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झारखंड में भाजपा भावना के भरोसे

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भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में तमाम अनुमानों के उलट कांग्रेस को हरा दिया। लेकिन जम्मू कश्मीर में वह नेशनल कॉन्फ्रेंस को नहीं हरा पाई। हालांकि वहां भी जम्मू क्षेत्र में, जहां कांग्रेस ज्यादा सीटों पर लड़ रही थी वहां कांग्रेस को हरा दिया। इससे मोटे तौर पर इस निष्कर्ष की पुष्टि होती है कि भाजपा, जहां कांग्रेस को बड़ी सहजता से हरा देती है वहीं प्रादेशिक पार्टियों के साथ उसका मुकाबला हमेशा कांटे का बन जाता है। तभी यह सवाल है कि क्या वह झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को हरा पाएगी?

पिछले चुनाव में यानी 2019 में आमने सामने की लड़ाई में जेएमएम ने भाजपा को निर्णायक रूप से हराया था। उसके बाद पांच साल तक भाजपा ऐसे पस्त पड़ी रही कि एक बार भी नहीं लगा कि वह जेएमएम का मुकाबला कर पाएगी। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी के नाते भाजपा ने कोई जन आंदोलन नहीं खड़ा किया और न किसी भी मुद्दे पर राज्य सरकार को परेशान कर पाई। इसके उलट राज्य सरकार ने जो चाहा सो किया। यहां तक कि करीब चार साल तक भाजपा विधायक दल के नेता रहे बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया। अंत में थक हार कर भाजपा ने मरांडी को हटा कर प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया।

भाजपा के नेता पूरे पांच साल बतौर विपक्ष जनता के मुद्दे उठाने और सरकार को जवाबदेह बनाने की बजाय हेमंत सोरेन की सरकार गिराने के प्रयास में लगे रहे। भाजपा ने जितने प्रयास किए और जितनी बार उसे नाकामी मिले, उससे हेमंत की स्थिति और मजबूत हुई। अंत में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी ने आदिवासी वोटों में भाजपा को अछूत बना दिया। लोकसभा के चुनाव नतीजों में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। भाजपा राज्य की आदिवासी आरक्षित सभी पांच सीटों पर हार गई। आदिवासी बहुल झारखंड से उसका एक भी आदिवासी सांसद नहीं है।

सो, पांच साल के घटनाक्रम का लब्बोलुआब यह था कि भाजपा कहीं लड़ाई में नहीं है और जेएमएम का गठबंधन बहुत आसानी से इस बार भी विधानसभा चुनाव जीत जाएगा। लेकिन जून में हेमंत सोरेन के जेल से निकलने, चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाने, चम्पई के पार्टी छोड़ने और भाजपा के चुनाव प्रभारियों और अन्य नेताओं की ओर से ‘रोटी, बेटी और माटी’ का भावनात्मक मुद्दा बनाने से राज्य की राजनीतिक तस्वीर बदल गई है।

सबसे पहले आंकड़ों की नजर से देखें तो भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन यानी एनडीए जेएमएम गठबंधन यानी ‘इंडिया’ से काफी आगे है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि इस बार चुनाव में भी आंकड़े ऐसे ही रहें लेकिन इनसे एक आरंभिक तस्वीर बनती है। इस साल के लोकसभा चुनाव में एनडीए को तीन सीटों का नुकसान हुआ और उसका वोट करीब नौ फीसदी कम हुआ। फिर भी उसको 47 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला, जबकि जेएमएम गठबंधन को 39 फीसदी वोट मिला। यानी दोनों के वोट में आठ फीसदी का अंतर रहा। जहां तक 2019 के विधानसभा चुनाव की बात है तो उस समय भाजपा को 33.37 फीसदी वोट मिले थे, जबकि जेएमएम गठबंधन को 35.35 फीसदी वोट मिले थे।

यानी जेएमएम दो फीसदी वोट से आगे थी। परंतु उस चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी को 5.45 फीसदी और सुदेश महतो की पार्टी को 8.10 फीसदी वोट मिला था। अगर इन दोनों का वोट भाजपा के साथ जोड़ें तो वह 48 फीसदी से ऊपर चला जाता है। लोकसभा चुनाव में यही हुआ। ये दोनों नेता भाजपा के साथ आ गए तो भाजपा को 47 फीसदी से ज्यादा वोट मिल गए। सो, सिर्फ आंकड़ों के सरल गणित से देखें तो बाबूलाल मरांडी के अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर देने और सुदेश महतो के गठबंधन में आ जाने से एनडीए को बढ़त है। लेकिन राजनीति अंकगणित नहीं है। वह कैलकुलस की तरह है, जिसमें कई फैक्टर्स और वैरिएबल्स होते हैं।

आंकड़ों की गणित को विफल करने के लिए हेमंत सोरेन ने सरकार में होने का फायदा उठाया। उन्होंने अलग अलग समूहों को प्रभावित करने वाले अनेक लोक लुभावन कार्यक्रम शुरू किए। हेमंत सरकार ने ऐन चुनाव से पहले मइया सम्मान योजना शुरू की और महिलाओं को एक हजार रुपए महीना देना शुरू किया। चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले सोमवार, 14 अक्टूबर को इस राशि को बढ़ा कर ढाई हजार कर देने का फैसला हुआ। कहा गया है कि दिसंबर से सरकार हर महिला को ढाई हजार रुपए महीना देगी। उन्होंने इससे पहले राज्य के वकीलों को 14 हजार रुपए पेंशन देने की योजना को मंजूरी दी।

निजी स्कूलों के छात्रों को भी सावित्री बाई फूले योजना का लाभ देना शुरू किया। पूर्व मुख्यमंत्रियों, पूर्व मंत्रियों और दर्जा प्राप्त मंत्रियों के निजी सहायकों का वेतन बढ़ाया। सहायक पुलिसकर्मियों का मानदेय बढ़ाया, उनके भत्तों में बढ़ोतरी की और बीमा राशि में बढ़ोतरी की। जल जीवन मिशन के तहत काम करने वाले जल सहिया लोगों के वेतन को दोगुना कर दिया। इस तरह के अनगिनत लोक लुभावन फैसले हैं, जिनके जरिए हेमंत सरकार ने अलग अलग समूहों को साधने का प्रयास किया।

सरकार के स्तर पर किए गए कार्यों के अलावा जेएमएम, कांग्रेस और राजद का गठबंधन राजनीतिक रूप से भी बहुत मजबूत है। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन एक नई नेता के तौर पर उभरी हैं, जिनसे महिलाओं में जेएमएम की स्वीकार्यता बढ़ सकती है। सत्तारूढ़ गठबंधन के पास आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई का एक मजबूत वोट आधार बना है, जिससे दक्षिणी छोटानागपुर, कोल्हान और संथालपरगना के तीन प्रमंडलों में उसकी स्थिति बहुत अच्छी है। करीब 50 सीटें इन तीन प्रमंडलों में आती हैं। पिछली बार जेएमएम गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। वह छह सीटों पर लड़ कर सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। ध्यान रहे बिहार से उलट झारखंड में यादव भाजपा को वोट देते हैं। अगर यादव वोट में राजद कुछ सेंध लगा पाए तो ‘इंडिया’ ब्लॉक के वोट में कुछ इजाफा हो सकता है।

इसके बरक्स भाजपा के पास अपना एक पारंपरिक वोट है, जिसमें पिछड़ी जातियां हैं, सवर्ण हैं और बाहरी यानी बिहारी लोग शामिल हैं। एक बड़ा वोट सदान यानी महतो लोगों का है, जो बुनियादी रूप से जेएमएम और आजसू के साथ जाता है। इस बार भाजपा ने आजसू के साथ तालमेल कर लिया है। इस वोट में जयराम महतो के रूप में एक नई ताकत का उदय हुआ है, जिसका टैक्टिकल इस्तेमाल भाजपा कर सकती है। वह जयराम महतो के जरिए जेएमएम के सदान वोट में सेंध लगा सकती है। हालांकि कुड़मी महतो को आदिवासी का दर्जा देने का आंदोलन और सरना कोड का मामला जमीनी स्तर पर क्या असर डालता है यह देखने वाली बात होगी। बहरहाल, कोल्हान इलाके में जेएमएम को कमजोर करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन को भाजपा में शामिल कराया गया है।

कोल्हान में उनके सम्मान का मुद्दा बना है। इसी इलाके के बड़े नेता मधु कोड़ा और गीता कोड़ा पहले ही भाजपा से जुड़ गए हैं। भाजपा को पता है कि आदिवासी उससे नाराज हैं फिर भी उसने बाबूलाल मरांडी को अध्यक्ष बना कर यह मैसेज दिया है कि भाजपा जीती तो मरांडी सीएम होंगे। उनके अलावा अर्जुन मुंडा, चम्पई सोरेन और मधु कोड़ा का आदिवासी चेहरा भी है। साथ ही दो पड़ोसी राज्यों ओडिशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासी मुख्यमंत्री भी रात दिन मेहनत कर रहे हैं। भाजपा ने चुनाव से पहले ही नेताओं के जरिए कारपेट बॉम्बिंग शुरू कर दी थी। शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा को चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी बना कर भाजपा ने जमीनी तैयारियां पुख्ता की हैं।

जहां तक मुद्दों की बात है तो भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा बनाया है और ‘रोटी, बेटी, माटी’ बचाने के नाम पर गैर मुस्लिम व गैर ईसाई वोट एकजुट करने का प्रयास कर रही है। ‘लैंड जिहाद’ और ‘लव जिहाद’ बड़ा मुद्दा बनाया गया है। ये मुद्दे कितने कारगर होंगे यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन भाजपा ने इन भावनात्मक मुद्दों के दम पर मुकाबला बनवा दिया है। भाजपा, जदयू, आजसू और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन वोट प्रतिशत के हिसाब से ज्यादा बड़ा है। इसके साथ भावनात्मक मुद्दे जुड़े हैं और भाजपा ने भी जेएमएम सरकार की तरह खूब मुफ्त की रेवड़ी बांटने का ऐलान किया है। उसने ‘मइया सम्मान’ योजना के बरक्स ‘गोगो दीदी’ योजना की घोषणा की है, जिसके तहत हर महीने महिलाओं को 21 सौ रुपए दिए जाएंगे। भाजपा को जमीनी स्तर पर हो रही आक्रामक आदिवासी, मुस्लिम व ईसाई गोलबंदी का भी फायदा मिल सकता है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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