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अंतरिम बजट से क्या उम्मीद करें?

अंतरिम बजट

सत्रहवीं लोकसभा का आखिरी सत्र चल रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पहले अभिभाषण से सत्र की शुरुआत हुई और गुरुवार यानी एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश करेंगी। अंतरिम बजट में किसी बिग-बैंग घोषणा की उम्मीद नहीं की जा सकती है लेकिन वित्त से जुड़ी तकनीकियों के साथ साथ कई चीजों पर नजर रहेगी। सरकार किस तरह से वित्तीय अनुशासन को निभाती है यह देखने वाली बात होगी। चुनावी साल में कोई भी सरकार लोक लुभावन घोषणाओं का लोभ नहीं रोक पाती है। तभी संभव है कि कुछ नई घोषणाएं हों, कुछ पुरानी योजनाओं की समय सीमा बढ़ाई जाए और निचले तबके को मिल रहे लाभ यानी रेवड़ियों के बरक्स मध्य वर्ग को खुश करने वाली कुछ घोषणाएं भी हो सकती हैं।

सरकार इन सबका वित्तीय घाटे के साथ कैसे संतुलन बैठाती है यह भी देखने वाली बात होगी। गौरतलब है कि सरकार का सब्सिडी का बिल लगातार बढ़ रहा है और उसी अनुपात में देशी-विदेशी कर्ज की सीमा बढ़ रही है और वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, जिसे सरकार को 2025-26 में साढ़े चार फीसदी के दायरे में लाना है। सरकार कुछ सुधारों पर विचार कर रही है लेकिन अंतरिम बजट में शायद ही उसकी घोषणा हो।

बजट की संभावनाओं और उम्मीदों के साथ साथ इस सत्र की राजनीति पर भी पूरे देश की नजर रहेगी। संसद का पिछला यानी शीतकालीन सत्र बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के साथ समाप्त हुआ था। लोकसभा में विपक्ष के 46 और राज्यसभा में एक सौ सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था, जिनमें से 14 सांसदों के निलंबन का मामला तो विशेषाधिकार समिति के पास भेजा गया था। पक्ष और विपक्ष के गंभीर टकराव के बीच कई अहम विधेयक विपक्ष की गैरमौजूदगी में पास हुए थे।

अंग्रेजों के बनाए तीन कानूनों को बदल कर उनकी जगह नए कानून लाने वाले ऐतिहासिक बिल भी बिना विपक्ष के पास हुए थे। यह अच्छी बात है कि सत्र शुरू होने से पहले 132 सांसदों का निलंबन स्वतः समाप्त हो गया और विशेषाधिकार समिति ने 14 सांसदों का निलंबन समाप्त करने की सिफारिश कर दी। सो, सत्र की सकारात्मक शुरुआत हुई है। इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि पक्ष और विपक्ष दोनों 17वीं लोकसभा के आखिरी सत्र में सार्थक चर्चा करेंगे और देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद के पटल से ही देश की जनता को संदेश देंगे और वहीं संदेश लेकर चुनाव में जाएंगे। सांसदों के आचरण, उनकी गतिविधियों और उनके भाषणों पर देश की नजर होगी। राष्ट्रपति का अभिभाषण, जहां सरकार को अपनी उपलब्धियां बताने का मौका देगा तो उसी से विपक्ष को भी मौका मिलेगा कि वह सरकार की कमियां बताए।

बहरहाल, लौटते हैं कि अंतरिम बजट की उम्मीदों पर। यह अंतरिम बजट है इसलिए सरकार ने आर्थिक सर्वे नहीं पेश किया है लेकिन सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार की ओर से एक रिपोर्ट तैयार की गई है, जो मोटे तौर पर आर्थिक सर्वे की ही तरह है। उसमें सरकार ने दावा किया है कि अगले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था सात फीसदी की दर से बढ़ेगी और यह दर आने वाले कई बरसों तक कायम रहेगी। तभी यह दावा किया गया है कि 2027 तक देश की अर्थव्यवस्था पांच लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी और 2030 तक बढ़ कर सात लॉख करोड़ डॉलर यानी सात ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी।

सात फीसदी विकास दर का अनुमान सुनने में बहुत महत्वाकांक्षी लगता है क्योंकि दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में औसतन चार फीसदी तक की विकास दर का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन भारत का अनुमान हकीकत इसलिए लग रहा है क्योंकि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी सात फीसदी विकास दर का अनुमान जताया है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी विकास दर के अनुमान में सुधार किया है। आईएमएफ ने कहा है कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी। इसका यह मतलब है कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी चीजें ठीक हैं और सब्सिडी का बिल बढ़ने के बावजूद सरकार कुछ बड़े फैसले कर सकती है।

बड़े फैसले में भी प्रधानमंत्री ने पांच किलो मुफ्त अनाज की योजना को पहले ही पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। लेकिन कहा जा रहा है कि सरकार किसान सम्मान निधि की राशि में बढ़ोतरी कर सकती है। मनरेग के आवंटन में भी बढ़ोतरी की संभावना है। लोक लुभावन योजनाओं पर आवंटन के साथ साथ सरकार को पूंजीगत खर्च में भी बढ़ोतरी करनी है क्योंकि पिछले बजट में 10 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का ऐलान किया गया था।

कई आर्थिक जानकार मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी मोटे तौर पर सरकारी खर्च से ही चल रही है। इसलिए गाड़ी तेजी से चले इसके लिए पूंजीगत खर्च की घोषणाओं के हिसाब से आवंटन होना चाहिए। साथ ही वित्तीय घाटे का भी ध्यान रखना होगा, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 5.9 पहुंचा हुआ है। सरकार ने 2025-26 में इसे साढ़े चार फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा है। इसका मतलब है कि अगले वित्त वर्ष में इसमें करीब डेढ़ फीसदी की कमी लानी है। चुनावी साल में सरकार कैसे ऐसा कर पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा।

सरकार के लिए चुनौती वाली बातें दो हैं। पहली चुनौती यह है कि उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी अनुमान के मुताबिक नहीं हो रही है। यह चार फीसदी से नीचे है और कोरोना से पहले के स्तर तक नहीं पहुंचा है। इसका मतलब है कि जीडीपी की ऊंची दर बनाए रखने में उपभोक्ता खर्च के अलावा दूसरे फैक्टर का ज्यादा हाथ है। सरकार की दूसरी चुनौती बढ़ता कर्ज है, जो जीडीपी के 57 फीसदी तक पहुंच गया है। सोचें, कोरोना से पहले यह जीडीपी के 45 फीसदी के करीब था। यह सही है कि विदेशी कर्ज ज्यादा तेज रफ्तार से नहीं बढ़ा है लेकिन घरेलू और लघु अवधि के कर्ज में बढ़ोतरी हुई है। इसकी ब्याज दर भी ऊंची है।

इसका नतीजा यह हुआ है कि सरकार की जो आय होती है उसका करीब 40 फीसदी ब्याज चुकाने में ही चला जाता है। इन दोनों चुनौतियों से सरकार कैसे निपटती है यह भी देखने वाली बात होगी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों से सरकार की आय बढ़ी है। आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है और जीएसटी में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। तभी चुनावी साल में आम नागरिकों को टैक्स छूट की उम्मीद है। पेट्रोलियम उत्पादों की ऊंची कीमत से भी सरकार का खजाना भर रहा है। तभी इस पर भी नजर रहेगी कि सरकार उत्पाद शुल्क में कुछ कटौती करती है या नहीं।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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