election commission : निकट अतीत में सबसे लंबे समय तक और सबसे ज्यादा विवादों में रहे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार रिटायर हो गए हैं। वे करीब तीन साल मुख्य चुनाव आयुक्त रहे और उससे पहले दो साल चुनाव आयुक्त रहे।
यानी चुनाव आयोग में उन्होंने पांच साल बिताए। रिटायर होने से पहले वे कई मसलों पर नसीहत देकर गए हैं। उन्होंने देश की तमाम पार्टियों को कुछ सुझाव दिए तो देश की उच्च न्यायपालिका से भी कुछ अनुरोध किया और चुनाव आयोग को भी कई मसलों पर नसीहत दी।
अपने कार्यकाल में वे जितने काम नहीं कर सके उन सभी के बारे में भी आयोग को सलाह दी। चुनाव के बाद होने वाले विवादों से लेकर नतीजों के बाद मतदाताओं पर होने वाले अत्याचार, सोशल मीडिया से प्रचारित होने वाली फर्जी खबरों, मुफ्त की रेवड़ी और चुनाव प्रक्रिया के बीच चुनाव से जुड़े मसलों पर अदालती सुनवाई के बारे में उन्होंने अपनी राय जाहिर की।
लेकिन सवाल है कि क्या इससे चुनाव आयोग की साख बहाल हो जाएगी? पिछले कुछ बरसों में आयोग पर जिस किस्म के आरोप लगे, उनसे मुक्त होने और पार्टियों से लेकर आम मतदाताओं के मन में चुनाव आयोग की स्वतंत्र व निष्पक्ष संस्था की छवि बहाल करने में इनसे कितनी मदद मिलेगी? (election commission )
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मतदाताओं को गुमराह करना (election commission )
मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से रिटायर होने से एक दिन पहले भी राजीव कुमार ने विपक्षी या चुनाव हारने वाली पार्टियों को ही कठघरे में खड़ा किया।
जाते जाते भी वे अपना पूर्वाग्रह नहीं छोड़ पाए। उन्होंने कहा कि चुनाव नतीजे इच्छा के अनुरूप नहीं आने पर चुनाव आयोग को बलि का बकरा बनाया जाता है, जो कि सही नहीं है।
यह बात वे पूरे कार्यकाल में कहते रहे और इस आधार पर ही विपक्ष की आपत्तियों को खारिज करते रहे। रिटायर होने के समय भी उन्होंने यही कहा। (election commission )
राजीव कुमार ने कहा कि चुनाव या वोटों की गिनती के दौरान भ्रामक बातें जान बूझकर फैलाई जाती हैं। इसका मकसद तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर मतदाताओं को गुमराह करना है।
अपने कार्यकाल में हुए विवादों पर उन्होंने कहा कि सभी उम्मीदवार और पार्टियां पूरी पारदर्शिता के साथ हर चरण में शामिल होती हैं।
बिना किसी आपत्ति या अपील के हर कदम में भाग लेने के बावजूद बाद में संदेह पैदा करने की कोशिश करना ठीक नहीं है। यह एक चिंताजनक चलन है और इसे जल्दी ही बंद किया जाना चाहिए।
आपत्तियों का कोई आधार नहीं?
सोचें, उन्होंने विपक्ष की सारी आपत्तियों को चिंताजनक चलन बता कर खारिज कर दिया। क्या विपक्ष की आपत्तियों का कोई आधार नहीं है? (election commission )
मतदाता सूची में गड़बड़ी से लेकर मतदान प्रतिशत बढ़ने, गिनती के समय ज्यादा या कम वोट गिने जाने, चुनाव प्रचार के समय पक्ष और विपक्ष के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई में पूर्वाग्रह आदि से जुड़े अनेक सवाल हैं, जिनका निष्पक्ष तरीके से जवाब दिया जाना चाहिए और विपक्षी पार्टियों की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए।
लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। ध्यान रहे उनका कार्यकाल सिर्फ विपक्ष के आरोपों की वजह से विवाद में नहीं रहा, बल्कि उनके फैसलों से भी विवाद में रहा।
महाराष्ट्र में मतदाता सूची को लेकर कांग्रेस व अन्य पार्टियों ने ढेर सारे तथ्य पेश किए हैं। उन पर कोई स्पष्टता नहीं हुई है। (election commission )
ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हरियाणा में जब हारे हुए उम्मीदवारों ने पैसे जमा कर जांच की मांग की तो जांच के समय पुराना डाटा डिलीट कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट को इस पर निर्देश देना पड़ा कि अब कोई डाटा डिलीट नहीं किया जाए।
ऐसे ही मुख्य चुनाव आयुक्त रहते राजीव कुमार ने मतदान केंद्रों की वीडियो रिकॉर्डिंग और दूसरे डिजिटल डाटा साझा करने के नियमों में बदलाव करके इस पर रोक लगा दी। ईवीएम और वीवीपैट के सत्यापन से जुड़े मुद्दे भी लंबित ही रह गए।
CEC के पद से रिटायर हुए राजीव कुमार (election commission )
मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से रिटायर हुए राजीव कुमार को यह चिंता थी कि झूठी व भ्रामक खबरें फैला कर चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठाया जाता है लेकिन फर्जी खबरों, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के दुरुपयोग और भड़काऊ भाषणों पर वे चुप रह गए।
उनके पूरे कार्यकाल में सबसे बड़ी समस्या यह रही। भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेताओं ने चुनाव के समय धर्म के आधार पर समाज का विभाजन कराने वाले भड़काऊ भाषण दिए।
कांग्रेस व दूसरी विपक्षी पार्टियों के मुस्लिम नेताओं के नाम लेकर उन पर हमला किया गया और उनसे मुक्ति पाने की अपील की गई। (election commission )
लेकिन ध्यान नहीं आ रहा है कि आयोग ने किसी के खिलाफ मिसाल बनाने वाली कोई कार्रवाई की। यह नए मुख्य चुनाव आयुक्त के सामने भी एक बड़ी चुनौती होगी।
फर्जी खबरों से राजनीतिक विमर्श बनाना और तकनीक का दुरुपयोग करके जनता को गुमराह करना आने वाले दिनों में चुनाव की प्रक्रिया को दूषित करने वाला नंबर एक कारण रहने वाला है।
रेवड़ी बांटने का चलन महामारी
राजीव कुमार ने एक अच्छी और बहुत जरूरी बात यह कही कि राजनीतिक दल जब चुनाव में मुफ्त की चीजें बांटने की घोषणा करें तो उसके साथ राजस्व की व्यवस्था के बारे में भी स्पष्ट जानकारी दें।
इसके साथ ही उन्होंने एक और जरूरी बात यह कही कि राजनीतिक बहस का स्तर गिरता जा रहा है और यह बहुत चिंताजनक है। (election commission )
इन दोनों बातों से सहमत नहीं होने का कोई कारण नहीं है। परंतु सवाल है कि खुद मुख्य चुनाव आयुक्त रहते और उसके पहले चुनाव आयुक्त के रूप में उन्होंने इसे रोकने के लिए क्या प्रयास किया?
चुनाव आयोग में उनके करीब पांच साल के कार्यकाल के दौरान मुफ्त की रेवड़ी बांटने का चलन महामारी की तरह फैला और उसी अनुपात में राजनीतिक विमर्श विषाक्त होता गया। (election commission)
परंतु उन्होंने या चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कोई पहल नहीं की। कह सकते हैं कि आयोग के पास इतने अधिकार नहीं हैं कि वह पार्टियों को चुनाव से पहले मुफ्त की चीजें या सेवाएं बांटने की घोषणा से रोक सके।
परंतु जो अपील उन्होंने अभी की है कम से कम वैसी ही अपील पहले क्यों नहीं की? जो पार्टी विपक्ष में रहती है वह बड़े बड़े वादे करती है लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ दल को वित्तीय अनुशासन का पाठ वे क्यों नहीं पढ़ा पाए?
आज उनको राजनीतिक विमर्श के गिरते स्तर पर की चिंता हो रही है लेकिन पद पर रहते हुए उन्होंने इसे रोकने के उपाय नहीं किए। (election commission )
उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि मतदान से पहले तो चुनाव आयोग मतदाताओं की हिफाजत कर सकता है लेकिन उसके बाद अगर हिंसा होती है तो उसे आयोग नहीं रोक सकता है।
उन्होंने किसी राज्य का नाम नहीं लिया लेकिन सबको पता है कि भाजपा की ओर से पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में चुनाव बाद हिंसा का मुद्दा उठाया जाता रहा है।
इसको रोकने का एक आसान उपाय यह होता है कि उम्मीदवारों को पता नहीं चले कि किस मतदान केंद्र पर उसे कितना वोट मिला। (election commission)
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार
इसके लिए साल 2006 से अलग अलग मतदान केंद्रों के ईवीएम को टोटलाइजर से जोड़ कर गिनती करने का सुझाव दिया गया है। टोटलाइजर का नमूना भी बन कर तैयार है।
अगर इसका इस्तेमाल होता है तो एक बार एक दर्जन से ज्यादा ईवीएम को एक टोटलाइजर से जोड़ कर उसकी गिनती कर दी जाए। (election commission )
इससे किसी उम्मीदवार को पता नहीं चलेगा कि उसे कहां कितना वोट मिला। परंतु पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से यह मामला किसी संसदीय उप समिति में अटका हुआ है।
बहरहाल, राजीव कुमार का कार्यकाल जिस तरह से विवादों में रहा उसी तरह उनकी जगह लेने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भी विवादों के साथ हुई है।
चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के नए कानून से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति हुई है। (election commission )
नियुक्ति समिति में शामिल राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकदमों के हवाले इसका विरोध किया। परंतु उनके विरोध को दरकिनार करके आधी रात को नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हुई है।
तभी यह मानने में कोई हिचक नहीं है कि राजीव कुमार जो सवाल उठा कर या चिंता जता कर गए हैं उनका कोई समाधान निकट भविष्य में नहीं निकलने वाला है। कम से कम चुनाव आयोग से तो नहीं निकलेगा।