लोकसभा चुनाव 2024 समापन की ओर बढ़ रहा है। चार चरण में दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर मतदान हो चुका है। आखिरी तीन चरण में अब 163 सीटों पर मतदान होगा। इनमें से ज्यादातर सीटें उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की हैं। ओडिशा, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की भी सीटें हैं और इनके साथ ही हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे उत्तर भारत के राज्यों की भी सीटें हैं। बचे हुए तीन चरण में हिंदी हृदय प्रदेश की ज्यादा सीटों पर मतदान होना है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी सीट है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भी सीट है। सवाल है कि चार चरण के बाद चुनाव कहां पहुंचा है और अगले तीन चरणों का चुनाव कैसा होगा?
यह सवाल इसलिए है क्योंकि पहले चरण के मतदान के बाद से ही चुनाव प्रचार में बदलाव आ रहा है। चुनाव पता नहीं बदल रहा है या नहीं लेकिन प्रचार का तरीका और प्रचार के मुद्दे बदल रहे हैं। चुनाव का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण कराने का प्रयास उत्तरोत्तर तेज होता जा रहा है। हालांकि इसका कितना असर मतदान पर हो रहा है, यह नहीं कहा जा सकता है।
कह सकते हैं कि चार चरण के मतदान के बाद चुनाव बिल्कुल संतुलन की स्थिति में है। भाजपा नेता अमित शाह भले दावा कर रहे हैं कि पहले चार चरण की 383 में से उनकी पार्टी 270 सीटों पर जीत चुकी है लेकिन हकीकत का पता उनको भी होगा ही। अब तक हुए मतदान में कोई भी संकेत ऐसा नहीं मिला है, जिससे लगे कि भाजपा की आंधी चल रही है और वह चार चरण में ही बहुमत के करीब पहुंच गई है। यह जरूर है कि देश के ज्यादातर हिस्सों में ऐसा संकेत भी नहीं मिला है कि लोग नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और भाजपा से नाराज हैं और उसको हरवाना चाहते हैं। वे भाजपा को हरवाना नहीं चाहते हैं और न उसे जिताने के जोश में मतदान कर रहे हैं। चार चरण बीतते बीतते यह भी स्पष्ट हो गया है कि मतदान का प्रतिशत बहुत कम नहीं रहने वाला है। चार चरण में औसत मतदान पिछली बार के लगभग बराबर पहुंच गया है और ऐसा हर चरण में बढ़ते मतदान की वजह से हुआ है।
पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 67.40 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि लोकसभा चुनाव 2024 के चौथे चरण में 67.79 फीसदी मतदान हुआ। पहले चरण में 66.14, दूसरे चरण में 66.71 और तीसरे चरण में 65.68 फीसदी मतदान हुआ। इस तरह चार चरण के मतदान का औसत 66.58 फीसदी है, जो पिछली बार के मुकाबले सिर्फ 0.82 फीसदी कम है। हो सकता है कि अगले तीन चरण में यह अंतर भी समाप्त हो जाए। इसका मतलब है कि पिछली बार जितना मतदान हुआ था, इस बार भी उतना मतदान हो जाएगा। बिना लहर के किसी चुनाव में इतना मतदान भी अच्छा माना जाएगा। ध्यान रहे आमतौर पर मतदान प्रतिशत में बड़ा उछाल तभी आता है, जब चुनाव से पहले कोई बड़ा घटनाक्रम हो या तो कोई बड़ा मुद्दा हो या कोई बड़ा चेहरा हो या पहले मतदान का प्रतिशत बहुत कम रहा हो।
हाल के दिनों में 2014 के चुनाव में ऐसा हुआ था। बड़ा घटनाक्रम यह था कि पूरा देश इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन से खदबदाया हुआ था और कांग्रेस को हराने की लोगों में प्रबल इच्छा दिख रही थी। दूसरे, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ है कि 2009 के मुकाबले छह फीसदी ज्यादा मतदान हुआ। 2009 में 58.21 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि 2014 में यह बढ़ कर 66.44 फीसदी हो गया। इसके अगले चुनाव में इसमें ज्यादा बदलाव नहीं आया। पुलवामा कांड और सर्जिकल स्ट्राइक के हल्ले के बावजूद मतदान में एक फीसदी से भी कम का इजाफा हुआ। लेकिन भाजपा के अपने वोट में छह फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हो गई। अब 2024 में न कोई बड़ा घटनाक्रम है और न कोई नया चेहरा है। फिर भी 67 फीसदी के करीब मतदान हो रहा है तो यह मामूली बात नहीं है। ऐसे बिना लहर के चुनाव में मतदान प्रतिशत कम भी हो सकता था, जैसा 2004 में हुआ था। 2004 में 58.07 फीसदी मतदान हुआ था, जो 1999 के 60 फीसदी के मुकाबले 1.93 फीसदी कम था।
बहरहाल, कोई लहर नहीं होने के बावजूद देश में पिछली बार के बराबर ही मतदान हो रहा है। इसका क्या मतलब निकाला जाए? चार चरण के मतदान के बाद एक बात बहुत स्पष्ट है कि इस बार किसी केंद्रीय मुद्दे पर मतदान नहीं हो रहा है। पूरा चुनाव उम्मीदवार केंद्रित हो गया है, जातीय गणित सबसे अहम हो गया है और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देकर लोग मतदान कर रहे हैं। इसी वजह से विपक्षी गठबंधन की पार्टियों की उम्मीदें बढ़ी हुई हैं। इसी वजह से विपक्ष के नेता दावा कर रहे हैं कि भाजपा दो सौ की संख्या नहीं पार करेगी तो कोई कह रहा है कि 230 तक भाजपा नहीं पहुंच पाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उम्मीदवार, जाति और स्थानीय मुद्दों पर चुनाव होने का नुकसान भाजपा को हो सकता है क्योंकि ज्यादातर जगहों पर वह पहले से जीती हुई है और स्थानीय स्तर पर उसके सांसदों या उम्मीदवारों से लोगों की नाराजगी हो सकती है। लेकिन नतीजों का फैसला इस आधार पर होगा कि नाराजगी कितनी तीव्र है और क्या सचमुच लोग प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा देखे बगैर बिल्कुल स्थानीय स्तर पर मतदान कर रहे हैं?
कह सकते हैं कि चार चरण के मतदान के बाद चुनाव संतुलन की स्थिति में दिख रहा है और अगले तीन चरण से पता चलेगा कि किसकी पलड़ा भारी होता है। ध्यान रहे अगले तीन चरण की ज्यादातर सीटें भाजपा की हैं और चुनाव ऐसे इलाके में है, जहां भावनात्मक मुद्दे भी काम करते हैं और लोगों की राजनीति में दिलचस्पी भी रहती है। यहां तक आते आते भाजपा चुनाव को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ला चुकी है। हर तरफ हिंदू मुस्लिम की बात है। सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए तीन सौ शरणार्थियों को नागरिकता दे दी गई है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने का नैरेटिव भी बन गया है। लेकिन इसी अनुपात में जाति का मुद्दा भी बना है और साथ ही आरक्षण, संविधान और लोकतंत्र बचाने का विमर्श भी चर्चा में आ गया है।