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विपक्ष को मानों जीत का मंत्र मिला हो?

Ambedkar constitutionImage Source: ANI

विपक्ष में गजब जोश आया हुआ है। उसके नेताओं को या नेताओं से ज्यादा सोशल मीडिया के उसके इकोसिस्टम को लग रहा है कि भाजपा बैकफुट पर है, रक्षात्मक है और विपक्ष के हाथ वह मंत्र लग गया है, जिससे हर चुनाव जीता जा सकता है। विपक्ष को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी के करिश्मे, अमित शाह की चतुराई, भाजपा के संगठन और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अखिल भारतीय विस्तार का मुकाबला इस मंत्र से किया जा सकता है कि, ‘संविधान खतरे में है’ और ‘अंबेडकर का अपमान हो रहा है’। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस यानी एआई की मदद से बनवाए एक विज्ञापन में इस मंत्र को बहुत अच्छे तरीके से समेटा है। Ambedkar constitution

वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से कह रहे हैं कि बाबा साहेब उनको शक्ति दें ताकि वे उनका और उनके बनाए संविधान का अपमान करने वालों से लड़ सकें। संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी तीन दिन में हुई राजनीति का सार संक्षेप भी यही है। विपक्ष का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार संविधान को बदल देना चाहती है और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का अपमान कर रही है।

विपक्ष का संविधान बचाने का दावा: क्या सच में संविधान खतरे में है?

संसद का सत्र समाप्त हो जाने के बाद भी इस पर राजनीति थमी नहीं है। दिल्ली में तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी इसे मुख्य मुद्दा बना कर चुनाव लड़ रही है। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने पूरे देश में इस मुद्दे पर जन आंदोलन शुरू करने के ऐलान किया है। कांग्रेस के सांसद और कार्यसमिति के सदस्यों ने डेढ़ सौ जगहों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो हर जिला मुख्यालय पर कलेक्टर के कार्यालय तक मार्च भी हुआ है। Ambedkar constitution

कांग्रेस ने गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2025 तक अमित शाह के इस्तीफे की मांग करने और देश भर में कोई न कोई कार्यक्रम करने की घोषणा की है। विपक्षी पार्टियां संविधान की चैंपियन बन रही हैं। उनके नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार पर संविधान बदलने के आरोप लगा रहे हैं। विपक्षी पार्टियों के प्रवक्ता संविधान की रक्षा के नाम पर लाइव डिबेट में ‘मनुस्मृति’ के पन्ने फाड़ रहे हैं। ‘सावरकर बनाम अंबेडकर’ और ‘मनुस्मृति बनाम संविधान’ की बहस बनवाई जा रही है।

विपक्ष के इस नैरेटिव से दो सवाल उठते हैं। पहला, क्या सचमुच देश का संविधान खतरे में है? और दूसरा, क्या सचमुच अमित शाह ने अंबेडकर का अपमान किया? इस सवाल को व्यापक आयाम देना हो तो यह भी पूछा जा सकता है कि क्या सचमुच भाजपा अंबेडकर का अपमान करती है और विपक्षी पार्टियां उनके सम्मान के लिए प्रतिबद्ध हैं? पहले सवाल पर विचार करें तो विपक्ष इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश कर पाता है कि संविधान खतरे में है। यह एक अमूर्त सा आरोप लगता है, जिसके पीछे कोई वस्तुनिष्ठ बात नहीं दिखती है क्योंकि पिछले 10 साल में कोई भी संवैधानिक बदलाव ऐसा नहीं हुआ है, जो असंवैधानिक हो या जिससे संविधान का बुनियादी ढांचा प्रभावित होता हो।

सरकार के बदलाव के प्रयास: विरोध और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया से पीछे हटने की मिसालें

उलटे सरकार ने जिन मामलों में बदलाव का दुस्साहस किया और लीक से हट कर कुछ करने का प्रयास किया उन मामलों में भी वह सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी या लोकप्रिय विरोध से घबरा कर पीछे हट गई। इस सिलसिले में तीन मिसाल दी जा सकती है। पहली मिसाल राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग यानी एनजेएसी का कानून है। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति और तबादले के मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को बदल कर उसकी जगह एक आयोग के जरिए नियुक्ति का कानून बनाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत के विरुद्ध बताते हुए खारिज कर दिया तो फिर सरकार ने इस दिशा में पहल नहीं की।

दूसरी मिसाल भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यक्रम में यूपीए सरकार के बनाए भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने का प्रयास किया था लेकिन कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के विरोध के कारण पीछे हट गई। तीसरी मिसाल तीन केंद्रीय कृषि कानूनों की है। सरकार ने ये कानून संसद से पास कराए थे लेकिन एक साल तक चले किसान आंदोलन के बाद उसने इन तीन कानूनों को रद्द कर दिया।

विपक्ष को ठोस मुद्दे पेश करने की आवश्यकता

तभी विपक्ष को यह समझने की जरुरत है कि संविधान खतरे में है या मौजूदा सरकार संविधान को खत्म कर देना चाहती है, इस नैरेटिव का राजनीतिक लाभ लेने के लिए उसे कोई ठोस या वस्तुनिष्ठ मुद्दा सामने रखना होगा। सिर्फ अमूर्त प्रचार से कुछ हासिल नहीं होगा। विपक्ष ने जब भी किसी कानून या बदलाव को लेकर उसके खिलाफ प्रचार किया तो उसे जनता का समर्थन भी मिला और विपक्ष को राजनीतिक लाभ भी हुआ। लेकिन बिना कोई स्पेशिफिक केस बताए कि सरकार अमुक काम संविधान विरोधी कर रही है, सिर्फ जुबानी जमाखर्च से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

विपक्षी पार्टियां बताएं कि सरकार के कौन कौन से काम संविधान विरूद्ध हैं और इससे पहले की किसी सरकार ने ऐसा नहीं किया है। विपक्षी पार्टियां संविधान संशोधन को संविधान विरोधी काम नहीं बता सकती हैं क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान के संशोधन का प्रावधान किया गया है। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि संविधान एक जीवित दस्तावेज है, जिसमें संवैधानिक तरीके से बदलाव हो सकता है और लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने या मजबूत करने के लिए संवैधानिक बदलाव जरूरी हैं।

दूसरी अहम बात जो विपक्ष को समझने की जरुरत है वह ये है कि लोकसभा के इस साल के चुनाव में उसका अच्छा प्रदर्शन ‘संविधान खतरे में है’ के नैरेटिव के कारण नहीं हुआ है। विपक्ष के अच्छे प्रदर्शन का पहला और सबसे मुख्य कारण सभी पार्टियों का अपना स्वार्थ छोड़ कर एकजुट होना है। विपक्ष एकजुट होकर लड़ा और उसके बाद सारी चीजें अपने आप ठीक होती चली गईं। सरकार के खिलाफ 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी थी, राज्यों की सरकारों से नाराजगी थी, राज्यों में अंदरूनी समीकरण बिगड़ा था तो आरएसएस के साथ भी भाजपा का तालमेल बेहतर नहीं था। इन तमाम कारणों के बीच ‘संविधान खतरे में है’ का नैरेटिव भी था।

विपक्ष का अमूर्त मुद्दों पर राजनीति: चुनावी सफलता की चुनौती

सो, कई चीजों ने मिल कर भाजपा को कमजोर किया और विपक्ष को ताकत दी। लोकसभा के बाद हुए राज्यों के चुनावों में न एकजुटता काम आई और न ‘संविधान खतरे में है’ का नैरेटिव काम आया और न आरक्षण बचाने की प्रतिबद्धता काम आई। तभी जनादेश की गलत या अधूरी व्याख्या से विपक्ष को बचना चाहिए।

जहां तक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के अपमान का सवाल है तो वह भी ज्यादा समय तक लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा नहीं रहने वाला है। अब भी विपक्षी पार्टियों और उसके इकोसिस्टम को छोड़ दें तो कोई भी नहीं मानेगा कि अमित शाह के बयान से अंबेडकर का अपमान हुआ है। अमित शाह ने संविधान पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में कहा कि इन दिनों अंबेडकर, अंबेडकर का फैशन बन गया है। अगर इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों के लिए स्वर्ग मिल जाता। इसमें अंबेडकर के लिए कोई अपशब्द नहीं कहा गया है और न उनके योगदान पर कोई सवाल उठाया गया है। यह विपक्षी पार्टियों के ऊपर तंज था, जिनका अंबेडकर प्रेम अभी ताजा ताजा दिखना शुरू हुआ है। लेकिन बयानों का मनमाना मतलब निकल कर विरोधी को घेरना मौजूदा समय की सबसे मुख्य परिघटना है तो विपक्ष ने भी वही काम किया।

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भाजपा भी यह काम करती है। लेकिन इस तरह संदर्भ से अलग करके बयानों की व्याख्या और उनके आधार पर बनाए गए नैरेटिव की सेल्फ लाइफ ज्यादा नहीं होती है। सो, विपक्ष इस मुद्दे को जितना भी उछाले यह चुनाव जीतने का मंत्र नहीं बनने वाला है। उलटे अगर विपक्षी पार्टियां ठोस मुद्दे पर सरकार को घेरने की बजाय ‘संविधान खतरे में है’ या ‘बाबा साहेब का अपमान हुआ है’, जैसे अमूर्त मुद्दे पर राजनीति करेंगी तो उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल ही होता जाएगा। लोग चाहते हैं कि मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, पर्यावरण जैसे ठोस मुद्दों पर बात हो, जबकि विपक्ष ‘सावरकर बनाम अंबेडकर’ और ‘मनुस्मृति बनाम संविधान’ की अमूर्त बहस में उलझा है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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