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महाराष्ट्र आसान नहीं है

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हरियाणा ने हवा बदल दी है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कहा जा रहा था कि चार राज्यों का विधानसभा चुनाव डन डील है। यानी चारों राज्यों में भाजपा हारेगी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ‘इंडिया’ की जीत होगी। हर राजनीतिक विश्लेषक और चुनाव रणनीतिकार दावा कर रहा था। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता भी यही मान रहे थे। जम्मू कश्मीर व हरियाणा के मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के नतीजे भी इसी भावना के अनुरूप थे। लेकिन नतीजों ने सब कुछ बदल दिया। हरियाणा में तमाम अनुमानों के उलट भाजपा ने बहुत बड़ी जीत दर्ज की। उसके वोट प्रतिशत में 2014 के मुकाबले सात फीसदी और 2019 के मुकाबले करीब चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई और उसने 2014 से भी ज्यादा सीटें जीतीं। जम्मू कश्मीर में नतीजा भाजपा के मनमाफिक नहीं रहा लेकिन उसका वोट शेयर और सीटें दोनों में बढ़ोतरी हुई।

इन दोनों नतीजों के बाद भाजपा को लेकर सारी धारणा बदल गई है। हरियाणा में भाजपा ने दिखाया है कि नतीजे लोकप्रिय अनुमानों के अनुरूप आएं, ऐसा जरूरी नहीं है। आखिरी सांस तक लड़ कर और सारे दांवपेंच आजमा कर चुनाव जीता जा सकता है। इसके लिए ‘स्ट्रेटेजिक’ और ‘टैक्टिकल’ दोनों उपाय आजमाने की जरुरत होती है, जो हरियाणा और जम्मू कश्मीर में भाजपा ने आजमाए। तभी अब महाराष्ट्र और झारखंड का चुनाव पूरी तरह से खुल गया है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में जिस तरह से कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी ने प्रदर्शन किया उससे लग रहा था कि विधानसभा चुनाव में मुकाबला एकतरफा होगा।

इसी तरह झारखंड में भी जैसे भाजपा की सीटें कम हुईं और वह आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी सीटें हार गई उससे भी यह धारणा बनी कि सत्तारूढ़ जेएमएम, कांग्रेस और राजद गठबंधन के लिए मुकाबला बहुत आसान होगा। लेकिन चुनाव की घोषणा तक आते आते दोनों राज्यों में यह धारणा बदल गई है। अब कहीं भी एकतरफा मुकाबले की बात नहीं हो रही है। यहां तक कि चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले सोमवार, 14 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं के साथ बैठक की तो राहुल ने प्रदेश के नेताओं से एक ही बात कही कि, देखिएगा कहीं महाराष्ट्र हरियाणा न हो जाए।

सोचें, इस जुमले पर। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जुमला बोला था। उन्होंने कहा था कि हरियाणा कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश होने जा रहा है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस जीत के इतने भरोसे में थी कि चुनाव लड़ने की बजाय कमलनाथ शपथ ग्रहण की तैयारियां कर रहे थे और वहां भाजपा दो तिहाई बहुमत से जीती। उसी तरह हरियाणा में चुनाव लड़ने की बजाय भूपेंद्र सिंह हुड्डा शपथ की तैयारी कर रहे थे और भाजपा पिछले दो चुनावों से ज्यादा वोट और सीटों के साथ चुनाव जीत गई। अब राहुल गांधी को चिंता है कि महाराष्ट्र कहीं हरियाणा न हो जाए। यानी जैसे हरियाणा मध्य प्रदेश हुआ वैसे ही महाराष्ट्र हरियाणा भी हो सकता है। यह चिंता अनायास नहीं है, हरियाणा और जम्मू कश्मीर के नतीजों के बाद यह चिंता वास्तविक हो गई है।

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के पार्टी के गठबंधन यानी महा विकास आघाड़ी को 48 में से 31 सीटें मिलीं और भाजपा का गठबंधन महायुति 17 सीटों पर सिमट गया। यह स्पष्ट रूप से महा विकास अघाड़ी के एडवांटेज की तस्वीर है। लेकिन वोट प्रतिशत में नजदीकी मुकाबला है। भाजपा गठबंधन को करीब 41 फीसदी और कांग्रेस गठबंधन को करीब 44 फीसदी वोट मिले हैं। यानी तीन फीसदी वोट का अंतर है। इसमें भी भाजपा अपना 26 फीसदी के आसपास का वोट बचाए रखने में कामयाब रही है। ध्यान रहे 2014 से अभी तक के पांच चुनावों में चाहे वह शिव सेना के साथ लड़ी या उससे अलग लड़ी, उसको हर बार 25 से 27 फीसदी वोट मिले।

शिव सेना टूटने के बाद जो पहला चुनाव हुआ यानी 2024 का लोकसभा चुनाव उसमें उद्धव ठाकरे की शिव सेना 21 सीटों पर लड़ी और नौ सीट जीती। उसको 16.52 फीसदी वोट मिले। दूसरी ओर एकनाथ शिंदे की शिव सेना 15 सीटों पर लड़ी और सात पर जीती। उसे 13 फीसदी वोट मिले। यानी शिंदे की शिव सेना का स्ट्राइक रेट बेहतर रहा। शिव सैनिकों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। हो सकता है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए शिव सैनिक उनके साथ गए हों और विधानसभा में उनका मतदान व्यवहार अलग हो। लेकिन कम से कम लोकसभा चुनाव के आंकड़ों से तो नहीं लग रहा है कि शिंदे की शिव सेना बहुत कमजोर है। महायुति की कमजोर कड़ी अजित पवार की पार्टी है।

स्थायी वोट प्रतिशत के अलावा अगर दूसरे पहलुओं को देखें तो लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद महायुति की सरकार ने जितने उपाय किए हैं उनसे भी मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना बढ़ गई है। राज्य सरकार ने महिलाओं को लड़की बहिन योजना के तहत डेढ़ हजार रुपया हर महीना देना शुरू किया है। यह बहुत महत्वाकांक्षी योजना है, जो कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक में सफल साबित हुई है। इस पर राज्य सरकार का हर साल 46 हजार करोड़ रुपया खर्च होना है।

इसके अलावा राज्य सरकार ने लाड़ला भाई योजना शुरू की है, जिसके तहत 12वीं पास युवाओं को छह हजार रुपए, डिप्लोमा धारी युवाओं को आठ हजार और डिग्रीधारी युवाओं को 10 हजार रुपए महीने की मदद दी जाएगी। इस तरह महिला और युवा दो समूहों को साधने का प्रयास हुआ है। इस बीच केंद्र सरकार ने एकीकृत पेंशन व्यवस्था और आयुष्मान भारत योजना में 70 साल से ऊपर से बुजुर्गों को पांच लाख के मुफ्त इलाज की घोषणा करके सरकारी कर्मचारियों और बुजुर्गों को साधने का प्रयास किया है। राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ी जातियों के लिए दो दांव चले हैं। पहला तो यह है कि उसने केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी है कि क्रीमी लेयर की सीमा आठ लाख रुपए सालाना से बढ़ा कर 15 लाख किया जाए। दूसरा, उसने सात जातियों को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भी भेजा है।

लोकसभा चुनाव में तीन प्रतिशत वोट की बढ़त के साथ अगर महा विकास अघाड़ी यानी कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे के गठबंधन की बात करें तो उनकी स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है। इसका एक कारण तो यह है कि मराठा आरक्षण और ओबीसी का विवाद राज्य सरकार ठीक तरीके से हैंडल नहीं कर सकी। मनोज जरांगे पाटिल मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। राज्य सरकार ने धनगर और आदिवासी मुद्दे को भी ठीक से नहीं हैंडल किया, जिससे दोनों समुदाय नाराज हैं। किसान आंदोलन के समय से ही किसान और मराठा दोनों भाजपा से नाराज हैं और वह नाराजगी लोकसभा चुनाव में दिखी भी।

इसके अलावा महाराष्ट्र से बड़ी परियोजनाओं को गुजरात ले जाने से जो विवाद हुआ है और मराठा अस्मिता का मामला जिस तरह से भड़का है वह भी सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चुनौती है। ये दोनों चीजें महा विकास अघाड़ी को चुनावी फायदा पहुंचा सकती हैं। तीसरी बात जो महाविकास अघाड़ी के लिए फायदे वाली हो सकती है वह उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति का भाव है।

यह आम धारणा है कि भाजपा ने दोनों पार्टी तोड़ने में भूमिका निभाई। इससे उद्धव के प्रति सहानुभूति से हिंदू वोटों का तो शरद पवार के प्रति सहानुभूति से मराठा वोटों की गोलबंदी हो सकती है। इसी तरह कांग्रेस की वजह से अघाड़ी के पक्ष में मुस्लिम वोटों की गोलबंदी हो सकती है। हालांकि कांग्रेस और शरद पवार के साथ जाने से उद्धव ठाकरे की कट्टर हिंदू नेता वाली छवि प्रभावित हुई है और उनको मुस्लिमपरस्त बताने का अभियान भी चल रहा है। ऊपर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का मामला भी अटका है।

इनके अलावा महाराष्ट्र में दलित वोट बहुत निर्णायक होगा, जिसको बिखरा देने के प्रयास चालू हो गए हैं। वंचित बहुजन अघाड़ी के प्रकाश अंबेडकर और किसान नेता राजू शेट्टी मिल कर तीसरा मोर्चा बना रहे हैं। इस बीच महायुति के दलित नेता रामदास अठावले ने अपनी आरपीआई को प्रकाश अंबेडकर की पार्टी में मिला देने की बात करके अलग दांव चला है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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