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किसान और छात्र आंदोलन की चुनौती

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farmer and student movement: नए साल की शुरुआत किसान और छात्रों के आंदोलन के साथ हुई है। पिछले साल फरवरी में पंजाब और हरियाणा के शंभू व खनौरी बॉर्डर पर किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। वह आंदोलन अभी तक जारी है।

उसमें एक नई बात यह जुड़ गई है कि किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन कर रहे हैं। उनके अनशन के 40 दिन से ज्यादा हो गए हैं। उधर बिहार में छात्रों का आंदोलन चल रहा है।

बिहार लोक सेवा आयोग की 70वीं संयुक्त परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में गड़बड़ी के आरोप लगा कर छात्र उसे रद्द करने और दोबारा परीक्षा लेने की मांग कर रहे हैं।

सरकार अड़ी है कि किसी हाल में दोबारा परीक्षा नहीं होगी। दूसरी ओर राजधानी पटना में दो जगहों पर छात्र धरने पर बैठे हैं। गर्दनीबाग में छात्रों का समूह धरना प्रदर्शन कर रहा है तो ऐतिहासिक गांधी मैदान में जन सुराज पार्टी के नेता और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर आमरण अनशन पर बैठे।

यानी जैसे पंजाब व हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन है और खनौरी बॉर्डर पर डल्लेवाल का आमरण अनशन है वैसे ही पटना के गर्दनीबाग में छात्रों का प्रदर्शन है और गांधी मैदान में प्रशांत किशोर का आमरण अनशन हुआ।

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ये दोनों आंदोलन पिछले साल से चल रहे हैं। पंजाब में किसानों का आंदोलन फरवरी 2024 से चल रहा है तो बिहार में छात्रों का आंदोलन दिसंबर 2024 से चल रहा है। उससे ठीक पहले नवंबर में उत्तर प्रदेश के छात्रों ने आंदोलन किया था।

यूपीपीसीएस की परीक्षा की घोषणा के बाद उसे दो या उससे ज्यादा पालियों में कराने और अंकों के सामान्यीकरण का निर्देश जारी होने के बाद हजारों की संख्या में अभ्यर्थी प्रयागराज में यूपीपीसीएस के कार्यालय के सामने जमा हो गए।

उनके प्रदर्शन की वजह से सरकार पीछे हटी और एक ही पाली में परीक्षा कराने की घोषणा हुई। बिहार में भी छह दिसंबर 2024 को आंदोलन बीपीएससी की परीक्षा कई पाली में कराने और अंकों के सामान्यीकरण के विरोध में शुरू हुआ था, जिस पर बिहार में भी सरकार पीछे हट गई थी।

ऐसे ही नवंबर में उत्तर प्रदेश में भी किसानों का एक आंदोलन हुआ था। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण द्वारा जमीन अधिग्रहण की नीतियों को लेकर किसान आंदोलित हुए थे और नोएडा में दलित प्रेरणास्थल के पास प्रदर्शन किया था।

सरकारों का जो रवैया…

किसानों और छात्रों के प्रदर्शनों को लेकर लंबी भूमिका का मकसद यह बताना है कि ये दोनों समूह अलग अलग मसलों को लेकर आंदोलित हैं और भले अभी इसका दायरा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में फैला दिख रहा है लेकिन इन दोनों समूहों को लेकर केंद्र व राज्य  सरकारों का जो रवैया है उससे अगर इसका दायरा दूसरे राज्यों में भी फैले तो हैरानी नहीं होगी।

ऐसा होने की संभावना इसलिए है क्योंकि सरकारें अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ रही हैं। चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्यों की, सबने संवाद की जगह लाठी को ही समझौते का ब्रह्मास्त्र बना लिया है। सरकारें अब आंदोलनकारियों से बात नहीं करती हैं।

उनके ऊपर लाठी चलवाती हैं, पानी की बौछार करती हैं और उनका भविष्य खराब करने की धमकी देती हैं।

ऐसा सिर्फ किसानों और छात्रों के मामलों में ही नहीं है, बल्कि किसी भी समूह के आंदोलन को सरकारें ऐसे ही हैंडल कर रही हैं।

सरकारों को लग रहा है कि मुफ्त की इतनी रेवड़ी बांट ही रहे हैं तो लोगों को दूसरी चीजों के लिए क्यों आंदोलन करना चाहिए!

असल में किसानों को सम्मान निधि के थोड़े से पैसे से आगे कुछ देना नहीं है और छात्रों, युवाओं के लिए सरकार के पास नौकरी या रोजगार के अवसर हैं नहीं तभी उनका आंदोलन सरकारों को डराता है।

वे किसी तरह से उन्हें खत्म करने का प्रयास करते हैं। परंतु ऐसा होना आसान नहीं है।

पंजाब के किसान 2021 से आंदोलन पर 

उत्तर प्रदेश के किसानों ने भूमि अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर आंदोलन किया था और पंजाब के किसान 2021 के वादे को पूरा कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

उनकी मुख्य मांग यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कानूनी गारंटी की जाए। इसके अलावा एक दर्जन और मांगें हैं। उन पर देर सबेर देश भर के किसानों को साथ आना ही है।

परंतु उससे पहले केंद्र सरकार ने ‘नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ऑन एग्रीकल्चरल मार्केटिंग’ का मसौदा जारी किया है।

केंद्र सरकार ने पहले जो तीन केंद्रीय कानून बनाए थे, उनको किसान आंदोलन के डर से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले भले वापस ले लिया गया था लेकिन केंद्र के मन में कहीं न कहीं उन कानूनों को लागू करने की इच्छा दबी हुई थी।

इसलिए उसने कानून का नया मसौदा जारी किया है। हैरानी है कि कृषि राज्यों का विषय है फिर भी केंद्र सरकार उससे जुड़ा कानून बनाने की बेचैनी में है।

क्या वह कुछ चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को किसी तरह का फायदा पहुंचाना चाहती है? इस सवाल की चर्चा पहले के तीन कानूनों को लेकर भी बहुत हुई थी।

इस मसौदे को खारिज करें

बहरहाल, ‘नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ऑन एग्रीकल्चरल मार्केटिंग’ के मसौदे को संयुक्त किसान मोर्चा, एसकेएम ने बहुत खराब बताया है।(farmer and student movement)

एसकेएम का कहना है यह कानून तो केंद्र सरकार के लाए विवादित तीन कानूनों से भी खराब है। इससे निजी कॉरपोरेट का शिकंजा कृषि उत्पादों की पैदावार से लेकर उनकी मार्केटिंग तक पर कसता जाएगा।

केंद्र सरकार की ओर से मसौदा जारी होते ही पंजाब सरकार ने इसे खारिज कर दिया। अब संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी राज्य सरकारों से अपील की है कि वे भी इस मसौदे को खारिज करें।

किसानों के साथ केंद्र के टकराव का यह नया मुद्दा हो सकता है। ध्यान रहे पंजाब के किसानों के आंदोलन में अभी संयुक्त किसान मोर्चा शामिल नहीं है।

लेकिन केंद्र सरकार के नए कानून के मसौदे पर हो सकता है कि सारे संगठन एक साथ आएं और फिर पुरानी व लंबित तमाम मांगों को लेकर एक बड़ा साझा आंदोलन शुरू हो जाए।

उससे पहले अगर सरकार पंजाब के किसानों का मसला हल नहीं करती है और किसान नेता डल्लेवाल को कुछ हो जाता है तो उसके बाद किसानों का गुस्सा संभालना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा।

अगर शिक्षा की बात करें…

अगर शिक्षा की बात करें तो पिछले कुछ समय में देश में उच्च या तकनीकी संस्थानों में दाखिले के लिए या नौकरी के लिए होने वाली प्रवेश व प्रतियोगिता परीक्षाओं की विश्वसनीयता बहुत कम हो गई है।

एकाध परीक्षाओं को छोड़ दें तो ज्यादातर को लेकर छात्रों और उनके अभिभावकों के मन में संदेह होता है। केंद्र सरकार ने एक देश, एक परीक्षा संस्थान के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी का गठन किया था।

लेकिन यह बुरी तरह से फेल हुआ। अंत में इसमें बदलाव किया गया और कहा गया कि यह संस्था सिर्फ प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करेगी।(farmer and student movement)

पिछले साल मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली नीट की परीक्षा में जैसी गड़बड़ियां हुईं और संस्था व सरकार ने जैसे लीपापोती की उससे इसकी साख स्थायी रूप से बिगड़ गई है।

राज्यों की रिक्रूटमेंट एजेंसियां खराब(farmer and student movement)

राज्यों की जो रिक्रूटमेंट एजेंसियां हैं उनकी विश्वसनीयता पहले से खराब है। ऊपर से कई पालियों में परीक्षा और अंकों के सामान्यीकरण में होने वाली गड़बड़ियों ने अभ्यर्थियों को और आशंकित कर दिया है।

उनको यह आशंका अलग से होती है कि पेपर लीक हो जाएगा, परीक्षा केंद्र पर सीसीटीवी कैमरे बंद करके चुनिंदा छात्रों को नकल कराई जाएगी, परीक्षा के बाद उत्तर पुस्तिका बदल दी जाएगी आदि।

कोचिंग संस्थान अपने संस्थान के नतीजे बेहतर करने के लिए कई किस्म की गड़बड़ियां करा रहे हैं। वे प्रश्नपत्र सेट कराने से लेकर परीक्षा नतीजों को प्रभावित करने तक के सारे उपाय कर रहे हैं।

दुर्भाग्य यह है कि किसी भी सरकार या एजेंसी का इस पर नियंत्रण नहीं है उलटे मोटे पैसे के लालच में बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल हो जा रहे हैं।

सरकारों के लिए यह स्थिति इसलिए अनुकूल है क्योंकि उनके पास नौकरी है नहीं तो किसी न किसी बहाने नौकरी वाली परीक्षाएं टलती रहें तो ठीक ही होगा। परंतु इस तिकड़म से छात्रों को ज्यादा समय तक धोखा नहीं दिया जा सकेगा।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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