प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने 11वें संबोधन में वैसे तो 98 मिनट का भाषण दिया लेकिन बुनियादी रूप से दो उन्होंने दो नीतिगत मुद्दे उठाए। बाकी राजनीतिक भाषण था। नीतिगत मसलों में पहला समान नागरिक संहिता का था और दूसरा एक देश, एक चुनाव का था। इन दोनों नीतिगत मसलों पर भाजपा की सहयोगी पार्टियों को कोई समस्या नहीं है। पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात प्रधानमंत्री मोदी 2014 से कर रहे हैं लेकिन पिछले 10 साल में चुनाव आयोग ने सारे चुनाव एक साथ कराने की कोई पहल नहीं की है। सरकार ने पिछले साल जरूर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई, जिसने सारे चुनाव एक साथ कराने पर विचार किया। समिति ने सभी राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग और विधि आयोग से बात करके अपनी रिपोर्ट तैयार की और सरकार को सौंप दी है।
जहां तक समान नागरिक संहिता की बात है तो वह भारतीय जनता पार्टी के तीन कोर एजेंडे में से एक है। भारतीय जनसंघ के समय से यह एजेंडा चला आ रहा है। नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार ने 2019 के बाद से दो एजेंडे पूरे कर दिए हैं। पहला एजेंडा अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का था, जिसका रास्ता सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ हो गया था। वह मंदिर बन गया और इस साल 22 जनवरी को उसका उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री मोदी ने किया। उससे पहले 2019 में सत्ता में आने के साथ ही सरकार ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला किया था। सो, ये दो मुद्दे निपट चुके हैं और तीसरा मुद्दा समान नागरिक संहिता का है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने लाल किले से किया। उन्होंने कहा कि अब तक देश में सांप्रदायिक नागरिक संहिता थी और अब देश को सेकुलर नागरिक संहिता की जरुरत है।
प्रधानमंत्री के इस भाषण के बाद से यह सवाल पूछा जा रहा है कि जिन दो बड़ी पार्टियों के समर्थन से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है उनका इस पर क्या रुख होगा? जानकार सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियों का रुख सरकार के साथ सहमति का होगा। बिहार में सरकार चला रही जनता दल यू ने पहले ही विधि आयोग के सामने अपना रुख स्पष्ट किया हुआ है। जदयू ने कहा है कि वह समान नागरिक संहिता के समर्थन में है। उसने सिर्फ यह शर्त रखी है कि इसे सहमति से पास कराया जाए। सहमति का मतलब विपक्षी पार्टियों के साथ या संबंधित पक्षों के साथ नहीं, बल्कि सहयोगी पार्टियों के बीच सहमति से है। टीडीपी को भी समान नागरिक संहिता से कोई समस्या नहीं है। उसे भी सहमति बनवानी है और उस सहमति के बदले राज्य के लिए कुछ अतिरिक्त मदद चाहिए होगी। नीतिगत रूप से उसका इस कानून से कोई विरोध नहीं है। इसलिए यह लगभग तय है कि यह कानून पास होगा। अगर किसी वजह से कानून पास नहीं होता है और इस मसले पर सरकार गिरती है तो ज्यादा जोड़ तोड़ करने की बजाय मोदी मध्यावधि चुनाव के लिए जा सकते हैं, जिसमें भाजपा को उसका फायदा हो सकता है।