अरविंद केजरीवाल ने तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद एक नया राजनीतिक नैरेटिव गढ़ना शुरू किया है। उन्होंने और उनकी पार्टी ने कहना शुरू किया है कि उनको झूठे मुकदमे में फंसाया गया है और उनको चुनाव जीता कर दिल्ली की जनता को इसका जवाब देना है। हालांकि ऐसा कहने वाले केजरीवाल पहले नेता नहीं हैं। पहले भी कई नेताओं ने अपनी गिरफ्तारी को राजनीतिक षड़यंत्र बता कर उसका विरोध किया और उस नाम पर सहानुभूति प्राप्त कर चुनावी जीत हासिल की।
लेकिन इतने सुनियोजित तरीके से किसी नेता ने केंद्र सरकार, केंद्रीय एजेंसियों और यहां तक की न्यायपालिका को भी अपना राजनीतिक हित साधने का माध्यम नहीं बनाया। अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में देश की तमाम संस्थाओं की साख को दांव पर लगा दिया। वे जो राजनीतिक तमाशे खड़े कर रहे हैं वह अपनी जगह है लेकिन चुनावी जीत के जरिए आपराधिक मुकदमे के आरोप मिटाने का प्रयास एक खतरनाक परंपरा को जन्म देने वाला होगा।
फर्ज कीजिए अगर आम आदमी पार्टी अगले साल फरवरी में विधानसभा का चुनाव जीत जाती है तो क्या होगा? क्या चुनावी जीत से केजरीवाल शराब नीति में हुए कथित घोटाले और उससे जुड़े धनशोधन के आरोपों से मुक्त हो जाएंगे? क्या केंद्रीय एजेंसियां नतीजों का इंतजार कर रही होंगी और नतीजे आते ही केजरीवाल के खिलाफ जांच रोक देंगी? क्या न्यायपालिका की कार्रवाई और उसके फैसलों पर चुनावी नतीजों का असर होगा और जज यह कहेंगे कि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल की पार्टी को जीता दिया इसलिए अब उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का आधार नहीं बनता है?
ध्यान रहे केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता यह नहीं कह रहे हैं कि दिल्ली की जनता उन पर भरोसा जताए बाकी मुकदमे वे देख लेंगे। यह भी नहीं कहा जा रहा है कि आपराधिक मुकदमे का जो भी नतीजा हो, अगर दिल्ली की जनता उनके साथ है तो वे उस नतीजे का सामना करने के लिए तैयार हैं। इसकी बजाय यह कहा जा रहा है कि दिल्ली की जनता उनको जीत दिला कर भाजपा की साजिशों को विफल करे। यही सवाल है कि अगर कोई साजिश है भी तो वह चुनाव नतीजे से कैसे विफल होगी? क्या उनको लग रहा है कि चुनाव जीत जाने के बाद भाजपा उनसे डर जाएगी और केंद्र सरकार केंद्रीय एजेंसियों से सारे मुकदमे खत्म करा देगी?
इतिहास गवाह है कि एकाध अपवादों को छोड़ कर किसी नेता को चुनावी जीत से कानूनी मामलों में फायदा नहीं हुआ है। कहा जाता है कि कागज नहीं मरता है। बरसों, दशकों बाद भी सजा होती है। लालू प्रसाद के ऊपर चारा घोटाले का आरोप 1997 में लगा था। उसके बाद उनकी पार्टी सन 2000 का विधानसभा चुनाव जीती और बिहार में राजद की सरकार बनी। फिर 2005 में लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी को बड़ी जीत मिली और वे केंद्र में रेल मंत्री बने।
उनके साथ उनकी पार्टी के आधा दर्जन से ज्यादा सासंद केंद्र में मंत्री बने। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? 2009 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद उनको एक के बाद एक चारा घोटाले से जुड़े तीन मामलों में सजा हुई और वे जेल गए। जयललिता के मुकदमे और उनकी सरकार दोनों साथ साथ चलते रहे। मुख्यमंत्री रहते उनको दो बार इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा। कई चुनावी जीतों के बाद भी उनको और उनकी करीबी सहयोगी वीके शशिकला को सजा हुई।
वे भी यही कहती रही थीं कि उनके खिलाफ साजिश हुई है। नरसिंह राव की सरकार ने नब्बे के दशक में मंत्री रहे सुखराम को 16 साल बाद संचार घोटाले में सजा हुई और उनको जेल जाना पड़ा। नेताओं की ऐसी अनगिनत मिसालें हैं कि वे चुनाव जीतते रहे और उनके मुकदमे साथ साथ चलते रहे और लंबे समय के बाद उनको सजा मिली।
सो, केजरीवाल को भी यह समझना चाहिए कि चुनावी जीत उनके ऊपर लगे आरोपों का जवाब नहीं होगी। आरोपों का जवाब तो उनको अदालत में ही देना होगा। जनता की अदालत का फैसला कानून की अदालत में नहीं चलता है। केजरीवाल के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया ने सोशल मीडिया में एक लम्बी पोस्ट लिख कर कहा है कि, ‘प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बहुत ही घिनौना राजनीतिक षड़यंत्र रचकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप के अन्य नेताओं के ऊपर झूठे आरोप लगाए। जेल भेजा। ईमानदारी पर सवाल उठाए। सरकार तोड़ने की कोशिश की’। अब सवाल है कि अगर शराब नीति में हुए कथित घोटाले में उनकी ईमानदारी पर सवाल उठे हैं तो क्या चुनावी जीत से ईमानदारी बहाल हो जाएगी?
ऐसा कहीं होता है क्या? कई नेता और उनकी पार्टियां आज तक दशकों पहले लगे आरोपों का जवाब दे रही हैं, जबकि वे उसके बाद कई बार चुनाव जीत चुकी हैं। और जहां तक सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का सवाल है तो उस मामले में केजरीवाल को भी बहुत जवाब देने होंगे। उनकी पंजाब सरकार ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के चार मंत्रियों की विजिलेंस जांच करा कर उनको गिरफ्तार किया और उन पर मुकदमे चलवाए।
कांग्रेस भी पंजाब सरकार पर साजिश रच कर उसके नेताओं को गिरफ्तार करने के आरोप लगा रही है। पंजाब में सरकार के खिलाफ लिखने वाले कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है। एक पत्रकार की गिरफ्तारी पर तो राज्यपाल ने भी सरकार से नाराजगी जताई थी। वह तो अच्छा है कि दिल्ली में केजरीवाल के हाथ में पुलिस और विजिलेंस नहीं है!
एक सवाल यह भी है कि अगर केजरीवाल की पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई तो क्या होगा? क्या यह मान लिया जाएगा कि दिल्ली के लोगों ने इस बात पर ठप्पा लगा दिया कि केजरीवाल ईमानदार नहीं हैं? और उसके बाद अदालत में मुकदमों की सुनवाई की जरुरत नहीं रह जाएगी? सीधे केंद्रीय एजेंसियां उनको सजायाफ्ता बता कर जेल में डाल देंगी? ऐसा भी नहीं होता है।
यह समझने की जरुरत है कि जिन लोगों पर आरोप लगे और वे चुनाव जीत गए इसका यह मतलब नहीं है कि वे ईमानदार हैं और अब एजेंसियों व न्यायपालिका को उनको बरी कर देना चाहिए और जिनके ऊपर आरोप लगे और वे चुनाव हार गए तो उसका भी यह मतलब नहीं है कि आरोपी नेता बेईमान ही है और उसे अब बिना सुनवाई के सजा दे देनी चाहिए। सहानुभूति हासिल करने तक तो ठीक है लेकिन राजनीति, चुनाव, आपराधिक मामले, एजेंसियों की जांच, न्यायिक कार्रवाई आदि को गडमड करना ठीक नहीं है।