budget 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट एक फरवरी को पेश होगा। मोदी सरकार के पहले यानी 2014 के बजट के बाद संभवतः यह पहला बजट है, जिसको लेकर इतनी चर्चा हो रही है।
यह चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि मोदी को तीसरा ऐतिहासिक कार्यकाल मिला है। इसलिए कई आर्थिक जानकार यह उम्मीद कर रहे हैं कि बजट भी ऐतिहासिक होगा।
कुछ जानकारों को लग रहा है कि यह पी चिदंबरम के 1997 के ड्रीम बजट जैसा हो सकता है तो कुछ जानकार 1991 के मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत करने वाले बजट जैसा होने की उम्मीद कर रहे हैं।
उनको लग रहा है कि इस बार बजट में वो सारे आर्थिक सुधार दिख सकते हैं, जिनकी पिछले कई बरसों से सिर्फ चर्चा हो रही है।(budget 2025)
गौरतलब है कि कोरोना महामारी से पहले ही आर्थिकी में सुस्ती का दौर शुरू हो गया था और उसी समय सभी कठोर आर्थिक सुधार रोक दिए गए थे। सो, इस बार सुधारों की उम्मीद की जा रही है।
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दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा है, जिसका मानना है कि इस बार लोकसभा चुनाव में पहली बार प्रधानमंत्री मोदी को देश की जनता ने झटका दिया है और उनकी सीटें कम करके उनको बहुमत से नीचे ला दिया है।
इसलिए इस बार का बजट आम नागरिकों के हितों को ध्यान में रखने वाला होगा। यह समूह उम्मीद कर रहा है कि सामाजिक विकास की योजनाओं की फंडिंग में होने वाली कटौती थमेगी और इस बार उनमें आवंटन बढ़ाया जा सकता है।
एक तीसरा समूह ऐसा है, जो लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर ही यह अनुमान भी लगाया रहा है कि सरकार मध्य वर्ग की आकांक्षा का भी ध्यान रखेगी और इस बार मध्य वर्ग के लिए भी खास प्रावधान किए जाएंगे।(budget 2025)
इनमें आयकर स्लैब में बदलाव करके आयकर से छूट देने की सबसे ज्यादा चर्चा है। आर्थिक जानकार 10 लाख से लेकर 15 लाख रुपए तक आय को कर से छूट देने की उम्मीद जता रहे हैं। कर के स्लैब कम करने की भी संभावना जताई जा रही है।
अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर
एक चौथा वर्ग है, जिसको लग रहा है कि जलवायु परिवर्तन भी सरकार का सरोकार होगा और भले अमेरिका में सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन के खतरे को खारिज करते हुए अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर कर दिया है लेकिन भारत ऐसा नहीं कर सकता है।
इस समूह की उम्मीद है कि इस बार केंद्र सरकार हरित और टिकाऊ विकास की अवधारणा को केंद्र में रख कर बजट तैयार करेगी, जिसमें जलवायु अनुकूल फैसले होंगे। एक पांचवां वर्ग ऐसा है, जो कृषि और किसानों के हितों पर केंद्रित बजट की उम्मीद कर रहा है।
दिल्ली के बाद बिहार विधानसभा चुनाव (budget 2025)
कृषि मामलों के जानकार चाहते हैं कि सरकार खाद व बीज पर सब्सिडी की नीति बदले और साथ ही किसानों को सम्मान निधि के रूप में पांच सौ रुपया महीना देने की नीति को भी छोड़े।
उनका कहना है कि सरकार को किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने का कोई कानून लाना चाहिए। जैसे सरकार अपने कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग लाती है और साल में दो बार महंगाई भत्ता बढ़ाती है वैसे ही किसान की आय भी सुनिश्चित करनी चाहिए।
इनके अलावा उद्योग व कारोबार जगत की अपनी उम्मीदें हैं। कर छूट से लेकर कारोबार सुगमता तक उनकी विशलिस्ट भी लंबी है(budget 2025)
कुल मिला कर हर समूह बजट में अपने लिए कुछ न कुछ मिलने की उम्मीद कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार कठोर सुधारों की दिशा में बढ़ती है या लोक लुभावन बजट लाकर सभी समूहों को खुश करने का प्रयास करती है?
ध्यान रहे बजट के तुरंत बाद दिल्ली विधानसभा का चुनाव है और उसके बाद कभी भी बिहार विधानसभा का चुनाव हो सकता है। इसलिए सरकार बहुत कठोर आर्थिक सुधार की पहल करती है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
भारत में निजी पूंजी निवेश बहुत कम
बहरहाल, इस साल के बजट को लेकर एक चीज पर सबकी सहमति है और वह ये है कि सरकार बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देगी।
एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 75 फीसदी से ज्यादा लोगों ने माना है कि सरकार बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान देगी और उस सेक्टर में आवंटन बढ़ाया जाएगा।
ऐसा मानने की वजह ये है कि पिछले कई बजट से सरकार हर बार बहुत बड़ा पूंजीगत खर्च करने की घोषणा करती है और वह बुनियादी ढांचे के सेक्टर में ही जाता है।(budget 2025)
असल में भारत की आर्थिकी की गाड़ी मोटे तौर पर उसी खर्च से चल रही है। भारत में निजी पूंजी निवेश बहुत कम है और विदेशी निवेश भी उम्मीद के अनुरूप नहीं आ पा रहा है।
तभी केंद्र सरकार के निवेश से आर्थिकी की गाड़ी चल रही है। इसी से बाजार में पैसा आ रहा है और इसी से रोजगार के अवसर भी बन रहे हैं।
हालांकि गुणवत्तापूर्ण रोजगार नहीं मिल रहा है और पूंजी का एकत्रीकरण चुनिंदा हाथों में हो रहा है फिर भी आर्थिकी की गाड़ी चलाए रखने के लिए यह जरूरी है।(budget 2025)
बुनियादी ढांचे के विकास के बाद विनिर्माण सेक्टर को बढ़ावा देने पर सरकार का फोकस हो सकता है।
साथ ही पिछले कुछ समय से सरकार ने सेमीकंडकर सेक्टर की पहचान की है, जिसकी चर्चा से मध्य वर्ग की आंखों में चमक आ रही है। सो, कहा जा रहा है कि उस सेक्टर में निवेश और विकास की बातें बजट में होंगी।
अल्पसंख्यक को एकजुट करने का दांव(budget 2025)
सोशल सेक्टर यानी सामाजिक विकास के क्षेत्र में बजट आवंटन घटाते जाने की प्रक्रिया थमने और उसमें सुधार की उम्मीद इस बार के बजट से इसलिए है क्योंकि इस बार लोकसभा चुनाव में विपक्ष की एकजुटता से सरकार को बड़ा झटका लगा।
विपक्ष ने पिछड़े, दलित, वंचित, अल्पसंख्यक को एकजुट करने का दांव चला था और इसके लिए संविधान और आरक्षण का मुद्दा बनाया गया था।
लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं इन वर्गों की आर्थिक स्थिति ने भी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में एक भूमिका निभाई। तभी सोशल सेक्टर में सरकार आवंटन बढ़ा सकती है।(budget 2025)
इस सेक्टर में आवंटन कैसे कम हुआ है इसे आंकड़ों के आधार पर समझा जा सकता है। वित्त वर्ष 2018 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार का आंवटन बजट का 2.47 फीसदी था, जबकि पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2024-2025 में सिर्फ 1.85 फीसदी आवंटन था।
उससे पहले के दो साल तो यह और भी कम रहा था। ऐसे ही ग्रामीण विकास में, जहां 2018 में बजट का 6.3 फीसदी आवंटित हुआ था वहां 2024-2025 में 5.51 फीसदी आवंटित हुआ।
मनरेगा से लेकर पोषण तक कटौती
उच्च शिक्षा में जो आवंटन 1.57 फीसदी था वह छह साल के बाद 0.99 फीसदी तक नीचे आ गया और स्कूली शिक्षा का आवंटन 2.16 फीसदी से घट कर 1.51 फीसदी रह गया है।(budget 2025)
ऐसे ही समाज कल्याण का आवंटन 1.75 फीसदी से घट कर 1.17 फीसदी रह गया है। कोरोना के समय जिस महात्मा गांधी नरेगा ने करोड़ों लोगों के रोजगार और भोजन की समस्या हल की थी उस पर पिछले बजट में आवंटन महज 86 हजार करोड़ रुपए का था, जो पिछले 10 साल का सबसे कम था।
सो, मनरेगा से लेकर पोषण तक की अनेक योजनाओं में कटौती हुई थी। इस बार के बजट में इसमें बदलाव आने की संभावना जताई जा रही है। सरकार अगर ऐसा करती है तो यह राजनीतिक और सामाजिक दोनों दृष्टि से अच्छा कदम होगा।