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दिल्ली में क्या खत्म होगा भाजपा का इंतजार?

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दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी तीन दशक से सत्ता में आने की प्रतीक्षा कर रही है। उसने 1993 में दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव जीता था और उसके बाद वह छह चुनाव हार चुकी है। एक बार दिसंबर 2013 में वह सत्ता के नजदीक पहुंची थी लेकिन उसके बाद के दो चुनावों में उसने बहुत खराब प्रदर्शन किया। पिछले 10 साल से आम आदमी पार्टी का दिल्ली की राजनीति पर एकछत्र आधिपत्य बना है। उसे लगातार दो चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। आप के ओवरऑल डोमिनेंस की मिसाल यह है कि दो चुनावों से एक राष्ट्रीय पार्टी भाजपा के विधायकों की संख्या दहाई में नहीं पहुंच पाई है तो दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का वोट प्रतिशत दो चुनावों से दहाई में नहीं पहुंच रहा है। दो चुनावों से कांग्रेस का खाता नहीं खुल रहा है। तभी सवाल है कि क्या इस बार कांग्रेस का खाता खुलेगा? उसका वोट प्रतिशत दहाई में पहुंचेगा? क्या भाजपा के विधायकों की संख्या दहाई में पहुंच पाएगी? या कोई चमत्कार होगा, जैसा लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के पक्ष में हरियाणा और महाराष्ट्र में देखने को मिला है?

इन सवालों के जवाब कई फैक्टर्स पर निर्भर करते हैं। विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत के लिहाज से आम आदमी पार्टी बहुत आगे है। उसे 2015 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला और 2020 में उसने 53 फीसदी वोट हासिल किया। इसका मतलब है कि पांच साल के शासन के बाद उसका वोट आधार कायम रहा। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी को 2015 में 34 फीसदी के करीब वोट मिले थे, जो बढ़ कर 2020 में 38 फीसदी पहुंच गया। भाजपा के वोट में चार फीसदी से कुछ ज्यादा की जो बढ़ोतरी हुई थी वह कांग्रेस के नुकसान की वजह से हुई थी। कांग्रेस को 2015 में नौ फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला था, जो 2020 में घट कर साढ़े चार फीसदी रह गया। सो, कह सकते हैं कि कांग्रेस को साढ़े चार फीसदी वोट का जो नुकसान हुआ वह भाजपा के खाते में चला गया, जिससे उसका वोट 38 फीसदी पहुंच गया। भाजपा लगातार विधानसभा का चुनाव हार रही फिर भी उसने 33 से 38 फीसदी का वोट आधार कायम रखा है।

अगर यह माना जाए कि इस बार कांग्रेस पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है तो सवाल है कि वह भाजपा और आप में से किसका ज्यादा नुकसान करेगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि आप और भाजपा के आमने सामने के मुकाबले में 2020 में कांग्रेस ने जो साढ़े चार फीसदी के करीब वोट भाजपा के हाथों गंवाया था उसे वह त्रिकोणात्मक मुकाबले में वापस हासिल कर सकती है। इसका मतलब है कि वह भाजपा को चार से पांच फीसदी वोट का नुकसान पहुंचा सकती है। भाजपा से ज्यादा वह आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है। इसका एक कारण तो यह है कि 2013  में आम आदमी पार्टी से तालमेल करके उसकी सरकार बनवाने की जो गलती कांग्रेस ने की थी वैसी ही एक गलती आम आदमी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में की।

उसने कांग्रेस से तालमेल किया। इस तालमेल में आप चार और कांग्रेस तीन सीटों पर लड़ी थी। इससे आप के समर्थक मतदाता समूह में कांग्रेस के प्रति सद्भाव बना। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के अच्छा प्रदर्शन करने से भी उसके पुराने वोट आधार का समर्थन उसके साथ लौटता दिखा है। खासकर मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति सद्भाव बना है, जो लोकसभा चुनाव में दिखा। इसे देखते हुए कांग्रेस ने दिल्ली में मुस्लिम वोट को ध्यान में रख कर अपनी बिसात बिछाई है। सो, कांग्रेस अगर चार से पांच फीसदी वोट का नुकसान भाजपा को करने में सक्षम है तो इतने ही वोट का नुकसान वह आम आदमी पार्टी को भी पहुंचा सकती है। इस तरह उसका वोट आधार दहाई में पहुंच सकता है। हालांकि इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह कितनी सीटें जीतेगी या किसको कितनी सीट हरा देगी।

तभी चुनाव का फैसला इस आधार पर होगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने पारंपरिक वोट आधार में कितना नया वोट जोड़ती है? उसके साथ जो भी वोट जुड़ेगा वह आम आदमी पार्टी से ही टूट कर जुड़ेगा। उसको अगर चुनाव जीतना है तो दो स्तर पर काम करना होगा। पहला, कांग्रेस की ओर से आए चार से पांच फीसदी वोट को वापस कांग्रेस में जाने से रोकना होगा और दूसरा, आम आदमी पार्टी का वोट तोड़ना होगा। भाजपा की उम्मीद इस पर भी टिकी होगी कि कांग्रेस त्रिकोणात्मक मुकाबला बनाए तो उसको फायदा होगा। दिसंबर 2013 के चुनाव में ऐसा हुआ था। हालांकि तब कांग्रेस बहुत मजबूत ताकत थी। उसे 24 फीसदी वोट मिले थे। आम आदमी पार्टी ने 29 फीसदी वोट हासिल किए थे और तब भाजपा 33 फीसदी वोट लेकर 32 सीटें जीत गई थी। हालांकि इस तरह के वोट बंटवारे की उम्मीद इस बार नहीं दिख रही है। कांग्रेस इतनी मजबूत नहीं हुई है कि वह 20 फीसदी या उससे ज्यादा वोट हासिल कर ले। तभी भाजपा को अपने पारंपरिक वोट आधार में कम से कम 10 फीसदी वोट जोड़ना होगा। तब जाकर उसका इंतजार खत्म होगा।

भाजपा इसके प्रयास में लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से ऐन पहले झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को फ्लैट्स देकर अरविंद केजरीवाल के सबसे कोर वोट में सेंध लगाने का प्रयास किया है। इसी वोट को ध्यान में रख कर खुद प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाया कि अगर भाजपा की सरकार आती है तो लोक कल्याण की यानी मुफ्त की रेवड़ी वाली सारी योजनाएं जारी रहेंगी। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी वाले झूठ फैला रहे हैं कि भाजपा आई तो योजनाएं बंद कर देगी। भाजपा महिलाओं को नकद पैसे देगी, मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी की योजना जारी रहेगी, महिलाओं को मुफ्त बस पास मिलता रहेगा और झुग्गी वालों को फ्लैट्स भी मिलेंगे। अगर इस तरह की घोषणाओं से भाजपा झुग्गी झोपड़ी वाले वोट में पैठ बनाती है तो आप को झटका दे सकती है। भाजपा मध्य वर्ग की पार्टी रही है उनको ध्यान में रख कर बुनियादी ढांचे की बड़ी परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया गया है। मेट्रो रेल से लेकर रैपिड रेल तक और यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर नए कॉलेज के निर्माण तक की योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास हुआ है।

इसके अलावा भाजपा की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि अरविंद केजरीवाल का तिलिस्म टूट रहा है। शराब नीति में हुए कथित घोटाले में केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों जेल गए, इससे उनके कट्टर ईमानदार होने की धारणा प्रभावित हुई है। ऐसे ही अपने रहने के लिए एक सरकारी बंगले के रेनोवेशन पर 45 से 50 करोड़ रुपए खर्च करके ‘शीशमहल’ बनाने का जो प्रचार हुआ है उससे केजरीवाल की आम आदमी होने की धारणा प्रभावित हुई है। ध्यान रहे केजरीवाल का तिलिस्म मूल रूप से तीन बातों पर टिका था। पहला, ईमानदार नेता, दूसरा आम आदमी और तीसरा मुफ्त की रेवड़ी। पिछले 10 साल में पहली दो धारणाएं तो निश्चित रूप से टूटी हैं। यह प्रमाणित हुआ है या यह धारणा बनी है कि केजरीवाल कोई ईमानदार या बाकियों से अलग नेता नहीं हैं।

उन्होंने जितने लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे अब उन्हीं लोगों के साथ राजनीति कर रहे हैं। सो, ईमानदारी का तिलिस्म टूट गया और बंगले के रेनोवेशन पर चाहे 33 करोड़ खर्च हुए हों या 45 करोड़ या 50 करोड़, उससे यह धारणा टूटी कि वे कोई आम आदमी हैं। तभी अब जब वे नीले रंग की ढीली ढाली कमीज पहन कर आम आदमी होने का दिखावा करते हैं तो बड़े दयनीय लगते हैं। उनके तिलिस्म का तीसरा दरवाजा मुफ्त की रेवड़ी का था। लेकिन वह भी अब अनोखी बात नहीं है। हर राज्य में पार्टियां दिल खोल कर नकदी बांट रही हैं और वस्तुएं व सेवाएं मुफ्त में दे रही हैं। भाजपा और कांग्रेस भी इसका वादा कर रहे हैं। सो, ईमानदारी, आम आदमी और मुफ्त की रेवड़ी ये तीनों तिलिस्म टूट गए हैं। लड़ाई का मैदान बराबरी का हो गया है। तभी कहा जा सकता है कि नतीजा कुछ भी आए लेकिन प्रदेश की राजनीति में आप का एकछत्र आधिपत्य इस बार कमजोर होगा। और अगर वह आठ फरवरी को बड़ी जीत नहीं हासिल कर पाती है तो अब तक केजरीवाल जिस ऑपरेशन लोटस का झूठा खतरा बताते रहते थे वह हकीकत में तब्दील हो सकता है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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