मेडिकल में दाखिले के लिए हुई नीट यूजी की 2024 की परीक्षा रद्द नहीं करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार अपनी जीत के तौर पर प्रचारित कर रही है। वह दावा कर रही है कि यह विपक्ष की हार है। तभी भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस करके लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर हमला किया और कहा कि उनको माफी मांगनी चाहिए। असल में राहुल गांधी और समूचे विपक्ष ने 24 लाख छात्रों के भविष्य से जुड़ी इस परीक्षा के आयोजन को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और कई गंभीर आरोप लगाए थे। राहुल गांधी ने लोकसभा में इस पर चर्चा के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री के साथ साथ पूरी सरकार पर आरोप लगाए थे और यहां तक कहा था कि देश में ‘पूरा परीक्षा सिस्टम फ्रॉड’ है। उनकी बातों में कुछ सचाई है लेकिन यह भी सही है कि परीक्षा सिस्टम का फ्रॉड नया नहीं है।
बहरहाल, दोनों पक्षों की बातें कुछ अतिवादी हैं। लेकिन इस पूरे विवाद और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ सबक मिले हैं, जिनको अगर सरकार और परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसियां ठीक तरीके से समझ लें तो परीक्षा की प्रणाली को कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। सबसे पहले तो सरकार को यह स्वीकार करने का जरुरत है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उसकी जीत नहीं हुई है। अगर सरकार यह स्वीकार नही करेगी और फैसले को अपनी जीत मानेगी तो सुधार की सारी संभावनाएं वही खत्म हो जाएगी।
सारी चीजें पहले की तरह ही चलती रहेंगी। यह सही है केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि नीट यूजी की परीक्षा दोबारा नहीं होनी चाहिए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना की पेपर लीक हुआ है और दूसरी गड़बड़ियां हुई हैं। अगर सर्वोच्च अदालत ने बिहार पुलिस और सीबीआई की जांच से मिले सबूतों के आधार पर माना है कि पेपर लीक हुआ है, भले दो ही राज्यों में हुआ हो, तो यह अपने आप में बड़ी बात है। सरकार अगर इससे सबक नहीं लेती है तो प्रतियोगिता और प्रवेश परीक्षाओं में पेपर लीक का सिलसिला बंद नहीं होगा।
सो, सबसे पहले पेपर लीक रोकने के उपाय करने चाहिए। राज्यों की सरकारें पेपर लीक रोकने के कानून बना रही हैं और कठोर सजा के प्रावधान कर रही हैं। लेकिन सबको पता है कि कठोर कानून से अपराध नहीं रूकते हैं। इसलिए कानून बना कर इसे रोकने की बजाय दूसरे संस्थागत उपाय करने की जरुरत है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सरकार ‘एक देश, एक परीक्षा’ के विचार को नहीं छोड़ेगी और जब पूरे देश में एक साथ परीक्षा होगी और एक साथ हजारों परीक्षा केंद्रों पर लाखों छात्र परीक्षा देंगे तो इतने बड़े पैमाने पर आयोजन में गड़बड़ी की संभावना रहेगी।
अगर कहीं एक भी सेंटर पर या एक भी राज्य में पेपर लीक हुआ तो तकनीक के आज के जमाने में उसका पूरे देश में पहुंच जाना कोई बड़ी बात नहीं होगी। दूसरे, सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिन जो बात कही थी वह परीक्षा की पवित्रता को लेकर थी। परीक्षा सिर्फ योग्यता जांचने का पैमाना नहीं है, बल्कि यह लोगों के भरोसे का प्रतीक भी है। लोग बड़े भरोसे और श्रद्धा के साथ अपने बच्चों को इन परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं। उनको लगता है कि स्वतंत्र और निरपेक्ष ढंग से परीक्षा के आयोजन से उनके बच्चों को समानता का अवसर मिलता है। इसलिए परीक्षा की पवित्रता की रक्षा के लिए भी जरूरी है कि पेपर लीक रोका जाए। अगर पेपर लीक नहीं रूका तो इस बार दो राज्यों में हुआ तो अगली बार पेपर चार राज्यों में लीक हो सकता है या एक जगह से लीक होकर चार जगह पहुंच सकता है।
पेपर लीक रोकने के उपाय तो सरकार को विशेषज्ञ ही सुझाएंगे लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो कमियां दिखी हैं उनके आधार पर कुछ उपायों की चर्चा हो रही है। जैसे परीक्षा केंद्रों के चयन में केंद्रीय एजेंसी को वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करना चाहिए। कहीं भी या किसी भी स्कूल को चुन लेना ठीक नहीं है। इसके बाद प्रश्नपत्र सेट करने के लिए विशेषज्ञों का पैनल बनाने और पेपर बैंक बनाने के सुझावों पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। केंद्र सरकार ने परीक्षा के आयोजन के लिए एनटीए का गठन तो कर दिया है लेकिन एनटीए का अपना कोई सेटअप नहीं है। वह सारे काम आउटसोर्स करती है। अगर इसमें किसी बड़ी और प्रतिष्ठित कंपनी को शामिल किया जाए तो उससे भी चीजें ठीक हो सकती हैं। फिर ऐसी स्थिति नहीं आएगी कि नीट यूजी के प्रश्नपत्र निजी कूरियर के जरिए परीक्षा केंद्र पर पहुंचाएं जाएं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर खास तवज्जो दी थी। इसके बाद एक जरूरी उपाय यह है कि कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट यानी सीबीटी के बारे में गंभीरता से विचार हो। इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए ऑफलाइन सीबीटी की व्यवस्था है, जो अपेक्षाकृत ज्यादा सफल है और बेहतर है। दूसरी परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्थाएं अगर कुछ बेहतर उपाय आजमाती हैं तो उनको भी इसमें शामिल करना चाहिए। नीट यूजी के अलावा एनटीए द्वारा जो दूसरी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, उसमें भी इस संस्था का रिकॉर्ड कोई खास अच्छा नहीं है। नीट यूजी में 24 लाख छात्रों का भविष्य दांव पर था तो केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए हुई सीयूईटी की परीक्षा के नतीजे भी अटके हैं, जिससे 14 लाख छात्रों का भविष्य दांव पर है। सो, इस संस्था में आमूलचूल बदलाव की जरुरत है।
अंत में सरकार को परीक्षा की प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल करना चाहिए। आखिर शिक्षा एक समय राज्य सूची की विषय रहा है और अब भी यह समवर्ती सूची में है। अगर इसे फिर से राज्य सूची में नहीं डाला जाता है तो कम से कम राज्यों की सलाह ली जानी चाहिए। ध्यान रहे मेडिकल में दाखिले के लिए केंद्रीकृत परीक्षा यानी नीट यूजी का विरोध अभी तक तमिलनाडु में हो रहा था लेकिन अब पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इसके खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पास कराया है। एमके स्टालिन की तरह ममता बनर्जी की पार्टी भी चाहती है कि मेडिकल दाखिले की परीक्षा राज्य स्तर पर हो। यह सबसे बेहतर तरीका है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार ने नीट यूजी की परीक्षा को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है और वह इसे बदलने के मूड में नहीं है। अगर उसे इस प्रणाली को चलाए रखना है तो राज्यों से सलाह मशविरा करके इसमें जरूरी सुधार करने चाहिए।