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सदी की चौथाई तक का सफर

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इक्कीसवीं सदी का 25वां साल शुरू हो गया। सबको बधाई! मंगल शुभकामनाएं! वर्ष 2025 समाप्त होगा तो यह सदी एक चौथाई गुजर चुकी होगी। इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि धरती के इंसानों ने किसी और सदी का इतना इंतजार किया हो। सदियां आती थीं और चली जाती थीं। परंतु 21वीं सदी की प्रतीक्षा और उसके लिए तैयारियां बहुत पहले शुरू हो गई थी। भारत में 1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने और उनके सहयोगियों ने कहा कि वे भारत को 21वीं सदी में ले जाने के लिए तैयार कर रहे हैं। पिछले दिनों जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुजरे तो कहा गया कि 1991 में जब वे वित्त मंत्री बने थे तब उन्होंने भारत को ज्यादा मजबूती के साथ 21वीं सदी में जाने के लिए तैयार किया। अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में भी कहा जाता है कि 1998 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने भारत को 21वीं सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम बनाया। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सदी की चुनौतियों से आगे सहस्राब्दी यानी अगले एक हजार साल की बात कर रहे हैं और भारत को विश्व गुरू बनाने के लिए काम कर रहे हैं।

सवाल है कि क्या 21वीं सदी के इस मुकाम पर भारत वही है, जो संचार क्रांति के जरिए राजीव गांधी या अर्थ क्रांति के जरिए मनमोहन सिंह या परमाणु परीक्षण और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जरिए अटल बिहारी वाजपेयी बनाना चाहते थे और क्या नरेंद्र मोदी के अमृत काल की नीतियां भारत को इस सहस्राब्दी में सबसे महान बना देंगी? बहुत गहरे अतीत और विस्तृत भविष्य के प्रिज्म में इन सवालों को देखेंगे तो उसका दायरा बहुत बड़ा हो जाएगा। तब भी आकलन का आधार यही होना चाहिए कि अलग अलग प्रधानमंत्रियों ने भारत को जिस चीज के लिए तैयार किया उसे हम हासिल कर पाए या नहीं। इसी आधार पर यह आकलन किया जा सकता है कि भारत किस मुकाम पर है और यहां से इसका आगे का सफर कैसा हो सकता है।

यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि भारत को 21वीं सदी में लाने की जितनी तैयारियां हुई थीं उसके अनुपात में हम बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाए। संचार क्रांति की तमाम चर्चाओं के बावजूद हम उस क्रांति के वाहक नहीं बन सके। हम उस क्रांति से पैदा हुए उत्पादों के उपयोक्ता भर हैं। सोचें, पिछले साल की संचार क्रांति पर! पूरी दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई की उपलब्धियों से चमत्कृत है लेकिन इस क्रांति में भारत कहां है? भारत में एआई के इस्तेमाल से ठगी की जा रही है और नेता बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर एआई से जेनरेट करके अपने को आशीर्वाद दिलवा रहे हैं ताकि चुनाव में दलित वोट हासिल कर सकें। जिस तरह हम कंप्यूटर के उपयोक्ता हुए, टेलीफोन, मोबाइल फोन और इंटरनेट के हुए उसी तरह एआई के भी उपयोक्ता होंगे। हम आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का कोई अपना उत्पाद नहीं बनाएंगे, जिसे दुनिया इस्तेमाल करे। दुनिया में बनने वाले उत्पादों का हम इस्तेमाल करेंगे। पिछले 24 साल में हम तकनीकी उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं क्योंकि हमारी आबादी 140 करोड़ है। यह स्थिति तब तक नहीं बदलेगी, जब तक शोध और विकास पर खर्च नहीं बढ़ेगा। दुर्भाग्य से भारत में न तो सरकारों की मंशा शोध पर खर्च करने की है और न भारत के उद्यमियों में इतना साहस और इतनी दूरदृष्टि है कि वे शोध पर खर्च करें। इसका नतीजा यह है कि हमारी तकनीकी उपलब्धियों का जो है शिखर है यानी इसरो, उसे भी चार हजार किलो वजन से ज्यादा का उपग्रह अमेरिका के एक उद्यमी इलॉन मस्क के स्पेस स्टेशन से लॉन्च कराना पड़ता है। यह परिघटना पिछले साल यानी 2024 की है। उम्मीद करनी चाहिए कि 2025 में हम उन उपलब्धियों को हासिल करने की ओर बढ़ेंगे, जिन्हें अमेरिका के एक निजी उद्यमी ने अपने विजन, साहस और अपने निवेश के दम पर हासिल किया है। फिलहाल तो संचार और तकनीक की क्रांति की हमारी कुल जमा उपलब्धि यह है कि हमारे यहां 45 करोड़ लोग फेसबुक यूजर हैं और यूट्यूब के रील्स देखने में सबसे ज्यादा घंटे हम लोग गुजारते हैं।

दुनिया के अर्थशास्त्रियों के लिए आर्थिक क्रांति का मतलब भले यह होता है कि उससे आम लोगों की जिंदगी बदल गई, उनका जीवन स्तर बेहतर हो गया, उन्हें अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधा मिल रही है और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो गई लेकिन भारत के लिए आर्थिक क्रांति का मतलब है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में पांच किलो अनाज दिया जा रहा है, 50 करोड़ लोगों के जन धन खाते खुले हैं, जिसके आधार पर उनके आर्थिक समावेशन का दावा किया जा रहा है और इसके बरक्स देश में अरबपतियों की संख्या दुनिया के किसी दूसरे देश के मुकाबले सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ी है। हाल में दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी भारत के दौरे पर आए थे, जिन्होंने भारत में विद्यमान आर्थिक विषमता के बारे में विस्तार से बताया। उनके लौटने के साथ ही भारत के सरकारी अर्थशास्त्री अखबारों में लेख लिख कर यह बताने में जुटे हैं कि पिकेटी गलत थे और उनका आकलन गलत था। बहरहाल, भारत में पिछले साल या यूं कहें कि पिछले कुछ सालों के आर्थिक विकास का कुल जमा हासिल ‘मुफ्त की रेवड़ी’ वाली योजनाएं हैं, जिनके दम पर चुनाव लड़े और जीते जा रहे हैं।

भारत ने पहला परमाणु परीक्षा 1974 में किया। फिर 1998 में परमाणु परीक्षण के साथ ही  परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया और 2008 में अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील के साथ भारत का अछूतपन भी खत्म हो गया और दुनिया ने इसे परमाणु शक्ति संपन्न देश के तौर पर स्वीकार कर लिया। परंतु क्या उससे भारत की वह प्रतिष्ठा बनी, जो दुनिया के दूसरे परमाणु शक्ति संपन्न देशों की है? क्या अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस या ब्रिटेन की तरह दुनिया में भारत का मान बढ़ा? सामरिक और कूटनीतिक उपलब्धियों के नाम पर हमारा हासिल यह है कि नेपाल और मालदीव जैसे देश चीन के गुण गा रहे हैं। हम इस बात का जश्न मना रहे हैं कि चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद काफी हद तक सुलझा लिया है। लेकिन इस बात की चिंता नहीं हो रही है कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हमारे ऊपर क्या असर होगा? चीन इस प्रोजेक्ट पर करीब साढ़े आठ लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। इसी तरह वह तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर इस धरती का सबसे बड़ा बांध बना रहा है, जिस पर 13 लाख करोड़  रुपए खर्च करेगा। सोचें, भारत की सीमा पर सिर्फ दो प्रोजेक्ट पर वह 21 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहा है! चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग को अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ समारोह में शामिल होने का न्योता दिया, जिसे उन्हें ठुकरा दिया है और इस बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका के दौरे पर गए हैं तो भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा है कि उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए न्योते का जुगाड़ करने के लिए भेजा गया है। सोचें, चीन जिस न्योते को अस्वीकार कर रहा है, हम उसकी प्रतीक्षा में पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं!

भारत में एक क्रांति इन दिनों सामाजिक स्तर पर भी हो रही है। छोटे छोटे नेता अपनी  राजनीति चमकाने के लिए टेलीविजन स्टूडियो में ‘मनुस्मृति’ के पन्ने फाड़ रहे हैं या विश्वविद्यालयों में सामूहिक रूप से ‘मनुस्मृति’ जलाने का आय़ोजन कर रहे हैं तो दूसरी ओर हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने का एक अभियान भी चल रहा है। दुनिया मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने के नजदीक पहुंच गई है। ठीक एक हफ्ते पहले 24 दिसंबर को नासा का ‘पार्कर सोलर प्रोब’ सूर्य के सर्वाधिक नजदीक से गुजरा और उस समय छोटे कार के आकार के उस यान की रफ्तार सात लाख किलोमीटर प्रति घंटे की थी। इस रफ्तार वाले यान को लैंड कराने की तकनीक मिल जाती है तो 10 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंगल ग्रह पर छह दिन में पहुंचा जा सकेगा। बहरहाल, हमारे प्रधानमंत्रियों ने चाहे जितनी सदिच्छा से अलग अलग क्रांतियों की बुनियाद रखी हो, हकीकत यह है कि हम किसी क्रांति की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं। उलटे हम कई किस्म की प्रतिक्रांतियों के शिकार हो गए हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि नए साल में हम जमीनी वास्तविकताओं पर विचार करेंगे और उस दिशा में आगे बढ़ेंगे, जिसकी ओर बढ़ने का सपना हमारे पुरखे प्रधानमंत्रियों ने देखा था।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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