मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली नीट की इस साल की परीक्षा सवालों के घेरे में है। सवाल तो पहले से उठ रहे थे लेकिन तब सब कुछ ढका छिपा था। लेकिन अब केंद्र सरकार और परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए को छोड़ कर किसी को इसकी पवित्रता पर यकीन नहीं रह गया है। बिहार, हरियाणा और गुजरात की पुलिस इसमें गड़बड़ी की जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई है और उसका जवाब देना होगा। सात राज्यों की उच्च अदालतों में इससे जुड़ी 41 याचिकाएं लंबित हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में स्थांतरित कराने का प्रयास एनटीए की ओर से किया जा रहा है।
ध्यान रहे नीट की परीक्षा पहले से राजनीतिक विवादों में घिरी रही है। तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने इसके खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पास कराया और कई बार केंद्र सरकार से अपील की है कि इसे खत्म किया जाए। मेडिकल में दाखिले का अधिकार पहले की तरह राज्यों को दिया जाए। वह एक अलग विवाद है। लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि इसके प्रश्नपत्र लीक होने, छात्रों को नकल कराने, छात्रों को परीक्षा पास कराने के लिए संस्थागत रूप से गड़बड़ी करने और चुनिंदा छात्रों की मदद करने का आरोप लगा है। यह सिर्फ प्रश्नपत्र लीक होने या सिर्फ नकल कराने का मामला नहीं है। इस बार की परीक्षा में कई स्तर पर गड़बड़ी हुई है।
सबसे पहली संस्थागत गड़बड़ी यह है कि परीक्षा के लिए आवेदन करने की समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद एक दिन के लिए क्यों विंडो ओपन किया गया? ऐसा नहीं है कि समय सीमा समाप्त होने पर उसे एक दिन बढ़ाया गया। समय सीमा 16 मार्च 2024 को समाप्त हो गई थी और उसके 24 दिन के बाद नौ अप्रैल को अचानक विंडो ओपन कर दिया गया। पहले कहा गया कि उस दिन थोड़े से छात्रों ने आवेदन भरे लेकिन अब पता चल रहा है कि 24 हजार से ज्यादा छात्रों ने उस एक दिन में आवेदन किया। क्या किसी खास परीक्षार्थी या परीक्षार्थियों के समूह को मौका देने के लिए वह विंडो खोला गया था? मीडिया समूह पूछ रहे हैं कि इन 24 हजार छात्रों में से कितने छात्रों ने इस साल की परीक्षा क्वालिफाई की है तो एनटीए की ओर से इसकी जानकारी नहीं दी जा रही है।
दूसरी गड़बड़ी यह है कि बिहार, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक जैसे राज्यों के कुछ चुनिंदा छात्रों ने गुजरात में गोधरा का जय जलाराम स्कूल परीक्षा केंद्र के रूप में क्यों चुना? ज्यादातर छात्रों का परीक्षा केंद्र अपने राज्य की सीमा के अंदर ही होता है फिर कुछ चुनिंदा छात्रों ने गुजरात के गोधरा में एक निश्चित स्कूल को कैसे चुना? क्या गुजरात के इस केंद्र पर कुछ खास बंदोबस्त किया गया था, जिसका फायदा उन छात्रों को मिला, जो वहां परीक्षा देने गए? बताया जा रहा है कि इस परीक्षा केंद्र पर अनेक छात्रों के अभिभावकों ने फिक्सिंग की थी। छात्रों से कहा गया था कि वे अगर सवाल का जवाब नहीं जानते हैं तो उसे छोड़ देंगे। बाद में उनके जवाब भरे जाएंगे। इसका खुलासा होने के बाद गुजरात पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें चार लोग परीक्षा केंद्र से जुड़े हैं और एक स्थानीय कोचिंग का संचालक है। पुलिस को करोड़ों रुपए के लेन देन के सबूत मिले हैं।
इसी तरह की गड़बड़ी बिहार पुलिस ने भी पकड़ी है। बिहार पुलिस झारखंड के हजारीबाग के एक केंद्र की जांच कर रही है। वहां प्रश्नपत्र लीक होने की बात कही जा रही है। उस सेंटर पर आठ छात्रों को 720 में 720 अंक मिले हैं। इसके अलावा कुछ अन्य छात्रों को 716 से 719 तक अंक मिले हैं। कहा जा रहा है कि एक निश्चित परीक्षा केंद्र पर परीक्षा में शामिल हुए छात्रों को परीक्षा से चार घंटे पहले प्रश्नों का सही जवाब याद कराया गया था। इसके लिए भी प्रति छात्र लाखों रुपए के लेन देन की जानकारी मिली है। वहां भी पुलिस जांच कर रही है। अब तो पुलिस ने छात्रों को भी जांच में शामिल होने के लिए बुलाया है।
तीसरी संस्थागत गड़बड़ी यह है कि 1,563 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए, जिसकी वजह से अचानक परफेक्ट स्कोर करने वालों की संख्या बहुत बढ़ गई। आमतौर पर नीट-यूजी की परीक्षा में 720 का परफेक्ट स्कोर किसी को नहीं आता है। अगर कभी आया भी तो दो या तीन छात्रों को इतने अंक मिलते हैं। लेकिन इस साल 67 छात्रों को परफेक्ट 720 मार्क्स मिले हैं। कहा जा रहा है कि अनेक छात्रों को परीक्षा के दिन किसी न किसी कारण से कम समय मिला या उनका समय प्रभावित हुआ इसलिए उनको ग्रेस मार्क्स मिला। हरियाणा के भी कुछ छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिला। लेकिन हरियाणा के जिस परीक्षा केंद्र पर छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिले हैं वहां की प्रिंसिपल का कहना है कि उनके सेंटर पर किसी भी छात्र को कम समय नहीं मिला था और न किसी छात्र का समय प्रभावित हुआ था। ऐसे में क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि उस सेंटर पर कैसे ग्रेस मार्क्स दिए गए? करीब 44 ऐसे छात्र हैं, जिनको ग्रेस मार्क्स देने का कोई ठोस आधार नहीं है। इस बार की परीक्षा में एक चौंकाने वाला ट्रेंड यह भी दिखा है कि उच्च स्कोर लाने वाले छात्रों की संख्या में चार गुने से ज्यादा की बढ़ोतरी हो गई है। एनटीए के अपने आंकड़ों के मुताबिक 620 से 720 अंक लाने वाले छात्रों की संख्या औसतन 13 से 14 हजार के बीच रहती है। पिछले साल 13,291 छात्रों को इतने अंक मिले थे। लेकिन इस साल 620 से 720 अंक लाने वालों की संख्या 60 हजार के करीब पहुंच गई है।
सोचें, कितने तरह की गड़बड़ी है। पहले आवेदन की तारीख बीत जाने के बाद विंडो ओपन करके 24 हजार से ज्यादा आवेदन लेना। फिर चुनिंदा छात्रों का सेंटर उनके गृह राज्य से बाहर गुजरात में एक निश्चित केंद्र पर निर्धारित होना। इसके बाद चुनिंदा छात्रों को ग्रेस मार्क्स देना ताकि उनका ओवरऑल परसेंटेज बहुत बढ़ जाए। टेलीग्राम पर प्रश्नपत्र लीक होना। परीक्षा में धांधली करके बाद में प्रश्नपत्र में सही उत्तर भरना। परीक्षा से पहले छात्रों को सही जवाब याद कराना। इतनी शिकायतें हैं और जब उनका मुद्दा उछलने लगा तो एनटीए ने जांच का जिम्मा अपनी ही संस्था के प्रमुख को सौंप दिया। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो अचानक एनटीए ने कह दिया कि वह ग्रेस मार्क्स हटा कर स्कोरकार्ड जारी करने को तैयार है और जिन छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिले थे उनको फिर से परीक्षा का विकल्प देने को भी तैयार है। इसके लिए 23 जून को परीक्षा की तारीख भी तय कर दी गई।
सवाल है कि अगर किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है और एनटीए में क्लैट की परीक्षा में अपनाए जाने वाले नियम को नीट-यूजी पर लागू किया तो फिर इतनी हड़बड़ी में वह पीछे क्यों हट रही है? वह क्यों नहीं सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले का बचाव कर रही है? यह भी सवाल है कि जब इतनी गड़बड़ियों की सूचना है तो शिक्षा मंत्री ने कैसे इतने भरोसे से कह दिया प्रश्नपत्र लीक नहीं हुआ है? हालांकि बाद में उन्होंने जांच और दोषियों को सजा आदि देने की बात कही लेकिन पहले दिन तो उन्होंने भी इस पूरी प्रक्रिया में शामिल लोगों को क्लीन चिट दे दी। पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखने पर ऐसा लग रहा है कि इसके पीछे कोई गहरी साजिश है। यह किसी एक या दो सेंटर पर किसी लोकल गिरोह का काम नहीं है। इसके पीछे सिर्फ लोकल गिरोह या कोचिंग सेंटर की मिलीभगत की बात करके अगर इसकी अनदेखी की जाती है तो इससे बहुत गलत नजीर बनेगी। डॉक्टर बनने का सपना लिए 24 लाख छात्र इस परीक्षा में शामिल हुए हैं। अगर इसकी पवित्रता नहीं बरकरार रखी जाती है तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा।