इस साल की शुरुआत में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की एक बैठक में जब अध्यक्ष पद के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम आगे आया तो उनको राहुल गांधी ने यह कह कर रोका था कि इसके लिए तो ममता बनर्जी से बात करनी होगी। विडम्बना देखिए कि थोड़े समय के बाद नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों ‘इंडिया’ ब्लॉक से बाहर हो गए और अब ममता बनर्जी ही अध्यक्ष पद की दावेदार हो गई हैं! समय का चक्र इतनी तेजी से घूमा है कि कांग्रेस के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि वे इस स्थिति का सामना कैसे करें। महज छह महीने पहले चार जून को जब लोकसभा के नतीजे आए तो कांग्रेस और राहुल गांधी की जय जयकार हो रही थी। परंतु उसके बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनाव ने सारी तस्वीर बदल दी। जम्मू कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र की हार ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी के विपक्ष का सर्वमान्य नेता होने की जो धारणा बनी थी वह सवालों के घेरे में आ गई है। एक के बाद एक विपक्षी पार्टियां राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठा रही हैं।
इसमें सबसे दिलचस्प टिप्पणी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव की थी। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेता नहीं हैं। ‘इंडिया’ के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। पर सवाल है कि खड़गे कब नेता चुने गए? इस साल लोकसभा चुनाव से पहले 13 जनवरी को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की जो आखिरी बैठक हुई थी वह वर्चुअल थी और उसमें खड़गे को अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी थी। लेकिन उसके बाद कभी इस बात की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई कि खड़गे विपक्षी गठबंधन के अध्यक्ष हैं। 13 जनवरी की बैठक में सिर्फ नौ पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को खुद खड़गे ने न्योता दिया था लेकिन वे उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। सो, जाहिर है कि खड़गे अनौपचारिक रूप से भले ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेतृत्व करते हों लेकिन उनको नेता कभी नहीं घोषित किया गया।
फिर सवाल है कि रामगोपाल यादव ने क्यों कहा कि राहुल नेता नहीं हैं और खड़गे नेता हैं? इसलिए कहा क्योंकि चाहे समाजवादी पार्टी हो या तृणमूल कांग्रेस हो, उनको राहुल गांधी से समस्या है। यह समस्या रामगोपाल यादव की आगे कही बातों से जाहिर हो गई। उन्होंने कहा कि चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का, कांग्रेस कहीं भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है। उन्होंने भाजपा के साथ आमने सामने के मुकाबले में कांग्रेस की कमजोरी का खासतौर से जिक्र किया। यह भी याद रखने की बात है कि पिछले साल दिसंबर में ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था। तभी यह अनायास नहीं है कि आज खड़गे को रामगोपाल यादव ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेता बता रहे हैं।
बहरहाल, राहुल गांधी के नेतृत्व पर जो सवाल उठ रहे हैं उसके दो पहलू हैं। एक पहलू यह है कि वे कांग्रेस में जोश नहीं भर पा रहे हैं। कांग्रेस को पुनर्जीवित नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस को रिइन्वेंट करके भाजपा से लड़ने लायक नहीं बना पा रहे हैं। वे वैचारिक और सैद्धांतिक धरातल पर तो भाजपा को टक्कर दे रहे हैं लेकिन जमीनी राजनीति और चुनाव में भाजपा का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। सो, विपक्षी पार्टियां और कांग्रेस नेताओं का भी एक बड़ा हिस्सा मान रहा है कि राहुल गांधी से नहीं हो पाएगा। अपनी तमाम अच्छाइयों के बावजूद वे न तो कांग्रेस को भाजपा से लड़ने लायक बना सकते हैं और न उनकी कमान में विपक्षी गठबंधन भाजपा को प्रभावी रूप से टक्कर दे पाएगा। तभी विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि ‘इंडिया’ ब्लॉक बना रहे लेकिन उसकी कमान किसी और नेता के हाथ में रहे। यह बात ‘इंडिया’ ब्लॉक में शामिल रामगोपाल यादव भी चाहते हैं और उससे बाहर रह कर राजनीति कर रही ममता बनर्जी भी चाहती हैं। इन सभी नेताओं को पता है कि भाजपा से लड़ने के लिए एक बड़े गठबंधन की जरुरत है, जिसमें कांग्रेस का होना भी जरूरी है। परंतु साथ ही ये नेता यह भी चाहते हैं कि कोई ज्यादा परिपक्व और चुनावी राजनीति में भाजपा को परास्त करने वाला नेता इस गठबंधन का नेतृत्व करे।
इस सचाई को समझना होगा कि सारी विपक्षी पार्टियां सत्ता चाहती हैं और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से मुक्ति चाहती हैं। वह तभी होगा, जब केंद्र में उनकी सरकार बनेगी। उनको लग रहा है कि राहुल गांधी के हाथ में कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन की कमान रही तो ऐसा नहीं हो पाएगा। राहुल के नेतृत्व पर उठ रहे सवालों का दूसरा पहलू यह है कि कई विपक्षी पार्टियां राहुल गांधी के साथ काम करने में असहज हैं। उनको लग रहा है कि राहुल व्यावहारिक राजनीति करने में सक्षम नहीं हैं। वे आदर्शवादी बातें ज्यादा करते हैं और व्यावहारिक राजनीति के दांवपेंच उन्होंने अभी तक नहीं सीखे हैं। विपक्षी पार्टियों और कांग्रेस के भी अनेक नेताओं व प्रादेशिक क्षत्रपों को राहुल गांधी की टीम के साथ काम करने में मुश्किल आती है। उनकी टीम के ज्यादातर सदस्य अराजनीतिक पृष्ठभूमि वाले हैं। राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन का महासचिव केसी वेणुगोपाल को बनाया है, जिनको देश के ज्यादातर राज्यों की जमीनी राजनीति की समझ नहीं है। हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार के मुख्य कारणों में एक कारण केसी वेणुगोपाल भी हैं। हालांकि इस कारण की समीक्षा कभी नहीं होगी। वे खुद को इतना असुरक्षित महसूस करते हैं कि राहुल के आसपास किसी को फटकने नहीं देते। हर समय राहुल को घेरे रहते हैं। उनकी सहमति के बगैर राहुल से मिलना या बात करना नामुमकिन सा हो गया है।
तभी जैसे ही ममता बनर्जी ने कहा कि उन्होंने ‘इंडिया’ का गठन किया है और मौका मिले तो इसका नेतृत्व करना चाहेंगी, वैसे ही महाराष्ट्र से लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश तक कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों ने उनका स्वागत करना शुरू कर दिया। खुद शरद पवार ने ममता बनर्जी का समर्थन किया और उनका स्वागत करने की बात कही। उद्धव ठाकरे की पार्टी के संजय राउत और अखिलेश यादव की पार्टी के रामगोपाल यादव ने ममता बनर्जी का समर्थन किया। कांग्रेस के ऑल वेदर फ्रेंड राजद के नेता तेजस्वी यादव ने भी ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम बताया। इसके पीछे कारण यह है कि सभी विपक्षी पार्टियां संघर्ष करते करते थक गई हैं। उनको सत्ता चाहिए, जो कि राहुल की कमान में संभव नहीं दिख रहा है। नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के मुकाबले में पलड़ा हमेशा नरेंद्र मोदी का भारी रहता है। तभी भाजपा की ओर से हमेशा मोदी बनाम राहुल का मुकाबला बनाया जाता है तो राहुल गांधी का इकोसिस्टम भी इसे प्रोत्साहित करता है। हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि राहुल की जगह ‘इंडिया’ ब्लॉक की ओर से ममता बनर्जी या किसी और चेहरा आ जाएगा तो जीत की गारंटी हो जाएगी। परंतु ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेता कुछ नया आजमाने की जरुरत समझ रहे हैं। वैसे ममता बनर्जी ने कांग्रेस की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए यह भी कहा कि उनका इरादा पश्चिम बंगाल से बाहर जाने का नहीं है। इस तरह उन्होंने कांग्रेस और राहुल को आश्वस्त किया कि वे दिल्ली नहीं आ रही हैं। परंतु कांग्रेस नेता इसका मतलब और इसके खतरे जानते हैं।
बहरहाल, अगर कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र और हरियाणा में खराब प्रदर्शन नहीं किया होता तो शायद यह बात नहीं उठती। परंतु अब यह बात उठी है तो विपक्षी पार्टियां इसे किसी तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना चाहेंगी और दूसरी ओर कांग्रेस चुनावों के अगले चक्र यानी 2026 और 2027 तक इसे खींचना चाहेगी। ध्यान रहे 2026 में पश्चिम बंगाल के साथ केरल, तमिलनाडु, असम और मणिपुर के चुनाव हैं। उसमें कुछ राज्यों में कांग्रेस जीत सकती है। तभी वह उन चुनावों तक राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ ब्लॉक के पुनर्गठन का मामला टाले रखने की कोशिश करेगी।