कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छे प्रदर्शन से भी कोई सबक नहीं लिया है और न हरियाणा की अप्रत्याशित हार से उसने कुछ सीखा है और न महाराष्ट्र की बड़ी हार से कोई सबक सीखेगी। उसका कामकाज, उसकी राजनीति सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। उसकी राजनीति में निरंतरता नहीं है और न ही विचारधारा में कोई निरंतरता रह गई है। विचारधारा के स्तर पर पार्टी पिछले 10 साल से प्रयोग कर रही है। हर चुनाव में एक नया मुद्दा आजमाया जाता है। वह कामयाब हो या नाकाम हो, उसे छोड़ कर पार्टी आगे बढ़ जाती है। संगठन का कोई काम नहीं होता है और जब चुनाव नहीं होते हैं तो पूरी पार्टी और सारे नेता निष्क्रिय पड़े रहते हैं। उस समय का कोई सार्थक या रचनात्मक इस्तेमाल नहीं है। खुद राहुल गांधी कहीं भी संगठन के कामकाज से नहीं जाते हैं।
राज्यों में उनका दौरा तभी होता है, जब वहां चुनाव होने वाले होते हैं। वह भी बहुत सीमित मात्रा में। पार्टी उनको बचा बचा कर खर्च करती है। उनकी खुद ही मंशा भी अपने को झोंक कर राजनीति करने ही नहीं होती है। यह अलग बात है कि राजनीति के तमाम तमाशे और रील आदि बनवाने का काम उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से सीख लिया है। इस काम में उनका मन भी लगने लगा है लेकिन राजनीति रील बनाने से नहीं होती है। यह बहुत गंभीर और जटिल काम है। BJP Congress
कांग्रेस की सत्तारूढ़ दलों से पिछड़ने की वजह और बीजेपी की सफलता की राजनीति
कांग्रेस को सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि जब दूसरी पार्टियों की सरकारें एंटी इन्कम्बैंसी नहीं पैदा होने दे रही हैं, बल्कि उलटे प्रो इन्कम्बैंसी बनवा रही हैं, सत्ता समर्थन की लहर पैदा कर रही हैं और चुनाव जीत रही हैं तो कांग्रेस की सरकारें ऐसा क्यों नहीं कर पाती हैं? ध्यान रहे हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल और गठबंधन की जीत के बाद राजनीति का यह एक प्रमुख विमर्श है कि क्या सत्ता में रहना अब चुनाव जीतने की गारंटी बन गई है? पहले उलटा होता था।
पहले सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी पैदा होती थी और लोग उसे चुनाव हरवा देते थे। लेकिन अब लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार भाजपा की जीत के बाद चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए, जिनमें हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड तीनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल या गठबंधन ने वापसी की। इतना ही नहीं तीनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल या गठबंधन को पहले से ज्यादा सीटें और पहले से ज्यादा वोट मिले। माना जा रहा है कि लोक लुभावन योजनाओं, गवर्नेंस और नौकरशाही पर नियंत्रण के जरिए सरकारों ने जीत सुनिश्चित की। BJP Congress
लेकिन सवाल है कि कांग्रेस को जिन राज्यों में सत्ता मिलती है वहां ऐसा क्या होता है कि पांच साल के बाद अनिवार्य रूप से वह हार जाती है? उसके खिलाफ हर बार एंटी इन्कम्बैंसी क्यों इतनी बड़ी होती है? वह भाजपा की तरह या दूसरी प्रादेशिक पार्टियों की तरह प्रो इन्कम्बैंसी क्यों नहीं पैदा पाती है? इसके बाद कांग्रेस को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि भाजपा विपक्ष में रहते हुए कैसी राजनीति करती है कि दिल्ली व झारखंड के अपवाद को छोड़ दें तो जहां भी एक बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनती है वहां पांच साल के अंदर सत्ता में आ जाती है।
यह हकीकत है कि दिल्ली और झारखंड को छोड़ कर कोई राज्य ऐसा नहीं है, जहां भाजपा एक बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनने के बाद सत्ता में न आई है। इसका मतलब है कि वह एक राज्य में लगातार दूसरी बार मुख्य विपक्षी पार्टी नहीं बनती है। तीसरी बात भाजपा की राजनीति का कौन सा तत्व है, जिससे वह जीते या हारे उसके आधार वोट में कमी नहीं आती है। अगर इस सवाल का जवाब मिले तो यह भी पता चल जाए कि कैसे सत्ता की उसकी निरंतरता बनी रहती है।
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सबसे पहले सवाल पर विचार करें तो यह हकीकत दिखेगी कि कांग्रेस पिछले एक दशक से ज्यादा समय से किसी भी राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं लौटी है। आखिरी बार वह 2011 में असम में लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी थी। उसके बाद किसी भी राज्य में उसकी सत्ता की निरंतरता नहीं रही। उससे पहले वह 2009 में महाराष्ट्र में लगातार तीसरी बार और हरियाणा व आंध्र प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता में रही थी। उससे भी पहले 2008 में दिल्ली में तीसरी बार और 1998 में मध्य प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता में आई थी। परंतु 2011 के बाद कांग्रेस उन सभी राज्यों में हारी, जहां उसकी सरकार थी। BJP Congress
उसने किसी भी राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं की। वह 2014 में हरियाणा में हारी तो अब तक हार रही है। यही हाल दिल्ली, असम, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों का है। वह पांच साल राज करने के बाद छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता बचाए नहीं रख सकी, जहां बिल्कुल आदर्श स्थितियां दिख रही थीं। पंजाब में भी पांच साल के राज के बाद कांग्रेस की सत्ता चली गई। वह ऐसे राज्यों में भी चुनाव नहीं जीत पा रही है, जहां पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज है। वह केरल में 2016 और 2021 में लगातार दो बार हार गई।
उत्तराखंड में 2017 और 2022 में लगातार दो बार चुनाव हार गई। दिल्ली में दो चुनावों में तो उसका खाता ही नहीं खुला है। इसके बरक्स भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां आमतौर पर सत्ता की निरंतरता बनाए रखती हैं। यानी वह प्रो इन्कम्बैंसी पैदा करती हैं। केंद्र में लगातार तीसरी बार जीत कर एनडीए ने सरकार बनाई है। अगर पिछले एक दशक की बात करें तो हरियाणा में लगातार तीन बार, असम में दो बार, गुजरात में तीन बार, त्रिपुरा में दो बार, गोवा में तीन बार, मणिपुर में दो बार, उत्तर प्रदेश में दो बार, उत्तराखंड में दो बार, मेघालय दो बार, नगालैंड में दो बार और सिक्किम में दो बार भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने सरकार बनाई है।
यानी करीब एक दर्जन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर को हरा कर भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां सत्ता में लौटी हैं। इस मामले में कांग्रेस का रिकॉर्ड शून्य है। वह 10 साल में किसी भी राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं लौटी है। BJP Congress
उसकी सहयोगी पार्टियों और अन्य प्रादेशिक पार्टियों का रिकॉर्ड इस मामले में ज्यादा बेहतर है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लगातार तीन बार जीत चुकी हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने लगातार तीन बार जीत कर सरकार बनाई। झारखंड में हेमंत सोरेन लगातार दूसरी बार चुनाव जीते हैं। लेकिन कांग्रेस पिछले एक दशक में कहीं भी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी। मध्य प्रदेश में उसे 2018 में मौका मिला लेकिन वहां वह सत्ता नहीं संभाल सकी। बीच में ही सरकार गिर गई और भाजपा ने सरकार बना ली और अगले चुनाव यानी 2023 में भाजपा रिकॉर्ड बहुमत से जीती।
बतौर सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस का आचरण कैसा होता है कि वह पांच साल के बाद चुनाव में अनिवार्य रूप से हार जाती है, इस पर विचार करने के साथ साथ कांग्रेस को यह भी विचार करने की जरुरत है कि बतौर विपक्षी पार्टी उसकी राजनीति कैसे होती है कि वह सत्ता विरोधी माहौल नहीं बना पाती है और इसका नतीजा यह होता है कि वह लगातार मुख्य विपक्षी पार्टी बनी रहती है। गुजरात में तो वह 30 साल से हार रही है लेकिन 25 साल तक कम से कम मुख्य विपक्षी पार्टी रही। इस बार तो उसने मुख्य विपक्षी पार्टी का भी दर्जा गंवा दिया है। वह उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार मुख्य विपक्षी पार्टी है तो केरल, असम, हरियाणा और गोवा में भी लगातार मुख्य विपक्षी पार्टी है। BJP Congress
इसके उलट दिल्ली और झारखंड के अपवाद को छोड़ दें तो भाजपा कहीं भी एक बार से ज्यादा मुख्य विपक्षी पार्टी नहीं रहती है। ओडिशा में भाजपा पहली बार 2019 में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी और 2024 का चुनाव जीत लिया। 2019 से पहले कांग्रेस करीब 20 साल तक मुख्य विपक्षी पार्टी रही थी। इसी तरह अब तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में भाजपा पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनी है। दोनों राज्यों का अगला विधानसभा चुनाव दिलचस्प होगा।
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तीसरी अहम बात वोट आधार को बनाए रखने की है। भाजपा चुनाव जीते या हारे उसका वोट नहीं टूटता है। वह पिछले तीन चुनाव से लगातार महाराष्ट्र में 26 फीसदी का अपना वोट बचाए हुए है तो झारखंड में हार जाने के बाद भी उसका 33 फीसदी वोट बना रहा है। इसका मतलब है कि बिना विचारधारा वाली राजनीति के मौजूदा दौर में भी भाजपा ने विचारधारा के आधार पर अपने वोट आधार को जोड़ा। BJP Congress
उसकी विचारधारा अच्छी है या बुरी यह अलग बहस का विषय है। लेकिन जैसी भी है उसने उसके दम पर अपना वोट आधार बनाया है इसलिए वह टूटता नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस की एकमात्र विचारधारा भाजपा विरोध है तो भाजपा विरोधी वोट उसके साथ जुड़ा रहता है। लेकिन वह कोई सकारात्मक वोट अपने साथ नहीं जोड़ पा रही है। यह उसकी सबसे बड़ी समस्या है।