ममता बनर्जी मुख्यमंत्री के रूप में अपने सबसे मुश्किल समय से गुजर रही हैं तो उनकी 13 साल पुरानी सरकार सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है। अब तक उनकी सरकार के सामने जो संकट आते थे उन्हें वे अवसर में बदल लेती थीं। इसी तरह उन्होंने लेफ्ट, कांग्रेस और भाजपा की ओर से खड़े किए गए संकटों का सामना किया। लेकिन यह संकट दूसरी तरह का है। राधागोविंद कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसके बाद जघन्य हत्या और फिर उस पर लीपापोती की कोशिशों ने उनकी सरकार के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। वे दीदी कही जाती हैं लेकिन उन्हें दीदी कहने वाली बंगाल की बहनें सबसे ज्यादा गुस्से में हैं। उन्होंने बेटी बन कर पिछली बार वोट मांगा था लेकिन बंगाल की बेटियां उनसे सवाल पूछ रही हैं। उनकी मां, माटी और मानुष की अवधारणा संकट में है। महिलाएं और नौजवान पूछ रहे हैं कि ममता के राज में क्यों महिलाएं इतनी असुरक्षित हैं? अस्पताल के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं। वे प्लेकार्ड लेकर बैठे हैं, जिस पर लिखा है कि ‘बेटी पढ़ गई लेकिन बच नहीं सकी’। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ नारे पर भी तंज है।
बंगाल की महिलाओं के सवाल अब देश की महिलाओं के सवाल बन गए हैं। बिहार से लेकर राजस्थान और महाराष्ट्र से लेकर राजधानी दिल्ली तक दो साल की मासूम बच्चियों से लेकर 70 साल तक की बूढ़ी, बुजुर्ग महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। यौन हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कानून लागू होने के बाद भी समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा में कमी आने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। यह केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों के इकबाल के सामने चुनौती है। लोग गुस्से में हैं और कह रहे हैं कि सरकारें उनको आजमाना बंद करें। अगर ऐसे जघन्य अपराध के मामले में लोगों के सड़क पर उतरे बगैर कार्रवाई नहीं होती है तो उस कानून और सरकार का क्या मतलब रह जाता है? पश्चिम बंगाल के कोलकाता और बिहार के मुजफ्फरपुर की घटनाएं एक समाज और इंसान के नाते भी हमारे विफल हो जाने का सबूत है। सोचें, यह कितनी बड़ी विफलता है कि समाज जिन महिलाओं को सेक्स वर्कर कहता है वे सड़क पर उतर कर मर्दों से अपील कर रही हैं कि वे बच्चियों और महिलाओं को बख्श दें और अगर यौन इच्छा इतनी ही तीव्र है तो उनके पास आएं!
बहरहाल, ऐसे शर्मनाक समय में ममता बनर्जी की परीक्षा होनी थी। वे देश की इकलौती महिला मुख्यमंत्री हैं। उनको जूनियर डॉक्टर के साथ हुई घटना को एक मिसाल बनानी चाहिए थी ताकि कोई राक्षस फिर इस तरह की घटना को अंजाम देने का बारे में सोचे भी नहीं। लेकिन उन्होंने, उनकी पुलिस, उनके प्रशासन और उनके पाले हुए गुंडों ने क्या किया? सबने मिल कर मामले को रफा दफा करने के प्रयास किए। यह कितनी हैरानी की बात है कि राधागोविंद कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के जिस प्रिसिंपल ने इस जघन्य घटना को खुदकुशी का नाम दिया और सबूत नष्ट करने के सारे बंदोबस्त किए उसके खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय उसे दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया? ममता सरकार के सिर्फ इस एक कदम से साबित हुआ कि वे कोई जिम्मेदार या संवेदनशील सरकार नहीं चला रही हैं, बल्कि एक गिरोह चला रही हैं, जिसका सत्ता पर कब्जा है। यह वाम मोर्चे के बेहद लम्बे कार्यकाल से किसी तरह अलग नहीं है। इस सरकार में भी पार्टी के नेता और कैडर ही सब कुछ हैं। वे राज्य के 10 करोड़ से ज्यादा नागरिकों के साथ कुछ भी कर सकते हैं। ममता ने यह धारणा बनवाई हुई है कि उनके नेता और कार्यकर्ता कुछ भी करेंगे तो पार्टी और सरकार उनका बचाव करेगी। ममता की सरकार के सामने आए इस संकट की बुनियाद में यही बात है।
तभी यह सवाल है कि आखिर उस प्रिंसिपल संदीप घोष में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से राज्य सरकार का सारा सिस्टम उसके आगे नत मस्तक हो जाता है? सीबीआई चार दिन से डॉक्टर घोष से पूछताछ कर रही है और इस बीच डॉक्टर घोष को लेकर एक के बाद एक कहानियां सामने आ रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. संदीप घोष की जगह 31 मई, 2023 को पश्चिम बंगाल सरकार ने डॉ. सनथ घोष को राधागोविंद कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल का नया प्रिंसिपल बनाने का आदेश जारी किया था। लेकिन, डॉ. संदीप के बुलाए गुंडों ने प्रिंसिपल केबिन के बाहर ताला लगा दिया और डॉ. सनथ कुर्सी पर नहीं बैठ पाए। इसके बाद 20 घंटे में आदेश को पलट दिया गया। इसी तरह 11 सितंबर, 2023 को डॉ. मानस कुमार बंदोपाध्याय को प्रिंसिपल बनाया गया लेकिन वे भी चार्ज नहीं ले सके और नौ अक्टूबर, 2023 को सरकारी आदेश से घोष फिर बहाल हो गए। इस महीने नौ अगस्त को इतनी बड़ी घटना के बाद भी डॉक्टर घोष के इस्तीफा देते ही उनको दूसरे कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया। वह तो भला हो हाई कोर्ट ने जिसने उसको घर बैठाया और अब सीबीआई पूछताछ कर रही है।
यह इस बात का सबूत है कि ममता ने ऐसा ही सिस्टम बनाया है, जिसमें कोई शेख शाहजहां और कोई संदीप घोष मनमानी करने के लिए अधिकृत होता है। वह ममता की पार्टी को वोट दिलाता है और बदले में उसके सारे गुनाह माफ किए जाते हैं। वह सत्ता और पार्टी की ताकत से आम लोगों पर अत्याचार करता है। महिलाओं पर जुल्म करता है और घिर जाने पर स्वंय ममता बनर्जी उसके बचाव में उतर जाती हैं। यह शर्मनाक है। यह कोई तर्क नहीं है कि जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार करने और उसकी जघन्य हत्या करने का मुख्य आरोपी दूसरे ही दिन गिरफ्तार हो गया इसलिए ममता बनर्जी को निशाना नहीं बनाना चाहिए। वह गिरफ्तारी आंख में धूल झोंकने वाली है। क्योंकि घटना के दिन ही इस जघन्य अपराध को आत्महत्या साबित करने की कोशिश शुरू हो गई। एक हफ्ते तक राज्य की पुलिस अस्वाभाविक मौत का मुकदमा नहीं दर्ज कर सकी। घटनास्थल पर लोगों को बेरोकटोक आने जाने दिया गया। एक या अनेक नरपिशाचों का शिकार बनी जूनियर डॉक्टर की डायरी के पन्ने फाड़ कर गायब कर दिए गए। प्रिंसिपल के फोन से कॉल रिकॉर्ड डिलीट कर दिया गया। और बचा खुचा काम हजारों लोगों की भीड़ ने अस्पताल पर हमला करके पूरा कर दिया। अब सीबीआई भी सबूत और गवाहों के लिए भटक रही है।
सुदूर संदेशखाली के गांव से लेकर राजधानी कोलकाता के मेडिकल कॉलेज तक महिलाओं के साथ होने वाली ज्यादतियों का जवाब ममता बनर्जी को देना होगा। वे सड़क पर प्रदर्शन करके या अपनी महिला सांसदों, विधायकों को आगे करके लोगों के गुस्से को ठंडा नहीं कर सकती हैं। आखिर 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड के समय भी महिला मुख्यमंत्री थीं। शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री के खिलाफ जब लोगों का गुस्सा भड़का तो उसका नतीजा अगले साल 2013 के विधानसभा चुनाव में क्या हुआ वह सबने देखा। कांग्रेस तो हारी ही खुद शीला दीक्षित भी चुनाव हारीं। ऐसा तब हुआ, जब किसी ने शीला दीक्षित पर अपराधियों से मिलीभगत का आरोप नहीं लगाया था। कोलकाता में तो पूरी सरकार कठघरे में है। इस तर्क से ममता सरकार का बचाव नहीं किया जा सकता है कि वे 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देती हैं या संदेशखाली की घटना के बाद भी लोकसभा का चुनाव जीत गई थीं। यह बेहद अश्लील तर्क है। चुनावी जीत के आधार पर किसी बर्बर घटना को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। ममता की पार्टी यही गलती कर रही है, जिसका खामियाजा उनको निश्चित रूप से भुगतना पड़ेगा।