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यात्री अपनी जान की रक्षा खुद करें!

delhi railway station stampedeImage Source: ANI

delhi railway station stampede :  यात्रा करते समय हर व्यक्ति ने कहीं न कहीं यह लाइन पढ़ी होगी कि यात्री अपने सामान की सुरक्षा के जिम्मेदार खुद हैं। अब नए भारत में इसे बदल कर लिखना चाहिए कि यात्री अपनी जान के जिम्मेदार खुद हैं।

कहीं भी जाने के लिए उनको अपनी जान हथेली पर लेकर घर से निकलना है और अगर कहीं भी हथेली से फिसल कर उनकी जान चली जाती है उसके लिए सरकार या व्यवस्था जिम्मेदार नहीं होगी।

महाकुंभ में मौनी अमावस्या की रात को हुई भगदड़ से लेकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे तक का लब्बोलुआब यही है। (delhi railway station stampede)

सरकार और प्रशासन का काम इतना भर है कि वह अंतिम समय तक हादसे से इनकार करे, उससे ध्यान भटकाने की कोशिश करे, हादसे के लिए किसी बलि के बकरे की तलाश करे और अपना हाथ झाड़ कर खड़े हो जाए।

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इसके लिए जिम्मेदार कौन 

बाकी काम मीडिया और सोशल मीडिया के प्रबंधन से हो जाएगा। एक अजीब सी सनक सरकार और प्रशासन में इस बात की दिख रही है वह हजारों, लाखों लोगों की आंखों के सामने घटित हो रहे किसी हादसे से इनकार कर दे। उसे स्वीकार नहीं करे। महाकुंभ में यही हुआ और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी यही हो रहा था।

अंत में जब मजबूरी ही हो जाए और हादसा स्वीकार करना पड़े तो उसके तुरंत बाद यह कोशिश शुरू कर देनी है कि किसको इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। (delhi railway station stampede)

जैसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे के बाद दिल्ली पुलिस ने कहा कि एक नाम वाली दो ट्रेनें एक साथ आ गईं, जिससे हादसा हुआ। रेल मंत्री ने कहा कि किसी ने साजिश के तहत अफवाह फैलाई, उसकी वजह से हादसा हुआ।

इसके बाद रेलवे के एक बड़े अधिकारी ने कहा कि एक व्यक्ति का पैर सीढ़ियों पर फिसल गया था, जिससे वह गिर गया और उसके बाद लोग एक दूसरे पर गिरते चले गए, जिससे यह घटना हो गई। (delhi railway station stampede)

पता नहीं सीढ़ियों पर गिरने वाले उस व्यक्ति की पहचान रेलवे ने की है या नहीं! क्योंकि संभव है कि पहचान होने के बाद उसको हादसे का मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया जाए।

गलती क्यों नहीं स्वीकारी (delhi railway station stampede)

ऐसा महाकुंभ में हुई भगदड़ और बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के मामले में हो चुका है। घटना के कुछ दिन बाद प्रशासन ने इसमें साजिश का पहलू जोड़ा और कहा कि अनेक लोगों की पहचान की गई है, जो संदिग्ध हैं।

उनको पकड़ने के लिए छापे मारे जा रहे हैं। फिर प्रशासन की सुविधा के लिए कई चश्मदीद सामने आ गए, जिन्होंने कहा कि लाल टोपी वाले कुछ लोग आए थे, जिन्होंने सो रहे लोगों को जगा कर भागने के लिए मजबूर किया, जिससे भगदड़ मची।

इसका मकसद सिर्फ यह साबित करना होता है कि सरकार और प्रशासन की कोई गलती नहीं है और उनकी व्यवस्था में कोई कमी नहीं थी। (delhi railway station stampede)

सवाल है कि जब इतनी भीड़ होती है या इतना बड़ा आयोजन होता है तो उसमें अगर कुछ कमी रह गई या गलती हो गई तो उसे क्यों नहीं स्वीकार किया जाना चाहिए?

यह क्या बात हुई मौजूदा निजाम में किसी से कोई गलती ही नहीं होगी? सवाल है कि अगर सरकार कोई गलती स्वीकार ही कर ले या किसी हादसे की जवाबदेही ले ही ले तो क्या हो जाएगा?

खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे भी इंसान हैं और उनसे भी गलतियां होती हैं! फिर रेलवे या महाकुंभ के मेला प्रशासन से कोई गलती क्यों नहीं हो सकती है? (delhi railway station stampede)

हादसा प्रशासन के निकम्मेपन से

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुआ हादसा विशुद्ध रूप से रेलवे प्रशासन के निकम्मेपन और लापरवाही से हुआ। पिछले एक महीने से ज्यादा समय से यह ट्रेंड देखा जा रहा था कि हर सप्ताहांत में दिल्ली के स्टेशनों पर महाकुंभ जाने वाले लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही थी। (delhi railway station stampede)

इसके बावजूद शनिवार और रविवार को भीड़ के प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। दूसरी बात यह है कि, शाम साढ़े सात बजे से ही स्टेशन पर भारी भीड़ जुटने लगी तब भी उसे संभालने की कोई व्यवस्था नहीं की गई।

तीसरे, महाकुंभ के लिए जो विशेष ट्रेनें चलाई गई थीं उनके प्लेटफॉर्म पर आने में देरी हो गई। चौथे, नियमित ट्रेन जो उस समय प्लेटफॉर्म नंबर 13 और 14 पर आने वाली थी उसमें भी देरी हो गई।

पांचवें, बिना सोचे समझे टिकट काउंटर पर हजारों की संख्या में सामान्य टिकट बुक किए जा रहे थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति घंटे डेढ़ हजार टिकट काउंटर पर बुक हो रहे थे। (delhi railway station stampede)

छठे, अचानक एक गाड़ी का प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा कर दी गई। भगदड़ मचने का मुख्य कारण भीड़, अव्यवस्था और रेलवे की अक्षमता है।

हादसे में मरने वाले ज्यादातर लोग कुचल कर नहीं, बल्कि दम घुटने से मरे हैं क्योंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी।

लेकिन इसे स्वीकार करने की बजाय रेलवे की ओर से पूरी बेशर्मी से अपना बचाव किया जा रहा है और बेकसूर यात्रियों पर ही उनकी मुश्किलों और मृत्यु की जिम्मेदारी डाली जा रही है।

144 साल बाद महाकुंभ का संयोग

ऐसा ही महाकुंभ में हुआ था। पहले सरकार की ओर से महीनों प्रचार करके दावा किया गया कि एक सौ करोड़ लोगों के लिए महाकुंभ में व्यवस्था की गई है।

फिर कुछ अखाड़ों और साधु, संतों और ज्योतिषियों की ओर से प्रचारित किया गया कि इस बार महाकुंभ का संयोग 144 साल बाद बना है। (delhi railway station stampede)

लेकिन जब लाखों की संख्या में लोग प्रयागराज पहुंचने लगे तब पता चला कि न तो राजमार्गों पर इतनी संख्या में गाड़ियों को संभालने की कोई व्यवस्था है और न प्रयागराज के अंदर इतनी भीड़ को संभालने की व्यवस्था है।

ऊपर से सबसे पवित्र स्नान यानी मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी पर बने कई पंटून पुल बंद कर दिए गए। लोग जिधऱ से आ रहे थे उधर से ही उनके जाने का रास्ता छोड़ा गया।

इसके बाद कोढ़ में खाज की तरह आधी रात को एक पुलिस अधिकारी लाउडस्पीकर लेकर सोए हुए लोगों को जगा कर कहने लगा कि उसी समय लोग स्नान करें और मेला क्षेत्र छोड़ें।

वह पुलिस अधिकारी यह भी कह रहा था कि भगदड़ मचने वाली है। लेकिन जब भगदड़ मच गई और लोग कुचल कर मर गए तब कई घंटों तक इस मामले को दबाने, छिपाने की कोशिश की गई और उसके बाद कहा जाने लगा कि कुछ बाहर के लोग थे, जिनकी वजह भगदड़ हुई।

मेला प्रशासन में या पुलिस के किसी भी व्यक्ति को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। इसके बाद भी हजारों गाड़ियां और लाखों लोग कई दिन तक सड़कों पर फंसे रहे। (delhi railway station stampede)

लेकिन उसकी भी जिम्मेदारी नहीं तय हुई। इसी बात को जोर शोर से प्रचारित किया गया कि मुख्यमंत्री ने दो अधिकारियों को फटकार लगाई।

अपने रिस्क पर यात्रा करें  (delhi railway station stampede)

महाकुंभ की घटना हो या नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का हादसा हो, असल में यह आम आदमी के प्रति शासन के सोच को प्रकट करने वाली घटनाएं हैं। यह मान लिया गया है कि ऐसे मौकों पर कुछ नहीं किया जा सकता है।

लोग अपने रिस्क पर घर से निकल रहे हैं, अपने रिस्क पर यात्रा कर रहे हैं और अपने रिस्क पर पवित्र स्नान कर रहे हैं। यह भी मान लिया गया है कि लोग भूल ही जाएंगे।

अगर नहीं भूलेंगे तो किसी बाबाजी को आगे करके कहलवा दिया जाएगा कि मौत तो वैसे भी हो रही है, अगर कुंभ में या कुंभ जाने के रास्ते में मरे तो मोक्ष प्राप्त होगा। (delhi railway station stampede)

देश की एक बड़ी आबादी की दिमागी कंडिशनिंग ऐसी कर दी गई है कि वह हर चीज में साजिश देखने लगा है।

सरकार कहे तो वह सहज ही मान लेता है कि कोई हादसा नहीं हुआ और अगर हुआ तो उसके पीछे देश विरोधी, हिंदू विरोधी और मोदी विरोधी ताकतों की साजिश है। (delhi railway station stampede)

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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