दिल जीता है लेकिन 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद ट्रंप जिन नीतियों को लागू करेंगे उनका पहला शिकार हिंदू होंगे।

डोनाल्ड ट्रंप का वादा है कि वे जन्म के आधार पर अमेरिकी नागरिकता मिलने वाले कानून को बदल देंगे। यह फैसला वे राष्ट्रपति बनने के बाद पहले घंटे में करने वाले हैं। वे यह नीति लागू करेंगे कि अमेरिका में जन्म लेने भर से किसी को नागरिकता नहीं मिलेगी। इसके लिए जरूरी होगा कि माता पिता में से कोई एक अमेरिका का नागरिक हो या उसके पास ग्रीन कार्ड हो। यह नीति लागू होने से भारत के 10 लाख लोगों की नागरिकता की उम्मीदें एक झटके में खत्म हो जाएंगी। कहने की जरुरत नहीं है कि इनमें से 99 फीसदी से ज्यादा हिंदू होंगे। इतना ही नहीं ट्रंप अमेरिका में अवैध घुसपैठ रोकने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए वे मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने का बजट बढ़ाएंगे। अमेरिका में अवैध रूप से घुसने के प्रयास में अभी हर घंटे 10 भारतीय पकड़े जा रहे हैं, जिनमें पांच गुजराती होते हैं। कहने की जरुरत नहीं है कि लगभग सभी हिंदू होते हैं। ट्रंप के राज में अवैध रूप से अमेरिका में घुसना और मुश्किल होगा।

ट्रंप का दूसरा फैसला वीजा को लेकर हो सकता है। गौरतलब है कि इस समय स्टूडेंट वीजा हो या वर्क वीजा, सबसे ज्यादा अमेरिकी वीजा भारतीयों को मिल रहा है। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में एच फोर वीजा के नियम बदलने प्रस्ताव किया था। एच फोर वीजा आश्रितों को मिलने वाला वीजा है, जिसमें अमेरिका के एच वन वीजाधारकों के पति या पत्नी और अविवाहित बच्चे शामिल हैं। इनको अमेरिका में कुछ खास सेक्टर में काम करने की विशेष अनुमति मिलती है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिलती है और वे बैंक में खाता खोल सकते हैं। ट्रंप ने इसे खत्म करना चाहा था लेकिन जब तक यह बदलाव होता उनकी सत्ता चली गई और जो बाइडेन प्रशासन ने इसे रहने दिया।

इससे अमेरिका में पति और पत्नी दोनों को काम करने की अनुमति मिल जाती है। ट्रंप इसे समाप्त कर सकते हैं। वीजा से जुड़ा दूसरा बदलाव स्टूडेंट वीजा को लेकर हो सकता है। अभी साइंस, टेक्नोलॉजी और मैथमैटिक्स यानी एसटीईएम के छात्रों को काम सीखने के लिए तीन साल का वीजा विस्तार मिल जाता है। ट्रंप इस सुविधा को खत्म करेंगे। वीजा से जुड़ा तीसरा बदलाव एच वन वीजा की शर्तों को सख्त करना है। इन तीनों बदलावों से सबसे ज्यादा नुकसान हिंदुओं को ही होने वाला है।

भारतीय नागरिकों खास कर हिंदुओं को होने वाले निजी नुकसानों के अलावा अगर देश की अर्थव्यवस्था पर ट्रंप की नीतियों से पड़ने वाले असर की बात करें तो वहां भी तस्वीर गुलाबी नहीं दिखती है। ट्रंप पहले कार्यकाल में भी भारत में अमेरिकी उत्पादों पर लगने वाले ऊंचे आयात शुल्क को लेकर सवाल उठा चुके हैं। वे भारत में आयात शुल्क कम करने का दबाव बनाएंगे। अगर ऐसा होता है तो भारत के राजस्व में जो कमी आएगी वह अपनी जगह है लेकिन भारत की कंपनियों के सामने अमेरिकी कंपनियों के उत्पादों से मुकाबले की नई चुनौती होगी। दूसरे, उन्होंने कहा है कि वे चीन के उत्पादों पर दो सौ फीसदी आयात शुल्क लगाएंगे और बाकी देशों के उत्पादों पर भी कम से कम 10 फीसदी आयात शुल्क तो जरूर लगाएंगे।

सोचें, अगर ऐसा होता है तो भारत के जो उत्पाद अमेरिकी बाजार में जाते हैं उनके लिए क्या संभावना बचेगी? तीसरे, सबको पता है कि ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका को फिर से मैन्यूफैक्चरिंग का केंद्र बनाया जाए। इसलिए वे अमेरिकी कंपनियों को मदद देकर अमेरिका में ही अपने कल कारखाने लगाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। ऐसे में कितनी अमेरिकी कंपनियां भारत आकर अपने कल कारखाने लगाती हैं, खासतौर से सेमी कंडक्टर के सेक्टर में यह देखने वाली बात होगी।

अगर राजनीतिक और सामरिक मामले देखें तो वहां और भी जटिलता दिखेगी। भारत में लोगों का एक बड़ा समूह इस बात पर खुशी मना रहा है कि ट्रंप को किसी तरह से चीन को काबू में करना है इसलिए उनके लिए भारत का बड़ा भू राजनीतिक महत्व है। वे मान रहे हैं कि चीन पर चेक एंड बैलेंस के लिए भारत की मदद करेंगे। लेकिन वे यह नहीं सोच रहे हैं ट्रंप ऐसा करेंगे भी तो इसके बदले में क्या चाहेंगे? ध्यान रहे ट्रंप के पहले कार्यकाल में क्वाड यानी अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह बहुत सक्रिय रहा था। लेकिन बाइडेन के चार साल के राज में इसका महत्व कम होता गया। ट्रंप इसे फिर से सक्रिय करना चाहेंगे और उनकी कोशिश होगी कि भारत को चीन के मुकाबले खड़ा करें। लेकिन हकीकत यह है कि भारत किसी तरह से चीन के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चीन से होने वाले आयात पर निर्भर है। अगर भारत चीन और अमेरिकी दोनों के साथ दोस्ती और कारोबार का संबंध रखना चाहता है तो उसे ट्रंप से बहुत मदद की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

यही स्थिति ईरान के मामले में भी होगी। भारत चाबहार बंदरगाह में बड़ा निवेश करने की तैयारी कर रही है लेकिन ट्रंप को यह बात पसंद नहीं आएगी। ईरान के मसले पर भारत के साथ एक बार उनका टकराव हो चुका है। उन्होंने भारत को ईरान से सस्ता तेल आयात करने से रोक दिया था। पहले तो ट्रंप ने कूटनीतिक तरीके से इसकी कोशिश की थी लेकिन जब भारत ने ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद नहीं किया तो 2018 में ट्रंप ने उस समय संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि रहीं निक्की हेली को भारत भेजा था और भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। इस धमकी के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार ने ईरान से सस्ता कच्चा तेल खरीदना बंद किया था। जाहिर है ट्रंप को भारत के वित्तीय हितों की परवाह नहीं है। चीन हो या ईरान वे अपनी नीतियों से चलेंगे और उसे मानने के लिए भारत पर दबाव डालेंगे।

अगर ट्रंप के शासन से भारत को होने वाले फायदों की बात करें तो सबसे बड़ा फायदा आतंकवाद पर उनकी नीतियों का हो सकता है। वे आतंकवाद से समझौता नहीं करने की नीति के तहत अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों पर सख्ती कर सकते हैं। इससे सिख फॉर जस्टिस के गुरपतवंत सिंह पन्नू सहित अन्य अलगावादियों का प्रत्यर्पण आसान हो सकता है। इसी नीति के तहत वे पाकिस्तान पर भी सख्ती करेंगे और उसकी मदद रोक देंगे या कम कर देंगे। इसका भी कुछ फायदा भारत को हो सकता है। वे अरब और इजराइल के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के प्रयास करते रहे हैं। इस प्रयास का भी कुछ लाभ भारत को हो सकता है। इसी तरह अगर वे रूस के साथ अमेरिका के संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास करते हैं तो उसका भी कुछ फायदा भारत को सकता है। लेकिन ये सारे कोलेटरल बेनिफिट्स हैं। अमेरिका में ट्रंप के शासन से किसी प्रत्यक्ष और बड़े लाभ की संभावना तो अभी नहीं दिख रही है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें